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अंबाजी श्वेत संगमरमर को GI टैग (Ambaji white marble gets GI tag) | Apni Pathshala

Ambaji white marble gets GI tag

Ambaji white marble gets GI tag

संदर्भ:

गुजरात के अंबाजी क्षेत्र से प्राप्त उच्च-गुणवत्ता वाले श्वेत संगमरमर को औपचारिक रूप से भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्रदान किया गया। यह मान्यता भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन भू-संकेतक रजिस्ट्री द्वारा अंबाजी मार्बल्स क्वारी एंड फैक्ट्री एसोसिएशन, बनासकांठा के नाम पर दी गई है। यह उपलब्धि स्थानीय उद्योग, कारीगरों और निर्यात क्षमता को भी नई दिशा देती है।

अंबाजी संगमरमर:

अंबाजी गुजरात का प्रमुख शक्ति पीठ है, जहां धार्मिक, सांस्कृतिक और भूवैज्ञानिक महत्व समान रूप से मौजूद है। यहां के संगमरमर खनन का इतिहास लगभग 1200–1500 वर्ष पुराना है। ऐतिहासिक दृष्टि से माना जाता है कि इसी क्षेत्र के संगमरमर का उपयोग माउंट आबू स्थित प्रसिद्ध दिलवाड़ा जैन मंदिर के निर्माण में हुआ था। इतनी लंबी अवधि के बाद भी इस पत्थर की चमक और शुद्धता में कोई कमी नहीं आई, जो इसकी मजबूती और गुणवत्ता का प्रमाण है।

अंबाजी संगमरमर की प्रमुख विशेषताएँ:

  • उत्कृष्ट श्वेतता और चमक: अंबाजी संगमरमर अपनी प्राकृतिक चमक, घनत्व और सूक्ष्म दानेदार संरचना के कारण वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध है।
  • उच्च कैल्शियम एवं सिलिका संरचना: हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, पत्थर में कैल्शियम ऑक्साइड और सिलिकॉन ऑक्साइड का संतुलित संयोजन मौजूद है, जो इसे मजबूत व टिकाऊ बनाता है।
  • दीर्घकालिक टिकाऊपन: विशेषज्ञों के अनुसार, अंबाजी संगमरमर समय के साथ उम्र नहीं दिखाता—यह विशेषता ताजमहल जैसे विश्व धरोहर में प्रयुक्त अन्य पत्थरों की तुलना में इसे अधिक टिकाऊ बनाती है।
  • धार्मिक निर्माणों में व्यापक उपयोग: भारत और विदेशों के कई शहरों—मियामी, लॉस एंजिल्स, बोस्टन, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड—के मंदिरों में इसका उपयोग किया गया है। इसे अयोध्या के राम मंदिर में भी प्रयुक्त माना जाता है।

GI टैग क्या है?

  • GI टैग (Geographical Indication Tag) एक कानूनी मान्यता है जो किसी उत्पाद को उसकी विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति और उसे मिलने वाली अनूठी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या विशेषताओं के आधार पर प्रदान की जाती है।
  • इसका अर्थ है कि कोई उत्पाद अपनी पहचान, स्वाद, गुण, कारीगरी या प्राकृतिक विशेषताओं के कारण उसी क्षेत्र से जुड़ा होता है और दुनिया में कहीं और उसी तरह नहीं बनाया जा सकता।
  • उदाहरण के लिए—दार्जिलिंग चाय, बनारसी साड़ी, मैसूर सिल्क, नागपुर संतरा आदि।
  • भारत में GI टैग भू-संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत दिया जाता है।

GI टैग मिलने का क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय महत्व

  • स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन: GI टैग मिलने से संगमरमर उद्योग, खनन गतिविधियों और प्रसंस्करण इकाइयों की मांग में वृद्धि होगी, जिससे रोजगार और आय के अवसर बढ़ेंगे।
  • वैश्विक पहचान और ब्रांड वैल्यू: अब अंबाजी संगमरमर एक आधिकारिक ‘ब्रांड’ के रूप में विश्व बाजार में प्रस्तुत होगा, जिससे अंतरराष्ट्रीय खरीदारों का विश्वास बढ़ेगा।
  • कारीगरों और माइक्रो-उद्योगों को लाभ: स्थानीय कारीगर, मूर्तिकार और कटिंग-फिनिशिंग इकाइयाँ उत्पाद की ऊंची मांग का सीधा लाभ प्राप्त करेंगी।
  • सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: यह मान्यता अंबाजी शक्ति पीठ की सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करती है तथा उसके ऐतिहासिक वास्तु-शिल्प योगदान को वैश्विक पहचान प्रदान करती है।
  • नकली उत्पादों पर रोक: GI टैग के कानूनी अधिकार नकली और निम्न-गुणवत्ता वाले उत्पादों को बाजार में रोकने में सहायक होंगे, जिससे उपभोक्ता संरक्षण को मजबूती मिलेगी।

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