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भारत की पहली स्वदेशी सिकल सेल जीन थेरेपी (India first indigenous sickle cell gene therapy) | Ankit Avasthi Sir

India first indigenous sickle cell gene therapy

India first indigenous sickle cell gene therapy

संदर्भ:

भारत सरकार ने सिकल सेल रोग के उन्मूलन के राष्ट्रीय लक्ष्य के तहत देश की पहली स्वदेशी CRISPR आधारित जीन थेरेपी लॉन्च की है। यह अत्याधुनिक तकनीक विशेष रूप से आदिवासी समुदायों पर केंद्रित है, जहाँ सिकल सेल रोग की व्यापकता सबसे अधिक पाई जाती है। यह नवाचार CSIR–IGIB द्वारा विकसित किया गया है और इसे “BIRSA-101” नाम दिया गया है, जो आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा को समर्पित है।

सिकल सेल रोग क्या हैं?

  • परिचय: सिकल सेल एनीमिया एक अनुवांशिक रक्त रोग है, जिसमें रेड ब्लड सेल्स (RBC) अर्धचंद्राकार या ‘Sickle-shaped’ हो जाते हैं। 
  • प्रभाव: इस प्रकार की आकृति वाली कोशिकाएँ आसानी से टूटती हैं, रक्त वाहिकाओं को अवरुद्ध करती हैं तथा शरीर में ऑक्सीजन आपूर्ति को कम कर देती हैं। इससे तीव्र दर्द, एनीमिया, अंगों का नुकसान और संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है। 
  • प्रभावित क्षेत्र: भारत में यह बीमारी विशेष रूप से मध्य व पूर्वी भारत के आदिवासी क्षेत्रों—झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र—में अधिक व्यापक है।

CRISPR आधारित जीन थेरेपी क्या है? 

CRISPR एक अत्यंत सटीक जीन-संपादन तकनीक है, जिसे DNA के “जेनेटिक सर्जरी उपकरण” के रूप में समझा जा सकता है। इस थेरेपी में— रोगी का रक्त लिया जाता है और फिर स्टेम सेल्स अलग किए जाते हैं। इसके बाद सिक्ल सेल म्यूटेशन वाले जीन को CRISPR-Cas9 तकनीक से एडिट किया जाता है और एडिटेड स्टेम सेल को पुनः शरीर में प्रविष्ट किया जाता है। ये संशोधित स्टेम सेल स्वस्थ RBC बनाना शुरू कर देती हैं, जिससे बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है। 

स्वदेशी तकनीक का विकास:

CSIR–IGIB ने उन्नत enFnCas9 CRISPR प्लेटफ़ॉर्म विकसित किया है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध तकनीकों की तुलना में किफायती और भारत की आनुवांशिक विशेषताओं के अनुसार अनुकूलित है। इस परियोजना को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा जनजातीय मामलों के मंत्रालय से सहयोग प्राप्त है। 

थेरेपी का चिकित्सकीय महत्व:

  • रोग की जड़ पर प्रहार: यह थेरेपी रोगी के DNA को ठीक कर बीमारी को स्थायी रूप से समाप्त करने की क्षमता रखती है।
  • वैश्विक उपचारों की तुलना में किफायती: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महंगी जीन थेरेपी (20–25 करोड़ रुपये) के मुकाबले भारत इसे बेहद कम लागत में विकसित कर रहा है।
  • आदिवासी स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ावा: BIRSA-101 विशेष रूप से उन समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है, जहाँ सिकल सेल रोग पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आया है।
  • वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता: यह भारत की जैव-प्रौद्योगिकी क्षमता और वैश्विक नेतृत्व को स्थापित करता है।
  • अन्य आनुवांशिक रोग: थैलेसीमिया, हीमोफीलिया और अन्य मोनोजेनिक बीमारियों के उपचार में CRISPR आधारित तकनीक भविष्य का समाधान बन सकती है।

इस थेरेपी से संबंधित चुनौतियाँ:

  • जीन एडिटिंग पर दीर्घकालिक सुरक्षा परीक्षण आवश्यक होता हैं।
  • इसके क्रियान्वयन के लिए विशेष प्रयोगशालाओं और प्रशिक्षित विशेषज्ञों की कमी है।
  • इनकी प्रारंभिक लागत उच्च है। 
  • ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य अवसंरचना का अभाव है।

सरकारी प्रयास:

  • सिक्ल सेल रोग उन्मूलन मिशन (2023–32)
  • आदिवासी जिलों में स्क्रीनिंग और जागरूकता कार्यक्रम
  • जीन थेरेपी को “Make in India – Bioeconomy 2047” लक्ष्य में शामिल किया गया।

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