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DRDO ने दूसरे चरण की Ballistic Missile रक्षा प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया

चर्चा में क्यों?

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने 24 जुलाई, 2024 को Phase-II Ballistic Missile रक्षा प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। 

Phase-II Ballistic Missile Defence System का परीक्षण

  • टारगेट मिसाइल और इंटरसेप्टर को क्रमशः लॉन्च कॉम्प्लेक्स-IV (धामरा) और लॉन्च कॉम्प्लेक्स-III (चांदीपुर) से लॉन्च किया गया।
  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने शाम 4:20 बजे टारगेट मिसाइल लॉन्च की जिसे जमीन और समुद्र में तैनात रडार ने पता लगाया और AD इंटरसेप्टर सिस्टम को एक्टिवेट किया। इसके बाद 4:24 बजे फेज-2 AD एंडो-एटमॉस्फेरिक मिसाइल (AD Endo-Atmospheric Missile) को लॉन्च किया गया और उसने टारगेट मिसाइल को नष्ट कर दिया।
  • इस फ्लाइट टेस्ट में ट्रायल के सभी उद्देश्य सफलतापूवर्क पूरे किए गए। इसमें लॉन्ग रेंज सेंसर, लो लेंटेंसी कम्युनिकेशन सिस्टम और MCC और एडवांस इंटरसेप्टर मिसाइल समेत नेटवर्क सेंट्रिक वॉरफेयर वेपन सिस्टम का वेरिफिकेशन हुआ।

Phase-II Ballistic Missile

इंटरसेप्टर मिसाइल क्या है?

इंटरसेप्टर मिसाइल एक प्रकार की प्रतिरक्षा मिसाइल है, जिसे विशेष रूप से दुश्मन देशों द्वारा दागी जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों, जैसे कि मध्यम दूरी की और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBM), को रोकने और नष्ट करने के लिए विकसित किया गया है। इंटरसेप्टर मिसाइल को बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (Ballistic Misslie Defence-BMD) प्रणाली के एक भाग के रूप में विकसित किया जा रहा है।

The Phase-II AD Endo-atmospheric missile

  • द्वितीय चरण एडी एंडो-वायुमंडलीय मिसाइल एक स्वदेशी रूप से विकसित दो चरणों वाली ठोस प्रणोदक वाली मिसाइल प्रणाली है जिसे जमीन से लॉन्च किया जाता है।
  • इसका उद्देश्य विभिन्न प्रकार के दुश्मन Ballistic Misslie खतरों को पृथ्वी के वायुमंडल के भीतर और उसके आसपास के निचले क्षेत्रों में निष्क्रिय करना है।
  • इस मिसाइल प्रणाली में DRDO की विभिन्न प्रयोगशालाओं द्वारा विकसित कई अत्याधुनिक स्वदेशी तकनीकों को शामिल किया गया है।

भारतीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा (BMD) कार्यक्रम

भारत का बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा (BMD) कार्यक्रम देश की सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य दुश्मन की बैलिस्टिक मिसाइलों से सुरक्षा के लिए एक बहु-स्तरीय रक्षा प्रणाली स्थापित करना है।

इस प्रणाली में दो प्रमुख इंटरसेप्टर मिसाइलें शामिल हैं:

  • पृथ्वी डिफेंस व्हीकल (PDV): यह मिसाइल वायुमंडल के बाहर दुश्मन की मिसाइलों को 50-150 किलोमीटर की ऊंचाई पर ही नष्ट कर देती है। यह मौजूदा पृथ्वी एयर डिफेंस (PAD) सिस्टम का उन्नत संस्करण है, जिसकी मारक क्षमता 80 किलोमीटर तक थी।
  • एडवांस्ड एरिया डिफेंस (AAD): यह मिसाइल वायुमंडल के अंदर 20-40 किलोमीटर की ऊंचाई पर दुश्मन की मिसाइलों को निशाना बनाती है। इसे ‘अश्विन’ नाम दिया गया है।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के अनुसार, इस प्रणाली को 2022 तक पूरी तरह से तैनात करने का लक्ष्य रखा गया था। इसके दूसरे चरण में इस प्रणाली की मारक क्षमता को 2,000 किलोमीटर से बढ़ाकर 5,000 किलोमीटर तक करने की योजना है।

भारत के अलावा, अमेरिका, रूस, चीन और इज़राइल जैसे देशों के पास भी इस तरह की बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ हैं।

 

मिसाइल का वर्गीकरण (Classification of Missiles)-

मिसाइलों को उनके प्रकार, लॉन्च मोड, रेंज, प्रोपल्शन, वारहेड और गाइडेंस सिस्टम के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। 

गति के आधार पर (Based on speed):

  • सबसोनिक मिसाइल (Subsonic Missile): ध्वनि की गति से धीमी गति से चलने वाली मिसाइलें “Subsonic” कहलाती हैं। उदाहरण: यू.एस. हार्पून एंटी-शिप मिसाइल, भारतीय पृथ्वी शॉर्ट-रेंज बैलिस्टिक मिसाइल।
  • सुपरसोनिक मिसाइल (Supersonic Missile): ध्वनि की गति से तेज (मैक 1) लेकिन मैक 5 से कम गति से चलने वाली मिसाइलें “Supersonic” कहलाती हैं। उदाहरण: रूसी इस्कंदर टैक्टिकल बैलिस्टिक मिसाइल, भारतीय ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल।
  • हाइपरसोनिक मिसाइल (Hypersonic Missile): Hypersonic” का अर्थ है कि मिसाइलों की गति ध्वनि की गति से कम से कम पांच गुना तेज (मैक 5 से अधिक) होनी चाहिए। उदाहरण: चीन का DF-ZF Hypersonic ग्लाइड व्हीकल, रूस का Avangard, और भारत की शौर्य/सागरिका मिसाइलें (अधिकतम गति – 5 मैक), आदि।

प्रक्षेपवक्र के आधार पर (Based on Trajectory):

  • बैलिस्टिक मिसाइल (Ballistic Missiles): Ballistic Missiles एक बैलिस्टिक प्रक्षेपवक्र (Ballistic Trajectory) का अनुसरण करती हैं और बूस्ट चरण के बाद अनपावर्ड फ्री-फॉल उड़ान के सिद्धांत पर काम करती हैं। उदाहरण – भारत की अग्नि और पृथ्वी श्रृंखला की बैलिस्टिक मिसाइलें।
    • हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (Hypersonic Glide Vehicle -HGV): पुन: प्रवेश चरण के दौरान हाइपरसोनिक वेग प्राप्त करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलें हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइलें होती हैं। भारत HGV के “प्रौद्योगिकी प्रदर्शन” चरण में है।
  • क्रूज मिसाइल (Cruise Missiles): यह स्थलीय या नौसेना लक्ष्यों के खिलाफ इस्तेमाल की जाने वाली एक निर्देशित मिसाइल है, जो वायुमंडल में रहती है (बैलिस्टिक मिसाइलों के विपरीत) और लक्ष्य से टकराने से पहले अपनी उड़ान पथ के प्रमुख हिस्से को लगभग स्थिर गति से उड़ाती है।
    • सबसोनिक क्रूज मिसाइल (Subsonic Cruise missiles): ये क्रूज मिसाइलें मैक 1 से कम गति से यात्रा करती हैं। उदाहरण: यू.एस. BGM-109 टॉमहॉक लंबी दूरी की सबसोनिक क्रूज मिसाइल, भारतीय निर्भय सबसोनिक क्रूज मिसाइल।
    • सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल (Supersonic Cruise missiles): सुपरसोनिक गति से यात्रा करने वाली क्रूज मिसाइलों को सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल कहा जाता है। ब्रह्मोस: संयुक्त भारत-रूसी ब्रह्मोस मैक 3 गति के करीब पहुंचने वाली सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है।
    • हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल (Hypersonic Cruise missiles): स्क्रैमजेट इंजन का उपयोग करके मैक 5 से अधिक गति प्राप्त करने के लिए संचालित क्रूज मिसाइलों को हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल के रूप में नामित किया गया है।

लॉन्च मोड के आधार पर (Based on the Launch Mode):

  • सतह से सतह (Surface-to-Surface): जमीन से जमीन पर मार करने के लिए।
  • सतह से हवा (Surface-to-Air): जमीन से हवा में मार करने के लिए (विमान, हेलीकॉप्टर, ड्रोन)।
  • हवा से सतह (Air-to-Surface): हवा से जमीन पर मार करने के लिए।
  • हवा से हवा (Air-to-Air): हवा से दूसरे विमान को मार गिराने के लिए।
  • जहाज से जहाज (Ship-to-Ship): समुद्र में जहाज से दूसरे जहाज पर हमला करने के लिए।
  • पनडुब्बी से लॉन्च (Submarine-launched): पनडुब्बी से दागी जाने वाली मिसाइलें।
  • कंधे से दागी जाने वाली (Shoulder-fired): पैदल सेना द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मिसाइलें।

रणनीतिक महत्व के आधार पर (Based on Strategic Importance):

  • अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (Intercontinental ballistic missile (ICBM-ICBM): ये लंबी दूरी की मिसाइलें हैं जो महाद्वीपों में परमाणु हथियार पहुंचाने में सक्षम हैं। अग्नि-V भारत की पहली ICBM है।
  • पनडुब्बी से लॉन्च होने वाली बैलिस्टिक मिसाइल (Sub-surface ballistic nuclear-SLBM): ये पनडुब्बियों से दागी जाने वाली मिसाइलें हैं। K-15 सागरिका और K-4 (विकास में) भारत की SLBM हैं।

सामरिक महत्व के आधार पर (Based on Strategic Importance):

  • पृथ्वी मिसाइल: ये छोटी दूरी की सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलें हैं।
  • ब्रह्मोस मिसाइल: यह दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइल है, जिसे भारतीय सशस्त्र बलों की तीनों सेवाओं में शामिल किया गया है।

प्रणोदन के आधार पर (Based on Propulsion):

  • ठोस प्रणोदन (Solid Propulsion): इसमें ठोस प्रणोदक का उपयोग किया जाता है। यह सरल, कम लागत वाली और विश्वसनीय होती है।
  • तरल प्रणोदन (Liquid Propulsion): इसमें तरल ईंधन और ऑक्सीडाइज़र का उपयोग किया जाता है। इसकी उच्च दक्षता और थ्रॉटल क्षमता होती है।
  • हाइब्रिड प्रणोदन (Hybrid Propulsion): इसमें ठोस और तरल प्रणोदक के संयोजन का उपयोग किया जाता है।
  • क्रायोजेनिक (Cryogenic): इसमें तरल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता है। इसमें बहुत अधिक ऊर्जा घनत्व होता है।
  • रैमजेट/स्क्रैमजेट (Ramjet/Scramjet): हाइपरसोनिक बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों के लिए हवा में सांस लेने वाले इंजन का उपयोग किया जाता है।

मार्गदर्शन प्रणाली के आधार पर (Based on Guidance Systems):

  • कमांड गाइडेंस (Command Guidance): बाहरी कमांड रेडियो/तार लिंक के माध्यम से मिसाइलों का मार्गदर्शन करते हैं।
  • जड़त्वीय मार्गदर्शन (Inertial Guidance): जहाज पर कंप्यूटर और गति सेंसर स्वायत्त पाठ्यक्रम सुधार प्रदान करते हैं।
  • भू-भाग मानचित्रण (Terrain Mapping): यह सटीकता के लिए रडार altimeter डेटा के साथ जहाज पर इलाके के नक्शों की तुलना करता है।
  • लेजर होमिंग (Laser Homing): यह लेजर डिज़ाइनर द्वारा प्रकाशित लक्ष्य की ओर मार्गदर्शन करता है।
  • रडार/जीपीएस (Radar/GPS): यह उपग्रह नेविगेशन का उपयोग करके स्थिति को अपडेट करता है और इसे लक्ष्यीकरण डेटा से मेल खाता है।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)

  • DRDO रक्षा मंत्रालय का रक्षा अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) विंग है, जिसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों से सशक्त बनाना है।
  • आत्मनिर्भरता और सफल स्वदेशी विकास एवं सामरिक प्रणालियों तथा प्लेटफार्मों जैसे- अग्नि और पृथ्वी शृंखला मिसाइलों के उत्पादन की इसकी खोज जैसे- हल्का लड़ाकू विमान, तेजस: बहु बैरल रॉकेट लॉन्चर, पिनाका: वायु रक्षा प्रणाली, आकाश: रडार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला आदि, ने भारत की सैन्य शक्ति को प्रभावशाली निरोध पैदा करने और महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करने में प्रमुख योगदान दिया है।

गठन:

  • DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
  • DRDO वर्तमान में 50 प्रयोगशालाओं का एक समूह है जो रक्षा प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- वैमानिकी, शस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइलें, उन्नत कंप्यूटिंग और सिमुलेशन, विशेष सामग्री, नौसेना प्रणाली, लाईफ साइंस, प्रशिक्षण, सूचना प्रणाली तथा कृषि के क्षेत्र में कार्य कर रहा है।

मिशन:

  • हमारी रक्षा सेवाओं के लिये अत्याधुनिक सेंसरों, हथियार प्रणालियों, प्लेटफार्मों और संबद्ध उपकरणों के उत्पादन हेतु डिज़ाइन, विकास और नेतृत्व।
  • युद्ध की प्रभावशीलता को अनुकूलित करने और सैनिकों की सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु सेवाओं को तकनीकी समाधान प्रदान करना।
  • बुनियादी ढांचे और प्रतिबद्ध गुणवत्ता जनशक्ति का विकास करना तथा एक मज़बूत स्वदेशी प्रौद्योगिकी आधार का निर्माण करना।

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