चर्चा में क्यों –
हाल ही में भारत ने फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों की पहली खेप 19 अप्रैल 2024 को सौंप दी। ब्रह्मोस मिसाइल पाने वाला फिलीपींस पहला बाहरी देश है। भारत ने जनवरी 2022 में फिलीपींस से ब्रह्मोस मिसाइल की बिक्री के लिए 375 मिलियन डॉलर (3130 करोड़ रुपए) का समझौता किया था।
ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos Missile) –
परिचय –
ब्रह्मोस मिसाइल, एक भारत-रूस संयुक्त उद्यम, की रेंज 290 किमी है और यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) की शीर्ष गति के साथ दुनिया की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल है। ब्रह्मोस दो चरणों वाली एक मिसाइल है। पहले चरण में ठोस ईंधन वाला तेज बूस्टर इंजन होता है जो इसे बहुत तेज गति (सुपरसोनिक स्पीड) तक पहुंचा देता है और फिर अलग हो जाता है। इसके बाद, दूसरा चरण जो तरल हवा में चलने वाला रैमजेट इंजन होता है, मिसाइल को और भी ज्यादा तेज गति (लगभग 3 गुना ध्वनि की गति) पर क्रूज फ्लाइट में ले जाता है।
इतिहास –
- भारत के रक्षा इतिहास में 1983 एक नया मोड़ लेकर आया। देश की रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं ने मिलकर एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किया। इस कार्यक्रम को इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) का नाम दिया गया।
- इस कार्यक्रम का लक्ष्य कम दूरी और मध्यम दूरी की मिसाइलों सहित कई तरह की मिसाइलें बनाकर भारत को मिसाइल कार्यक्रम में आत्मनिर्भर बनाना था।
- लेकिन, 1990 के दशक के खाड़ी युद्ध के बाद, यह महसूस किया गया कि देश को एक क्रूज मिसाइल प्रणाली से लैस करना भी बहुत जरूरी है।
- उसी समय, रूस के साथ भारत के दशकों पुराने अच्छे संबंधों का फायदा उठाते हुए, गुटनिरपेक्ष नीति के संतुलन को बनाए रखते हुए, इस नई मिसाइल प्रणाली को विकसित करने का फैसला किया गया।
- इसके नतीजे के तौर पर, भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल टेक्नोलॉजिस्ट डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और रूस के पहले उप रक्षा मंत्री एनवी मिखाइलोव ने 12 फरवरी, 1998 को मास्को में एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस की स्थापना का रास्ता बनाया – जो भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूस के NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया (NPOM) के बीच एक संयुक्त उद्यम है।
- ब्रह्मोस नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा नदी पर रखा गया है।
- इस साझेदारी का लक्ष्य दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली – ब्रह्मोस को डिजाइन, विकास, निर्माण और बाजार में लाना था।
- समझौते के अनुसार, दोनों देशों ने मिलकर मिसाइल को विकसित और बनाने का फैसला किया, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 5% और रूस की हिस्सेदारी 49.5% रखी गई. 9 जुलाई, 1999 को पहला करार हुआ, जिसके तहत कंपनी को रूसी सरकार से 123.75 मिलियन डॉलर और भारत से 126.25 मिलियन डॉलर मिले। उसी साल DRDO और NPOM की कई विशेष प्रयोगशालाओं में इस परियोजना पर काम शुरू हुआ।
- इस कंपनी के बनने से संयुक्त रूप से विकसित उच्च तकनीक वाले सैन्य उत्पाद को बनाने और उसे कई भारतीय और रूसी संस्थानों और उद्योगों की मदद से दुनिया भर में बेचने का एक उदाहरण स्थापित हुआ।
- ब्रह्मोस का पहला सफल प्रक्षेपण 12 जून, 2001 को हुआ था. मिसाइल को ओडिशा में चांदीपुर तट पर स्थित अंतरिम परीक्षण क्षेत्र से उसके जमीनी लॉन्चर से दागा गया था।
- इसके बाद, यह संयुक्त उद्यम कंपनी सुर्खियों में आ गई और घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय रक्षा प्रदर्शनियों में भाग लेने लगी। वैश्विक बाजार में कदम रखते हुए, ब्रह्मोस को पहली बार 2001 में मास्को में MAKS-1 प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था।
- इस मिसाइल का कई बार परीक्षण किया गया है, जो इसके संभावित खरीदारों की जरूरतों को पूरा करता है।
- ब्रह्मोस के नौसैनिक और भूमि संस्करण को क्रमशः वर्ष 2005 में भारतीय नौसेना और वर्ष 2007 में भारतीय सेना द्वारा सेवा में शामिल किया जा चुका है।
- इसी क्रम में भारतीय वायु सेना द्वारा नवंबर 2017 में अपने सुखोई-30 एमकेआई फाइटर जेट से इस मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया, जिससे तीनों क्षेत्रों (जल, थल, वायु) में इस मिसाइल ने अपने प्रभावशालिता साबित कर दिया ली है।
- इसके अलावा इस मिसाइल की गति और रेंज को बढ़ाने का प्रयास चल रहा है, जिसमें इसकी गति को हाइपरसोनिक गति (मैक 5 या उससे ऊपर) और 1,500 किमी. की अधिकतम रेंज को प्राप्त करने का लक्ष्य है।
ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos Missile) सीरीज –
ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल –
इस मिसाइल में खास तकनीकें लगी होती हैं, जैसे कम दिखने वाली स्टेल्थ टेक्नोलॉजी और आधुनिक सॉफ्टवेयर वाला मार्गदर्शन सिस्टम।
- यह मिसाइल पूरी उड़ान के दौरान सुपरसोनिक रफ़्तार से चल सकती है। इस मिसाइल की मारने की दूरी 290 किलोमीटर तक है और यह पूरी उड़ान में बहुत तेज़ रफ्तार रखती है।
- इस वजह से यह कम समय में निशाना तक पहुंच जाती है, जिससे दुश्मन के ठिकानों पर जल्दी हमला किया जा सकता है और दुनिया के किसी भी हथियार से इसे रोका नहीं जा सकता है।
- भारत द्वारा जून 2016 में मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (Missile Technology Control Regime-MTCR) में शामिल होने बाद इसकी रेंज को अगले चरण में 450 किमी. तथा 600 किमी. तक विस्तारित करने की योजना है।
- यह मिसाइल “फायर और फोर्गेट” के सिद्धांत पर काम करती है, यानी इसे लॉन्च करने के बाद दुबारा निशाना लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। उड़ान के दौरान यह अलग-अलग तरह से रास्ता बदल सकती है।
- टक्कर के समय इसकी गति इतनी ज्यादा होती है कि ये बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है। यह मिसाइल 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक जा सकती है और आखिरी समय में ये 10 मीटर की कम ऊंचाई पर भी उड़ान भर सकती है।
- इसमें 200 से 300 किलो तक का पारंपरिक विस्फोटक ले जाने की क्षमता होती है।
आधुनिक सबसोनिक क्रूज मिसाइलों की तुलना में ब्रह्मोस:
- 3 गुना ज्यादा तेज
- 2.5 से 3 गुना ज्यादा दूरी तय कर सकती है
- 3 से 4 गुना दूर तक निशाना ढूंढ सकती है
- टक्कर पर 9 गुना ज्यादा ताकतवर
यह एक मल्टीप्लेटफॉर्म मिसाइल है यानी इसे ज़मीन, हवा और समुद्र तथा बहु क्षमता वाली मिसाइल से सटीकता के साथ लॉन्च किया जा सकता है, जो किसी भी मौसम में दिन और रात में काम करती है।
विशेषताएँ:
- पनडुब्बी, शिप, एयरक्राफ्ट या जमीन कहीं से भी लॉन्च की जा सकती है।
- लॉन्च करने के बाद निशाना बदलने की जरूरत नहीं (फायर और फोर्गेट)
- पूरी उड़ान के दौरान बहुत तेज गति
- लंबी दूरी तय कर सकती है और उड़ान के दौरान रास्ता बदल सकती है।
- रडार पर आसानी से दिखाई नहीं देती
- कम समय में निशाना भेद लेती है और बहुत सटीक होती है।
- टक्कर पर बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है।
अभी यह किन चीज़ों में इस्तेमाल हो रही है:
- जहाजों पर लगे मिसाइल सिस्टम
- जमीन पर लगे मिसाइल सिस्टम
- लड़ाकू विमान सुखोई-30 MKI पर लगी हुई हवा से जमीन पर हमला करने वाली मिसाइल
ब्रह्मोस-एनजी
दुनिया भर में सैन्य प्रौद्योगिकी में तेजी से हो रहे बदलावों ने एक और अत्याधुनिक हथियार – ब्रह्मोस-एनजी (नेक्स्ट जेनरेशन) के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। ब्रह्मोस-एनजी भविष्य में सबसे शक्तिशाली हथियार प्रणालियों में से एक बनने का वादा करता है, जो मौजूदा विश्व स्तरीय ब्रह्मोस की विरासत को आगे बढ़ाएगा।
- ब्रह्मोस एनजी एक बहु-प्लेटफ़ॉर्म, बहु-लक्ष्य और हल्के हथियार प्रणाली है, जो इसे युद्ध के मैदान के लिए एकदम सही बनाती है।
- रेंज: 290 किलोमीटर
- गति: 3.5 मैक तक
- इसमें पिछली मिसाइल की तुलना में छोटा रडार क्रॉस-सेक्शन (आरसीएस) है, जिससे वायु रक्षा प्रणालियों के लिए लक्ष्य का पता लगाना और उस पर हमला करना अधिक कठिन हो जाता है।इसे जमीन-आधारित, हवाई, सतह और पानी के नीचे प्लेटफार्मों पर तैनात करने के लिए बनाया गया था।
- अपने छोटे आकार के कारण इस मिसाइल को पनडुब्बी टारपीडो कमरों से लॉन्च किया जा सकता है।
- ब्रह्मोस-एनजी की प्रमुख विशेषताएं होंगी:
- व्यापक उपयोग के लिए कम आयाम और वजन
- उन्नत अगली पीढ़ी का स्टील्थ
- पानी के भीतर युद्ध अनुप्रयोगों में उच्च बहुमुखी प्रतिभा
- टारपीडो ट्यूब और ऊर्ध्वाधर अभिविन्यास से लॉन्च की तैयारी।
ब्रह्मोस (BrahMos) द्वितीय
ब्रह्मोस-II, जिसे ब्रह्मोस मार्क II के नाम से भी जाना जाता है, एक हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल (HCM) है। इसका उपयोग हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय नौसेना की आक्रामक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए जहाज-आधारित एचसीएम के रूप में किया जाएगा। इससे भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता का मुकाबला करने में मदद मिलेगी।
मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR)
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फिलीपींस ने ब्रह्मोस मिसाइलें क्यों खरीदी?
फिलीपींस की चीन के साथ हाल ही में साउथ चाइना सी में कई बार झड़प हुई है। ब्रह्मोस मिसाइलों से समुद्र में फिलीपींस की ताकत बढ़ेगी और समुद्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी रोका जा सकेगा।
दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में विवाद क्या है?
- दक्षिण चीन सागर का महत्त्व:
- सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अवस्थिति: सामरिक दृष्टि से दक्षिण चीन सागर की अवस्थिति महत्त्वपूर्ण है, इसकी सीमा उत्तर में चीन और ताइवान से, पश्चिम मेंभारत-चीन प्रायद्वीप (वियतनाम, थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर सहित), दक्षिण में इंडोनेशिया तथा ब्रुनेई एवं पूर्व में फिलीपींस (जिसे पश्चिम फिलीपीन सागर कहा जाता है) से लगती है।
- यह ताइवान जलसंधि द्वारा पूर्वी चीन सागर से और लूज़ॉन जलसंधि द्वारा फिलीपीन सागर (प्रशांत महासागर के दोनों सीमांत समुद्र) से जुड़ा हुआ है।
- सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अवस्थिति: सामरिक दृष्टि से दक्षिण चीन सागर की अवस्थिति महत्त्वपूर्ण है, इसकी सीमा उत्तर में चीन और ताइवान से, पश्चिम मेंभारत-चीन प्रायद्वीप (वियतनाम, थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर सहित), दक्षिण में इंडोनेशिया तथा ब्रुनेई एवं पूर्व में फिलीपींस (जिसे पश्चिम फिलीपीन सागर कहा जाता है) से लगती है।
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- व्यापारिक महत्त्व: समुद्री मार्ग से व्यापार का एक-तिहाई हिस्सा दक्षिण चीन सागर के माध्यम से किया जाता है। चीन का 64% से अधिक समुद्री व्यापार दक्षिण चीन सागर पर निर्भर है।
- भारत का 55% से अधिक व्यापार दक्षिण चीन सागर और मलक्का जलसंधि से होता है।
- मत्स्य पालन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र: दक्षिण चीन सागर मत्स्य पालन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण एवं एक समृद्ध क्षेत्र भी है, जो इस क्षेत्र के लाखों लोगों के लिये आजीविका व खाद्य सुरक्षा का एक प्रमुख स्रोत है।
- यहवैविध्यपूर्ण समुद्री पारितंत्र और मत्स्य पालन को बनाए रखने में मदद करता है, साथ ही यह क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं तथा खाद्य आपूर्ति में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- विवाद:
- दक्षिण-चीन सागर विवाद का केंद्र भूमि सुविधाओं (द्वीपों और चट्टानों) और उनसे संबंधित क्षेत्रीय जल पर क्षेत्रीय दावों के इर्द-गिर्द घूमता है।
- इन विवादों में शामिल पक्षों में चीन, ब्रुनेई, ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम और मलेशिया शामिल हैं।
- चीन अपने“नाइन-डैश लाइन” मानचित्र के साथ समुद्र के 90% हिस्से पर दावा करता है और नियंत्रण स्थापित करने के लिये इसने द्वीपों का भौतिक रूप से विस्तार किया है तथा वहाँ सैन्य प्रतिष्ठानों का निर्माण किया है।
- चीन पारासेल और स्प्रैटली द्वीप समूह में विशेष रूप से सक्रिय है। चीन निरंतर तटरक्षक उपस्थिति के माध्यम से स्कारबोरो शोल को भी नियंत्रित करता है।
- दक्षिण-चीन सागर विवाद का केंद्र भूमि सुविधाओं (द्वीपों और चट्टानों) और उनसे संबंधित क्षेत्रीय जल पर क्षेत्रीय दावों के इर्द-गिर्द घूमता है।
- व्यापारिक महत्त्व: समुद्री मार्ग से व्यापार का एक-तिहाई हिस्सा दक्षिण चीन सागर के माध्यम से किया जाता है। चीन का 64% से अधिक समुद्री व्यापार दक्षिण चीन सागर पर निर्भर है।
भारत और फिलीपींस के बीच सहयोग के क्षेत्र क्या हैं?
- परिचय:भारत और फिलीपींस ने औपचारिक रूप से 26 नवंबर, 1949 को राजनयिक संबंध स्थापित किये।
- वर्ष 2014 में शुरू की गईएक्ट ईस्ट पॉलिसी के साथ, फिलीपींस के साथ संबंध राजनीतिक सुरक्षा, व्यापार, उद्योग और पीपल-टू-पीपल क्षेत्रों में तथा अधिक विविध हो गए हैं।
- द्विपक्षीय व्यापार:भारत सरकार के वाणिज्य विभाग के आधिकारिक व्यापार आँकड़ों के अनुसार भारत और फिलीपींस के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में पहली बार 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है।
- भारत फिलीपींस को अभियांत्रिकी वस्तु, ऑटोमोबाइल पार्ट्स, पेट्रोलियम उत्पाद, भेषजीय पदार्थ, गोजातीय नस्ल के पशुओं का माँस, तिलहन, तंबाकू और मूंगफली का निर्यात करता है।
- फिलीपींस से भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं मेंविद्युत मशीनरी, अर्द्धचालक, अयस्क, ताँबा, प्लास्टिक, मोती, खाद्य उद्योग से प्राप्त अपशिष्ट और पशु चारा शामिल हैं।
- स्वास्थ्य और चिकित्सा:फिलीपींस भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवैक्सिन के आपातकालीन उपयोग को अनुमति (EUA) प्रदान करने वाला पहला आसियान सदस्य था।
- वर्तमान में भारत द्वाराआसियान देशों को किये जाने वाले कुल औषध निर्यात का 20% फिलीपींस को किया जाता है और भारत इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है।
फिलीपींस के बारे में मुख्य तथ्य:
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भारत को होने वाले फायदे –
फिलीपींस के साथ यह डील देश को रक्षा क्षेत्र में एक्सपोर्टर बनाने और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने में मदद देगी। इस डील से मिलिट्री इंडस्ट्री का भी मनोबल बढ़ेगा और साउथ-ईस्ट एशिया में भारत को भी एक बड़े भरोसेमंद एक्सपोर्टर के रूप में देखा जाएगा। साथ ही इस समझौते से भारत-फिलीपींस के रिश्तों में मजबूती आएगी और चीन को दोनों देशों की एकजुटता का संदेश जाएगा।
- पिछले वित्तीय वर्ष (2022-23) में भारत के रक्षा उपकरणों का एक्सपोर्ट 32.5% रहा था।
- पहली बार भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट 21,000 करोड़ पार कर गया है। इसमें प्राइवेट सेक्टर का कॉन्ट्रीब्यूशन 60% और डिफेंस पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (DPSUs) का 40% है।
- भारत इस समय 85 देशों को मिलिट्री हार्डवेयर एक्सपोर्ट करता है। इसमें करीब 100 लोकल फर्म्स का भी कॉन्ट्रीब्यूशन होता है।
- भारत डोनियर-228 विमान, 155 MM एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन, आकाश मिसाइल सिस्टम, रडार, सिमुलेटर, माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल, बख्तरबंद वाहन, पिनाका रॉकेट, थर्मल इमेजर्स एक्सपोर्ट कर चुका है।
भारत के लिए अहम है साउथ चाइना सी
- चीन, जापान, साउथ कोरिया और आसियान देशों से व्यापार का ये प्रमुख समुद्री मार्ग हैं, भारत का 95% व्यापार समुद्र के जरिए होता है, इसका करीब 55% साउथ चाइना सी से होता हैं।
- कोचीन, कोलकाता, विशाखापट्टनम और चेन्नई पोर्ट के जरिए व्यापार होता है।
- जूट, चाय, स्टील, लोहा, कॉपर, लेदर समेत कई चीजों का एक्सपोर्ट होता है।
अर्जेंटीना-वियतनाम में भी ब्रह्मोस मिसाइल की मांग
ब्रह्मोस एयरोस्पेस के डायरेक्टर जनरल अतुल दिनाकर राणे ने जून 2023 में कहा था- अर्जेंटीना, वियतनाम सहित 12 देश ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम को खरीदने में इंटरेस्ट दिखा चुके हैं। बाहरी देशों की ब्रह्मोस की मांग बताती है कि यह मिसाइल सिस्टम बहुत भरोसेमंद है।
PYQ’s
Q. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये:
क्षेत्र जो कभी-कभी देश समाचारों में उल्लिखित होते हैं
1. केटालोनिया – स्पेन
2. क्रीमिया – हंगरी
3. मिंडानाओ – फिलीपींस
4. ओरोमिया – नाइजीरिया
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित है?
(a) 1, 2 और 3
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2 और 4
उत्तर: (c)
Q. दक्षिण-पूर्व एशिया ने भू-स्थानिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में अंतरिक्ष और समय पर वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। निम्नलिखित में से कौन-सी इस वैश्विक परिप्रेक्ष्य के लिये सबसे ठोस व्याख्या है?
(a) द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह सबसे गर्म थिएटर था।
(b) चीन और भारत की एशियाई शक्तियों के बीच इसका स्थान।
(c) यह शीत युद्ध के समय में महाशक्ति टकराव का अखाड़ा था।
(d) प्रशांत और भारतीय महासागरों तथा इसके पूर्व-प्रख्यात समुद्री चरित्र के बीच इसका स्थान।
उत्तर: (d)
Q. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये:
1.ऑस्ट्रेलिया
2. कनाडा
3. चीन
4. भारत
5. जापान
6. संयुक्त राज्य अमेरिका
उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के ‘मुक्त व्यापार भागीदारों’ में से हैं?
(a) 1, 2, 4 और 5
(b) 3, 4, 5 और 6
(c) 1, 3, 4 और 5
(d) 2, 3, 4 और 6
उत्तर: (C)
Q. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2009)
1. ब्रुनेई दारुस्सलाम
2. पूर्वी तिमोर
3. लाओस
उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) का सदस्य है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: C
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