Next of Kin Policy: हाल ही में पिछले साल 19 जुलाई को सियाचिन में शहीद हुए कैप्टन अंशुमान सिंह को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कीर्ति चक्र (kirti Chakra) से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनकी पत्नी स्मृति और मां मंजू सिंह ने ग्रहण किया। Captain Anshuman Singh के माता और पिता का कहना है कि बेटे की शहादत पर बहू को सेना द्वारा जो भी मदद मिली, उसके बाद वह अपने मायके चले गईं। अंशुमान के पिता ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह Next of Kin (NOK) नियमों में बदलाव करे।
Next of Kin (NOK) क्या हैं?
भारतीय सेना (Indian Army) की “Next of Kin” (NOK) नीति दिशानिर्देशों का एक समूह है जो यह निर्धारित करती है कि सेना के जवान/अधिकारी के शहीद होने पर वित्तीय सहायता और अन्य लाभ किसे प्राप्त होंगे। इन लाभों में वित्तीय सहायता (Financial help), बीमा (Insurance), पेंशन (Pension) और अन्य सहायता शामिल हैं। इस नीति का उद्देश्य शहीद के परिवार को वित्तीय स्थिरता प्रदान करना है। NOK में जिसका भी नाम होता है, उसे सैनिक की चोट या शहादत की स्थिति में सबसे पहले सूचित किया जाता है। साथ ही, NOK ही सभी वित्तीय लाभों का हकदार होता है।
Next of Kin (NOK) का चयन
NOK में निकटतम परिजन वह व्यक्ति होता है जिसे किसी सैनिक के शहीद होने या गंभीर रूप से घायल होने पर सभी लाभ, सूचनाएं और अधिकार प्राप्त होते हैं। इसके लिए एक पूरी प्रक्रिया होती है। भारतीय सेना में शामिल होने पर सैनिकों को ‘Next of Kin (NOK)’ फॉर्म भरना होता है। इस फॉर्म में सैनिक को अपने निकटतम परिवार के सदस्यों, जैसे पति/पत्नी, बच्चों, माता-पिता या भाई-बहनों का विवरण देना होता है। सैनिक इस जानकारी को समय-समय पर या जब भी पारिवारिक स्थिति में कोई बदलाव हो, जैसे शादी या बच्चे का जन्म, अपडेट कर सकता है।
Next of Kin (NOK) के नियम
● जब कोई व्यक्ति सेना में भर्ती होता है तो उसके माता-पिता या अभिभावकों को Next of Kin (NOK) के रूप में नामित किया जाता है।
● सेना के नियमों के अनुसार, जब कोई कैडेट या अधिकारी विवाह करता है, तो उसके माता-पिता के स्थान पर उसके जीवनसाथी को उसका Next of Kin (NOK) नामित किया जाता है।
● पत्नी का नाम केवल तभी तक NOK रहेगा जब तक उसकी दूसरी शादी नहीं हुई है।
● अगर माँ, पिता या पत्नी में से कोई भी नहीं है तो सैनिक यह भी निर्धारित कर सकता है कि वह NOK में बेटी या बेटे का नाम लिखवाना चाहता है।
● बेटा केवल 25 साल तक की उम्र तक ही NOK रह सकता है। वहीं बेटी शादी से पहले तक ही NOK रह सकती है।
भारतीय सेना में परिजनों को उनके बेटे या पति के शहीद होने की सूचना देने की एक पूरी प्रक्रिया है। परिवार को व्यक्तिगत रूप से सूचित करने के लिए एक कैजुअल्टी नोटिफिकेशन टीम (CNO) भेजी जाती है। इस टीम में आमतौर पर भावनात्मक समर्थन देने के लिए वरिष्ठ अधिकारी, एक चिकित्सा पेशेवर और एक धार्मिक या आध्यात्मिक सलाहकार शामिल होते हैं।
सूचना के बाद, सेना यह सुनिश्चित करती है कि सभी आवश्यक दस्तावेजों का सत्यापन और प्रक्रिया आसानी से की जाए। इन दस्तावेजों में मृत्यु प्रमाण पत्र, सेवा रिकॉर्ड और सैनिक का Next of Kin (NOK) फॉर्म शामिल होता है।
Next of Kin (NOK) को क्या लाभ मिलते हैं?
- अनुग्रह राशि (Ex-gratia payment): परिवार को तत्काल राहत के रूप में दी गई राशि।
- बीमा (Insurance): सैनिक को आम तौर पर विभिन्न बीमा योजनाओं के तहत कवर किया जाता है। NOK को बीमा राशि मिलती है।
- पेंशन (Pension): परिवार को एक पारिवारिक पेंशन भी मिलती है, जो मृत सैनिक के अंतिम वेतन का कुछ प्रतिशत होती है।
- अन्य वित्तीय सहायता (Other financial assistance): विभिन्न राज्य और केंद्र सरकार की योजनाएं मृत सैनिकों के परिवारों को अलग से भी आर्थिक सहायता देती हैं।
- शैक्षणिक सहायता (Educational assistance): मृत सैनिक के बच्चे शैक्षिक छात्रवृत्ति के हकदार होते हैं।
- रोजगार (Employment): कुछ मामलों में, NOK को रक्षा या अन्य सरकारी क्षेत्रों में आरक्षण मिलता है।
शहीद हुए सैनिक को औपचारिक सैन्य सम्मान दिया जाता है। इसमें एक औपचारिक गार्ड, अंतिम पोस्ट बजाना और बंदूक की सलामी शामिल होती है।
राज्य सरकारों द्वारा अपने नियमों में किए बदलाव
कई मामलों में शहीदों के माता-पिता ने आरोप लगाया है कि आर्थिक सहायता शहीद की पत्नी द्वारा रख ली जाती हैं। इस समस्या को देखते हुए, कई राज्य सरकारों ने शहीदों के परिवारों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता के नियमों में बदलाव किया है:
- मध्य प्रदेश: शहीद की पत्नी और माता-पिता के बीच सहायता राशि 50-50% बांटी जाएगी।
- उत्तर प्रदेश: सहायता राशि बढ़ाकर 50 लाख रुपये की गई, जिसमें 35 लाख पत्नी को और 15 लाख माता-पिता को दिए जाएंगे।
- हरियाणा: कुल सहायता राशि का 70% विधवा और बच्चों को, और 30% माता-पिता को दिया जाएगा।
- उत्तराखंड और राजस्थान: ये राज्य भी शहीदों के माता-पिता को आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं।
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