चर्चा में क्यों?
पश्चिम बंगाल (West bangal) के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस (C.V. Anand Bose) द्वारा कथित छेड़छाड़ से संबंधित याचिका के आलोक में, सर्वोच्च न्यायालय (Supreme court) अनुच्छेद 361 (Article 361) की समीक्षा (review) करने जा रहा है, जो राज्यपालों को आपराधिक अभियोजन ((criminal prosecution) ) से छूट प्रदान करता है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अगुवाई वाली पीठ ने 19 जुलाई को मामले की सुनवाई करने पर सहमति जताई। अदालत ने गवर्नर (governor) पर छेड़छाड़ (molestation) के आरोप लगाने वाली महिला की याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता (petitioner) ने राज्यपालों को आपराधिक अभियोजन (criminal prosecution) से छूट प्रदान करने के संबंध में विशिष्ट दिशा-निर्देश तैयार करने के निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया है।
महिला ने लगाए थे राजयपाल पर आरोप (The woman had made allegations against the Governor):
सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 361 (Article 361) के तहत राज्यपालों को छूट (immunity to governors) देने वाले प्रावधान की समीक्षा करने पर सहमत हो गया है। इस प्रावधान के तहत राज्यपालों को किसी भी तरह के आपराधिक मामले से पूर्ण छूट हासिल है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश पश्चिम बंगाल राजभवन (West Bengal Raj Bhavan) में संविदा (contract) पर कार्यरत एक महिला कर्मचारी की याचिका (petition) पर आया है, जिसने राज्यपाल सीवी आनंद बोस (Governor CV Anand Bose) पर छेड़छाड़ (molestation) और राजभवन के अधिकारियों के उसे गलत तरीके से बंधक (hostage) बनाए रखने का आरोप लगाया है।
अनुच्छेद 361 के तहत छूट (Exemptions under Article 361):
अदालतों के प्रति गैर-उत्तरदायी (Non-Answerable to Courts): अनुच्छेद 361(1) में कहा गया है कि राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल अपनी शक्तियों और कर्तव्यों (powers and duties) के प्रयोग के लिए या उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग में किए गए किसी भी कार्य के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं।
- यह अनुच्छेद (article) संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार / Right to Equality के बारे मे) का अपवाद (exception) है ।
आपराधिक कार्यवाही से सुरक्षा (Protection from Criminal Proceedings): अनुच्छेद 361(2) के तहत, राष्ट्रपति (President) या किसी राज्य के राज्यपाल (Governor) के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान (term of office) किसी भी न्यायालय में कोई भी आपराधिक कार्यवाही (criminal proceedings) शुरू नहीं की जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी।
कोई गिरफ्तारी या कारावास नहीं (No arrest or imprisonment): अनुच्छेद 361(3) के तहत, राष्ट्रपति या राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान कोई गिरफ्तारी या कारावास (arrest or imprisonment) की प्रक्रिया जारी नहीं की जा सकती।
सिविल कार्यवाही (Civil proceedings): अनुच्छेद 361(4) के तहत, लिखित नोटिस देने के दो महीने बाद तक राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी व्यक्तिगत कृत्य (personal act) के लिए कोई सिविल मुकदमा (civil suit) दायर नहीं किया जा सकता।
इससे संबंधित अन्य मामले (Other matters relating to) या (or) न्यायिक व्याख्या (Judicial interpretation):
डॉ. एस. सी. बारात (अपीलकर्ता/Appellant) बनाम हरि विनायक पाटस्कर (प्रतिवादी/Respondent) केस 1961:
- इसमें राज्यपाल के आधिकारिक और व्यक्तिगत आचरण (official and personal conduct) के बीच अंतर किया गया था। जबकि आधिकारिक कार्यों के लिए पूर्ण उन्मुक्ति (complete immunity) दी जाती है,
- राज्यपाल के कार्यों के लिए 2 महीने की पूर्व सूचना के साथ सिविल कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
रामेश्वर प्रसाद (Rameshwar Prasad) बनाम भारत संघ (Union of India) 2006:
- इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट को 2005 में बिहार विधानसभा (Bihar Legislative Assembly) को भंग (dissolution) करने की सिफारिश करने के बाद सिविल मामलों में राज्यपाल की प्रतिरक्षा से निपटना (deal with the immunity) पड़ा।
- अदालत ने माना कि राज्यपाल (Governor) को अनुच्छेद 361(1) के तहत अपनी शक्तियों (powers) का प्रयोग करते समय “पूर्ण प्रतिरक्षा” (absolute immunity) प्राप्त है, लेकिन इस प्रतिरक्षा (immunity) के आधार पर कार्रवाई की वैधता की जांच करने की अदालत की शक्ति को नहीं छीनती है”।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High court) द्वारा व्यापम घोटाले का फैसला (Vyapam scam verdict), 2015:
- व्यापम घोटाले मामले (Vyapam scam case) में, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राज्यपाल राम नरेश यादव (Governor Ram Naresh Yadav) को पद पर रहते हुए दुर्भावनापूर्ण प्रचार (malicious propaganda) से अनुच्छेद 361(2) के तहत “पूर्ण संरक्षण” (absolute protection) प्राप्त है।
- कार्यालय की अखंडता (integrity of the office) को बनाए रखते हुए, अनुचित कानूनी उत्पीड़न (undue legal harassment) को रोकने के लिए उनका नाम जांच से हटा दिया गया।
राज्य (State) बनाम कल्याण सिंह एवं अन्य (Kalyan Singh & Ors), 2017
- यह मामला 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस (demolition of the Babri Masjid) से संबंधित था।
- अदालत ने राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल कल्याण सिंह (Kalyan Singh) के खिलाफ मुकदमे में देरी की, जो इस मामले में आरोपियों में से एक थे।
- अपने आदेश में, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि राज्यपाल होने के नाते, कल्याण सिंह “संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत उन्मुक्ति के हकदार (entitled to immunity) हैं, जब तक वे राजस्थान के राज्यपाल बने रहते हैं।
तेलंगाना उच्च न्यायालय का निर्णय (Telangana High Court Judgment) 2024:
- इसमें, उच्च न्यायालय(High Court) ने कहा कि “संविधान में ऐसा कोई स्पष्ट या निहित प्रतिबंध नहीं है (there is no express or implied bar in the Constitution) जो राज्यपाल द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में न्यायिक समीक्षा (judicial review) की शक्ति को बाहर करता हो”।
- इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 361 प्रतिरक्षा व्यक्तिगत है और न्यायिक समीक्षा को बाहर नहीं करती है (immunity is personal and does not exclude judicial review)।
राज्यपाल की शक्तियों और भूमिकाओं पर विभिन्न समितियों की सिफारिश (Recommendations of various committees on the powers and roles of the Governor) :
सरकारिया आयोग (Sarkaria Commission) 1988:
- राज्यपालों (Governors) की नियुक्ति (appointed) राष्ट्रपति द्वारा संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श (consultation with the Chief Minister) के बाद की जानी चाहिए।
- राज्यपालों को उस राज्य से बाहर का प्रतिष्ठित व्यक्ति (eminent persons) होना चाहिए, जहाँ उन्हें नियुक्त किया जाता है।
- राज्यपालों को दुर्लभ और अनिवार्य परिस्थितियों (rare and imperative circumstances) को छोड़कर अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले नहीं हटाया जाना चाहिए।
- राज्यपालों को केंद्र और राज्य के बीच सेतु के रूप में कार्य करना चाहिए, न कि केवल केंद्र के एजेंट (agents) के रूप में।
- लोकतंत्र को कमजोर करने से बचने के लिए विवेकाधीन शक्तियों (Discretionary powers) का संयमित और विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए।
पुंछी आयोग (Punchhi Commission) 2010:
- “राष्ट्रपति की इच्छा के अनुसार” (at the pleasure of the President) वाक्यांश को संविधान से हटा दिया जाना चाहिए, जिसका अर्थ है कि राज्यपालों को केंद्र सरकार की इच्छा पर नहीं हटाया जा सकता।
- राज्यपालों को राज्य की स्वायत्तता और स्थिरता (autonomy and stability) को बनाए रखने के लिए राज्य विधानमंडल के प्रस्ताव द्वारा ही हटाया जाना चाहिए।
वेंकटचलैया आयोग (Venkatachalaiah Commission) 2002:
- प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री वाली समिति को राज्यपालों की नियुक्ति करनी चाहिए।
- राज्यपालों (Governors) को अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करना चाहिए, जब तक कि वे इस्तीफा न दें या साबित दुर्व्यवहार या अक्षमता (misbehavior or incapacity) के कारण हटा दिए न जाएं।
- राज्यपाल को हटाने के लिए कोई भी कार्रवाई करने से पहले केंद्र सरकार को मुख्यमंत्री से परामर्श (consult) करना चाहिए।
राज्यपालों को राज्य के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन में हस्तक्षेप (interfering) करने से बचना चाहिए और उन्हें सलाहकार के रूप में कार्य करना चाहिए तथा विवेकाधीन शक्तियों (discretionary powers) का सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए।
राज्यपाल (Governor):राज्यपाल भारतीय संविधान में राज्य स्तर पर मुख्य कार्यकारी अधिकारी (chief executive officer) के रूप में होते हैं। उन्हें राज्य के नाम पर राष्ट्रपति (appointed) द्वारा नियुक्त (appointed) किया जाता है और उनकी प्रमुख कार्याधिकारिक भूमिका होती है। राज्यपाल की मुख्य जिम्मेदारियां और कार्यक्षमताएँ निम्नलिखित होती हैं (The following are the main responsibilities and functionalities of the Governor (appointed)
|
भारत में राज्यपाल से संबंधित अनुच्छेद (Articles related to Governor in India):
|
Explore our courses: https://apnipathshala.com/courses/
Explore Our test Series: https://tests.apnipathshala.com/