SBFAS
संदर्भ:
हाल ही में भारत सरकार ने भारतीय जहाज निर्माण उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए जहाज निर्माण वित्तीय सहायता योजना (SBFAS) के लिए परिचालन संबंधी दिशा-निर्देश अधिसूचित किए हैं।
जहाज निर्माण वित्तीय सहायता योजना (SBFAS) के बारे में:
जहाज निर्माण वित्तीय सहायता योजना (Shipbuilding Financial Assistance Scheme – SBFAS) भारत के समुद्री क्षेत्र को पुनर्जीवित करने और देश को वैश्विक जहाज निर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से भारत सरकार की एक प्रमुख पहल है।
- विस्तार: यह योजना पहले 2016 से 2026 तक के लिए थी, जिसे अब 31 मार्च 2036 तक बढ़ा दिया गया है।
- कुल परिव्यय (Budget): इस योजना के लिए ₹24,736 करोड़ का कुल कोष (Corpus) आवंटित किया गया है।
- योजना का प्रबंधन शिपबिल्डिंग फाइनेंशियल असिस्टेंस मैनेजमेंट सिस्टम ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से किया जाता है।
योजना के मुख्य उद्देश्य:
- घरेलू क्षमता को सुदृढ़ करना: भारत में जहाज निर्माण को प्रोत्साहित करना और स्वदेशी क्षमताओं का विकास करना।
- आर्थिक विकास और रोजगार सृजन: इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित करना और लगभग 30 लाख रोजगार के अवसर पैदा करना।
- आत्मनिर्भरता: महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाओं और समुद्री मार्गों में लचीलापन लाकर राष्ट्रीय सुरक्षा, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा को मजबूत करना।
- हरित नौवहन को बढ़ावा: पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों, जैसे हरित ईंधन (मेथनॉल, अमोनिया, हाइड्रोजन ईंधन सेल) या हाइब्रिड प्रणोदन प्रणालियों का उपयोग करने वाले जहाजों के निर्माण को प्रोत्साहित करना।
वित्तीय सहायता की दरें:
इस योजना में वित्तीय सहायता प्रति पोत (vessel) 15% से 25% तक होती है, जो पोत की श्रेणी पर निर्भर करती है।
- सामान्य पोत (Normal Vessels): ₹100 करोड़ तक के मूल्य वाले पोतों के लिए 15% सहायता। ₹100 करोड़ से अधिक मूल्य वाले बड़े सामान्य पोतों के लिए, पहले ₹100 करोड़ पर 15% और शेष लागत पर 20% सहायता।
- विशेषीकृत पोत (Specialised Vessels): पवन-फार्म इंस्टॉलेशन वेसल, परिष्कृत ड्रेजर, LNG/LPG वाहक, और फ्लोटिंग या सबमर्सिबल ड्रिलिंग प्लेटफॉर्म जैसे विशेषीकृत पोतों के लिए उच्च सहायता प्रदान की जाती है।
- हरित/हाइब्रिड पोत: हरित ईंधन (मेथनॉल, अमोनिया, हाइड्रोजन ईंधन सेल) का उपयोग करने वाले जहाजों के लिए 30% और इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड प्रणोदन प्रणाली वाले जहाजों के लिए 20% वित्तीय सहायता का प्रावधान है।
- श्रृंखला आदेश (Series Orders): श्रृंखला आदेशों (multiple orders for the same vessel type) के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन शामिल हैं।
- शिपब्रेकिंग क्रेडिट नोट (Shipbreaking Credit Note): भारतीय शिपयार्डों में पुराने जहाजों को स्क्रैप करने वाले मालिकों को स्क्रैप मूल्य के 40% के बराबर क्रेडिट नोट मिलेगा, जिसका उपयोग नए जहाज बनाने में किया जा सकता है।
पात्रता और क्रियान्वयन:
- निर्माण अवधि: सहायता के लिए केवल वही जहाज पात्र हैं जिनका निर्माण और वितरण अनुबंध की तारीख से 3 साल के भीतर पूरा हो गया हो (विशेष जहाजों के लिए इसे 6 साल तक बढ़ाया जा सकता है)।
- जहाज का प्रकार: इसमें वाणिज्यिक जहाज (कार्गो, टैंकर, यात्री जहाज) और ड्रेजर शामिल हैं।
- लंबाई: सामान्यतः 24 मीटर से अधिक लंबाई वाले जहाज पात्र हैं, लेकिन ग्रीन फ्यूल और निर्यात के आदेश वाले जहाजों के लिए लंबाई की यह शर्त लागू नहीं होती।
- निगरानी: सहायता का संवितरण (disbursement) परिभाषित मील के पत्थरों (milestones) से जुड़ा होगा और स्वतंत्र मूल्यांकन एजेंसियों द्वारा निगरानी की जाएगी। इसमें एक राष्ट्रीय जहाज निर्माण मिशन सभी पहलों के समन्वित नियोजन की देखरेख के लिए स्थापित किया गया है।
महत्व:
- आत्मनिर्भर भारत: रक्षा और वाणिज्यिक दोनों क्षेत्रों में विदेशी जहाजों पर निर्भरता कम करना।
- रोजगार सृजन: जहाज निर्माण एक श्रम-प्रधान उद्योग है। एक प्रत्यक्ष नौकरी के बदले सहायक उद्योगों में लगभग 6-7 अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होती हैं।
- विदेशी मुद्रा की बचत: वर्तमान में भारत विदेशी चार्टरिंग पर भारी विदेशी मुद्रा खर्च करता है। स्वदेशी निर्माण से इसकी बचत होगी।
- ब्लू इकोनॉमी: भारत की 7,500 किमी लंबी तटरेखा का आर्थिक दोहन करने के लिए मजबूत नौसैनिक बुनियादी ढांचा अनिवार्य है।

