लेबनान (Lebanon):
- लेबनान पश्चिम एशिया का एक देश है। यह एशिया में महाद्वीपीय एशिया का दूसरा सबसे छोटा देश है।
- यह उत्तर और पूर्व में सीरिया और दक्षिण में इज़राइल के बीच स्थित है, जबकि इसके पश्चिम में भूमध्य सागर के पार साइप्रस स्थित है।
- लेबनान भूमध्य सागर बेसिन और अरब क्षेत्र के बीच के स्थित है।
- यह मध्य पूर्व के लैवेंट क्षेत्र का हिस्सा है, और इसकी राजधानी बेरूत है।
लेबनान (Lebanon) का भूगोल:
- लेबनान पश्चिमी एशिया में स्थित है, जिसकी अक्षांश स्थिति 33° और 35° N के बीच है और देशांतर 35° और 37° E के बीच है।
- इसके पास भूमध्य सागर के साथ 225 किलोमीटर लंबी तटरेखा और 375 किलोमीटर की सीमा सीरिया के साथ उत्तर और पूर्व में है।
- दक्षिण में इज़राइल के साथ इसकी 79 किलोमीटर लंबी सीमा है।
- गोलन हाइट्स की सीमा पर एक छोटा क्षेत्र जिसे शेबा फार्म्स कहते हैं, लेबनान और इज़राइल के बीच विवादित है।
- लेबनान को चार भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: तटीय मैदान, लेबनान पर्वत श्रृंखला, बेक़ा घाटी, एंटी-लेबनान पर्वत।
- लेबनान का जलवायु मध्यम भूमध्यसागरीय है। तटीय क्षेत्रों में सर्दियाँ सामान्यतः ठंडी और बारिश वाली होती हैं, जबकि गर्मियाँ गर्म और उमस भरी होती हैं।
- प्रधान मंत्री (Prime Minister): नजीब मिकाती (Najib Mikati)
- राष्ट्रपति (President): मोहम्मद अल-मेनफी (Mohammed al-Menfi)
- राजधानी (Capital): बेरूत (Beirut)
- मुद्रा (Currency) : लेबनानी पाउंड (Lebanese pound)
लेबनान की अर्थव्यवस्था (Economy of Lebanon): मुख्य आर्थिक क्षेत्रों में धातु उत्पाद, बैंकिंग (banking), कृषि, रसायन और परिवहन उपकरण (chemicals and transport equipment) शामिल हैं। मुख्य विकास क्षेत्रों में बैंकिंग और पर्यटन (banking and tourism) शामिल हैं।
लेबनान की धार्मिक संरचना: यहाँ 60 प्रतिशत लोग मुस्लिम हैं जिनमें शिया और सुन्नी का लगभग समान हिस्सा है और लगभग 38 प्रतिशत ईसाई।
लेबनान: “मध्य पूर्व का मोती”
लेबनान को अक्सर “मध्य पूर्व का मोती” कहा जाता है। समुद्र के किनारे स्थित होने के कारण लेबनान को लंबे समय से “मध्य पूर्व का मोती” कहा जाता है। इसकी राजधानी बेरूत कभी अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग का केंद्र हुआ करती थी। यह देश अपनी ऐतिहासिक धरोहर, समृद्ध संस्कृति, और अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के खूबसूरत पहाड़, हरे-भरे जंगल और शांत समुद्री तट इसे पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनाते हैं। लेबनान का इतिहास बहुत पुराना है, और यहाँ की वास्तुकला, खासकर बेयरूत शहर में, पारंपरिक और आधुनिकता का अनोखा मिश्रण दिखाती है।
मुख्य विशेषताएँ:
- सांस्कृतिक धरोहर: लेबनान प्राचीन सभ्यताओं का केंद्र रहा है, और यहाँ के ऐतिहासिक स्थल, जैसे कि बाइबलोस और बैल्बेक, दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
- प्राकृतिक सौंदर्य: लेबनान की भौगोलिक स्थिति इसे विशेष बनाती है। यहाँ समुद्र के किनारे और बर्फ से ढके पहाड़ हैं।
- मल्टीकल्चरल समाज: लेबनान में कई धर्मों और संस्कृतियों का मेल है, जो इसे एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत देता है। यहाँ के लोग अपनी विविधता पर गर्व करते हैं।
लेबनान का इतिहास
लेबनान का इतिहास प्राचीन और समृद्ध है, विशेष रूप से इसके तटीय क्षेत्र में, जहाँ दुनिया के सबसे पुराने मानव बस्तियों में से कुछ स्थित थीं। तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में, लेबनान के फोनीशियाई बंदरगाह शहरो (आधुनिक सीदोन (Sidon), और बाईब्लोस (Byblos) व्यापार और सांस्कृतिक केंद्र थे। हालाँकि, आधुनिक लेबनान का गठन 1920 में हुआ जब फ्रांस ने इसे लीग ऑफ नेशंस के अधीन राज्य के रूप में स्थापित किया। 1926 में, लेबनान एक गणराज्य बना और 1943 में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की।
फ़्रांसीसी शासनादेश का इतिहास
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान की पृष्ठभूमि:
- 1916 में साइक्स-पिकॉट समझौते के तहत, ब्रिटेन और फ्रांस ने लेबनान और उसके आस-पास के क्षेत्रों को फ्रांसीसी प्रभाव के लिए संभावित क्षेत्रों के रूप में चित्रित किया।
- युद्ध के बाद, ओटोमन साम्राज्य के ढहने से इन क्षेत्रों पर से उसका नियंत्रण समाप्त हो गया।
- 1919 के पेरिस शांति सम्मेलन में, पैट्रिआर्क एलियास पीटर होयेक ने ईसाई-प्रभुत्व वाले माउंट लेबनान और मुस्लिम तथा ड्रूज़ आबादी वाले क्षेत्रों के लिए एक विस्तारित क्षेत्र के लिए सफलतापूर्वक अभियान चलाया।
फ्रांसीसी नियंत्रण की स्थापना:
- 1920 में, राजा फैसल I ने सीरिया के अरब साम्राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा की और लेबनान पर नियंत्रण का दावा किया।
- मेसालुन की लड़ाई में फ्रांसीसियों से हार के बाद, राज्य को भंग कर दिया गया।
- सैन रेमो सम्मेलन में यह निर्धारित किया गया कि सीरिया और लेबनान फ्रांसीसी शासन के अधीन होंगे।
- 1 सितंबर 1920 को ग्रेटर लेबनान, लीग ऑफ नेशंस के तहत फ्रांसीसी नियंत्रण में स्थापित किया गया।
लेबनान की स्वतंत्रता की ओर बढ़ते कदम:
- 1 सितंबर 1926 को लेबनानी गणराज्य की आधिकारिक घोषणा हुई।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, लेबनान ने कुछ स्वतंत्रता प्राप्त की, जबकि फ्रांस जर्मनी के कब्जे में था।
- 1941 में, विची अधिकारियों ने जर्मनी को सीरिया के माध्यम से इराक में आपूर्ति ले जाने की अनुमति दी, जिससे ब्रिटेन को चिंता हुई।
- 1943 में, लेबनान की नई सरकार ने एकतरफा जनादेश को समाप्त कर दिया, जिसके बाद फ्रांस ने नई सरकार को कैद किया।
स्वतंत्रता की प्राप्ति
- 22 नवंबर 1943 को, फ्रांसीसी ने लेबनान के सरकारी अधिकारियों को रिहा किया और लेबनान की स्वतंत्रता को स्वीकार किया।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र की ओर से औपचारिक कार्रवाई के बिना फ्रांसीसी शासनादेश समाप्त हो गया।
- 24 अक्टूबर 1945 को, सीरिया और लेबनान के लिए फ्रांसीसी शासनादेश कानूनी रूप से समाप्त हो गया और दोनों देशों को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हुई। दिसंबर 1946 में अंतिम फ्रांसीसी सैनिक वापस चले गए।
लेबनान का 1948 का इजरायल युद्ध और उसके प्रभाव
इजरायल के खिलाफ समर्थन:
- मई 1948 में, लेबनान ने इजरायल के खिलाफ युद्ध में पड़ोसी अरब देशों का समर्थन किया।
- कुछ अनियमित बलों ने सीमा पार की और इजरायल के खिलाफ छोटी-मोटी झड़पें कीं, लेकिन यह सब लेबनानी सरकार के समर्थन के बिना हुआ।
- लेबनानी सैनिकों ने आधिकारिक तौर पर आक्रमण नहीं किया, लेकिन लेबनान ने तोपखाने की आग, बख्तरबंद कारों, स्वयंसेवकों और रसद समर्थन को प्रदान करने पर सहमति जताई।
- 5-6 जून 1948 को, लेबनानी सेना, जिसका नेतृत्व तत्कालीन राष्ट्रीय रक्षा मंत्री अमीर मजीद अर्सलान ने किया, ने अल-मलकिया पर कब्जा कर लिया। यह युद्ध में लेबनान की एकमात्र सफलता थी।
आर्थिक उछाल और शरणार्थियों की स्थिति
- राष्ट्रपति केमिली चामौन के कार्यकाल में, लेबनान ने आर्थिक उछाल का अनुभव किया।
- युद्ध के कारण लगभग 100,000 फिलिस्तीनी लेबनान भाग गए, और युद्ध विराम के बाद इजरायल ने उन्हें वापस लौटने की अनुमति नहीं दी।
- 2017 तक, लेबनान में 174,000 से 450,000 फिलिस्तीनी शरणार्थी रह रहे थे, जिनमें से लगभग आधे शरणार्थी शिविरों में थे।
गृह युद्ध और कब्ज़ा
1970 में जॉर्डन में PLO (पलस्तीन मुक्ति संगठन) की हार के बाद, कई फिलिस्तीनी उग्रवादी लेबनान चले गए। इससे इजरायल के खिलाफ उनके सशस्त्र अभियान में तेजी आई। फिलिस्तीनी ठिकानों के स्थानांतरण से फिलिस्तीनियों और मारोनाइट्स (ईसाई समुदाय) तथा अन्य लेबनानी गुटों के बीच सांप्रदायिक तनाव भी बढ़ गया।
गृह युद्ध की शुरुआत
1975 में, बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के चलते, जो कि बड़े पैमाने पर फिलिस्तीनी उग्रवादियों के दक्षिण लेबनान में स्थानांतरण से बढ़ा, लेबनान में बड़े पैमाने पर गृह युद्ध छिड़ गया। लेबनानी गृह युद्ध ने ईसाई समूहों के गठबंधन को PLO, वामपंथी ड्रूज़, और मुस्लिम मिलिशिया की संयुक्त सेना के खिलाफ खड़ा कर दिया। जून 1976 में, लेबनान के राष्ट्रपति इलियास सरकिस ने ईसाइयों के पक्ष में हस्तक्षेप करने और शांति बहाल करने में मदद के लिए सीरियाई सेना से अनुरोध किया। अक्टूबर 1976 में अरब लीग ने मुख्य रूप से सीरियाई अरब निवारक बल स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की, जिसका काम शांति बहाल करना था।
इज़राइल का आक्रमण
1977 और 1978 में लेबनान से इज़राइल में PLO के हमलों ने तनाव को बढ़ा दिया। 11 मार्च 1978 को, 11 फतह लड़ाकों ने उत्तरी इज़राइल के एक समुद्र तट पर उतरे और यात्रियों से भरी दो बसों को हाईजैक कर लिया। इस घटना को कोस्टल रोड नरसंहार के रूप में जाना जाता है। इज़राइली बलों के साथ गोलीबारी में मारे जाने से पहले उन्होंने 37 इजरायलियों को मार डाला और 76 को घायल कर दिया। चार दिन बाद, इज़राइल ने ऑपरेशन लिटानी के तहत लेबनान पर आक्रमण किया। इज़राइली सेना ने लिटानी नदी के दक्षिण के अधिकांश क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 425 पारित किया, जिसमें इज़राइली बलों को तुरंत वापस बुलाने और लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल (UNIFIL) स्थापित करने का आह्वान किया गया।
दक्षिणी लेबनान में स्थिति
1978 में इज़रायली सेना वापस चली गई, लेकिन सीमा पर 19 किलोमीटर चौड़े सुरक्षा क्षेत्र का प्रबंधन करके दक्षिणी क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखा। ये पद दक्षिण लेबनान सेना (एसएलए) के पास थे, जो इज़रायल द्वारा समर्थित मेजर साद हद्दाद के नेतृत्व में एक ईसाई मिलिशिया थी। इज़रायली प्रधान मंत्री, लिकुड के मेनाचेम बेगिन ने दक्षिणी लेबनान में ईसाई अल्पसंख्यक की दुर्दशा की तुलना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोपीय यहूदियों की तुलना में की। PLO ने संघर्ष विराम की अवधि के दौरान नियमित रूप से इज़रायल पर हमला किया, जिसमें 270 से अधिक हमले दर्ज हैं।
हिजबुल्लाह का उदय
1982 में, लेबनान से इजरायल पर PLO के हमलों ने इजरायल के आक्रमण को जन्म दिया। इस आक्रमण का उद्देश्य PLO को बाहर निकालने में लेबनानी सेना का समर्थन करना था। PLO की निकासी की निगरानी के लिए अमेरिकी, फ्रांसीसी, और इतालवी टुकड़ियों की एक बहुराष्ट्रीय सेना तैनात की गई। इस दौरान कई सांप्रदायिक नरसंहार हुए, जैसे कि सबरा और शतीला में। 1980 के दशक की शुरुआत में, हिजबुल्लाह, एक शिया इस्लामवादी उग्रवादी समूह और राजनीतिक दल, शिया मौलवियों के प्रयासों से अस्तित्व में आया। हिजबुल्लाह ने इजरायल के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया, साथ ही आत्मघाती हमलों और हत्याओं में भी सक्रियता दिखाई।
ताइफ समझौता और गृह युद्ध का अंत
16 सितंबर 1989 को एक शांति योजना जारी की गई, जिसे सभी ने स्वीकार किया। युद्ध विराम की स्थापना की गई और शरणार्थियों की वापसी शुरू हुई। उसी महीने, लेबनानी संसद ने ताइफ समझौते पर सहमति व्यक्त की, जिसमें लेबनान से सीरियाई वापसी के लिए एक रूपरेखा समय सारणी और लेबनानी राजनीतिक प्रणाली के डी-कन्फ़ेशनलाइज़ेशन के लिए एक सूत्र शामिल था।
16 साल बाद, 1990 के अंत में गृह युद्ध समाप्त हो गया, जिससे बड़े पैमाने पर मानव जीवन और संपत्ति का नुकसान हुआ। अनुमानित 150,000 लोग मारे गए और लगभग 1,000,000 नागरिक विस्थापित हुए। ताइफ समझौता अभी भी पूरी तरह से लागू नहीं हुआ है, और लेबनान की राजनीतिक प्रणाली सांप्रदायिक आधार पर विभाजित है।
इस्राइल और हिज़्बुल्ला के बीच संघर्ष के कारण: हिज़्बुल्ला को लेबनान का समर्थन:
संघर्ष की उत्पत्ति (1982):
1948 में इस्राइल राज्य की स्थापना ने 750,000 से अधिक फिलिस्तीनी अरबों का बड़े पैमाने पर विस्थापन किया (1948 अरब-इस्राइल युद्ध के दौरान) । इनमें से कई शरणार्थियों ने दक्षिणी लेबनान में आश्रय लिया, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। यह स्थिति विभिन्न लेबनानी गुटों, जैसे ईसाई मिलिशियाओं और फिलिस्तीनी समूहों के बीच संघर्षों से और जटिल हो गई।
- 1960 और 1970 के दशक में, दक्षिणी लेबनान में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) की उपस्थिति ने इस्राइल की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया।
- PLO के उत्तरी इस्राइली शहरों पर हमलों के जवाब में, इस्राइल ने लेबनान में सैन्य कार्रवाई की (1978 और 1982), जिसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक कब्जा और अंततः हिज़्बुल्ला का उदय हुआ।
- 1982 में हिज़्बुल्ला की स्थापना हुई, जिसका समर्थन ईरान ने किया, जो इस्राइली आक्रमण और चल रहे गृह युद्ध के जवाब में बना। इसका उद्देश्य इस्राइली कब्जे का प्रतिरोध करना और लेबनानी संप्रभुता की रक्षा करना था।
हिंसा का बढ़ना (1980-1990 के दशक):
- 1980 के दशक में, हिज़्बुल्ला ने इस्राइली बलों और उनके सहयोगियों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध किया, विशेष रूप से 1983 में अमेरिकी और फ्रांसीसी बैरकों पर बमबारी की, जिसमें कई जानें गईं।
- 1985 तक, जब हिज़्बुल्ला की सैन्य ताकत बढ़ी, इस्राइल ने दक्षिणी लेबनान में एक “सुरक्षा क्षेत्र” में वापसी की, जिसे इस्राइल ने 2000 तक अपने कब्जे में रखा।
राजनीतिक एकीकरण और निरंतर दुश्मनी (1990 के दशक):
- लेबनानी गृह युद्ध के बाद, हिज़्बुल्ला ने राजनीति में एकीकृत होकर संसदीय सीटें प्राप्त कीं और एक सामाजिक समर्थन नेटवर्क स्थापित किया, जिससे इसे शिया समुदायों में वैधता मिली।
- 1993 में, हिज़्बुल्ला के हमलों के जवाब में इस्राइल ने “ऑपरेशन अकाउंटेबिलिटी” लॉन्च किया, जिससे लेबनान में महत्वपूर्ण नागरिक हताहत और बुनियादी ढांचे को नुकसान हुआ, जिसे सात-दिन युद्ध (1993) कहा जाता है।
जुलाई युद्ध (2006):
जुलाई 2006 में, हिज़्बुल्ला ने दो इस्राइली सैनिकों को पकड़ लिया, जिससे एक बड़े पैमाने पर इस्राइली सैन्य प्रतिक्रिया हुई। यह संघर्ष 34 दिनों तक चला और इसके परिणामस्वरूप लगभग 1,200 लेबनानी और 158 इस्राइली हताहत हुए। इस युद्ध ने हिज़्बुल्ला की सैन्य क्षमताओं को उजागर किया और इसे लेबनान और क्षेत्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना दिया।
हालिया घटनाक्रम (2010 से अब तक):
- सीरियाई गृह युद्ध में भागीदारी: 2012 से, हिज़्बुल्ला ने असद शासन का समर्थन करने के लिए सीरियाई गृह युद्ध में हस्तक्षेप किया, जिससे उसे महत्वपूर्ण युद्ध अनुभव प्राप्त हुआ, हालाँकि इसके लिए आलोचना भी हुई।
- गज़ा संघर्ष (2023): अक्टूबर 2023 में, हिज़्बुल्ला ने गज़ा के समर्थन में एक रॉकेट अभियान शुरू किया, जिससे सीमा पार दुश्मनी बढ़ गई।
- हालिया तनाव: प्रमुख हिज़्बुल्ला नेताओं की हत्या और सितंबर 2024 में वॉकी-टॉकी और पेजर के धमाकों ने तनाव बढ़ा दिया है, जिसके चलते हिज़्बुल्ला ने प्रतिशोध की धमकी दी है, जिससे आगे के संघर्ष की संभावनाएँ बढ़ गई हैं।
हिज़बुल्लाह (Hezbollah’s) के उद्देश्य क्या हैं?
हिज़बुल्लाह, इज़राइल और पश्चिमी प्रभाव का मध्य पूर्व में विरोध करता है। इसका दृष्टिकोण पश्चिम एशिया की दो प्रमुख शक्तियों और उनकी प्रतिद्वंद्विता को भी दर्शाता है – एक तरफ सुन्नी मुस्लिम बहुल सऊदी अरब और दूसरी तरफ शिया मुस्लिम बहुल ईरान। अमेरिका, जो इज़राइल और सऊदी अरब का मजबूत सहयोगी है, का अनुमान है कि ईरान हिज़बुल्लाह को सैकड़ों मिलियन डॉलर की वित्तीय मदद देता है और इसके हजारों लड़ाके हैं।
हिज़बुल्लाह 2000 के दशक के मध्य में लेबनानी राजनीति में अधिक सक्रिय हुआ और वर्तमान में देश की संसद की 128 सीटों में से 13 पर इसका कब्जा है। अपने सहयोगियों के साथ मिलकर यह सरकार का हिस्सा है। लेकिन हाल के वर्षों में लेबनान में गरीबी, बेरोज़गारी और सरकार के कर्ज की वजह से हिज़बुल्लाह के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं।
हिज़बुल्लाह के हथियारों के बारे में जानकारी:
मुख्य हथियार प्रणाली: हिज़बुल्लाह के हथियारों में मुख्य रूप से छोटे, पोर्टेबल, बिना गाइडेंस वाले तोपखाने रॉकेट शामिल हैं।
- ये रॉकेट सटीक नहीं होते, लेकिन इनकी संख्या इतनी अधिक होती है कि यह आतंक फैलाने के लिए काफी प्रभावी साबित होते हैं।
- इज़रायली अनुमानों के अनुसार, 2006 के युद्ध के समय हिज़बुल्लाह के पास 15,000 रॉकेट और मिसाइलें थीं। आज यह संख्या बढ़कर 130,000 रॉकेट तक पहुंच चुकी है।
लड़ाकों की संख्या: सीआईए की 2022 की वर्ल्ड फैक्टबुक के अनुसार, हिज़बुल्लाह के पास लगभग 45,000 लड़ाके हैं, जिनमें से 20,000 पूर्णकालिक सैनिक हैं।
कात्युशा रॉकेट (Katyusha rockets): हिज़बुल्लाह ने इज़राइल पर 320 कात्युशा रॉकेट दागे और 11 सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया।
- कात्युशा रॉकेट सोवियत संघ द्वारा बनाए गए थे और इनकी रेंज लगभग 40 किमी (25 मील) तक होती है।
ईरानी मॉडल रॉकेट: हिज़बुल्लाह के पास ईरान निर्मित रॉकेट जैसे राद (Thunder), फज्र (Dawn), और ज़िलज़ाल (Earthquake) भी हैं।
- ये रॉकेट कात्युशा की तुलना में अधिक शक्तिशाली होते हैं और इनकी रेंज भी अधिक होती है।
- ज़िलज़ाल-1 की रेंज 125-60 किमी तक हो सकती है, जो सबसे लंबी रेंज वाला रॉकेट है।
फलक 2 रॉकेट: ईरान निर्मित फलक 2 रॉकेट पहले के फलक 1 रॉकेट से अधिक बड़ा वारहेड ले जाने में सक्षम है।
- इसकी रेंज लगभग 10-11 किमी तक होती है।
अन्य मिसाइलें: हिज़बुल्लाह ने रूसी निर्मित कोर्नेट एंटी-टैंक मिसाइल और ईरान निर्मित अल-मास मार्गदर्शित मिसाइल का भी इस्तेमाल किया है।
ड्रोन (UAVs): हिज़बुल्लाह के पास ईरान निर्मित शहीद-129 ड्रोन हैं, जिनकी रेंज 2,000 किमी तक हो सकती है।
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