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मुंबई में सड़क परिवहन से सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन (Mumbai has the highest carbon emissions from road transport) | UPSC

Mumbai has the highest carbon emissions from road transport

Mumbai has the highest carbon emissions from road transport

संदर्भ:

हाल ही में प्रकाशित एक नवीन वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, मुंबई भारत के प्रमुख महानगरों में प्रति किलोमीटर सड़क लंबाई पर सड़क परिवहन से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जन में शीर्ष पर है। यह अध्ययन फ्रांस एवं भारत के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है, जो CHETNA परियोजना का हिस्सा है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु:

    • अनुसंधान की पद्धति: इस अध्ययन में 2021 के आंकड़ों के आधार पर भारत के 15 प्रमुख शहरों में सड़क परिवहन से होने वाले CO₂ और अन्य प्रदूषकों का 500 मीटर के सूक्ष्म स्तर पर मानचित्रण किया गया। 

    • योगदान: इस शोध में आईआईटी बॉम्बे, पेरिस-सैक्ले विश्वविद्यालय और फ्रांस की शहरी गतिशीलता डेटा संस्था का योगदान रहा।

  • मुंबई की स्थिति: अध्ययन के अनुसार, मुंबई में प्रति किलोमीटर सड़क पर 5 से 6 टन CO₂ उत्सर्जन दर्ज किया गया, जो देश में सबसे अधिक है। इसका मुख्य कारण अत्यधिक वाहन घनत्व, गंभीर यातायात जाम और सीमित सड़क स्थान है। मुंबई में 9.5 से 10 वाहन प्रति किलोमीटर सड़क पर पाए गए।

  • अन्य महानगरों की तुलना: चंडीगढ़, चेन्नई, पुणे और बेंगलुरु उच्च वाहन घनत्व और उच्च उत्सर्जन वाले समूह में शामिल हैं, जहां CO₂ उत्सर्जन लगभग 5 टन प्रति किलोमीटर के आसपास रहा। दिल्ली मध्यम-उच्च श्रेणी में रहा, जहां उत्सर्जन 4 टन से अधिक प्रति किलोमीटर दर्ज किया गया। वहीं गुवाहाटी, इंदौर और जयपुर जैसे शहरों में अपेक्षाकृत कम उत्सर्जन पाया गया।

  • प्रमुख प्रदूषक: सड़क परिवहन से निकलने वाले प्रदूषकों में नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) का प्रभाव सभी शहरों में देखा गया। मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद और पुणे में इन प्रदूषकों का स्तर छोटे शहरों की तुलना में काफी अधिक रहा। इसमें पीएम₂.₅, पीएम₁₀ और ब्लैक कार्बन का स्तर मध्यम पाया गया।

  • प्रति व्यक्ति उत्सर्जन: अध्ययन का एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि प्रति व्यक्ति CO₂ उत्सर्जन लगभग सभी 15 शहरों में 0.2 टन प्रति वर्ष से कम रहा।

उच्च CO₂ उत्सर्जन चिंता का विषय क्यों?

  • उच्च CO₂ उत्सर्जन हानिकारक है, क्योंकि यह एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जो वायुमंडल में गर्मी को रोककर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन (चरम मौसम, समुद्र स्तर में वृद्धि) का कारण बनती है, जिससे पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र बाधित होते हैं। 
  • ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन: CO₂ एक ग्रीनहाउस गैस है जो सूर्य की गर्मी को वायुमंडल में रोक लेती है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ता है, ग्लेशियर पिघलते हैं, समुद्र का जलस्तर बढ़ता है और चरम मौसमी घटनाएं (बाढ़, सूखा, तूफान) बढ़ जाती हैं।
  • महासागरों का अम्लीकरण: वायुमंडल से अधिक CO₂ समुद्रों में घुल जाती है, जिससे समुद्र का पानी अम्लीय (acidic) हो जाता है। यह समुद्री जीवों, खासकर उन जीवों के लिए खतरा है जो कैल्शियम कार्बोनेट से कवच या खोल बनाते हैं, जैसे शंख और मूंगे (corals)।
  • पोषक तत्वों की कमी: CO₂ के बढ़ने से फसलों में प्रोटीन, जिंक और आयरन जैसे पोषक तत्वों की मात्रा घट जाती है, जिससे कुपोषण और बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
  •  जंगल की आग: बढ़ते तापमान से सूखे और गर्मी की लहरें आती हैं, जिससे जंगल में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं और वन्यजीवों के आवास नष्ट होते हैं।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव (अप्रत्यक्ष): खराब वायु गुणवत्ता के कारण श्वसन संबंधी समस्याएं, सिरदर्द, थकान और रक्तचाप बढ़ना जैसी दिक्कतें हो सकती हैं, खासकर बंद जगहों में उच्च CO₂ सांद्रता होने पर।
  • पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन: पौधों की वृद्धि पर CO₂ का दोहरा प्रभाव होता है; बहुत अधिक होने पर यह पौधों के विकास को बाधित कर सकता है और पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बिगाड़ सकता है, जिससे जैव विविधता को नुकसान होता है। 

निष्कर्ष:

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: सड़क परिवहन भारत में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत है। मुंबई का उदाहरण दिखाता है कि अत्यधिक शहरीकरण और निजी वाहनों पर निर्भरता जलवायु परिवर्तन की चुनौती को और गंभीर बनाती है।

  • नीतिगत संदर्भ: भारत में ईंधन दक्षता मानक, सार्वजनिक परिवहन विस्तार, इलेक्ट्रिक वाहन नीति, और गैर-मोटर चालित परिवहन को बढ़ावा देने जैसे कदम आवश्यक हैं। हालांकि वाहन दक्षता मानक लागू हैं, लेकिन शहरी भीड़ एक बड़ी बाधा बनी हुई है।

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