Victory Day
संदर्भ:
इस वर्ष भारत ने 16 दिसंबर 2025 को 54वां विजय दिवस मनाया। यह दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है, जो भारत की उस ऐतिहासिक सैन्य विजय का स्मरण कराता है, जब 1971 के भारत–पाक युद्ध में पाकिस्तान पर निर्णायक जीत के साथ बांग्लादेश का उदय हुआ।
1971 भारत–पाक युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- 1971 के युद्ध की पृष्ठभूमि 1970 के पाकिस्तान आम चुनाव से जुड़ी है, जिसमें शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में आवामी लीग को स्पष्ट बहुमत मिला। इसके बावजूद पश्चिमी पाकिस्तान की सत्ता संरचना ने सत्ता हस्तांतरण से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान में आंदोलन और असहयोग तेज हो गया।
- 25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ के तहत भीषण दमन अभियान चलाया। इसमें व्यापक नरसंहार, बुद्धिजीवियों की हत्या और मानवाधिकार उल्लंघन हुए। इस अत्याचार के कारण लगभग एक करोड़ शरणार्थी भारत में प्रवेश कर गए, जिससे भारत पर भारी सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक दबाव पड़ा।
1971 भारत–पाक युद्ध की शुरुआत:
- मानवीय संकट और क्षेत्रीय अस्थिरता को देखते हुए भारत ने बांग्लादेश की मुक्ति बाहिनी को प्रशिक्षण, हथियार और आश्रय प्रदान किया। यह समर्थन भारत की मानवीय और नैतिक नीति का हिस्सा था।
- इसके बाद 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत के 11 हवाई अड्डों पर पूर्व-प्रहार किया, जिसे ‘ऑपरेशन चंगेज़ खान’ कहा गया। इसके बाद भारत ने औपचारिक रूप से युद्ध में प्रवेश किया और पूर्वी तथा पश्चिमी मोर्चों पर सैन्य अभियान शुरू हुए।
1971 भारत–पाक युद्ध की प्रमुख घटनाएँ:
- यह युद्ध कुल 13 दिनों (3–16 दिसंबर 1971) तक चला, जो आधुनिक सैन्य इतिहास का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
- उस समय भारत के फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में भारतीय सेना ने थल, जल और वायु सेनाओं के बीच उत्कृष्ट समन्वय स्थापित किया।
- पूर्वी मोर्चे पर भारतीय सेना और मुक्ति बाहिनी ने तेज गति से आगे बढ़ते हुए ढाका को घेर लिया। तंगैल एयरड्रॉप जैसी रणनीतियों ने पाकिस्तानी सेना की आपूर्ति और संचार व्यवस्था पूरी तरह बाधित कर दी।
- भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन ट्राइडेंट (4–5 दिसंबर) और ऑपरेशन पाइथन (8 दिसंबर) के माध्यम से कराची बंदरगाह को निष्क्रिय कर दिया। इसी स्मृति में 4 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाया जाता है।
भारतीय वायुसेना ने शीघ्र ही वायु श्रेष्ठता प्राप्त कर पाकिस्तानी ठिकानों को निष्प्रभावी किया।
आत्मसमर्पण और बांग्लादेश का जन्म:
- 16 दिसंबर 1971 को ढाका के रमना रेस कोर्स मैदान (अब सुहरावर्दी उद्यान) में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ए. ए. के. नियाज़ी ने ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर’ पर हस्ताक्षर किए।
- भारतीय पक्ष से यह आत्मसमर्पण लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष हुआ। लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण माना जाता है। इसके साथ ही बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया।
रणनीतिक और भू-राजनीतिक महत्व:
- भू-राजनीतिक बदलाव: इस जीत ने दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक मानचित्र को काफी हद तक बदल दिया और एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत किया।
- सैन्य पराक्रम: इस युद्ध ने तीनों सेनाओं में भारत की असाधारण सैन्य योजना, समन्वय और क्रियान्वयन को प्रदर्शित किया।
- कूटनीति: शीत युद्ध के दौर में यह भारत की कूटनीतिक सफलता भी थी, विशेषकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में। यह युद्ध आत्मनिर्णय, मानवाधिकार और मानवीय हस्तक्षेप के सिद्धांतों का व्यावहारिक उदाहरण है।
- राष्ट्रीय एकता: विजय दिवस राष्ट्रीय गौरव का एक शक्तिशाली प्रतीक है, जो देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले लगभग 3,900 भारतीय सैनिकों के सर्वोच्च बलिदान को सम्मानित करता है।

