Kharchi Puja एक आकर्षक त्योहार है, जो पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
क्या है खर्ची पूजा (Kharchi Puja):
- खर्ची पूजा पूर्वोत्तर के त्रिपुरा राज्य में मनाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है।
- ‘खर्ची’ दो त्रिपुरी शब्दों (खर+ची) से बना है, जिसका अर्थ होता है ‘पाप की सफाई’।
- यह त्योहार हर साल जुलाई या अगस्त में अमावस्या के आठवें दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार अगरतला (पुराण अगरतला) में चौदह देवताओं के मंदिर परिसर में मनाया जाता है।
- आदिवासी मूल का यह त्यौहार त्रिपुरा समुदाय के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के साथ-साथ समृद्ध इतिहास और परंपराओं को प्रदर्शित करता है।
- यह एक सप्ताह तक चलने वाला त्यौहार है। जिसके अंतिम दिन मुख्य अनुष्ठान होता है।
खर्ची पूजा (Kharchi Puja) को लेकर क्या है मान्यता:
- किंवदंतियों और परंपराओं के मुताबिक, खर्ची पूजा धरती माता को शुद्ध करने का तरीका है।
- ऐसा माना जाता है कि त्रिपुरा की सदैव रक्षा करने वाली माता त्रिपुर सुंदरी जो भूमि की अधिष्ठात्री देवी हैं, वह अंबुबाची के समय ऋतुमति हो जाती है। अर्थात वो मासिक धर्म से गुजरती हैं।
- त्रिपुरी लोककथाओं में अंबुबाची देवी मां या पृथ्वी माता के मासिक धर्म का प्रतिनिधित्व करता है।
- मान्यताओं के अनुसार उस समय पृथ्वी अशुद्ध मानी जाती है। त्रिपुरा के लोग इस सप्ताह कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं यहां तक कि वह पृथ्वी की खुदाई और जुताई भी नहीं करते है।
- इसलिये मासिक धर्म समाप्त होने के बाद पृथ्वी को स्वच्छ करने के लिये अनुष्ठान द्वारा लोगों के पापों को धोने के लिये खर्ची पूजा की जाती है।
- सप्ताह के अंतिम दिन 14 देवी देवताओं को शाही पुजारी चांताई के सदस्यों द्वारा सैदरा नदी के तट पर ले जाकर सभी को पवित्र नदी के जल से स्नान कराकर शुद्ध किया जाता है। उसके बाद उन्हें मंदिर में स्थापित किया जाता है।
- उन्हें फिर से पूजा करके, फूल और सिंदूर चढ़ाकर मंदिर में रखा जाता है।
- पशु बलि भी इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसमें बकरे और कबूतरों की बलि शामिल है।
- लोग भगवान को मिठाई और बलि का मांस चढ़ाते हैं। आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों लोग इसमें शामिल होते हैं।
कैसे मनाया जाता है खर्ची पूजा:
- आदिवासी मूल के इस त्यौहार में 14 देवी देवताओं की पूजा की जाती है जिसमें पृथ्वी की भी पूजा की जाती है।
- 14 देवी देवताओं में त्रिपुरा लोगों के कुल देवता चतुर्दशा देवता की भी पूजा भी होती है।
- खर्ची पूजा करते समय एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान होता है। इसमें चतुर्दशा मंडप बनाया जाता है जो त्रिपुरा की प्राचीन परंपराओं के तहत शाही महल का प्रतीक माना जाता है।
- यह बांस और फूस की छत से बनी एक अस्थायी संरचना होती है।
- इस पूजा का मुख्य आकर्षण प्राचीन उज्जयंत महल से चतुर्दशा मंडप तक चौदह देवताओं की भव्य शोभायात्रा है।
- इस मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
- यह उत्सव पवित्र मंत्रों और भजनों के उच्चारण के साथ शुरू होता है।
- हर दिन बड़ी संख्या में लोग इस त्यौहार में शामिल होते हैं और त्रिपुरी और गैर-त्रिपुरी दोनों तरह के लोग इसमें शामिल होते हैं।
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