Endangered Sea Cow
संदर्भ:
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा अबू धाबी में जारी एक नई रिपोर्ट ने भारत में डुगोंग (Sea Cow) की तेजी से घटती आबादी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। रिपोर्ट के अनुसार गल्फ ऑफ कच्छ और अन्य क्षेत्रों में डुगोंग की संख्या लगातार कम हो रही है।
डुगोंग का परिचय:
डुगोंग एक बड़ा शाकाहारी समुद्री स्तनपायी है, जो वैश्विक स्तर पर “Sea Cow” के नाम से प्रसिद्ध है। यह Sirenia कुल का सदस्य है। डुगोंग पूरी तरह से समुद्री जीवन पर निर्भर रहते हैं और उथले समुद्री जल में पाई जाने वाली समुद्री घास पर भोजन करते हैं। भारत में यह प्रजाति अत्यंत सीमित क्षेत्रों में पाई जाती है।
भौतिक गुण, वितरण और पारिस्थितिक महत्व:
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भौतिक गुण: डुगोंग का शरीर मोटा, धूसर रंग का और आकार में सामान्यतः 2.5–3 मीटर लंबा होता है। इसकी पूँछ डॉल्फ़िन जैसी होती है। मादा डुगोंग 3–7 वर्ष के अंतराल में एक शावक को जन्म देती है और शावक प्रारंभिक वर्षों में दूध और सीग्रास पर निर्भर रहता है।
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भारत में वितरण: भारत में डुगोंग की उपस्थिति चार प्रमुख क्षेत्रों तक सीमित है: गल्फ ऑफ कच्छ (गुजरात), पाल्क खाड़ी (तमिलनाडु), मन्नार की खाड़ी (तमिलनाडु) और अंडमान–निकोबार द्वीपसमूह।
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पारिस्थितिक महत्व: डुगोंग पारिस्थितिकी तंत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:
- समुद्री घास के पुनर्जीवन में मदद करते हैं, जिससे तटीय जल की गुणवत्ता सुधरती है।
- ब्लू कार्बन भंडारण में योगदान देकर जलवायु संतुलन बनाए रखते हैं।
- तटीय क्षेत्रों में कटाव रोकने में सहायता करते हैं।
- कई वाणिज्यिक मछली प्रजातियों के लिए नर्सरी ग्राउंड बनाते हैं।
संकट और जोखिम:
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आवास ह्रास: समुद्री घास मैदानों का विनाश डुगोंग के लिए सबसे बड़ा खतरा है। तटीय विकास परियोजनाएँ, बंदरगाह निर्माण, ड्रेजिंग, पर्यटन विस्तार, बॉटम ट्रॉलिंग इन सभी गतिविधियों ने समुद्री घास का क्षेत्र कम कर दिया है, जिससे डुगोंग का प्राकृतिक भोजन समाप्त हो रहा है।
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प्रदूषण: प्लास्टिक कचरा, रसायन और अपशिष्ट तटीय जल में प्रवेश कर सीग्रास को नुकसान पहुंचाते हैं। समुद्री ध्वनि प्रदूषण उनके भोजन और प्रजनन व्यवहार को प्रभावित करता है।
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मत्स्य गतिविधियाँ: जाल में फँसने की घटनाएँ (Bycatch), तेज गति वाली नावों से टक्कर और अवैध ट्रॉलिंग जैसी घटनाओं के कारण उनकी मृत्यु दर में वृद्धि हुई हैं।
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जलवायु परिवर्तन: समुद्री तापमान में बढ़ोतरी, चक्रवातों की वृद्धि, समुद्री अम्लीकरण ने समुद्री घास की उत्पादकता घटाई है, जिससे डुगोंग के जीवन चक्र पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
संरक्षण प्रयास:
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भारत सरकार के उपाय:
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- Wildlife Protection Act, 1972 की Schedule–I में डुगोंग को शामिल कर सर्वोच्च संरक्षण दिया गया है।
- Dugong Recovery Programme के तहत सीग्रास बहाली, आवास संरक्षण और निगरानी को बढ़ावा दिया गया।
- मन्नार की खाड़ी समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Gulf of Mannar Biosphere Reserve) और अंडमान–निकोबार में विशेष निगरानी कार्यक्रम चल रहे हैं।
- मत्स्य विभाग द्वारा Bycatch Mitigation Guidelines लागू किए जा रहे हैं।
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अंतरराष्ट्रीय प्रयास:
- IUCN की रेड डाटा पुस्तक के अंतर्गत संरक्षण मूल्यांकन
- CMS (Convention on Migratory Species) के अंतर्गत सहयोग

