Kalachakra Ceremony 2025
संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2025 में भूटान में आयोजित पवित्र कालचक्र “Wheel of Time” अनुष्ठान में भाग लिया। इस अवसर पर भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक, राष्ट्रीय आध्यात्मिक गुरु जे खेनपो भी उपस्थित रहे।
कालचक्र अनुष्ठान क्या हैं?
- अवधारणा: कालचक्र का अर्थ है “समय का चक्र”। यह बौद्ध वज्रयान दर्शन का एक प्रमुख तंत्र है, जो मनुष्य, प्रकृति और ब्रह्मांड के पारस्परिक संबंध को स्पष्ट करता है। यह अनुष्ठान शांति, करुणा और अहिंसा का संदेश देता है।
- मंडल निर्माण: कालचक्र समारोह में रेत से मंडल का निर्माण किया जाता है। भिक्षु कई दिनों तक ध्यान और मंत्रोच्चार के माध्यम से इस मंडल को तैयार करते हैं। यह मंडल अनित्यता और सृष्टि–विनाश के चक्र को दर्शाता है।
- दीक्षा: अनुष्ठान में कालचक्र अभिषेक दिया जाता है। यह दीक्षा साधकों को आध्यात्मिक उन्नति और मन की स्थिरता की दिशा में प्रेरित करती है। भूटान में इसे केवल उच्च पदस्थ आचार्य या जे खेनपो द्वारा संपन्न किया जाता है।
- धार्मिक महत्व: भूटान में कालचक्र परंपरा मठों और बौद्ध धार्मिक संस्थानों के माध्यम से सदियों से जीवित है। इसे भूटान की आध्यात्मिक पहचान का प्रमुख स्तंभ माना जाता है।
- आध्यात्मिक संरक्षक: भूटान के राजा और जे खेनपो दोनों इस परंपरा के संरक्षक हैं। वे ऐसे आयोजनों से सामाजिक एकता और आध्यात्मिक चेतना को बढ़ावा देते हैं।
कालचक्र अनुष्ठान का उद्देश्य
- समय और परिवर्तन: अनुष्ठान इस सिद्धांत पर आधारित है कि मानव जीवन, ब्रह्मांड तथा चेतना एक दूसरे से जुड़े हैं और सभी समय-चक्रों के अधीन हैं।
- व्यक्तित्व एवं समाज संतुलन: यह कहा जाता है कि इस अभ्यास से व्यक्ति अपनी अंतःशक्ति, ऊर्जा-चैनलों और मानसिक प्रवाह को समझ सकता है तथा सामाजिक-मानवीय सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलता है।
- विश्व-शांति एवं सद्भावना: सार्वजनिक आयोजनों में यह अनुष्ठान शांतिपूर्ण सहअस्तित्व एवं करुणा-आधारित जीवन जीने का संदेश देता है।
कालचक्र अनुष्ठान का इतिहास
- उद्गम: कालचक्र तंत्र का उद्गम भारत में लगभग 10वीं–11वीं शताब्दी के दौरान हुआ। इस काल में बौद्ध धर्म काफी प्रचलित हुआ। इसी बौद्ध वैचारिक उन्नति के बीच गूढ़ तांत्रिक ग्रंथों का संकलन हुआ, और इन्हीं में कालचक्र तंत्र प्रमुख माना गया।
- प्रसार: भारत से कालचक्र तंत्र तिब्बत तक पहुँचा। लगभग 11वीं शताब्दी में भारतीय आचार्यों और अनुवादकों ने इस परंपरा को तिब्बत ले जाकर संस्कृत ग्रंथों का तिब्बती भाषा में रूपांतर किया। तिब्बती इतिहास में यह दौर “स्वर्ण युग” कहलाता है।
- आधुनिक युग: 20वीं शताब्दी में 14वें दलाई लामा ने कालचक्र अनुष्ठान को जन-भागीदारी के रूप में पुनर्स्थापित किया। उन्होंने विभिन्न देशों में सार्वजनिक दीक्षाएँ दीं, जिससे यह अनुष्ठान वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय हुआ।

