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अरुणाचल प्रदेश की दाओ को GI टैग (Arunachal Pradesh Dao gets GI tag) | Apni Pathshala

Arunachal Pradesh Dao gets GI tag

Arunachal Pradesh Dao gets GI tag

संदर्भ:

21 नवंबर 2025 को अरुणाचल प्रदेश के पारंपरिक हथकरघा-निर्मित दाओ (Dao) को भौगोलिक-संकेतक (Geographical Indication – GI) टैग प्राप्त हुआ। यह राज्य की लोहे की पारंपरिक कारीगरी को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे स्थानीय कारीगरों, जनजातीय पहचान और सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था को नई गति प्राप्त हो सकती हैं।

दाओ क्या है?

  • परिचय: दाओ पूर्वोत्तर भारत, विशेषकर अरुणाचल प्रदेश की जनजातीय समुदायों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक पारंपरिक बहुउपयोगी धारदार औजार है। यह हथियार उनके जनजातीय पहचान, शिल्प परंपरा और सामुदायिक विरासत का प्रतीक माना जाता है। 
  • आकर: दाओ का आकार, निर्माण तकनीक और उपयोग जनजाति के अनुसार भिन्न भिन्न होती है। इसकी मूल संरचना एक चौड़ी, मजबूत, हाथ से गढ़ी गई ब्लेड होती है। जिसे हाथ से पकड़ने के लिए इसके नाचने सिरे पर लकड़ी या बांस की बनी हुई गट्टी का प्रयोग किया जाता है।
  • प्रक्रिया: दाओ को मुख्य रूप से स्थानीय लोहारों द्वारा पारंपरिक तकनीकों से तैयार किया जाता है। लोहे को हाथ से पीटकर, गर्म करके और आकार देकर तैयार किया जाता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह मैनुअल होती है, जिसमें कारीगरों की पीढ़ियों से प्राप्त विशेषज्ञता प्राप्त है। ।
  • उपयोग: यह औजार दैनिक जीवन में लकड़ी काटने, खेती-बाड़ी, झाड़ी साफ करने, घर बनाने, शिकार, और रक्षा जैसे अनेक कार्यों में उपयोग होता है। 
  • महत्व: अनेक जनजातियों विशेषकर अडी, न्याशी, तागिन, मिश्मी, वांचो में दाओ को सामाजिक प्रतिष्ठा, साहस और सामुदायिक पहचान से भी जोड़ा जाता है।

अरुणाचल प्रदेश के अन्य प्रमुख GI-टैग उत्पाद:

  • अरुणाचल ऑरेंज / वक्रो ऑरेंज: वक्रो ऑरेंज एक GI-टैग प्राप्त कृषि उत्पाद है, जो विशिष्ट भौगोलिक और जलवायु स्थितियों में उगाया जाता है। 
  • खॉ टाइ / खेमटी चावल: अरुणाचल का यह चिपचिपा स्टिकी चावल “खॉ टाइ” नाम से जाना जाता है। यह Khampti जनजाति द्वारा पारंपरिक रूप में उगाया जाता है और इसकी अद्वितीय सुगंध और स्वाद इसे विशेष पहचान देते हैं। 
  • टांगसा टेक्सटाइल: टांगसा जनजाति की बुनाई शैली और डिज़ाइन पैटर्नों पर आधारित यह हैंडीक्राफ्ट टेक्सटाइल GI-टैग प्राप्त कर चुकी है। 
  • याक चुर्पी: अरुणाचल की याक जनजातियों द्वारा बनायी जाने वाली यह प्रोसेस्ड याक दूध से बनी हार्ड चीज़ है, जिसे पारंपरिक प्रक्रिया से तैयार किया जाता है और इसे GI टैग मिला है। 
  • अपतानी टेक्सटाइल: अपतानी जनजाति की पारंपरिक बुनाई कलाकारी को GI सुरक्षा मिली हुई है। 
  • मोनपा हैंडमेड पेपर: मोनपा समुदाय द्वारा तैयार किया जाने वाला हस्तनिर्मित हस्तकागज (पेपर) भी GI टैग से संरक्षित है। 
  • आदि केकर (अदरक): अरुणाचल प्रदेश में होती विशिष्ट अदरक की किस्म “एड़ी केकर” को GI टैग प्राप्त है, जो इसकी विशिष्टता और उत्पत्ति को दर्शाता है। 
  • वांचो वुडन क्राफ्ट: वांचो कला समूह की लकड़ी-कला वस्तुएँ, जैसे मूर्तियाँ, घरेलू उपयोग की वस्तुएँ आदि, GI सुरक्षा प्राप्त हैं। 
  • सिंगफो फलाप: सिंगफो जनजाति से जुड़ी विशेष चाय को GI टैग प्रदान किया गया है। 
  • आदि अपोंग: अपोंग पारंपरिक millet-बेस्ड पेय है, जिसे अर्थ-सांस्कृतिक रूप से महत्व दिया गया है और GI टैग मिला है। 
  • एंग्यात मीलट: यह एक पारंपरिक मीलट का प्रकार है, जो अरुणाचल की विशिष्ट मिट्टी और जलवायु में उगाई जाती है और GI टैग प्राप्त कर चुकी है। 

GI टैग का महत्व:

  • स्थानीय आर्थिक सशक्तीकरण – GI टैग मिलने से उत्पादों की बाज़ार मांग बढ़ती है, जिससे कारीगरों, किसानों और स्थानीय समुदायों की आय में वृद्धि होती है।
  • सांस्कृतिक संरक्षण – यह परंपरागत ज्ञान, हस्तकला, विशिष्ट कृषि पद्धतियों और स्थानीय विरासत को संरक्षित और प्रोत्साहित करता है।
  • वैश्विक पहचान और ब्रांड वैल्यू – GI टैग उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में विशिष्ट पहचान देता है, जिससे निर्यात अवसर मजबूत होते हैं।
  • नकली उत्पादों से सुरक्षा – GI प्रमाणन असली और प्रामाणिक उत्पादों की पहचान सुनिश्चित करता है और नकली/कॉपी उत्पादों पर रोक लगाता है।
  • क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा – GI टैग पर्यटन, स्थानीय उद्योगों, पारंपरिक क्लस्टरों और ग्रामीण विकास को प्रोत्साहित करता है, जिससे क्षेत्रीय असमानता कम होती है।

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