Mains GS III – अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ, वैज्ञानिक नवाचार और खोज। |
चर्चा में क्यों?
18 सितंबर 2024 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चंद्रयान-4 मिशन के साथ साथ अपने महत्वाकांक्षी अन्य तीन परियोजनाओं को मंजूरी दी, जो भारतीय अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को उतारना और वहां से नमूनों को लाकर उनका पृथ्वी पर विश्लेषण करना, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और शुक्र ग्रह मिशन शामिल है।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रस्तावित चार मिशन:
1. चंद्रयान-4 मिशन- विस्तृत जानकारी
- चंद्रयान-4 चांद से नमूने लाने वाला भारत का पहला मिशन होगा।
- मिशन के विकास और प्रक्षेपण की जिम्मेदारी इसरो(ISRO) की होगी, जो स्थापित कार्यप्रणालियों के माध्यम से परियोजना का प्रबंधन करेगा।
- चंद्रयान-4 के लिए अनुमानित लागत 2104.06 करोड़ रुपये है।
- इस मिशन को पूरे 36 महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
- इस मिशन के लिए लैंडिंग स्थल को चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्थल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र के पास स्थित, शिव शक्ति पॉइंट के पास चुना गया है।
- यह मिशन उच्चतम तकनीकी मानकों पर आधारित है, जिसमें लैंडिंग थ्रस्टर्स और ऑनबोर्ड लिक्विड एपोजी मोटर (LAM) शामिल हैं।
चंद्रयान-4 का मुख्य उद्देश्य: चंद्रमा की सतह से नमूने एकत्र करना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर लाना है। इसके अंतर्गत चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और नरम लैंडिंग करना, चंद्रमा पर नमूनों का संग्रहण और कंटेनरीकरण करना, चंद्रमा की कक्षा में डॉकिंग और अनडॉकिंग का प्रदर्शन करना, नमूनों के स्थानांतरण की प्रक्रिया को प्रदर्शित करना और नमूनों को पृथ्वी पर वापस लाने के लिए पुनः प्रवेश का प्रदर्शन करना शमिल है।
चंद्रयान-4 संरचना और मॉड्यूल:
- चंद्रयान-4 मिशन को दो चरणों में दो रॉकेट, LVM-3 और PSLV पर लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन में पाँच प्रमुख मॉड्यूल होंगे, जो दो अलग-अलग कंपोजिट में पैक किए जाएंगे।
- लैंडर मॉड्यूल में एसेंडर मॉड्यूल ऊपर और प्रोपल्शन मॉड्यूल नीचे होगा। यह चंद्रमा पर उतरने के लिए डिज़ाइन किया गया है और मिट्टी के नमूने लेने में सक्षम है। एसेंडर मॉड्यूल लैंडर से बाहर निकलकर नमूनों को एकत्रित करेगा और चंद्रमा से वापसी के लिए लॉन्च करेगा। ट्रांसफर मॉड्यूल नमूनों को पुनः प्रवेश मॉड्यूल में स्थानांतरित करेगा और पृथ्वी की ओर ले जाने का कार्य करेगा। री-एंट्री मॉड्यूल चंद्रमा से नमूनों को सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर लाने के लिए वायुमंडलीय पुनः प्रवेश के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।
- चंद्रयान-4 की संरचना को मॉड्यूलर डिज़ाइन के साथ बनाया जाएगा।
- चंद्रयान-4 में सौर पैनल लगे होंगे जो सूर्य की रोशनी से बिजली पैदा करेंगे।
विशेष: भारत ने अपना पहला चंद्र मिशन चंद्रयान-1 वर्ष 2008 में लांच किया था। इस मिशन ने चांद पर पानी की खोज में सफलता प्राप्त की। इसके बाद चंद्रयान-2 (2019) लांच किया गया था जो चांद के करीब पहुंचा लेकिन सफलतापूर्वक लैंड नहीं कर सका। इसके बाद चंद्रयान-3 (2023) में लांच हुआ, इस मिशन ने चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर सफल लैंडिंग की। |
2. वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM): मिशन शुक्रयान सम्पूर्ण जानकारी
- इस मिशन के लिए एक विशेष अंतरिक्ष यान विकसित किया जाएगा, जो शुक्र ग्रह की कक्षा में प्रवेश करेगा और वहां विभिन्न जांचें करेगा।
- यह यान शुक्र के भौगोलिक विशेषताओं का अध्ययन करेगा।
- वीनस ऑर्बिटर मिशन का बजट 1,236 करोड़ रुपए निर्धारित किया गया है। इसमें 824 करोड़ रुपये अंतरिक्ष यान की विकास पर खर्च होंगे।
- इसरो ने मिशन के लॉन्च का लक्ष्य मार्च 2028 निर्धारित किया है।
वीनस ऑर्बिटर मिशन का उद्देश्य:
- मिशन शुक्रयान का एक प्रमुख लक्ष्य शुक्र ग्रह की सतह और उसके नीचे की संरचना का गहराई से अध्ययन करना है। इसके तहत: सतह की बनावट, पर्वत, घाटियाँ और ज्वालामुखी गतिविधियाँ, वायुमंडलीय दबाव और तापमान, मिट्टी और चट्टानों में उपस्थित तत्वों का विश्लेषण, जिससे पता चलेगा कि शुक्र की सतह पर कौन-कौन से खनिज मौजूद हैं।
- इसके माध्यम से यह समझने का प्रयास होगा कि क्या शुक्र पर कभी जीवन का अस्तित्व था? इसके लिए अतीत की जलवायु की जांच की जाएगी। क्या वर्तमान में वहां कोई जैविक गतिविधि या सूक्ष्मजीव हैं, इसके लिए संभावित संकेतों की खोज की जाएगी।
- इस मिशन से मिले डेटा का उपयोग भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए आधार तैयार करने में किया जाएगा, जिससे अन्य ग्रहों पर संभावित जीवन और उनके पर्यावरण के अध्ययन में मदद मिलेगी।
इसरो के शुक्रयान की संरचना
शुक्रयान एक विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया अंतरिक्ष यान होगा, जो विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों से लैस होगा। इसकी संरचना में निम्नलिखित प्रमुख घटक शामिल होंगे:
- इस मिशन में एक 2,500 किलोग्राम वज़नी ऑर्बिटर होगा।
- अंतरिक्ष यान में विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक उपकरण शामिल होंगे, जिनमें इमेजिंग उपकरण, स्पेक्ट्रोमीटर, टेम्परेचर और प्रेशर सेंसर होंगे।
- ऑर्बिटर में उच्च-रिज़ॉल्यूशन सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) और ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार जैसे वैज्ञानिक पेलोड होंगे।
- इस मिशन को GSLV Mk II रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। हालांकि, इसरो GSLV Mk III रॉकेट का भी इस्तेमाल करने की संभावना पर विचार कर रहा है।
- उच्च तापमान के कारण, एक थर्मल प्रबंधन प्रणाली विकसित की जाएगी, जो उपकरणों को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक तापमान बनाए रखेगी।
वीनस ऑर्बिटर मिशन की चुनौतियाँ: शुक्र ग्रह का तापमान लगभग 475 डिग्री सेल्सियस है, और वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी के मुकाबले 90 गुना अधिक है। इस अत्यधिक वातावरण में उपकरणों की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। वायुमंडल में सल्फ्यूरिक एसिड के बादल होते हैं, जो वैज्ञानिक उपकरणों और यांत्रिक संरचना को नुकसान पहुँचा सकते हैं। शुक्र से डेटा भेजने और प्राप्त करने में समय लगेगा, और वायुमंडलीय परिस्थितियाँ संचार में बाधा डाल सकती हैं।
3.भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS): सम्पूर्ण जानकारी
- भारत ने दिसंबर 2028 तक अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) स्थापित करने की योजना बनाई है। यह स्टेशन गगनयान मिशन का विस्तार होगा।
- इसमें माइक्रो ग्रेविटी (Microgravity) से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रयोग किए जाएंगे।
- भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन में विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग और अनुसंधान कार्य किए जाएंगे, जो मानव स्वास्थ्य, सामग्री विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
- इस परियोजना के तहत, शुरुआती चरण में अंतरिक्ष यात्री इस स्टेशन में लगभग 20 दिनों तक रह सकेंगे।
- भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का वजन लगभग 52 टन होगा, जो ISS की तुलना में हल्का होगा।
- यह अंतरिक्ष स्टेशन पृथ्वी से लगभग 400 किमी की ऊँचाई पर स्थापित किया जाएगा और पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित और स्थिर वातावरण में अनुसंधान कार्य करने की सुविधा मिलेगी।
- इसमें मुख्य रूप से क्रू कमांड मॉड्यूल के साथ साथ हैबिटेट मॉड्यूल और प्रोपल्शन मॉड्यूल होंगे।
- इसमें डॉकिंग पोर्ट भी शामिल किया जाएगा।
- भारत सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए विस्तारित दृष्टिकोण रखा है। इसमें 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और 2040 तक चंद्रमा पर लैंडिंग की परिकल्पना की गई है।
विशेष: अंतरिक्ष स्टेशन एक ऐसा अंतरिक्षयान होता है जो लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने और काम करने के लिए डिज़ाइन किया जाता है। इसमें चालक दल के रहने की सुविधा होती है और दूसरे अंतरिक्ष यानों को इससे जोड़ा जा सकता है। वर्तमान में, सबसे प्रमुख अंतरिक्ष स्टेशन ISS है, जो 1998 में लॉन्च किया गया था और पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थित है।
गगनयान मिशन:● गगनयान मिशन भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन है, जिसे 400 किमी की ऊंचाई पर भेजे जाने की योजना है। ● 90.23 अरब रुपए इसका अनुमानित बजट है। ● 2025 की शुरुआत तक पूरा करने की संभावना है। ● इस मिशन में तीन गगनयात्री को तीन दिनों के लिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा और फिर उन्हें सुरक्षित रूप से समुद्र में लैंड कराया जाएगा। ● गगनयान मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में की थी। ● गगनयान मिशन के तहत कुल आठ मिशन होंगे। ● इनमें से चार मिशन अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए आवश्यक होंगे अन्य में, दो मानवरहित और एक मानवयुक्त मिशन भी इसका हिस्सा है। ● इस मिशन की सफलता भारत को मानव अंतरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में चौथे देश के रूप में स्थापित करेगी। विशेष: इस वर्ष 2024 में गगनयान मिशन के लिए कुल फंडिंग को 20,193 करोड़ रुपए तक बढ़ा दिया गया है। |
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का महत्त्व
- वैज्ञानिक अनुसंधान: भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन वैज्ञानिक डेटा, विशेष रूप से जैविक प्रयोगों के लिए, एकत्र करने का एक महत्वपूर्ण साधन होगा। इससे माइक्रो ग्रेविटी में होने वाले जैविक परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकेगा, जो पृथ्वी पर स्वास्थ्य और औद्योगिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करेगा।
- निगरानी क्षमता में वृद्धि: अंतरिक्ष स्टेशन से भारत की निगरानी क्षमता में सुधार होगा। यह देश की सुरक्षा और भू-स्थानिक डेटा एकत्र करने की क्षमता को भी मजबूत करेगा।
- लागत में कमी: भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के द्वारा बार-बार उपग्रह भेजने की आवश्यकता कम हो जाएगी, जिससे अंतरिक्ष मिशनों पर आने वाले खर्च में कमी आएगी।
अंतरिक्ष स्टेशन से संबंधित चुनौतियाँ
- उच्च तकनीकी आवश्यकताएँ: अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण के लिए अत्याधुनिक तकनीक और इंजीनियरिंग की आवश्यकता होती है, जो महंगी और जटिल होती है।
- भौतिक और रासायनिक वातावरण: अंतरिक्ष में उच्च विकिरण, शून्यता और तापमान की चरम सीमाएँ उपकरणों और मानवों पर गंभीर प्रभाव डाल सकती हैं।
- जीवन समर्थन प्रणाली: सुरक्षित जीवन समर्थन प्रणाली का विकास करना, जिसमें वायुमंडल, जल और भोजन का प्रबंधन शामिल है, एक बड़ी चुनौती है।
- धन और संसाधनों की उपलब्धता: इस तरह की परियोजनाओं के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो कई बार मुश्किल से जुटाए जा सकते हैं।
- संचालन और रखरखाव: अंतरिक्ष स्टेशन का लगातार संचालन और रखरखाव करना, जिसमें नियमित आपूर्ति और मरम्मत मिशन शामिल हैं, चुनौतीपूर्ण होता है।
4. अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान (NGLV): सम्पूर्ण जानकारी
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने NGLV के विकास को मंजूरी दी है, जो भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) और 2040 तक चंद्रमा पर मानव मिशन के लिए महत्वपूर्ण है।
- NGLV की पेलोड क्षमता LVM3 की तुलना में 3 गुना अधिक होगी।
- इसकी लागत LVM3 की तुलना में 1.5 गुना अधिक होगी, लेकिन यह पुन: उपयोग योग्य होगी।
- इसे निम्न पृथ्वी कक्षा में अधिकतम 30 टन पेलोड ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- इस परियोजना में भारतीय उद्योग की अधिकतम भागीदारी होगी, जिससे विकास और परिचालन के बीच निर्बाध परिवर्तन संभव होगा।
- NGLV का प्रदर्शन तीन विकास उड़ानों (D1, D2, D3) के माध्यम से किया जाएगा, जो 96 महीने (8 वर्ष) में पूरा होगा।
- स्वीकृत कुल निधि 8,240 करोड़ रुपये है, जिसमें विकास लागत, सुविधाओं की स्थापना, कार्यक्रम प्रबंधन और प्रक्षेपण अभियान शामिल हैं।
अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान (NGLV) उद्देश्य
- NGLV (नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल) का मुख्य उद्देश्य भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक नई पीढ़ी के प्रक्षेपण वाहनों का विकास करना है।
- यह प्रक्षेपण यान उच्च पेलोड क्षमता और पुन: उपयोगिता की विशेषताओं के साथ डिज़ाइन किया गया है, जिससे इसे विभिन्न प्रकार के मिशनों के लिए उपयोग किया जा सकेगा।
- इसका विशेष ध्यान निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) में अधिकतम 30 टन तक के पेलोड को सफलतापूर्वक प्रक्षिप्त करने पर है। इस तरह की क्षमता भारत को अंतरिक्ष में अपने संचालन को और अधिक प्रभावी और किफायती बनाने में मदद करेगी।
- इसका उद्देश्य संचार और पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों की तैनाती करना और भारतीय अंतरिक्ष इकोसिस्टम को क्षमता और सामर्थ्य में वृद्धि करना है।
UPSC पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016) |
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