विषय सूची
- परिभाषा
- इसकी आवश्यकता क्यों थी?
- हरित क्रांति के जनक
- हरित क्रांति की शुरुआत
- हरित क्रांति के मुख्य घटक
- हरित क्रांति की सफलताएँ
- हरित क्रांति की विफलताएँ
- निष्कर्ष
परिभाषा
हरित क्रांति (Green Revolution) से आशय छटवें दशक के मध्य में कृषि उत्पादन में हुई भारी वृद्धि से है। जो कुछ समय में उन्नतशील बीजों रासायनिक खादों एवं नवीनतम तकनीकों के फलस्वरूप हुई। हरित क्रांति का शाब्दिक अर्थ है कृषि क्षेत्र में होने वाला तीव्र परिवर्तन, एक ऐसा परिवर्तन जिससे केवल उत्पादन में वृद्धि हुई परंतु फसलो की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ।
इस नये प्रकार की कृषि पद्धति को अपनाकर खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की जिसे हरित क्रांति कहा जाता हैं। हरित क्रांति के फलस्वरूप देश में कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई कृषि आगतों में हुऐ गुणात्मक सुधार के परिणामस्वरूप देश कृषि उत्पादन बढा है तथा खाद्यानों में आत्मनिर्भरता आई है। व्यावसायिक कृषि को बढ़ावा मिला है। कृषको के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है। तथा कृषि आधिक्य में वृद्धि हुई है।
इसकी आवश्यकता क्यों थी –
- 1943 में, भारत विश्व में सबसे अधिक खाद्य संकट से पीड़ित देश था। बंगाल में अकाल के कारण पूर्वी भारत में लगभग 4 मिलियन लोग भूख के कारण मारे गए थे।
- स्वतंत्रता के बाद कृषि विकास और खाद्य सुरक्षा भारत की मुख्य समस्या रही।
- भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी कृषि पिछड़ी अवस्था में थी।
- 1960-70 के पूर्व किसान भाग्यवादी, परंपरावादी रहा जिसके कारण सुधरे बीजों, रासायनिक खाद्य और उन्नत तकनीको का प्रयोग नाममात्र का था।
- कृषि उत्पादन का मुख्य भाग मानसून पर निर्भर करता था उपरोक्त सभी कारणो से खाद्यानो का उत्पादन बहुत कम था, भारतीय किसान की आय भी बहुत कम थी।
- 1 अप्रैल 1951 को जब भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना शुरू करने के साथ आर्थिक नियोजन का कार्यक्रम शुरू किया गया था।
- भारत में हरित क्रांति की शुरूआत 1966-67 (तृतीय पंचवर्षीय योजना) में हुई।
हरित क्रांति के जनक –
- विश्व स्तर पर –
- नॉर्मन बोरलॉग को “हरित क्रांति के जनक” के रूप में जाना जाता है।
- उन्होंने उच्च उपज वाली गेहूं की किस्मों IR8 और IR36 विकसित कीं, जिन्होंने 1960 के दशक में एशिया में खाद्य उत्पादन में क्रांति ला दी।
- वर्ष 1970 में नॉर्मन बोरलॉग को उच्च उपज देने वाली किस्मों (High Yielding Varieties- HYVs) को विकसित करने के उनके कार्य के लिये नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
- भारत में –
- डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन को “भारत में हरित क्रांति के जनक” के रूप में जाना जाता है।
- उन्होंने 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकिसित किए।
- उन्हें विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1972 में पद्म भूषण व वर्ष 2024 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
हरित क्रांति की शुरुआत –
हरित क्रांति को जन्म देने वाली कृषि विकास की व्यूह नीति का जन्म वर्ष 1960-61 मे प्रारंभ किये गये सघन कृषि जिला कार्यक्रम (Intensive Agricultural District Programme ) के साथ हुआ।
- प्रारंभ में यह कार्यक्रम देश के 07 चुने हुए जिलो में लागू किया गया था।
- इसका उद्देश्य कृषि उत्पादन बढाने के लिए तकनीकी जानकारी साख एवं उत्पादन संभरण का समन्वय करना स्वीकार किया गया।
- इसके अंतर्गत किसानो को ऋण, बीज, खाद्य, कृषि यंत्र एवं उपकरण आदि उपलब्ध कराना था। यदपि इन प्रयासो से सफलता भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न थी।
- वर्ष 1964-65 से गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (Intensive Agricultural Area Programme) प्रारंभ किया गया था।
- जिसमे विशिष्ट फसलों पर ध्यान केन्द्रित किया गया।
- उपरोक्त दोनों कार्यक्रम गहन कृषि से तो संबंधित थे लेकिन इनमें फसलों की नई किस्मों का उपयोग नही किया गया।
- देश के व्यापक क्षेत्रफल में अधिक उपज देने वाली किस्मो का प्रयोग सर्वप्रथम 1966 में खरीफ की फसल में किया गया अधिक फसल देने वाले बीजों की किस्मों के प्रयोग, रासायनिक खादों के उचित प्रयोग तथा सिंचाई के साधनों का उपयोग कर कृषि उत्पादन की मात्रा तीन चार गुना बढ़ाने में सफलता प्राप्त हुई।
- वर्ष 1967-68 से देश में कृषि के उत्पादन में निरंतर रिकार्ड वृद्धि हुई थी।
हरित क्रांति के मुख्य घटक –
- रासायनिक खादों एवं कीटनाशक दवाओं का प्रयोग।
- अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग।
- बहुफसलीय कार्यक्रम ।
- आधुनिक कृषि यंत्रों एवं उपकरणों का प्रयोग।
- सिंचाई की व्यवस्था व जल निकास का उचित प्रबंधन तथा सूखे क्षेत्रों का क्रमिक विकास।
- भू संरक्षण
- मूल्य प्रोत्साहन
हरित क्रांति की सफलताएँ –
हरित क्रांति से देश के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। खाद्यानों के उत्पादन में विशाल पैमाने पर वृद्धि हुई। जिससे देश खाद्यानों की दृष्टि से आत्मनिर्भर हुआ। कृषि की आधुनिक तकनीक ने किसान के दृष्टिकोण को भी प्रभावित किया। हरित क्रांति से देश की कृषि व्यवस्था को अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त हुई।
- उत्पादन में वृद्धि :-
- हरित क्रांति के परिणामस्वरूप देश के कृषि उत्पादन में भारी वृद्धि हुई गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, व चावल के उत्पादन में आशा से अधिक वृद्धि हुई।
- जिसके परिणामस्वरूप खाद्यानों में भारत आत्मनिर्भर हो गया। सन 1951-52 में देश में खाद्यान्न का कुल उत्पादन 09 करोड टन था जो 1978-79 में बढ़कर 131 मिलियन टन अनाज का उत्पादन हुआ और भारत विश्व के सबसे बड़े कृषि उत्पादक देश के रूप में स्थापित हो गया।
- खाद्यान्न का कुल उत्पादन 2022-23 मे 34 लाख टन हो गया इसी प्रकार प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में भी पर्याप्त सुधार हुआ।
- कृषि की पुरानी पद्धतियों में परिवर्तन :-
- हरित क्रांति के परिणामस्वरूप कृषि की प्राचीन पद्धतियों को कृषको ने छोड़ दिया। कृषकों का एक बहुत बड़ा वर्ग यांत्रिक खेती की ओर उन्मुख हुआ।
- कृषि में आधुनिक कृषि उपकरणों जैसे ट्रेक्टर, हारर्वेस्टर, बुलडोजर, थ्रेशर, विद्युत एवं डीजल पंपसेटों आदि ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- इस प्रकार कृषि क्षेत्र में पशुओं तथा मानव शक्ति की जगह संचालन शक्ति के द्वारा कार्य किया गया।
- रोजगार के अवसर में वृद्धि :-
- हरित क्रांति से देश में रोजगार के अवसर बढ़े, हरित क्रांति से संबंधित विभिन्न संस्थाओं में लोगो को रोजगार उपलब्ध हुआ।
- हरित क्रांति की प्रगति मुख्यतः अधिक उपज देने वाली किस्मों व उत्तम सुधरे हुऐ बीजों पर निर्भर थी।
- इसके लिये देश में कृषि फार्म स्थापित किये गये। जिसका मुख्य उद्देश्य कृषि उपज का विपणन, प्रसंस्करण एवं भंडारण करना है, जिससे रोजगार में वृद्धि हुई।
- उन्नत शील बीजों के प्रयोग में वृद्धि :-
- हरित क्रांति से देश में अधिक उपज देने वाले उन्नत शील बीजों का प्रयोग बढ़ा।
- बीजों की नई-नई किस्मों की खोज की गई।
- अभी तक अधिक उपज देने वाला कार्यक्रम गेहूं, धान, बाजरा, मक्का, व ज्वार जैसी फसलों पर लागू किया गया, परंतु गेहूँ में सबसे अधिक सफलता प्राप्त हुई।
- सिंचाई सुविधाओं का विकास :-
- इस हरित क्रांति के अंतर्गत देश में सिंचाई सुविधाओं का तेजी के साथ विस्तार हुआ।
- लघु सिंचाई कार्यक्रम के अंतर्गत नलकूप, छोटी नहरें तथा तालाब आदि बनाने का कार्य किया गया जिसमें सरकार द्वारा सहायता दी गयी।
- 1951 में देश में कुल सिंचाई क्षमता 6 मिलियन हेक्टेयर थी जो बढ़कर 2022-23 में 68.4 मिलियन हेक्टेयर हो गई।
- खाद्यान्नों के आयात में कमी :-
- हरित क्रांति के फलस्वरूप देश में खाद्यान्नों की आयातों में कमी आई।
- आजादी के बाद देश में खाद्यान्नों की अत्यधिक कमी के कारण प्रायः अनाज विदेशो से आयात करना पड़ता था।
- पंरतु हरित क्रांति में उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि के कारण खाद्यान्नों का आयात लगभग बंद कर दिया गया।
- कृषि बचतों में वृद्धि :-
- उन्नतशील बीजों, रासायनिक खादों, उत्तम सिंचाई व्यवस्था तथा मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बढ़ा।
- जिससे कृषकों के पास बचतों की अधिक मात्रा में वृद्धि हुई।
- किसानों की इस बचत वृद्धि से देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान मिला।
- कृषि सेवा केन्द्र की स्थापना :-
- कृषकों में व्यवसायिक साहस की क्षमता को विकसित करने के उद्देश्य से देश में कृषि सेवा केन्द्र स्थापित किये गये।
- 2023 तक देश में कुल 713 कृषि विज्ञान केन्द्र है। जो किसानों के विकास हेतु निरंतर कार्यरत है।
- मृदा परीक्षण :-
- मृदा परीक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी का परीक्षण सरकारी प्रयोगशालाओं में किया।
- इस मृदा परीक्षण का उदेश्य भूमि की उर्वरा शक्ति का पता लगाकर कृषकों को मृदा के अनुसार रासायनिक खादों एवं बीजों का प्रयोग करने की सलाह देना था।
- कुछ चलती फिरती प्रयोगशालाएँ भी स्थापित की गई है जो गांव-गांव जाकर मौके पर मिट्टी का परीक्षण करके किसानों का उचित सलाह देती।
- भूमि संरक्षण :-
- हरित क्रांति के अंतर्गत भूमि सरंक्षण कार्यक्रम पर भी विशेष बल दिया गया।
- भूमि संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत कृषि योग्य भूमि को क्षरण से रोकने के लिये तथा ऊबड़-खाबड़ भूमि को समतल बनाकर कृषि योग्य बनाया।
- यह कार्यक्रम उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा गुजरात में तेजी से लागू हुआ।
हरित क्रांति की विफलताएँ –
देश में हरित क्रांति के फलस्वरूप कुछ फसलों में पर्याप्त वृद्धि हुई। खाद्यान्नों के आयात में कमी आई। कृषि के परंपरागत स्वरूप में परिवर्तन आया। फिर भी हरित क्रांति में कुछ कमियां परिलक्षित होती है, जो निम्नलिखित है-
- हरित क्रांति का प्रभाव कुछ विशेष फसलों तक ही सीमित :-
- इस कार्यक्रम का प्रभाव कुछ विशेष फसलों जैसे गेहूं, ज्वार, बाजरा, बाज़ार तक ही सीमित रहा।
- कपास, जूट, चाय और गन्ना जैसी प्रमुख व्यावसायिक फसलें भी हरित क्रांति से लगभग अछूती रहीं।
- पूँजीवादी कषि को बढ़ावा :-
- हरित क्रांति के कार्यक्रम की विशेष समस्या यह रही कि अधिक उपजाऊ किस्म के बीजों एक पूंजी गहन कार्यक्रम था जिससे उर्वरकों, सिंचाई, कृषि, यंत्रों आदि लागतों पर भारी मात्रा में पूंजी निवेश करना पड़ता था।
- भारी निवेश करना छोटे तथा मध्यम श्रेणी के किसानों की क्षमता से बाहर था और इस कार्यक्रम के सभी लाभो से ये किसान वंचित रहे।
- इस प्रकार हरित क्रांति के लाभो का बढ़ा हिस्सा पूंजीपति बड़े किसानो के पास चला जाता था जिसके पास निजी पंपसैट, टेक्ट्रर, नलकूप तथा अन्य कृषि यंत्र थे। यह सुविधा देश के बड़े किसानों के पास थी। सामान्य या छोटे किसान इन सुविधाओं से रहे।
- क्षेत्रीय असंतुलन :-
- यह कार्यक्रम उन चुनिंदा क्षेत्रों में लागू किया गया।
- जहां सिंचाई की पर्यापत सुविधायें उपलब्ध थी।
- अधिक उपज देने वाली किस्मों के इस कार्यक्रम से देश में क्षेत्रीय असंतुलन पैदा हुई।
- इसका प्रभाव संपूर्ण देश पर न फैल पाने के कारण देश का संतुलित रूप से विकास नही हो पाया।
- इस तरह हरित क्रांति सीमित रूप से पंजाब, हरियाण, उत्तरप्रदेश तथा तमिलनाडू राज्यों तक ही सीमित रही।
- संस्थागत परिवर्तनों की उपेक्षा :-
- हरित क्रांति में तकनीकी परिवर्तनों पर अधिक बल दिया गया तथा संस्थागत सुधारों की आवश्यकता की अवहेलना की गई।
- जैसे लगान का प्रभावपूर्ण नियमन, कास्तकारों और बटाईदारों और भूमि का स्वामी बनाना चकबंदी और सीमाबंदी की अवहेलना की गई।
- पानी की खपत :-
- हरित क्रांति में शामिल की गई फसलें जलप्रधान फसलें थीं।
- इन फसलों में से अधिकांश अनाज/ खाद्यान्न थीं जिन्हें लगभग 50% जल आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
- नहर प्रणाली की शुरुआत की गई, इसके अलावा सिंचाई पंपों का उपयोग भी बढ़ा, जिसने भूजल के स्तर को और भी नीचे ला दिया जैसे- गन्ना और चावल जैसी अधिक जल आपूर्ति की आवश्यकता वाली फसलों में गहन सिंचाई के कारण भूजल स्तर में गिरावट आई।
- श्रम विस्थापन की समस्या :-
- हरित क्रांति के अंतर्गत प्रयुक्त कृषि यंत्रीकरण के फलस्वरूप श्रम विस्थापन को बढ़ावा मिला।
- कृषि में प्रयुक्त यंत्रीकरण से श्रमिकों की मांग पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
- अतः भारत जैसी श्रम- आधिक्य वाली अर्थवयस्था में यंत्रीकरण बेराजगारी की समस्या उत्पन्न हुआ।
- मृदा उर्वरता में हास :-
- हरित क्रांति ने मृदा उर्वरता में हास उत्पन्न किया।
- विश्वसनीय सलाह और मृदा परीक्षण सुविधाओं के आभाव के कारण अंधा धुध हानिकारक रायायनिको का प्रयोग हुआ।
- खेत में उन्पन्न खाद और हरी खाद्य का प्रयोग कई कारणों से घटा।
- जैसे जुताई पशुओं में कमी अन्य व्यापारिक फसलों में सस्यक्रम परिवर्तन आदि।
- आय की बढ़ती असामनता :-
- कृषि में तकनीकी परिवर्तनों का ग्रामीण क्षेत्रों में आय वितरण पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
- हरित क्रांति के लाभो से लाभान्वित होकर बड़े किसान और अधिक संपन्न हुए।
- जिससे बड़े एवं छोटे किसानों की आय की असमानताएँ बढ़ी।
- जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में समाजिक एवं आर्थिक तनाव भी बढ़े।
निष्कर्ष –
- भारत में हरित क्रांति एक कृषि सुधार कार्यक्रम था जिसने 1970-80 के दशक के अंत तक फसलों के उत्पादन को व्यापक रूप से बढ़ा दिया।
- इसमें फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिये अच्छी गुणवत्ता वाले बीज एवं कच्चे माल के साथ उच्च तकनीकों का उपयोग शामिल था।
- इस तकनीकी के आगमन ने भारत जैसे देश को बड़े पैमाने पर आकाल से रोका हरित क्रांति और इससे प्राप्त लाभ भारतीय अर्थव्यस्था को रूपांतरित करने में सहायक हुये।
- परंतु हरित क्रांति के लाभ देश के बहुत से क्षेत्रों में विशेषकर भारत के पूर्वी राज्यों में नही पहुचे क्योकी वहां छोटे और सीमांत किसानों की बहुत बड़ी संख्या थी कृषि जोत के छोटे छोटे टुकड़े थे। जो नई तकनीक का प्रयोग करने में असमर्थ थे। इस नई कृषि नीती में प्रोद्योगिकी का प्रयोग करने के लिए आवश्यक पूंजी निवेश करने की छमता नही थी।
- आज, हमें हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभावों को बनाए रखने और नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए काम करना चाहिए। यह तभी संभव है जब हम कृषि के टिकाऊ तरीकों को अपनाएं और पर्यावरण और सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए कृषि नीतियां बनाएं।
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