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असम में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की रोकथाम नीति (African Swine Fever Prevention Policy in Assam) | UPSC

African Swine Fever Prevention Policy in Assam

African Swine Fever Prevention Policy in Assam

संदर्भ:

हाल ही में अफ्रीकन स्वाइन फीवर (ASF) ने असम के सूअर पालन उद्योग पर गंभीर प्रभाव डाला है। केवल अक्टूबर माह में ही 84 नए एपिसेंटर दर्ज हुए, जिससे संक्रमण की तीव्रता को देखते हुए असम सरकार ने Prevention and Control of Infectious and Contagious Diseases in Animals Act, 2009 के विभिन्न प्रावधानों के तहत राज्य भर में लाइव पिग्स के अंतर-जिला आवागमन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। 

अफ्रीकन स्वाइन फीवर (ASF) क्या हैं?

  • परिचय: अफ्रीकन स्वाइन फीवर (ASF) घरेलू और जंगली सूअरों को प्रभावित करने वाला एक अत्यंत संक्रामक वायरल रोग है। यह African Swine Fever Virus (ASFV) नामक बड़े DNA वायरस के कारण होता है, जो Asfarviridae परिवार से संबंधित है। यह केवल सूअरों को प्रभावित करता है और मनुष्यों में इसका संक्रमण नहीं फैलाता है।
    • प्रकोप: ASF की पहचान पहली बार 1921 में केन्या में हुई थी। अफ्रीका से यह धीरे-धीरे यूरोप और एशिया तक फैला। 2018 में चीन में ASF के प्रकोप ने दुनिया के सबसे बड़े पोर्क बाजार को हिला दिया, जिससे वैश्विक पोर्क कीमतों में भारी उछाल आया। भारत में 2020 और 2025 में असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में ASF का बड़ा प्रकोप देखा गया।
  • वाहक: ASF कई माध्यमों से फैलता है।
  • संक्रमित सूअरों के सीधे संपर्क से – खून, लार, मूत्र और मल के संपर्क से संक्रमण आसानी से फैलता है।
  • दूषित चारा और अपशिष्ट से – खेतों, फॉर्म हाउसों और परिवहन वाहनों पर मौजूद वायरस लंबे समय तक जीवित रह सकता है।
  • सॉफ्ट टिक (Soft Ticks) जैसे परजीवी कीड़ों से – अफ्रीका और एशिया में ASF के प्रसार में ये महत्वपूर्ण वाहक होते हैं।
  • लाइव पिग्स के परिवहन और बाजार गतिविधियों से – अंतर-जिला और अंतर-राज्यीय आवाजाही इसके तेजी से फैलने का बड़ा कारण है।
  • लक्षण: ASF के लक्षण संक्रमण के स्तर के अनुसार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन सामान्यतः इनमें शामिल हैं: अचानक तेज बुखार, भूख में कमी और सुस्ती, त्वचा पर लाल या नीले धब्बे, उल्टी और दस्त, नाक और मुंह से रक्तस्राव। कुछ मामलों में सूअर बिना किसी स्पष्ट लक्षण के भी संक्रमित हो सकते हैं।
  • इलाज: ASF का कोई उपचार, एंटीवायरल दवा या प्रभावी टीका उपलब्ध नहीं है। रोकथाम ही एकमात्र उपाय है।
    सरकारें और पशुपालक निम्न उपायों के माध्यम से इसे नियंत्रित करते हैं:
  • कड़ा बायो-सिक्योरिटी प्रबंधन – प्रवेश नियंत्रण, उपकरणों की सफाई और वाहनों की सैनिटाइजेशन।
  • संक्रमित क्षेत्रों को कंटेनमेंट जोन घोषित करना – पशुओं की आवाजाही पर रोक।
  • संक्रमित सूअरों का वैज्ञानिक निष्पादन (culling) – वायरस की श्रृंखला तोड़ना।
  • मॉनिटरिंग और सैंपलिंग – शुरुआती पहचान और ट्रैकिंग।
  • जागरूकता अभियान – स्थानीय पशुपालकों को सुरक्षित पालन के उपायों की जानकारी।

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