महात्मा गांधी, जिन्हें भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है, 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक थे। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से भारत को अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता दिलाई और पूरे विश्व में अहिंसा तथा सत्य के विचारों का प्रचार किया। महात्मा गांधी की जयंती हर साल 2 अक्टूबर को मनाई जाती है, जो उनके विचारों और आदर्शों को स्मरण करने का दिन है। इस वर्ष 2024 में भारत बापू की 155वीं जयंती मना रहा है।
महात्मा गांधी का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
- जन्म और परिवार: महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।
- उनके पिता, करमचंद गांधी, पोरबंदर के दीवान थे, और उनकी माता, पुतलीबाई, एक धार्मिक और सरल स्वभाव की महिला थीं।
- बचपन और विवाह: गांधीजी का बचपन सामान्य भारतीय परिवारों की तरह ही बीता। वे बचपन से ही अपने माता-पिता की धार्मिक गतिविधियों और नैतिक अनुशासन से प्रभावित थे।
- महात्मा गांधी का विवाह 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा गांधी से हुआ।
- कस्तूरबा और गांधीजी का रिश्ता धीरे-धीरे बहुत मजबूत और भावनात्मक रूप से स्थिर बना।
- उनके चार पुत्र हुए: हरिलाल, मणिलाल, रामदास, और देवदास।
- शिक्षा और कानून की पढ़ाई: महात्मा गांधी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर और राजकोट में पूरी की।
- बाद में, उन्होंने 1888 में इंग्लैंड के इनर टेम्पल में कानून की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया। गांधीजी ने इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति को नजदीक से देखा और अनुभव किया।
- 1891 में वे भारत लौटे और वकालत शुरू की।
- दक्षिण अफ्रीका में प्रवास: गांधीजी के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1893 में दक्षिण अफ्रीका जाने का अवसर मिला।
- वहां उन्हें भारतीय समुदाय के कानूनी मामलों को संभालने के लिए आमंत्रित किया गया था।
महात्मा गांधी का दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह:
महात्मा गांधी के जीवन का महत्वपूर्ण अध्याय दक्षिण अफ्रीका में शुरू हुआ, जहां उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के अपने सिद्धांतों को पहली बार व्यवहार में लाया। यह वह स्थान था जहां गांधीजी ने अपने विचारों और सिद्धांतों को आकार दिया और उन्हें अपने जीवन की दिशा बदलने वाली घटनाओं का सामना करना पड़ा।
- रंगभेद का अनुभव: 1893 में, महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका गए, जहाँ उन्हें नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। यह घटना उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई, जिसने उन्हें अन्याय के खिलाफ खड़े होने और इसे शांतिपूर्ण ढंग से चुनौती देने के लिए प्रेरित किया।
- सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत: गांधीजी ने इस अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने का फैसला किया उन्होंने 1906 में “सत्याग्रह” का सिद्धांत पेश किया, जिसका अर्थ था “सत्य के लिए आग्रह” या “सत्य का मार्ग”। सत्याग्रह के तहत उन्होंने अहिंसक प्रतिरोध का मार्ग अपनाया।
- सफलता और चुनौतियाँ: दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह आंदोलन ने धीरे-धीरे भारतीय समुदाय में जागरूकता पैदा की और बड़ी संख्या में लोगों को गांधीजी के अहिंसक आंदोलन में शामिल किया। यह आंदोलन करीब सात वर्षों तक चला और अंततः दक्षिण अफ्रीकी सरकार के साथ 1914 में एक समझौता हुआ, जिसमें कई भेदभावपूर्ण कानूनों को समाप्त किया गया।
महात्मा गांधी की भारत वापसी और स्वतंत्रता संग्राम:
महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने अनुभवों से सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को गहराई से अपनाया और उन्हें भारत में भी लागू करने का संकल्प लिया। जब वे भारत लौटे, तब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया नेतृत्व और नई दिशा की जरूरत थी।
- भारत वापसी और राजनीतिक जीवन में प्रवेश: 1915 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। भारत लौटने के बाद, उन्होंने देश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को नजदीक से समझा। गांधीजी ने भारत में गरीबों, किसानों और श्रमिकों की दुर्दशा को देखा और इस समस्या का हल अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से निकालने का संकल्प लिया।
- चंपारण सत्याग्रह (1917): गांधीजी का पहला बड़ा आंदोलन बिहार के चंपारण में हुआ, जहां नील किसानों को ब्रिटिश नील प्लांटर्स द्वारा जबरन अपनी जमीनों पर नील उगाने के लिए बाध्य किया जा रहा था। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ सत्याग्रह का आयोजन किया। यह गांधीजी का भारत में पहला अहिंसक आंदोलन था, और इसके परिणामस्वरूप सरकार को किसानों की शिकायतों को सुनना और उनकी मांगों को स्वीकार करना पड़ा।
- अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918): अहमदाबाद में कपड़ा मिलों के मजदूरों को वेतन में कमी और खराब कामकाजी परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा था। गांधीजी ने मजदूरों के पक्ष में खड़े होकर मालिकों के खिलाफ एक अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया। यह आंदोलन भी सफल रहा। इस आंदोलन ने गांधीजी की प्रतिष्ठा को और बढ़ाया।
- असहयोग आंदोलन (1920-1922): जलियांवाला बाग हत्याकांड और रॉलेट एक्ट के विरोध में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध का सबसे बड़ा उदाहरण था। गांधीजी ने भारतीयों से अंग्रेजी वस्त्रों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने और शैक्षिक संस्थानों से दूर रहने की अपील की। इस आंदोलन में सभी वर्गों के लोगों ने भाग लिया, और यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता की एकजुटता का प्रतीक बना। हालांकि 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद इस आंदोलन को स्थगित कर दिया गया, जब कुछ हिंसक घटनाएं घटित हुईं, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930): गांधीजी का सविनय अवज्ञा आंदोलन ब्रिटिश कानूनों के खिलाफ एक और बड़ा कदम था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नमक कर के खिलाफ विरोध जताना था, जो गरीब भारतीयों के लिए एक बड़ा आर्थिक बोझ था। 1930 में, गांधीजी ने प्रसिद्ध “दांडी मार्च” का नेतृत्व किया, जिसमें उन्होंने 24 दिनों में साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील की पैदल यात्रा की और वहां पहुंचकर नमक बनाकर ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया। यह प्रतीकात्मक कार्रवाई पूरे देश में एक विशाल आंदोलन का रूप ले चुकी थी।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942): द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों को बिना उनकी सहमति के युद्ध में शामिल करने के फैसले के खिलाफ गांधीजी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरुआत की। यह आंदोलन भारत को तत्काल स्वतंत्रता दिलाने की मांग के साथ किया गया था। 8 अगस्त 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में गांधीजी ने “करो या मरो” (Do or Die) का नारा दिया। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ सबसे बड़ा विद्रोह था, जिसमें लाखों भारतीयों ने हिस्सा लिया।
- महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई अहिंसक और सत्याग्रह आधारित आंदोलनों ने अंग्रेजी शासन को कमजोर किया और अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता दिलाई। गांधीजी का योगदान केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था।
गांधी जी के विचार और दर्शन:
- सत्य और अहिंसा: महात्मा गांधी के विचारों का सबसे बड़ा आधार सत्य और अहिंसा था। उनका मानना था कि सत्य की खोज मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है, और इसे प्राप्त करने का मार्ग अहिंसा है। उन्होंने हर संघर्ष में सत्य को अपना हथियार बनाया और बिना हिंसा के विरोध का मार्ग अपनाया।
- स्वदेशी: गांधीजी स्वदेशी वस्त्रों और उत्पादों के उपयोग के प्रबल समर्थक थे। वे चाहते थे कि भारतीय लोग विदेशी वस्त्रों और सामानों का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्त्र अपनाएं। इससे न केवल भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, बल्कि आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी।
- ग्राम स्वराज: गांधीजी का सपना था कि भारत का हर गाँव आत्मनिर्भर हो। उन्होंने ग्राम स्वराज की अवधारणा दी, जिसमें ग्रामीण विकास, स्वच्छता, शिक्षा और स्थानीय संसाधनों के प्रयोग से गाँवों को सशक्त बनाने की बात कही गई।
- धर्म और धर्मनिरपेक्षता: गांधीजी धर्म को जीवन का अभिन्न हिस्सा मानते थे, लेकिन वे धर्मनिरपेक्षता के प्रबल समर्थक थे। उनके अनुसार, सभी धर्मों का मूल एक ही है – मानवता और प्रेम। वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे और धार्मिक सहिष्णुता को सामाजिक समरसता के लिए आवश्यक मानते थे।
गांधी जी का योगदान:
- महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- गांधीजी ने छुआछूत, जातिवाद, और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने हरिजन उत्थान, महिलाओं के अधिकार, और सामाजिक समानता के लिए संघर्ष किया, जिससे भारतीय समाज में सुधार और जागरूकता आई।
- गांधीजी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों ने वैश्विक स्तर पर शांति आंदोलन को प्रेरित किया। उनके विचारों ने दुनिया भर के नेताओं और आंदोलनों को प्रभावित किया।
- गांधीजी ने स्वदेशी, सरल जीवन, और ग्रामीण आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देकर भारतीय संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण किया।
- गांधीजी ने “हरिजन” (जो कि ‘भगवान के लोग’ का अर्थ है) शब्द का उपयोग किया, जो अछूतों और दलितों के लिए प्रयुक्त होता था। उन्होंने जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ संघर्ष किया।
- गांधीजी ने महिलाओं के अधिकारों और उनकी भूमिका को महत्व दिया। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक अधिकारों के लिए प्रेरित किया।
गांधी जी की विरासत:
- भारत और विश्व पर प्रभाव: महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांत ने न केवल भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाई, बल्कि दुनिया भर के आंदोलनों और नेताओं, जैसे मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला, को भी प्रेरित किया। उनके विचार शांति, मानवाधिकार और समानता के लिए आज भी प्रेरणादायक हैं।
- गांधी जयंती और स्मारक: हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में मनाई जाती है, जो भारत में राष्ट्रीय अवकाश है और वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है। भारत और दुनिया भर में कई गांधी स्मारक और संग्रहालय हैं, जो उनकी विरासत को संजोए हुए हैं।
- आधुनिक भारत में प्रासंगिकता: आज भी गांधीजी के विचार, जैसे स्वदेशी, ग्रामीण विकास, और अहिंसा, आधुनिक भारत के सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों में प्रासंगिक हैं। उनके सिद्धांत पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक न्याय, और आत्मनिर्भरता के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं।
महात्मा गांधीजी की प्रमुख पुस्तके
- “हिंद स्वराज” (Hind Swaraj) – 1909: यह पुस्तक गांधीजी द्वारा लिखी गई उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। इसमें उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। गांधीजी ने इसमें स्वराज का अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के रूप में नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण और नैतिकता के रूप में समझाया है। यह पुस्तक अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों का आधार भी बनती है।
- “सत्य के साथ मेरे प्रयोग” (The Story of My Experiments with Truth) – 1927: यह गांधीजी की आत्मकथा है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों, संघर्षों, और नैतिक मूल्यों का वर्णन किया है। इस पुस्तक में उनके विचारों और सिद्धांतों की गहराई से चर्चा की गई है।
महात्मा गांधी की हत्या
महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में हुई। उन्हें नाथूराम गोडसे नामक एक व्यक्ति ने गोली मारकर हत्या कर दी, जो भारत के विभाजन और गांधीजी के प्रति अपनी असहमति के कारण इस कृत्य को अंजाम दिया। उस दिन, गांधीजी एक प्रार्थना सभा में शामिल होने जा रहे थे, जब गोडसे ने उनकी ओर तीन गोलियाँ चलाईं। यह हत्या भारतीय समाज के लिए एक गहरा आघात थी और देशभर में शोक की लहर दौड़ गई।
महात्मा गांधी की उपलब्धियाँ:
- महात्मा गांधी को भारत के राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित किया गया है। उन्हें “बापू” के नाम से भी जाना जाता है।
- 1948 में उनकी हत्या के बाद, उन्हें “महात्मा” की उपाधि दी गई।
- भारतीय सरकार द्वारा “गांधी शांति पुरस्कार” की स्थापना की गई है, जो उन व्यक्तियों या संगठनों को दिया जाता है जो अहिंसा, शांति, और सामाजिक सुधार के लिए कार्य कर रहे हैं।
- 15 जून 2007 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अक्टूबर को “अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
- उनकी मृत्यु दिवस 30 जनवरी को भारत में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- महात्मा गांधी एकमात्र भारतीय हैं, जिन्हें 1930 में टाइम पत्रिका द्वारा “पर्सन ऑफ़ द ईयर” के सम्मान से नवाजा गया था।
UPSC पिछले वर्ष के प्रश्न PYQप्रश्न. असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिये। (2021) |
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