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जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024

GS पेपर – 2 : शासन, चुनाव, विधान सभा चुनाव, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चुनाव आयोग (Election Commission) ने जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनाव 2024 (Jammu and Kashmir Assembly Polls 2024) तीन चरणों में कराए जाने की घोषणा की हैं। पहले चरण का मतदान 18 सितंबर, दूसरा चरण 25 सितंबर और तीसरा चरण 1 अक्टूबर को होगा।

Jammu and Kashmir Assembly Polls 2024-

  • जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में लगभग 87.09 लाख मतदाता हैं, जिनमें 44.46 लाख पुरुष, 42.62 लाख महिलाएं, और 3.71 लाख नए मतदाता शामिल हैं।
  • जम्मू और कश्मीर विधान सभा की 90 सीटों पर पहले चरण में 24 सीटों के लिए मतदान होगा, दूसरे चरण में 26 सीटों पर, और तीसरे चरण में 40 सीटों पर चुनाव होंगे।
  • चुनाव आयोग द्वारा साझा किए गए कार्यक्रम के अनुसार, 9 सितंबर को एक अधिसूचना जारी की जाएगी।
  • पहले चरण के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 27 अगस्त है, जबकि नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 30 अगस्त है। पहले चरण का मतदान 18 सितंबर को होगा।
  • दूसरे चरण के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 5 सितंबर है, जबकि नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 9 सितंबर है। दूसरे चरण का मतदान 25 सितंबर को होगा।
  • तीसरे चरण के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 12 सितंबर है, जबकि नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 17 सितंबर है। तीसरे चरण का मतदान 1 अक्टूबर को होगा।

Jammu and Kashmir Assembly Polls 2024

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जम्मू और कश्मीर विधान सभा –

  • परिभाषा: जम्मू और कश्मीर विधानसभा राज्य की विधायिका है जो जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के कानून बनाने और नीतिगत निर्णय लेने का कार्य करती है।
    • जम्मू और कश्मीर भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश है।
    • पहले यह एक राज्य था, लेकिन 5 अगस्त 2019 को भारतीय संसद ने Article 370 के तहत इसे विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित कर दिया।
    • जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में अपनी विधानसभा है, जबकि लद्दाख सीधे केंद्र सरकार द्वारा प्रशासित होता है।
  • संरचना: जम्मू और कश्मीर विधानसभा दो सदनों वाली विधायिका है। इसमें विधानसभा और विधान परिषद शामिल हैं।
    • हालांकि, विधान परिषद को 2020 में समाप्त कर दिया गया था, जिससे विधानसभा अब एकमात्र सदन है।
  • सदस्य: जम्मू और कश्मीर विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या 114 है, जिसमें 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के लिए आरक्षित हैं, जिन पर कभी चुनाव नहीं होते। शेष 90 सीटों पर चुनाव होते हैं।
    • राज्यपाल को विधानसभा में 5 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार होता है।
    • इस प्रावधान के तहत, विधानसभा की कुल सीटें 95 हो जाती हैं।
    • बहुमत का आंकड़ा 48 सीटें होता है, जो राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्यों की वजह से संभव हो जाता है।
    • यदि किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिलता और त्रिशंकु विधानसभा बनती है, तो राज्यपाल द्वारा मनोनीत ये सदस्य सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
  • चुनाव प्रक्रिया: विधानसभा चुनाव हर 5 साल में होते हैं। चुनाव प्रक्रिया में जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता है, जिससे सुनिश्चित होता है कि हर निर्वाचन क्षेत्र में जनसंख्या के हिसाब से समान प्रतिनिधित्व हो।
  • हाल की स्थिति: 5 अगस्त 2019 को Article 370 के निरस्तीकरण और जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद विधानसभा को भंग कर दिया गया। इसके बाद से जम्मू और कश्मीर में चुनाव नहीं हुए हैं।
  • आगामी चुनाव: जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनाव 2024 तीन चरणों में कराए जाने की घोषणा की हैं। पहले चरण का मतदान 18 सितंबर, दूसरा चरण 25 सितंबर और तीसरा चरण 1 अक्टूबर को होगा।
  • मुख्यमंत्री: जम्मू और कश्मीर विधानसभा का नेतृत्व मुख्यमंत्री करता है, जिसे विधानसभा में बहुमत प्राप्त पार्टी या गठबंधन द्वारा चुना जाता है।
  • कार्य और शक्तियां: विधानसभा कानून बनाने, बजट पारित करने, और राज्य सरकार की नीतियों की निगरानी करने का कार्य करती है। इसमें स्थानीय विकास और सार्वजनिक सेवाओं के लिए नीतिगत निर्णय शामिल हैं।
  • प्रमुख राजनीतिक दल :
    • जम्मू-कश्मीर में तीन प्रमुख राष्ट्रीय राजनीतिक दल—कांग्रेस, बीजेपी, और बसपा सक्रिय हैं।
    • इसके अलावा, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेस जैसी पार्टियां भी हैं, जो यहां की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेस, सज्जाद गनी लोन की पार्टी है, जो समय-समय पर कुछ सीटों पर जीत दर्ज करती रही है।
    • मई 2024 में हुए लोकसभा चुनावों में कुल 22 पार्टियों ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे।
    • चुनाव आयोग के अनुसार, राष्ट्रीय पार्टियों को छोड़कर जम्मू-कश्मीर में 32 राजनीतिक पार्टियां रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से कुछ को क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है।
  • राजनीतिक दलों की वर्तमान स्थिति:
    • भारतीय जनता पार्टी (भाजपा): भाजपा जम्मू क्षेत्र में मजबूत है और केंद्र में सत्ता में होने के कारण इसका प्रभाव बढ़ रहा है। वे कश्मीर घाटी में भी अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
    • जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां): नेकां पारंपरिक रूप से कश्मीर घाटी में मजबूत रही है, लेकिन अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद इसकी लोकप्रियता में कुछ कमी आई है। फिर भी, यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत बनी हुई है।
    • पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी): पीडीपी भी मुख्य रूप से कश्मीर घाटी में सक्रिय है और इसकी नेता महबूबा मुफ्ती हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पार्टी को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस: यह एक नई पार्टी है जिसका नेतृत्व सज्जाद लोन कर रहे हैं। यह मुख्य रूप से कश्मीर घाटी में सक्रिय है और क्षेत्रीय आकांक्षाओं को मुखर करने की कोशिश कर रही है।
    • कांग्रेस: कांग्रेस की जम्मू और कश्मीर में सीमित उपस्थिति है, लेकिन यह अभी भी एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
    • अन्य दल: इसके अलावा कई अन्य छोटे क्षेत्रीय दल और नए उभरते हुए दल भी हैं, जो जम्मू और कश्मीर की राजनीति में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

जम्मू और कश्मीर अंतिम विधानसभा चुनाव –

  • जम्मू और कश्मीर में अंतिम विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे।
  • पिछले साल दिसंबर 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 30 सितंबर, 2024 तक चुनाव प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया था।
  • जम्मू और कश्मीर में दस साल के बाद चुनाव होंगे, क्योंकि अंतिम विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे।
  • जून 2018 में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार गिर गई जब भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का समर्थन वापस ले लिया।

जम्मू-कश्मीर में 2014 के बाद चुनाव न होने के मुख्य कारण:

  1. 2014 विधानसभा चुनाव परिणाम: दिसंबर 2014 में हुए चुनावों में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, जिससे राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया।
  2. पीडीपी-बीजेपी गठबंधन: मार्च 2015 में पीडीपी और बीजेपी के गठबंधन से महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन, जून 2018 में बीजेपी ने पीडीपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया, जिसके बाद राज्य में फिर से राज्यपाल शासन लागू हो गया।
  3. Article 370 का निरस्तीकरण: 5 अगस्त 2019 को Article 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, में विभाजित कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा बनाई गई, लेकिन लद्दाख में नहीं।
  4. उपराज्यपाल शासन :
    • जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख में विभाजित के साथ ही, जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल के पद को समाप्त कर दिया गया और उसकी जगह उपराज्यपाल का पद स्थापित किया गया।
    • वर्तमान में, मनोज सिन्हा जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल हैं।
    • उप-राज्यपाल केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासनिक प्रमुख होता है और केंद्र सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है। उप-राज्यपाल की शक्तियाँ और कार्य राज्यपाल के समान होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक होती है।
  5. परिसीमन आयोग की रिपोर्ट: 5 मई 2022 को परिसीमन आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सीटें 107 से बढ़ाकर 114 कर दी गईं।
  6. सुरक्षा चिंताएं: मार्च 2024 में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सुरक्षा कारणों से एक साथ चुनाव कराने से इनकार कर दिया।
  7. सुप्रीम कोर्ट का आदेश: दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 370 पर फैसला सुनाते हुए 30 सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने के आदेश दिए। इसी आधार पर चुनाव आयोग जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने की तैयारी कर रहा है।

अनुच्छेद 370 (Article 370) –

Article 370 भारतीय संविधान का एक विशेष प्रावधान है, जो जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था।

मुख्य बिंदु:

●    Article 370 ने जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान की, जिससे राज्य को अपनी संविधान और कानूनी व्यवस्था बनाने का अधिकार मिला।

●    Article 370 के तहत अनुच्छेद 35A लागू था, जो जम्मू और कश्मीर विधानसभा को विशेष अधिकार प्रदान करता था, जैसे कि राज्य में स्थायी निवासी के अधिकार।

●    Article 370 के अनुसार, भारतीय संविधान के कुछ प्रावधान जम्मू और कश्मीर में लागू नहीं होते थे। यह प्रावधान जम्मू और कश्मीर के संविधान को लागू करने की अनुमति देता था।

●    Article 370 के विशेष प्रावधानों को लेकर कई बार विवाद और आलोचना हुई। कुछ लोग इसे राज्य की विशेष स्थिति की रक्षा मानते थे, जबकि अन्य इसे भारत के संविधान के साथ असंगत मानते थे।

●    5 अगस्त 2019 को, भारतीय संसद ने एक संकल्प पारित किया जिसमें Article 370 को निरस्त कर दिया गया और जम्मू और कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख – में विभाजित कर दिया गया।

●    Article 370 के निरस्त होने के बाद, जम्मू और कश्मीर की विशेष स्वायत्तता समाप्त हो गई और केंद्र सरकार का सीधा नियंत्रण लागू हुआ।

परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में सीटों के बदलाव :

  • विधानसभा सीटों की कुल संख्या:
    • जम्मू और कश्मीर में कुल 90 विधानसभा सीटें होंगी।
    • कुल 5 संसदीय (लोकसभा) सीटें निर्धारित की गईं।
  • जम्मू डिवीजन में सीटें:
    • जम्मू डिवीजन में 6 नई सीटें जोड़कर कुल 43 विधानसभा सीटें बनाई गईं।
    • नए निर्वाचन क्षेत्रों में शामिल हैं: सांबा जिले में रामगढ़, कठुआ में जसरोता, राजौरी में थन्नामंडी, किश्तवाड़ में पड्डेर-नागसेनी, डोडा में डोडा पश्चिम, और उधमपुर में रामनगर।
  • कश्मीर डिवीजन में सीटें:
    • कश्मीर घाटी में 1 नई सीट जोड़कर कुल 47 विधानसभा सीटें बनाई गईं।
    • कश्मीर घाटी में कुपवाड़ा जिले में त्रेहगाम नई सीट के रूप में शामिल की गई।
  • लोकसभा सीटें: जम्मू-कश्मीर में 5 लोकसभा सीटें बनाई गईं: बारामूला, श्रीनगर, अनंतनाग-राजौरी, उधमपुर, और जम्मू।

नोट: 2014 के चुनाव के दौरान लद्दाख में 4 सीटें थीं, लेकिन लद्दाख अब अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गया है। इसके अलावा POK की 24 सीटें भी हैं, जहां अभी चुनाव नहीं होंगे।

परिसीमन (Delimitation) क्या हैं?

परिसीमन (Delimitation) एक प्रक्रिया है जिसमें निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं और संख्या का पुनरावलोकन और पुनर्निर्धारण किया जाता है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने के लिए की जाती है कि चुनावी प्रतिनिधित्व जनसंख्या के अनुसार समुचित और न्यायसंगत हो।

परिसीमन के मुख्य बिंदु:

●    परिभाषा: परिसीमन का मतलब है, एक क्षेत्र के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण और पुनरावलोकन करना।

●    उद्देश्य:

जनसंख्या के आधार पर समान प्रतिनिधित्व (Equal representation based on population): यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लगभग समान संख्या में मतदाता हों ताकि सभी क्षेत्रों का समान प्रतिनिधित्व हो।

आबादी की बढ़त और परिवर्तन (population growth and change): समय के साथ जनसंख्या में बदलाव होता है। परिसीमन के माध्यम से निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को जनसंख्या वृद्धि और बदलाव के अनुसार समायोजित किया जाता है।

संविधान और कानून का पालन (Obeying the constitution and law): यह प्रक्रिया संविधान और चुनावी कानूनों के अनुसार होती है, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि चुनाव निष्पक्ष और संतुलित हों।

●    कब और क्यों कराया जाता है:

आबादी के असंतुलन (The population imbalance): अगर कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या बहुत बढ़ गई है और कुछ में घट गई है, तो परिसीमन किया जाता है ताकि सभी क्षेत्रों में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।

प्रदर्शन की समीक्षा (Performance Review): यह भी देखा जाता है कि क्या निर्वाचन क्षेत्रों की वर्तमान सीमाएं उचित हैं या नहीं, और क्या किसी क्षेत्र को नई सीमाओं के साथ अपडेट की आवश्यकता है।

आगामी चुनावों के लिए तैयारी (Preparing for the upcoming elections): परिसीमन आमतौर पर चुनावों से पहले किया जाता है ताकि नए क्षेत्रों के अनुसार चुनाव कराए जा सकें।

●    संवैधानिक प्रावधान (Constitutional provisions):

o  संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 के तहत, हर जनगणना के बाद परिसीमन अनिवार्य है।

o  अनुच्छेद 82 के अनुसार, सरकार जनगणना के बाद परिसीमन आयोग गठित कर सकती है, जो लोकसभा और विधानसभा के लिए सीटों की संख्या में बदलाव कर सकता है।

●    जनगणना और सीटें (Census and seats): 1951, 1961 और 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा की सीटें क्रमशः 494, 522 और 543 तय की गई थीं, जब जनसंख्या क्रमशः 36.1, 43.9 और 54.8 करोड़ थी।

●    प्रक्रिया (Process): परिसीमन आमतौर पर एक विशेष आयोग द्वारा किया जाता है, जिसे परिसीमन आयोग कहा जाता है। यह आयोग जनसंख्या के आंकड़ों, क्षेत्रीय और भौगोलिक परिस्थितियों का विश्लेषण करके नए निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करता है।

●    आयोग का कार्य (Work of the Commission):

o  परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) की जिम्मेदारी होती है कि वह जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और विधानसभा की सीटों को बढ़ाए या घटाए।

o  इसके साथ ही, आयोग अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) की आबादी को ध्यान में रखकर उनके लिए सीटों का आरक्षण भी सुनिश्चित करता है।

●    प्रभाव (Effect): परिसीमन का असर चुनावी रणनीतियों, उम्मीदवारों की सिफारिशों और राजनीतिक दलों के चुनावी परिणामों पर पड़ सकता है, क्योंकि नई सीमाएं मतदाता समूहों और चुनावी मुद्दों को प्रभावित कर सकती हैं।

●    आखिरी परिसीमन (The last limitation): आखिरी बार परिसीमन 2008 में किया गया था, और इसके बाद से सीटों की संख्या और निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

परिसीमन की प्रक्रिया चुनावी निष्पक्षता और जनसंख्या के अनुसार उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होती है।

क्या बिना जनगणना के परिसीमन करना सही है?

  • संवैधानिक दृष्टिकोण (constitutional approach): चुनाव आयुक्त के अनुसार, संवैधानिक रूप से परिसीमन केवल जनगणना के बाद किया जाना चाहिए।
  • जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति (Special status of Jammu and Kashmir): जम्मू-कश्मीर का मामला विशेष है। 2019 में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख – में बांटा गया। इसके बाद, परिसीमन कानूनी आवश्यकता और तकनीकी रूप से भी जरूरी हो गया।
  • परिसीमन का आधार (Basis of delimitation): जम्मू-कश्मीर के परिसीमन के लिए 2011 की जनगणना के डेटा का उपयोग किया गया है।
  • परिसीमन आयोग का गठन (Constitution of Delimitation Commission): मार्च 2020 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में परिसीमन आयोग का गठन किया। इस आयोग में सुशील त्रिवेदी और जम्मू-कश्मीर के चुनाव आयुक्त के.के. शर्मा भी शामिल थे।
  • 2008 का परिसीमन (Delimitation of 2008): 2008 में जम्मू-कश्मीर में परिसीमन नहीं किया गया था क्योंकि उस समय Article 370 लागू था। उस समय 2001 की जनगणना के डेटा का उपयोग किया गया था।

जम्मू और कश्मीर विधानसभा 2024 के लाभ (Benefits of Jammu and Kashmir Assembly Election 2024):

  • स्थानीय प्रतिनिधित्व का सशक्तिकरण (Empowerment of local representation): विधानसभा चुनावों के बाद, जम्मू और कश्मीर को अपने स्थानीय मुद्दों पर बेहतर प्रतिनिधित्व मिलेगा। इससे क्षेत्रीय समस्याओं और आवश्यकताओं का समाधान स्थानीय नेताओं के माध्यम से होगा।
  • लोकप्रिय जनादेश (Popular mandate): चुनावों के माध्यम से चुने गए विधायक जनता की सही इच्छाओं और जरूरतों का प्रतिनिधित्व करेंगे, जिससे सरकार की जनसमर्थन में वृद्धि होगी।
  • राजनीतिक स्थिरता (political stability): विधानसभा चुनाव के बाद एक स्थिर सरकार का गठन होगा, जो राज्य की राजनीति और प्रशासन में स्थिरता और निरंतरता प्रदान करेगी।
  • विकास परियोजनाओं की निगरानी (Monitoring of development projects): चुनी हुई विधानसभा स्थानीय विकास परियोजनाओं की निगरानी और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जिससे विकास कार्यों की गति बढ़ेगी और भ्रष्टाचार कम होगा।
  • संवैधानिक स्थिति की बहाली (Restoration of constitutional status): विधानसभा का गठन और चुनाव संविधान की मूलभूत धाराओं के अनुसार होगा, जिससे जम्मू और कश्मीर की संवैधानिक स्थिति बहाल होगी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी।
  • सामाजिक और आर्थिक सुधार (Social and economic reforms): विधानसभा द्वारा पास किए गए कानून और नीतियों के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक सुधार लागू किए जाएंगे, जो स्थानीय जनसंख्या के जीवन स्तर को सुधारेंगे।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही (Transparency and Accountability): एक चुनी हुई विधानसभा में सरकार और प्रशासन की कार्यशैली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी, जिससे सरकारी कार्यों में सुधार होगा।
  • लोकल मुद्दों का समाधान (Resolving local issues): विधानसभा स्थानीय समस्याओं, जैसे कि रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और इंफ्रास्ट्रक्चर, पर ध्यान केंद्रित कर सकेगी और उनके समाधान के लिए नीतियां तैयार करेगी।
  • राज्य के अधिकारों की रक्षा (Defense of state rights): विधानसभा के माध्यम से जम्मू और कश्मीर के अधिकारों और विशेष स्थितियों की रक्षा की जा सकेगी, जो केंद्र सरकार के साथ संतुलित संबंध सुनिश्चित करेगी।

आगे की राह (The way forward)–

  • शांतिपूर्ण चुनाव (peaceful elections): निर्वाचन आयोग (Election Commission) की जिम्मेदारी हैं की वह जम्मू और कश्मीर में शांतिपूर्ण एवं निष्पक्ष तरीके से विधान सभा चुनाव 2024 कराए।
  • राजनीतिक स्थिरता और विकास (Political stability and development): यदि चुनाव परिणाम सकारात्मक होते हैं, तो जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक स्थिरता और विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। इस दिशा में नीतिगत सुधार, विकास योजनाओं का कार्यान्वयन, और सामाजिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
  • सामाजिक और आर्थिक सुधार (Social and economic reforms): भविष्य में सामाजिक और आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं। रोजगार सृजन, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार, और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार किया जा सकता है।
  • सुरक्षा और शांति (Security and peace): सुरक्षा और शांति बनाए रखने के लिए प्रभावी नीतियाँ और रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं। आतंकवाद और अन्य सुरक्षा समस्याओं से निपटने के लिए ठोस उपाय किए जा सकते हैं।

निष्कर्ष:

जम्मू और कश्मीर विधानसभा 2024 के चुनाव क्षेत्र की राजनीतिक दिशा को बदलने और विकास की नई संभावनाएँ खोलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। चुनाव के परिणामों के आधार पर राज्य की आगामी सरकार को विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए, समग्र विकास और स्थिरता की दिशा में काम करना होगा। यह चुनाव न केवल जम्मू और कश्मीर के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम होगा, जो राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा सबसे बड़ा (क्षेत्रफल के अनुसार) लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है? (2008)

(अ) कांगड़ा
(ब) लद्दाख
(स) कच्छ
(द) भीलवाड़ा

उत्तर: (ब)

मुख्य परीक्षा:

प्रश्न: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जिस पर हाशिए पर जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी प्रावधान लिखा है, किस सीमा तक अस्थायी है? भारतीय राजनीति के संदर्भ में इस प्रावधान की भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करें। (2016)

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