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CBI मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत

चर्चा में क्यों ?

  • दिल्ली शराब नीति (Delhi liquor policy) से संबंधित केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को शुक्रवार, 13 सितंबर को जमानत मिल गई। शराब नीति मामले (Delhi liquor policy) में ED ने उन्हें 21 मार्च को गिरफ्तार किया था, और इसके बाद 26 जून को CBI ने उन्हें जेल से हिरासत में लिया था।
  • अदालत ने उन्हें जमानत (bail) देने के लिए वही शर्तें निर्धारित की हैं, जो प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate (ED)) के मामले में जमानत देते समय निर्धारित की गई थीं।
  • केजरीवाल के खिलाफ दो प्रमुख जांच एजेंसियों, ED और CBI ने मामले दर्ज किए हैं। ED मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से 12 जुलाई को जमानत मिल गई थी।

अरविंद केजरीवाल की जमानत पर कोर्ट की शर्तें (Conditions of the court on Kejriwal’s bail):

  • अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जा सकेंगे।
  • किसी भी सरकारी फाइल पर साइन नहीं करेंगे।
  • केस से जुड़ा कोई सार्वजनिक बयान नहीं देंगे।
  • 10 लाख रुपए का बेल बॉन्ड भरना होगा।
  • जांच में बाधा डालने या गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेंगे।
  • जरूरत पड़ने पर ट्रायल कोर्ट में पेश होंगे और जांच में सहयोग करेंगे।

दिल्ली शराब नीति 2021-22 (Delhi Liquor Policy 2021-22)

दिल्ली शराब नीति 2021-22, जिसे नई शराब नीति (new liquor policy) भी कहा जाता है, 17 नवंबर 2021 से लागू की गई। इसके तहत शराब की बिक्री की व्यवस्था बदली गई और सरकार ने शराब व्यापार से बाहर हो गई, केवल निजी ऑपरेटरों को शराब की दुकानें चलाने की अनुमति दी गई। इसका मुख्य उद्देश्य ग्राहक अनुभव को सुधारना और काले बाजार (black market) को रोकना था। लेकिन नई नीति के विवाद के बाद, दिल्ली ने पुरानी शराब नीति पर लौटने का निर्णय लिया।

नई नीति की मुख्य विशेषताएँ (Key features of the new policy):

  • शहर को 32 जोनों में बांटा गया और कंपनियों को जोन-बाय-जोन (zone-by-zone) बोली लगाने के लिए आमंत्रित किया गया।
  • 849 खुदरा दुकानों के लाइसेंस खुली बोली के माध्यम से जारी किए गए।
  • पहली बार दुकानों को ग्राहकों को छूट देने की अनुमति मिली और सूखे दिनों की संख्या 21 से घटाकर 3 की गई।
  • नई नीति में शराब की होम डिलीवरी (home delivery) की सुविधा और पीने की उम्र को 25 से घटाकर 21 करने का प्रस्ताव था।
  • दुकानों को 3 बजे तक खुला रखने की बात भी की गई।

नई नीति से जुड़े विवाद (Controversies related to the new policy):

  • नीति को लागू करने से पहले दिल्ली के मुख्य सचिव ने इसकी जांच की, जिसमें प्रक्रियात्मक खामियां और अनियमितताएँ (procedural flaws and irregularities) पाई गईं।
  • रिपोर्ट में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) पर बिना लेफ्टिनेंट गवर्नर (Lieutenant Governor) की मंजूरी के नीति में बदलाव करने का आरोप लगाया गया।
  • रिपोर्ट में दावा किया गया कि सिसोदिया के फैसलों के कारण सरकारी खजाने को 580 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ।
  • आरोप लगाया गया कि शराब व्यापारियों से प्राप्त कथित रिश्वत (bribe) का उपयोग पंजाब और गोवा के विधानसभा चुनावों पर असर डालने के लिए किया गया।

सीबीआई और ईडी की कार्रवाई (CBI and ED action):

  • रिपोर्ट को सीबीआई को सौंपा गया, जिसके बाद मनीष सिसोदिया और 14 अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया।
  • ईडी ने भी एक केस दर्ज किया और दावा किया कि अपराध की राशि 292 करोड़ रुपये से अधिक है। ईडी ने आरोप लगाया कि “घोटाले” (scam) के तहत शराब व्यापार को निजी कंपनियों को सौंपा गया और 6% रिश्वत के लिए 12% मार्जिन तय किया गया।
  • ईडी का आरोप है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं ने साउथ ग्रुप से 100 करोड़ रुपये की रिश्वत प्राप्त की।

जमानत क्या है (What is Bail)?

‘जमानत’ (bail) शब्द पुरानी फ्रेंच भाषा के क्रिया ‘bailer’ से लिया गया है, जिसका मतलब होता है ‘देना’ या ‘सौंपना’। जमानत का मतलब है एक आपराधिक मामले में आरोपी को अस्थायी रूप (temporary release) से रिहा करना, जब तक अदालत निर्णय नहीं सुनाती। यह सुरक्षा राशि होती है जो आरोपी की रिहाई के लिए जमा की जाती है।

भारत में जमानत के प्रावधान (Provisions of Bail in India):

  • भारत में जमानत के नियम दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 द्वारा निर्धारित किए गए हैं। हालांकि, इस कानून में ‘जमानत’ (bail) की परिभाषा नहीं दी गई है, लेकिन इसमें ‘जमानती अपराध’ और ‘गैर-जमानती अपराध’ (bailable offence’ and ‘non-bailable offence) जैसे शब्दों का उल्लेख है।
  • भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के माध्यम से भारत में नए आपराधिक कानूनों के अंतर्गत जमानत के प्रावधानों में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जबकि जमानत के मूलभूत सिद्धांत वही बने हुए हैं।

जमानती और गैर-जमानती अपराधों में अंतर (Difference between bailable and non-bailable offences):

जमानती अपराध (Bailable offences):

  • ये अपराध कम गंभीर माने जाते हैं, इसलिए सजा भी कम होती है और आरोपी को जमानत पर रिहा होने का कानूनी अधिकार होता है।
  • आमतौर पर, इन अपराधों की सजा तीन साल से कम होती है।
  • जमानती अपराधों के मामले में गिरफ्तारी या हिरासत के समय पुलिस आरोपी को जमानत देने की अनुमति रखती है।

गैर-जमानती अपराध (Non-bailable offences):

  • ‘गैर-जमानती’ का मतलब यह नहीं कि जमानत दी ही नहीं जा सकती। इसका मतलब है कि गिरफ्तारी या हिरासत के समय आरोपी को जमानत का अधिकार नहीं होता।
  • हालांकि, आरोपी मुकदमे के दौरान अदालत से जमानत की मांग कर सकता है।
  • ये अपराध गंभीर होते हैं और सजा तीन साल या उससे अधिक हो सकती है।
  • गैर-जमानती मामलों में जमानत देने का निर्णय अदालत के विवेक पर निर्भर करता है, और इसे सावधानीपूर्वक लिया जाना चाहिए।
  • आम धारणा के विपरीत, पुलिस अधिकारी भी गैर-जमानती अपराधों में जमानत दे सकते हैं।

जमानत के प्रकार (Types of Bail):

  • सामान्य जमानत (Regular Bail): यह आरोपी को हिरासत से रिहा करने के लिए दी जाती है, ताकि वह मुकदमे की सुनवाई के दौरान अदालत में उपस्थित रह सके।
  • अंतरिम जमानत (Interim Bail): यह एक अस्थायी जमानत होती है, जो तब दी जाती है जब जमानत के लिए आवेदन चल रहा हो या अदालत anticipatory या सामान्य जमानत के आवेदन पर विचार कर रही हो।
  • अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail): यह जमानत उस व्यक्ति को दी जाती है, जो संभावित रूप से गैर-जमानती अपराध के लिए गिरफ्तार होने की आशंका में हो।

 भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत प्रमुख बदलाव (Major changes under the Indian Justice Code (BNS), 2023)

  • पहली बार अपराध करने वालों के लिए जमानत (Bail for first-time offenders): पहली बार अपराध करने वाले लोग, जिन्होंने अपनी सजा का एक-तिहाई हिस्सा जेल में बिताया है, उन्हें जमानत मिलने का हक है। यह प्रावधान मौत या आजीवन कारावास की सजा वाले मामलों को छोड़कर लागू होता है। इससे जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या कम होने की उम्मीद है।
  • जमानत आवेदन का समय पर निपटारा (Timely disposal of bail application): BNS जमानत आवेदन के समय पर निपटारे पर जोर देता है, जिससे विचाराधीन कैदियों की लंबी हिरासत को कम किया जा सके।
  • चार्ज शीट दायर होने के बाद जमानत (Bail after charge sheet is filed): अगर आरोपी हिरासत में है, तो चार्ज शीट दायर होने पर अदालत को उसे जमानत पर रिहा करने पर विचार करना होगा, जब तक कि जमानत को नकारने के लिए ठोस कारण न हों।
  • असुरक्षित समूहों के लिए विशेष प्रावधान (Special provisions for vulnerable groups): BNS महिलाओं, बच्चों और बीमार व्यक्तियों के लिए विशेष प्रावधान बनाए रखता है, जिससे उनके लिए जमानत प्राप्त करना आसान हो सके।

 प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate):

  • स्थापना (Established): 1956 में ‘एन्फोर्समेंट यूनिट’ के रूप में आर्थिक मामलों के विभाग के तहत।
  • प्रारंभिक नाम (Initial Name): एन्फोर्समेंट यूनिट
  • बदला नाम (Changed Name): 1957 में ‘प्रवर्तन निदेशालय’
  • प्रशासनिक नियंत्रण (Administrative Control): वर्तमान में राजस्व विभाग (वित्त मंत्रालय) के तहत

 ED के निदेशक की नियुक्ति (Appointment of Director of ED):

  • ED के निदेशक की नियुक्ति केंद्रीय सरकार द्वारा की जाती है, जो एक समिति की सिफारिश पर आधारित होती है।
  • इस समिति की अध्यक्षता केंद्रीय सतर्कता आयुक्त करते हैं और इसके सदस्य में सतर्कता आयुक्त, गृह सचिव, DOPT सचिव, और राजस्व सचिव शामिल होते हैं।

कार्य (Functions):

  • ED विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA) और पैसा लॉन्डरिंग निरोधक अधिनियम (PMLA) के तहत कुछ प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है।
  • यह FEMA के उल्लंघन में दोषी पाए गए लोगों की संपत्तियों को अटैच (जप्त) करने की शक्ति रखता है।
  • ED को PMLA के तहत अपराधों के खिलाफ तलाशी, जब्ती, गिरफ्तारी, अभियोजन कार्रवाई, और सर्वेक्षण करने की भी शक्ति प्राप्त है।

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