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सुप्रीम कोर्ट ने फैसला आने तक बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दी है

चर्चा में क्यों ?

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को Bulldozer Justiceके मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान, जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा की बेंच ने स्पष्ट किया कि निर्णय आने तक पूरे देश में बुलडोजर कार्रवाई पर रोक जारी रहेगी। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय की तिथि निर्धारित नहीं की है।

  • सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार का पक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि सरकारों पर एक विशेष समुदाय (particular community) के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई करने के आरोप लगाए गए हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट ने फिर से साफ किया है कि बुलडोजर एक्शन पर रोक का मतलब अवैध अतिक्रमण (illegal encroachment) को हटाने से नहीं है। चाहे वो सड़क, रेल लाइन, मंदिर या दरगाह हो, अगर अवैध अतिक्रमण है तो उसे हटाया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि उनकी प्राथमिकता जनता की सुरक्षा (public safety) है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जो मुख्य बातें कही है (The main points that the Supreme Court has said in this case):

  • नोटिस जरूरी है (Notice is necessary): कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी तोड़फोड़ की कार्रवाई से पहले नोटिस जारी किया जाना चाहिए। नोटिस में यह बताना जरूरी है कि किस कानून का उल्लंघन हुआ है, और इसे रजिस्टर्ड पोस्ट के माध्यम से भेजा जाना चाहिए।
  • ऑनलाइन पोर्टल का सुझाव (Suggestion of online portal): जस्टिस विश्वनाथन ने सुझाव दिया कि नोटिस और कार्रवाई की स्थिति को डिजिटलाइज किया जाए, ताकि यह ऑनलाइन पोर्टल पर उपलब्ध हो और प्रक्रिया में पारदर्शिता आए। इससे अधिकारी भी सुरक्षित रहेंगे और रिकॉर्ड भी सुरक्षित रहेंगे।
  • किसी समुदाय को निशाना न बनाएं (Do not target any community): सॉलिसिटर जनरल की चिंता पर, जस्टिस गवई ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और जो भी गाइडलाइन बनाई जाएगी, वह पूरे देश के लिए होगी, न कि किसी विशेष समुदाय के खिलाफ।
  • अवैध अतिक्रमण हटाना जरूरी (Removal of illegal encroachment is necessary): कोर्ट ने यह भी कहा कि चाहे वह सार्वजनिक सड़क, जल स्रोत, रेलवे लाइन, मंदिर, या दरगाह हो, अवैध अतिक्रमण हटाया जाना चाहिए। जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है।
  • महज आरोपी या दोषी के आधार पर बुलडोजर कार्रवाई नहीं (No bulldozer action on the basis of mere accused or convicted): जस्टिस गवई ने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति केवल आरोपी है या दोषी साबित हुआ है, तो केवल इस आधार पर बुलडोजर कार्रवाई नहीं की जा सकती। इसके लिए अवैध अतिक्रमण का मामला होना चाहिए।
  • महिलाओं और बच्चों का ध्यान (Attention to women and children): जस्टिस विश्वनाथन ने यह भी कहा कि अवैध अतिक्रमण हटाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि महिलाएं, बच्चे, और बुजुर्ग सड़क पर न आ जाएं।
  • न्यायालयी प्रक्रिया (Judicial process): कोर्ट ने कहा कि यदि कोई मामला कोर्ट में जाता है, तो आम तौर पर 1 महीने के भीतर इसका फैसला हो जाता है।

बुलडोजर एक्शन से जुड़ी घटनाओं की समयरेखा (Timeline of events related to bulldozer action):

  • 18 अप्रैल 2022: यूपी के जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक हिंसा के बाद बुलडोजर से घरों को तोड़ा गया। जमीअत उलेमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस कार्रवाई को चुनौती दी।
  • 20 अप्रैल 2022: तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अगुवाई वाली बेंच ने जहांगीरपुरी में ध्वस्तीकरण पर रोक लगाने का आदेश दिया। इसके बावजूद, दोपहर तक कार्रवाई जारी रही।
  • 21 अप्रैल 2022: सांसद ब्रिंदा करात ने एक और याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ध्वस्तीकरण पर रोक जारी रहेगी।
  • 6 मई 2022: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सरकारों को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने कुछ सुनवाइयाँ कीं लेकिन मामले में कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ।
  • अगस्त 2024: राशिद खान (उदयपुर) का घर ध्वस्त हुआ। उन्होंने याचिका दायर की, जिसे अन्य मामलों के साथ जोड़ दिया गया।
  • 30 अगस्त 2024: राशिद खान की याचिका पर सी.यू. सिंह और फौजिया शकील ने तत्काल राहत की मांग की। इसे ब्रिंदा करात की याचिका के साथ सुना गया।
  • 2 सितंबर 2024: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। उत्तर प्रदेश ने कहा कि सभी मामलों में कानूनी नोटिस दिया गया था। लेकिन याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जहांगीरपुरी हिंसा के बाद खास समुदाय के घरों को निशाना बनाया गया। कोर्ट ने सुझाव दिया कि पूरे देश के लिए बुलडोजर कार्रवाई पर गाइडलाइन्स बनाई जाएं।
  • 14 सितंबर 2024: जमीअत उलेमा ए हिंद ने गाइडलाइन्स के लिए अपने सुझाव पेश किए। इसमें कहा गया कि विधिक प्रक्रिया के तहत उचित नोटिस दिया जाना चाहिए और अपील के लिए कम से कम 60 दिन का समय होना चाहिए।
  • 17 सितंबर 2024: सुनवाई में कोर्ट ने बताया कि बिना अनुमति के किसी का घर ध्वस्त नहीं किया जा सकता।
  • 27 सितंबर 2024: संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि बालकृष्णन राजगोपाल ने याचिका दायर कर बुलडोजर कार्रवाई को मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया और गाइडलाइन्स बनाने की अपील की।

रिपोर्ट के अनुसार, 2022 से अब तक देश भर में 150,000 से ज़्यादा घरों को बुलडोज़र की कार्रवाई के ज़रिए ढहा (demolished) दिया गया है, जिससे 738,000 लोग बेघर (homeless) हो गए हैं। इनमें से कई मामलों में एक बात समान है- ध्वस्तीकरण किसी असंबद्ध घटना या निवासी या संपत्ति के मालिक से जुड़े विवाद के बाद हुआ है। सरकार ने आरोप का इस्तेमाल बुलडोज़र तैनात करने के औचित्य के रूप में करते हुए, आरोपी की संपत्ति के संबंध में तुरंत अतिक्रमण (encroachment)के नोटिस जारी किए हैं

 संबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (Related Supreme Court Judgments):

  • ओल्गा टेलिस एवं अन्य बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉरपोरेशन एवं अन्य (1985): इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फुटपाथ पर रहने वालों को जबरन हटाना, बिना उन्हें अपनी बात रखने का मौका दिए, असंवैधानिक है। यह उनके आजीविका के अधिकार का उल्लंघन है।
  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या करते हुए कहा कि “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया” का हिस्सा “न्यायिक प्रक्रिया” भी है, जिसका मतलब यह है कि प्रक्रिया निष्पक्ष, उचित और न्यायसंगत होनी चाहिए।
  • अगर कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया तर्कहीन, दमनकारी और मनमानी हो, तो इसे प्रक्रिया नहीं माना जा सकता, और अनुच्छेद 21 की सभी आवश्यकताएँ पूरी नहीं मानी जाएंगी।
  • म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन, लुधियाना बनाम इंदरजीत सिंह (2008): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर नगर निगम के कानून के तहत नोटिस देना अनिवार्य है, तो इस शर्त का पालन आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए।
  • देश की सर्वोच्च अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी प्राधिकरण, यहां तक कि अवैध निर्माण का भी, बिना नोटिस दिए और संबंधित व्यक्ति को सुने बिना सीधे विध्वंस नहीं कर सकता।
  • बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980), विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997), और हाल ही में पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017) जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने यह सिद्धांत स्थापित किया कि संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों को इस तरह पढ़ा और व्याख्या की जानी चाहिए जिससे वे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के साथ और अधिक संगत हों।

 बुलडोजर न्याय के बारे में (About Bulldozer Justice):

बुलडोजर न्याय का मतलब है प्रशासन या न्यायपालिका द्वारा कठोर और त्वरित कार्रवाई, जिसमें कानूनी प्रक्रियाओं (due process), जन-सुनवाई (public consultation), या अन्य आवश्यक प्रक्रियाओं को दरकिनार कर दिया जाता है।

संदर्भ (Context): बुलडोजर न्याय (bulldozer justice), जिसे बुलडोजर राजनीति (bulldozer politics) भी कहा जाता है, का मतलब है बुलडोजर जैसी भारी मशीन का उपयोग करके कथित अपराधियों (alleged criminals), साम्प्रदायिक दंगाइयों (communal violence rioters), और आरोपियों के घरों को गिराना।

दंड (Penalty): यह एक प्रकार की सामूहिक सज़ा (group penalty) है, जिसमें दोष साबित होने से पहले ही सज़ा दी जाती है, और अक्सर आरोपियों के निर्दोष परिवारों (innocent family members) तक यह सज़ा पहुँचती है।

बुलडोजर न्याय का उदय (Rise of Bulldozer Justice): भारत में बुलडोजर न्याय के तहत घरों, दुकानों और छोटे प्रतिष्ठानों को गिराया गया है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), दिल्ली (Delhi), मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), गुजरात (Gujarat), असम (Assam) और महाराष्ट्र (Maharashtra) जैसे राज्यों में।

  • उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh): सितंबर 2017 में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपराध में शामिल लोगों के खिलाफ बुलडोजर का उपयोग करने की चेतावनी दी थी। जल्द ही उन्हें ‘बुलडोजर बाबा’ का उपनाम मिल गया।
  • मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh): 2022 में, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ‘बुलडोजर मामा’ कहा जाने लगा, जब उन्होंने साम्प्रदायिक झड़पों के बाद खारगोन में 16 घरों और 29 दुकानों को गिराने का आदेश दिया।
  • दिल्ली (Delhi): अप्रैल 2022 में, उत्तर-पश्चिम दिल्ली के जहांगीरपुरी में साम्प्रदायिक झड़पों के बाद बुलडोजर न्याय का प्रदर्शन हुआ।
  • महाराष्ट्र (Maharashtra): मुंबई के मीरा रोड उपनगर में, साम्प्रदायिक झड़पों के दो दिन बाद महाराष्ट्र के अधिकारियों ने बुलडोजर राजनीति का सहारा लिया।
  • हरियाणा (Haryana): नूह में भी, साम्प्रदायिक हिंसा के बाद बुलडोजर न्याय का उपयोग हुआ, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी।

बुलडोजर न्याय के पक्ष में राज्य के तर्क (State’s argument in favour of bulldozer justice):

  • कानूनी प्रक्रिया का पालन (Following the legal process): राज्य सरकार के अधिकारी कहते हैं कि बुलडोजर से ध्वस्तीकरण कानूनी नियमों के अनुसार होता है। जैसे कि यूपी सरकार का कहना है कि ये कार्रवाई यूपी नगर निगम अधिनियम और यूपी शहरी योजना एवं विकास अधिनियम के तहत कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करके की जाती है।
  • अपराधों पर रोकथाम (Prevention of crimes): राज्य सरकारों का मानना है कि ‘बुलडोजर कार्रवाई’ का मकसद अवैध गतिविधियों को रोकने और अपराधियों के बीच डर पैदा करना है, जिससे कानून और व्यवस्था को बनाए रखा जा सके।
  • कानून-व्यवस्था की बहाली (Restoration of law and order): सरकार का तर्क है कि सांप्रदायिक हिंसा के दौरान आरोपियों की अवैध संपत्तियों को ध्वस्त करने से शांति स्थापित करने में मदद मिलती है। जैसे- हरियाणा सरकार का नूह हिंसा के बाद बुलडोजर एक्शन।
  • सभी समुदायों के खिलाफ, न कि किसी विशेष के (Against all communities, not any particular one): भारत के सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में यह कार्रवाई किसी विशेष अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नहीं है। इसमें विभिन्न समुदायों, जैसे हिंदुओं की संपत्तियों को भी शामिल किया गया।
  • जनता की मांग को पूरा करना (Meeting public demand): बुलडोजर न्याय के समर्थक कहते हैं कि यह जनता की मांग के अनुसार अपराधियों पर तेज़ और स्पष्ट कार्रवाई करने का एक असरदार तरीका है।

बुलडोजर न्याय से जुड़ी चिंताएँ (Concerns about Bulldozer Justice):

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा है कि बुलडोजर न्याय सभी कानूनी सिद्धांतों के खिलाफ है। भले ही इसका उद्देश्य त्वरित न्याय या विकास के लिए हो, लेकिन यह कई नैतिक और कानूनी चिंताएँ उत्पन्न करता है।

  • न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन (Violation of judicial process): बिना उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए कार्रवाई की जाती है, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है।
  • मौलिक अधिकारों का हनन (Violation of fundamental rights): जल्दबाजी में लिए गए निर्णय किसी व्यक्ति या समुदाय के अधिकारों का हनन कर सकते हैं। भारत में आश्रय का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा माना जाता है।
  • पारदर्शिता की कमी (Lack of transparency): प्रभावित पक्षों को बिना सूचित किए या उन्हें शामिल किए बिना निर्णय लिए जाते हैं।
  • जनता का भरोसा खोना (Loss of public confidence): ऐसी धारणा बन सकती है कि न्याय जबरदस्ती किया जा रहा है, जिससे संस्थाओं पर जनता का विश्वास कम हो सकता है।
  • उदाहरण: बिना पर्याप्त नोटिस के बेदखली के बाद नगर निगमों के खिलाफ जनता की प्रतिक्रिया।
  • अल्पसंख्यकों पर प्रभाव (Impact on minorities): विभिन्न आंकड़े बताते हैं कि इस तरह की कार्रवाई में मुस्लिम समुदाय disproportionately प्रभावित होते हैं।

बुलडोजर न्याय के परिणाम (Consequences of Bulldozer Justice):

बुलडोजर न्याय के कई गंभीर प्रभाव होते हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  1. सामाजिक अशांति (Social unrest): प्रभावित पक्ष विरोध करने पर उतर सकते हैं, जिससे समाज में अशांति फैल सकती है।
  • उदाहरण: बिना पूर्व सूचना के अचानक की गई बेदखली या ध्वस्तीकरण के बाद विरोध प्रदर्शन और धरने।
  1. आर्थिक प्रभाव (Economic impact): त्वरित कार्रवाई के परिणामस्वरूप कई लोगों की नौकरियाँ और आर्थिक सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
  • उदाहरण: लोकप्रिय बाजारों से बिना किसी वैकल्पिक आजीविका का इंतजाम किए स्ट्रीट वेंडर्स (फेरीवालों) की बेदखली।
  1. कानूनी परिणाम (Legal consequences): प्रभावित लोग अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का सहारा ले सकते हैं, जिससे देरी और जटिलताएँ बढ़ सकती हैं।
  • उदाहरण: जबरन बेदखली के बाद निवासी अदालत में जाते हैं, जिससे स्टे ऑर्डर और लंबी कानूनी लड़ाई शुरू हो जाती है।
  1. विश्वसनीयता का ह्रास (Loss of credibility): लंबे समय में ऐसी संस्थाओं की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता कम हो सकती है।
  • उदाहरण: बार-बार ‘बुलडोजर न्याय’ की घटनाओं के कारण शहर प्रशासन पर अविश्वास बढ़ना।
  1. नैतिक दुविधा (Ethical dilemma): अधिकारियों को अपने कर्तव्य और कार्यों के नैतिक परिणामों के बीच द्वंद्व महसूस हो सकता है।
  • उदाहरण: एक IAS अधिकारी के सामने यह नैतिक समस्या खड़ी हो सकती है कि उन्हें एक ऐसा आदेश लागू करना है, जो उचित पुनर्वास के बिना कई लोगों के विस्थापन का कारण बन सकता है।

 अचल संपत्ति के ध्वस्तीकरण के बारे में (About Demolition of Immovable Property):

अचल संपत्ति (immovable property) का ध्वस्तीकरण केवल नगरपालिका कानून में दिए गए आधारों पर ही किया जा सकता है, जो वैध निर्माण को नियंत्रित करता है, और इसके लिए तय की गई प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। इसका मतलब है कि किसी अचल संपत्ति को केवल इस आधार पर ध्वस्त नहीं किया जा सकता कि उसके मालिक या निवासी किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल हैं।

अवैध कब्जे में ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया (Procedure for demolition in case of illegal occupation):

  • नगरपालिका अधिनियम (Municipal Act): यह अधिनियम सार्वजनिक सड़कों और फुटपाथों पर अतिक्रमण को रोकने के प्रावधान करता है।
  • नोटिस जारी करना (Issuing notice): किसी भी कार्रवाई से पहले, नगरपालिका अधिकारियों को आमतौर पर अवैध अतिक्रमण में शामिल व्यक्तियों या प्रतिष्ठानों को नोटिस जारी करना आवश्यक होता है।
  • असंतोषजनक प्रतिक्रिया (Unsatisfactory response): यदि व्यक्ति नोटिस का जवाब नहीं देते या संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देते हैं, तो प्राधिकरण ध्वस्तीकरण प्रक्रिया आगे बढ़ा सकता है।
  • विवेकपूर्ण दृष्टिकोण (Prudent approach): सामान्यतः, अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए, उल्लंघन की प्रकृति और प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए, तर्कसंगत और संतुलित कार्रवाई करें।

संविधान का अनुच्छेद 300A (Article 300A of the Constitution):

अनुच्छेद 300A को 1978 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा संविधान में जोड़ा गया था। इसने अनुच्छेद 19(1)(f) और अनुच्छेद 31(1) को निरस्त कर दिया।

अनुच्छेद 300A क्या कहता है (What Article 300A says):

कोई भी व्यक्ति कानूनी अधिकार के बिना अपनी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।

इस प्रक्रिया में सात अधिकार शामिल हैं, जैसे नोटिस का अधिकार और सुने जाने का अधिकार, जिन्हें राज्य द्वारा किसी व्यक्ति की संपत्ति को अधिग्रहण करने से पहले पालन करना आवश्यक है।

  • नोटिस का अधिकार (Right to notice): राज्य को व्यक्ति को सूचित करना चाहिए कि वह उसकी संपत्ति अधिग्रहित करना चाहता है।
  • सुने जाने का अधिकार (Right to be heard): राज्य को संपत्ति अधिग्रहण पर आपत्तियाँ सुननी चाहिए।

आगे का रास्ता क्या होना चाहिए (What should be the way forward)?

  • विध्वंस से पहले उचित सर्वेक्षण (Proper survey before demolition): सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन को निर्देश दिया है कि वे विध्वंस से पहले एक सर्वेक्षण करें। साथ ही, प्रशासन द्वारा बुनियादी प्रक्रियात्मक प्रोटोकॉल, जैसे कि पर्याप्त अग्रिम सूचना देना, का पालन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।
  • देशव्यापी प्रक्रियात्मक दिशानिर्देश (Countrywide procedural guidelines): पूरे भारत में समान प्रक्रियात्मक दिशानिर्देशों को स्थानीय निकायों के संबंधित कानूनों और नियमों में शामिल किया जाना चाहिए। विध्वंस से पहले, विध्वंस के दौरान, और विध्वंस के बाद उचित प्रक्रियाओं का पालन होना चाहिए।
  • साक्ष्य का बोझ अधिकारियों पर हो (Burden of proof should be on the authorities): साक्ष्य का बोझ अधिकारियों पर होना चाहिए ताकि वे विध्वंस और विस्थापन को उचित ठहरा सकें। इससे आश्रय के अधिकार जैसी मौलिक मानव अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
  • स्वतंत्र समीक्षा तंत्र (Independent review mechanism): एक स्वतंत्र समिति का गठन होना चाहिए, जिसमें न्यायिक और नागरिक समाज के प्रतिनिधि शामिल हों, जो प्रस्तावित विध्वंस की वैधता की समीक्षा करें।
  • पुनर्वास पर ध्यान (Focus on rehabilitation): विध्वंस कार्यवाही में निर्दोष पीड़ितों के पुनर्वास के लिए उचित दिशानिर्देश तैयार किए जाने चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानक भी उचित आवास और जबरन बेदखली के लिए मुआवजे पर जोर देते हैं।

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