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Aligarh Muslim University में अल्पसंख्यक दर्जा मामला; सुप्रीम कोर्ट एएमयू

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि एएमयू (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को पुनः निर्धारित करने के लिए तीन जजों की एक विशेष समिति गठित की गई है।

इस फैसले में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पारदीवाला, और जस्टिस मनोज मिश्रा ने एकमत से यह निर्णय लिया, जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति जताई।

मुख्य बिंदु (Key points):

सुप्रीम कोर्ट ने 1967 की संविधान पीठ (Constitution Bench of 1967) के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता क्योंकि यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और इसे एक कानून के तहत स्थापित किया गया था।

मुख्य टिप्पणियाँ (Key Notes):

  • अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित संस्थान (Institution established by minority community): अदालत ने माना कि अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा बनाया गया कोई भी संस्थान अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान माना जा सकता है, चाहे वह कानूनी रूप से कैसे भी स्थापित हुआ हो।
  • संस्थान का उद्देश्य (Objective of the institution): ऐसे संस्थानों का उद्देश्य समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना होता है।
  • अल्पसंख्यक दर्जा (Minority status): अल्पसंख्यक दर्जा इस पर निर्भर नहीं करता कि संस्थान केवल उसी समुदाय के लिए हो, बल्कि इस पर निर्भर करता है कि इससे मुख्यतः समुदाय को लाभ मिले।
  • प्रशासनिक नियंत्रण का नुकसान (Loss of administrative control): अदालत ने यह भी पाया कि यदि समुदाय का प्रशासनिक नियंत्रण समाप्त हो जाए, तब भी संस्थान का अल्पसंख्यक चरित्र समाप्त नहीं होता।

सीजेआई द्वारा अनुच्छेद 30 और 19 का संदर्भ (Reference to Articles 30 and 19 by CJI):

  • सीजेआई (CJI) ने कहा कि अनुच्छेद 30(ए) (Article 30(A) के तहत किसी संस्था को अल्पसंख्यक (Minority) मानने के मानदंड निर्धारित हैं।
  • किसी भी नागरिक द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान (Educational institutions) को अनुच्छेद 19(6) के तहत विनियमित (regulated) किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकार पूर्णतः निरपेक्ष नहीं हैं; अल्पसंख्यक संस्थान के विनियमन की अनुमति अनुच्छेद 19(6) के तहत दी जा सकती है, बशर्ते कि यह संस्थान के अल्पसंख्यक चरित्र का उल्लंघन न करे।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का इतिहास और विवाद (History and Controversy of Aligarh Muslim University):

इतिहास (History):

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान (Sir Syed Ahmed Khan) ने ‘अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज’ (Aligarh Muslim College) के रूप में की थी। इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक उत्थान हेतु एक महत्वपूर्ण केंद्र स्थापित करना था। 1920 में, इसे विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ और इसका नाम बदलकर ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ (Aligarh Muslim University) रखा गया।

विवाद (controversies):

  • 1875: मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना (Muhammadan Anglo-Oriental College established): सर सैयद अहमद खान (Sir Syed Ahmad Khan) ने 1875 में अलीगढ़ में मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (Muhammadan Anglo-Oriental College) की स्थापना की। इसका उद्देश्य (Objective) मुस्लिम समुदाय को आधुनिक शिक्षा देना था, जो उस समय सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े माने जाते थे। बाद में, यही कॉलेज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की नींव बना।
  • 1920: AMU का गठन (1920: AMU formed): 1920 में भारतीय विधान परिषद (Indian Legislative Council) ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अधिनियम (Aligarh Muslim University Act) पारित किया, जिससे इस कॉलेज को औपचारिक रूप से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) में परिवर्तित किया गया।
  • 1967: सुप्रीम कोर्ट का पहला फैसला — एस. अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ (1967: First decision of the Supreme Court — S. Aziz Basha vs Union of India): सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान (Minority Institution) नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसकी स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा नहीं, बल्कि केंद्रीय विधान के तहत हुई थी। कोर्ट ने कहा कि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय (Central University) है और इसे मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित या संचालित नहीं माना जा सकता, इसलिए यह अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान की श्रेणी में नहीं आता।
  • 1981: AMU अधिनियम में संशोधन (1981: Amendment in AMU Act): 1967 के फैसले के जवाब में, केंद्र सरकार ने 1981 में AMU अधिनियम में संशोधन किया और घोषित किया कि AMU भारतीय मुसलमानों द्वारा उनके शैक्षिक और सांस्कृतिक उन्नति के लिए स्थापित की गई थी। इस संशोधन के बाद AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिला।
  • 2005: आरक्षण विवाद (2005: Reservation controversy): AMU ने स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों (postgraduate medical courses) में मुस्लिम छात्रों के लिए 50% आरक्षण (Reservation) लागू किया। 2006 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने इस नीति को रद्द कर दिया और कहा कि 1967 के फैसले के अनुसार, AMU अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं रखता, क्योंकि इसे मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित या संचालित नहीं किया गया था।
  • 2016: सरकार की अपील वापस (2016: Government withdraws appeal): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ दायर अपील को वापस ले लिया। सरकार ने कहा कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान की परिभाषा में फिट नहीं बैठता, क्योंकि 1920 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया था।
  • 2019: सात-न्यायाधीश पीठ (2019: Seven-judge bench): मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) की अध्यक्षता में तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के कानूनी सवाल को हल करने के लिए इसे सात-न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ को सौंपा।
  • 2024: नवीनतम फैसला (2024: Latest verdict): सुप्रीम कोर्ट की सात-न्यायाधीश संविधान पीठ ने 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पुराने फैसले को पलट दिया गया। इस फैसले से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलने का मार्ग प्रशस्त हो गया।

 भारत में अल्पसंख्यकों के लिए संवैधानिक और कानूनी प्रावधान (Constitutional and Legal Provisions for Minorities in India):

 अनुच्छेद और उनके प्रावधान (Articles and their Provisions):

  • अनुच्छेद 29 (Article 29): किसी भी नागरिक वर्ग को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि, या संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता है। इसमें धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों की रक्षा की गई है। “नागरिकों का वर्ग” शब्द में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 30(1): धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार देता है। यह सुनिश्चित करता है कि केंद्र सरकार से उन्हें किसी प्रकार का भेदभाव (Discrimination) न हो।
  • अनुच्छेद 25 (Article 25): अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म का पालन, प्रचार, और प्रचार करने की स्वतंत्रता की सुरक्षा करता है।
  • अनुच्छेद 26 (Article 26): धार्मिक संप्रदायों को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों (religious and charitable purposes) के लिए संस्थान स्थापित करने और बनाए रखने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 27 (Article 27): किसी विशेष धर्म को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य करों के भुगतान से छूट प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 28 (Article 28): कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या पूजा में उपस्थिति की स्वतंत्रता प्रदान करता है।

 राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities – NCM)

  • स्थापना (Establishment): 1992 में NCM अधिनियम के तहत स्थापित किया गया।
  • भूमिका (Role): अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण और विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देता है।
  • कवरेज (Coverage): प्रारंभ में इसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय शामिल थे; 2014 में जैन समुदाय (Jain Community) को भी इसमें जोड़ा गया।

महत्वपूर्ण न्यायालय के निर्णय (Important Court Judgments):

  • टी.एम.ए. पाई केस (TMA Pai Case): सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि अनुच्छेद 30 के तहत, जो अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार देता है, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों का निर्धारण राज्य-वार (state-wise) किया जाना चाहिए।
  • बाल पाटिल केस (Bal Patil Case): 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने बाल पाटिल के फैसले में टी.एम.ए. पाई केस का उल्लेख किया।
  • कानूनी स्थिति यह स्पष्ट करती है कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों का दर्जा राज्य के आधार पर तय किया जाएगा।
  • इनामदार केस (Inamdar Case): 2005 में सुप्रीम कोर्ट के इनामदार मामले के फैसले में कहा गया कि राज्य अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक निजी (minority and non-minority private), अनुदान रहित कॉलेजों (non-subsidized colleges), जिसमें व्यावसायिक कॉलेज (professional colleges) भी शामिल हैं, पर आरक्षण नीति लागू नहीं कर सकता।
  • अदालत ने निजी, अनुदान रहित शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया।

 सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब आगे क्या होगा? (What will happen next after the Supreme Court’s decision)

  • सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय नियमित बेंच अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर अंतिम निर्णय लेगी। इसका मतलब यह है कि यह बेंच तय करेगी कि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा सकता है या नहीं।
  • सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी दुबे के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कुछ मानदंड तय किए हैं, जिनके आधार पर यह निर्धारित किया जाएगा कि किसे अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा सकता है। अब नियमित बेंच इस संदर्भ में विस्तृत दिशानिर्देश तैयार करेगी, जिसमें अल्पसंख्यक दर्जे के लिए पूरी गाइडलाइंस शामिल होंगी।
  • इसके साथ ही, अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना और उसके प्रशासन से संबंधित दिशा-निर्देश भी जारी किए जाएंगे। इसमें विश्वविद्यालय का इतिहास, स्थापना की परिस्थितियाँ और विश्वविद्यालय के प्रशासन की कार्यवाहियों को भी ध्यान में रखा जाएगा।

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