चर्चा में क्यों :
भारत ने 17 अगस्त 2024 को तीसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट (VOGSS) की मेजबानी की, जो वर्चुअल प्रारूप में आयोजित किया गया था। इस शिखर सम्मेलन की मुख्य थीम थी “सतत भविष्य के लिए सशक्त ग्लोबल साउथ।”
- तीसरे VOGSS में 123 देशों ने भाग लिया, हालांकि, चीन और पाकिस्तान को आमंत्रित नहीं किया गया।
- भारत ने 12-13 जनवरी 2023 को पहले VOGSS और 17 नवंबर 2023 को दूसरे VOGSS की मेजबानी की थी, दोनों ही वर्चुअल प्रारूप में आयोजित किए गए थे।
- इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य विकासशील देशों की आवाज़ को वैश्विक मंच पर मजबूत करना और साझा चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए एकजुट होना था।
तीसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट (VOGSS) के मुख्य बिंदु:
- थीम (Theme): “सतत भविष्य के लिए सशक्त ग्लोबल साउथ।” (“An Empowered Global South for a Sustainable Future.”)
- वर्चुअल बैठक (Virtual Meet): 123 देशों ने वर्चुअल रूप से भाग लिया। (चीन और पाकिस्तान को आमंत्रित नहीं किया गया।)
- ग्लोबल डेवलपमेंट कॉम्पैक्ट (GDC) (Global Development Compact): भारत ने विकास वित्त (development finance) के नाम पर ऋण के बोझ से दबे देशों की चिंताओं के बीच GDC का प्रस्ताव रखा।
- इस कॉम्पैक्ट (Compact) का ध्यान विकास के लिए व्यापार (trade for development), सतत विकास (sustainable growth), और प्रौद्योगिकी साझाकरण (technology sharing) पर केंद्रित होगा।
- विशेष निधि (Special Fund): भारत व्यापार संवर्धन गतिविधियों (trade promotion activities) को बढ़ावा देने के लिए $2.5 मिलियन की विशेष निधि (fund) लॉन्च करेगा और क्षमता निर्माण (capacity building) के लिए $1 मिलियन का व्यापार नीति प्रशिक्षण कोष (Trade policy training fund) भी प्रदान करेगा।
- सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDGs) के लिए साझेदारी: 3rd VOGSS ने एक साझा लक्ष्य को पेश किया कि ग्लोबल साउथ (Global South) पूरी तरह से सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDGs) को पूरा करे और 2030 से आगे तीव्र विकास पथ पर अग्रसर हो सके।
ग्लोबल साउथ क्या है (What is Global South)?
परिचय (Introduction): ग्लोबल साउथ (Global South) शब्द को 1969 में अमेरिकी राजनीतिक कार्यकर्ता कार्ल ओग्लेसबी (Carl Oglesby) ने गढ़ा था। उन्होंने इस शब्द का उपयोग उन देशों का वर्णन करने के लिए किया, जो ग्लोबल नॉर्थ (Global North) के विकसित देशों द्वारा राजनीतिक और आर्थिक शोषण का सामना कर रहे थे।
- सबसे सरल अर्थ में, ग्लोबल साउथ एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और ओशिनिया के देशों को संदर्भित करता है। इन देशों में विश्व की 88 प्रतिशत आबादी रहती है, और अधिकांश ने औपनिवेशिक शासन (colonial rule) का अनुभव किया है और ऐतिहासिक रूप से औद्योगिकीकरण (industrialization) के महत्वपूर्ण स्तरों को प्राप्त करने में पीछे रहे हैं।
चीन (China) और भारत (India) ग्लोबल साउथ के प्रमुख प्रवक्ता (leading proponents) हैं, जो इस क्षेत्र के विकास और उसके मुद्दों को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करते हैं।
विकास और चुनौतियाँ (Development and Challenges): संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) के अनुसार, ग्लोबल साउथ के देशों में आमतौर पर निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं:
- निम्न विकास स्तर (lower levels of development)
- उच्च आय असमानता (higher income inequality)
- तेज जनसंख्या वृद्धि (rapid population growth)
- कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्थाएँ (agrarian-dominant economies)
- जीवन की निम्न गुणवत्ता (lower quality of life)
- कम जीवन प्रत्याशा (shorter life expectancy)
- महत्वपूर्ण बाहरी निर्भरता (significant external dependence)
आर्थिक परिप्रेक्ष्य (Economic Perspective): विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, “दक्षिण का सकल घरेलू उत्पाद (GDP), जो 1970 के दशक की शुरुआत से लेकर 1990 के दशक के अंत तक विश्व GDP का लगभग 20 प्रतिशत था, 2012 तक बढ़कर लगभग 40 प्रतिशत हो गया।”
ग्लोबल साउथ का महत्व (Importance of Global South): ग्लोबल साउथ का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह विश्व के बड़े हिस्से की आबादी को समेटे हुए है और इसके विकास के लिए सतत प्रयास आवश्यक हैं।
वैश्विक दक्षिण की आवाज़ के रूप में भारत (India as the voice of Global South):
- भारत, जो गैर-अलाइंड मूवमेंट (Non-Aligned Movement) और G77 में एक प्रमुख भूमिका निभाता रहा है, ने ग्लोबल साउथ देशों के सामूहिक हितों का प्रतिनिधित्व करते हुए नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- 2023 में दिल्ली में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान, भारत ने अफ्रीकी संघ को प्रमुख आर्थिक समूह का स्थायी सदस्य बनाने में सफलता प्राप्त की। यह विस्तार, जो 1999 में G20 की स्थापना के बाद का पहला है, अफ्रीकी देशों (African countries) को विश्व के सबसे प्रभावशाली देशों के सामने अपनी आर्थिक चिंताओं को सीधे उठाने की अनुमति देता है।
- COVID-19 महामारी के दौरान, भारत ने जनवरी 2021 से फरवरी 2022 के बीच ‘वैक्सीनेशन मैत्री’ (Vaccination Maitri) मानवीय पहल के तहत 96 देशों में लगभग 163 मिलियन डोज वितरित की।
- भारत की डिजिटल सार्वजनिक संपत्तियां जैसे UPI, RuPay, और भारत स्टैक, जो भारतीय जनसंख्या के एक बड़े हिस्से का समर्थन कर रही हैं, अन्य विकासशील और उभरते देशों के डिजिटल परिवर्तन के लिए एक प्रभावशाली उपकरण हो सकती हैं।
- आरोग्य मैत्री का उद्देश्य है “एक दुनिया-एक स्वास्थ्य,” जिससे भारत स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ावा दे रहा है। उदाहरण के लिए, भारत अफ्रीकी और प्रशांत द्वीप देशों में ‘जन औषधि केंद्र’ खोल रहा है।
- भारत वैश्विक दक्षिण देशों में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) को बढ़ाने के लिए 25 मिलियन डॉलर की मदद करेगा।
“वैश्विक दक्षिण की आवाज़” के रूप में भारत के लिए चुनौतियाँ क्या हैं (What are the challenges for India as the “voice of the global South”)?
- भौगोलिक प्रतिस्पर्धा (Geopolitical Competition): भारत को चीन के साथ प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से ग्लोबल साउथ में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है।
- खाद्य सुरक्षा की समस्या (Food Security Dilemma): भारत को खाद्य सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को सुलझाना चुनौतीपूर्ण है। जुलाई 2023 में चावल निर्यात पर रोक लगाने के निर्णय की आलोचना की गई है, जो भारत के वैश्विक खाद्य सुरक्षा के नेतृत्व पर सवाल उठाती है।
- औषधि चुनौती (Pharmaceutical Challenge): भारत की “दुनिया की फार्मेसी” की छवि हाल ही में दूषित दवाओं के विवाद के कारण प्रभावित हुई है। WHO ने दवाओं की गुणवत्ता को लेकर कई चेतावनियाँ जारी की हैं।
- आंतरिक विकास समस्याएँ (Internal Development Issues): आलोचकों का कहना है कि भारत को घरेलू विकास मुद्दों जैसे असमान धन वितरण (unequal wealth distribution), बेरोज़गारी (unemployment), और अव्यवस्थित आधारभूत संरचना (inadequate infrastructure) पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत की ग्रामीण जनसंख्या को स्वास्थ्य और शिक्षा की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
भविष्य की दिशा (Way Forward):
- स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप को मजबूत करें (Strengthen strategic partnerships): भारत को ग्लोबल साउथ (Global South) देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना चाहिए, खासकर तकनीक, शिक्षा, और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोगी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इससे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में चीन के प्रभाव को counter किया जा सकेगा।
- संतुलित विकास मॉडल (Balanced growth model): भारत को एक ऐसे विकास मॉडल की वकालत करनी चाहिए जो सततता (sustainability) और समावेशिता (inclusivity) को प्राथमिकता दे, जो चीन के कर्ज जाल (debt trap) से अलग हो। इससे भारत को एक अधिक नैतिक और जन-केंद्रित नेता के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
- निर्यात नीतियों का पुनर्मूल्यांकन (Reevaluate export policies): ग्लोबल साउथ में विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए भारत को घरेलू खाद्य सुरक्षा (food security) और वैश्विक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना चाहिए। कृषि नवाचार (innovation) और प्रौद्योगिकी (technology) में निवेश से घरेलू खाद्य उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, जिससे भारत अपनी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा कर सके।
- आंतरिक चुनौतियों को प्राथमिकता दें (Prioritize internal challenges): गरीबी, बेरोज़गारी, और अवसंरचना (infrastructure) की समस्याओं को हल करना भारत के लिए उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक है। एक मजबूत और अच्छी तरह से विकसित भारत अन्य विकासशील देशों को मार्गदर्शन देने के लिए अधिक विश्वसनीय और नैतिक अधिकार (moral authority) रखेगा।
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