Importance of spongy microbes in combating metal pollution
संदर्भ:
हाल ही में बोस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने सुंदरबन डेल्टा के मीठे पानी के स्पंजों पर एक अध्ययन किया, जिसमें पाया गया कि ये स्पंज आर्सेनिक, लेड और कैडमियम जैसे विषाक्त धातुओं को जमा कर सकते हैं और अपने साथ रहने वाले सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया) की मदद से उन्हें निष्क्रिय कर सकते हैं, जिससे ये स्पंज प्रदूषण के जैव-उपचार के लिए उत्कृष्ट जैव-संकेतक (bioindicators) साबित हो सकते हैं।
स्पंजी सूक्ष्मजीवों की कार्यप्रणाली:
सूक्ष्मजीव ‘स्पंज’ की तरह कार्य करते हैं, क्योंकि वे अपनी कोशिका भित्ति के माध्यम से भारी धातुओं को सोखने या उन्हें कम हानिकारक रूपों में बदलने की क्षमता रखते हैं। इसकी मुख्य प्रक्रियाएं हैं:
- जैव-अधिशोषण (Biosorption): सूक्ष्मजीवों की कोशिका सतह पर मौजूद लिगेंड्स (जैसे फॉस्फेट, कार्बोक्सिल समूह) धातुओं के साथ जुड़ जाते हैं, जिससे धातुएं पानी या मिट्टी से अलग हो जाती हैं। राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र (NCBI) के अनुसार, यह एक निष्क्रिय और तीव्र प्रक्रिया है।
- जैव-संचय (Bioaccumulation): जीवित सूक्ष्मजीव धातुओं को अपने चयापचय (Metabolism) के माध्यम से कोशिका के भीतर ले जाते हैं। विशिष्ट प्रोटीन (P-टाइप ATPases) धातु आयनों को कोशिका के अंदर या बाहर पंप करते हैं।
- जैव-परिवर्तन (Biotransformation): सूक्ष्मजीव विषाक्त धातुओं (जैसे मरकरी या क्रोमियम) की ऑक्सीकरण अवस्था को बदलकर उन्हें कम विषैला बना देते हैं। मरक्यूरिक रिडक्टेस (MerA) प्रोटीन, पारे के विषैले आयनिक रूप को कम विषैले गैसीय तत्व पारे में बदलता है, जो कोशिका से वाष्प बनकर निकल जाता है और विषाक्तता कम करता है।
विशिष्ट धातुओं को लक्षित करने वाले सूक्ष्मजीव:
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- बैक्टीरिया (Bacteria): जैसे Pseudomonas putida कैडमियम (Cd) और लेड (Pb) जैसे भारी धातुओं को अपने अंदर जमा (accumulate) कर सकता है या उन्हें कम विषाक्त रूपों में बदल सकता है, जिससे उन्हें पर्यावरण से हटाना आसान हो जाता है।
- कवक (Fungi): जैसे Aspergillus niger (ब्लैक मोल्ड) कॉपर (Cu) और जिंक (Zn) जैसी धातुओं के लिए एक “स्पंज” की तरह काम करता है, उन्हें अपने माइसेलियल नेटवर्क (mycelial network) में सोख लेता है, जिससे ये धातुएँ पानी से अलग हो जाती हैं।
- शैवाल (Algae): जैसे समुद्री शैवाल (Seaweeds) औद्योगिक अपशिष्टों और प्रदूषित जल से आर्सेनिक (As), मरकरी (Hg), कैडमियम (Cd) और लेड (Pb) जैसी भारी धातुओं को बायोअसोर्प्शन और बायोअक्युमुलेशन प्रक्रियाओं द्वारा प्रभावी ढंग से सोखने (adsorb) में सक्षम होते हैं।
इसके लाभ:
- किफायती (Cost-effective): पारंपरिक रासायनिक विधियों (जैसे आयन एक्सचेंज) की तुलना में यह तकनीक अत्यंत सस्ती है।
- पर्यावरण अनुकूल: इसमें हानिकारक रसायनों का उपयोग नहीं होता और न ही माध्यमिक प्रदूषण (Secondary pollution) उत्पन्न होता है।
- पुनर्प्राप्ति (Resource Recovery): सूक्ष्मजीवों द्वारा सोखी गई धातुओं को बाद में पुनर्चक्रित (Recycle) किया जा सकता है।
- भारत में गंगा और यमुना जैसी नदियों में औद्योगिक कचरे के कारण क्रोमियम और लेड का उच्च स्तर पाया जाता है। इससे निपटने और सतत विकास लक्ष्यों (SDG 6 और 15) को प्राप्त करने के लिए स्पंजी सूक्ष्मजीवों का उपयोग एक नवाचारी समाधान है।

