टाटा एयरबस C-295 एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स
टाटा एयरबस C-295 एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स और इसके निर्माण की ज़िम्मेदारी टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) को दी गई है।
- TASL, टाटा समूह का हिस्सा है और यह कंपनी रक्षा और एयरोस्पेस उद्योग में अग्रणी है। यह विभिन्न प्रकार के एयरोस्पेस और रक्षा उपकरणों के निर्माण, विकास, और इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता रखती है।
- C-295 एयरक्राफ्ट परियोजना के तहत, TASL को 56 विमानों में से 40 विमानों का निर्माण भारत में करने का कार्य सौंपा गया है। इसमें विमान का निर्माण, असेंबली, परीक्षण शामिल है।
- इस परियोजना के माध्यम से भारत में पहली बार किसी निजी क्षेत्र की कंपनी को सैन्य विमान की फाइनल असेंबली लाइन (FAL) स्थापित करने का अवसर प्राप्त हुआ है।
- TASL और एयरबस के सहयोग से यह संयंत्र वैश्विक मानकों का पालन करते हुए उच्च गुणवत्ता वाले विमानों का निर्माण करेगा। इस परियोजना में नवीनतम तकनीक और उन्नत मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाएगा।
- इस कॉम्प्लेक्स में विमानों के कल-पुर्जों की फाइनल असेंबली की जाएगी, यह कॉम्प्लेक्स भारत में संपूर्ण रक्षा निर्माण इकोसिस्टम को विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
C-295 एयरक्राफ्ट क्या हैं?
C-295 MW एक मध्यम क्षमतावाला परिवहन विमान है, जिसमें 5 से 10 टन तक भार वहन करने की क्षमता है। इसे अत्याधुनिक तकनीक के साथ डिज़ाइन किया गया है और यह कई तरह के मिशनों को पूरा करने में सक्षम है। इसकी टिकाऊ और भरोसेमंद संरचना इसे सैन्य परिवहन के लिए बहुमुखी और कुशल विकल्प बनाती है।
- C-295 एयरक्राफ्ट डील: भारत सरकार ने सितंबर 2021 में स्पेन की एयरबस डिफेंस एंड स्पेस के साथ यह समझौता किया था।
- इस डील की कुल लागत 21,935 करोड़ रुपये है।
- 56 विमानों की डील में से 40 विमान भारत में निर्मित किए जाएंगे और 16 स्पेन से रेडी-टू-फ्लाई अवस्था में आयात किए जाएंगे।
- पहला विमान सितंबर 2023 में आ चुका है, और शेष 15 विमान एयरबस अगस्त 2025 तक भारत को सप्लाई करेगा।
- भारत में निर्मित पहला C-295 विमान सितंबर 2026 तक तैयार हो जाएगा, और 2031 तक सभी 39 विमान भारतीय वायुसेना को प्राप्त होंगे।
- प्रति वर्ष आठ विमानों के निर्माण की योजना इस डील में तय की गई हैं।
- यह विमान भारतीय वायुसेना के पुराने Avro-748 बेड़े की जगह लेगा।
- विशेष: Avro-748 एक ब्रिटिश-मूल का दोहरे इंजन वाला टर्बोप्रॉप विमान है, जो 6 टन भार क्षमता का है।
- विशेषताएँ (Features)
- बहु-मिशन क्षमता: C-295 MW 11 घंटे तक की उड़ान के लिए सक्षम है और किसी भी मौसम में बहु-मिशन संचालन कर सकता है। यह विमान 7,050 किलोग्राम पेलोड के साथ 71 सैनिकों, 44 पैराट्रूपर्स, 24 स्ट्रेचर, या 5 कार्गो पैलेट्स को ले जाने में सक्षम है।
- दिन और रात संचालन: यह विमान दिन और रात दोनों समय संचालन कर सकता है, चाहे रेगिस्तान हो या समुद्री क्षेत्र।
- त्वरित प्रतिक्रिया: इसमें पिछले हिस्से में एक रैंप दरवाज़ा है, जिससे सैनिकों और माल की त्वरित ड्रॉपिंग संभव हो पाती है। इसमें 2 लोगों के क्रू केबिन में टचस्क्रीन कंट्रोल के साथ आधुनिक कंट्रोल सिस्टम दिया गया है।
- शॉर्ट टेक-ऑफ और लैंडिंग: यह अर्ध-तैयार सतहों से भी कम दूरी में उड़ान भर और लैंड कर सकता है, जो इसे विभिन्न प्रकार के युद्ध संचालन के लिए उपयुक्त बनाता है। C-295 विमान 320 मीटर में टेक-ऑफ और 670 मीटर में लैंडिंग कर सकता है।
- इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूइट: भारतीय वायुसेना के लिए बनाए जा रहे इन विमानों को स्वदेश निर्मित इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूइट से लैस किया जाएगा
टाटा एयरबस C-295 एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स का महत्व
- आत्मनिर्भरता: इस कॉम्प्लेक्स का निर्माण भारतीय रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ाने का एक बड़ा कदम है। “मेक इन इंडिया” पहल के अंतर्गत यह देश को आयात पर निर्भरता से मुक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
- रोजगार के अवसर: इस प्रोजेक्ट से लगभग 15,000 हाई-स्किल्ड और 10,000 इनडायरेक्ट नौकरियों का सृजन होगा, जो भारत के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ है। इसके अलावा, टाटा समूह ने 125 से अधिक MSME आपूर्तिकर्ताओं को चुना है।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास: इस प्रोजेक्ट में विशेष प्रकार की संरचना का निर्माण किया गया है, जिसमें हैंगर, बिल्डिंग्स, एपरोन और टैक्सीवे शामिल हैं। भारत में ‘डी’ स्तर की मरम्मत और ओवरहालिंग (Maintenance, Repair, and Overhaul – MRO) की सुविधा भी विकसित की जा रही है। यह MRO केंद्र भारत और एशिया के अन्य देशों के C-295 विमानों के लिए एक क्षेत्रीय केंद्र बन सकता हैं।
- ऑफसेट कार्यक्रम का लाभ: एयरबस अपने ऑफसेट दायित्वों के तहत भारतीय कंपनियों से प्रत्यक्ष खरीदारी करेगा। ऑफसेट कार्यक्रम के तहत विदेशी कंपनी भारत में ही कुछ हिस्सों का निर्माण करने के लिए बाध्य होती है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है।
- MSMEs को प्रोत्साहन: इस परियोजना से छोटे, मध्यम और सूक्ष्म उद्यमों (MSMEs) को बढ़ावा मिलेगा। परियोजना के तहत 18,000 से अधिक छोटे-छोटे एयरक्राफ्ट पार्ट्स का निर्माण भारत में किया जाएगा।
- रणनीतिक स्थिति: वडोदरा में स्थापित इस संयंत्र का स्थान रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह शहर भारतीय विमानन उद्योग और रक्षा क्षेत्र में एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभर रहा है। वडोदरा के पास Gatishakti University जैसी संस्थाएं हैं, जो इस संयंत्र के लिए कुशल श्रमशक्ति को तैयार करने में मदद करेगी।
भारत के नागरिक उड्डयन क्षेत्र की संभावनाएँ
- भारत के नागरिक उड्डयन क्षेत्र की संभावनाएँ अत्यधिक प्रबल हैं। भारत एक विशाल बाजार और बढ़ती यात्री मांग के साथ तेजी से विस्तार कर रहा है। अगले 10-15 वर्षों में भारत को लगभग 2000 नए यात्री और मालवाहक विमानों की आवश्यकता होगी, जो देश में हवाई यात्राओं की बढ़ती मांग को पूरा करेगा।
- भारत में “मेक इन इंडिया” पहल के तहत एयरोस्पेस और MRO (Maintenance, Repair, and Overhaul) क्षेत्र में स्थानीय उत्पादन और रखरखाव सेवाओं का विस्तार हो रहा है, जिससे देश एक क्षेत्रीय MRO हब बनने की ओर अग्रसर है। बोइंग और एयरबस जैसी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय कंपनियों से साझेदारी कर रही हैं, जिससे न केवल निवेश और रोजगार बढ़ रहे हैं, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भागीदारी भी बढ़ रही है।
UPSC पिछले वर्ष के प्रश्न PYQ प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन कानून सभी देशों को उनके क्षेत्र के ऊपर हवाई क्षेत्र पर पूर्ण और अनन्य संप्रभुता प्रदान करते हैं। आप ‘हवाई क्षेत्र’ से क्या समझते हैं? इन कानूनों का इस हवाई क्षेत्र के ऊपर के स्थान पर क्या प्रभाव पड़ता है? इससे उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा करें और खतरे को रोकने के उपाय सुझाएँ। (2014) |
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