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SEBI के नए नियम: 20 नवम्बर 2024 से F&O मार्केट में बड़ा बदलाव

चर्चा में क्यों?

भारतीय शेयर बाजार के खुदरा निवेशकों को लगातार हो रहे घाटे से बचाने के उद्देश्य से, सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने फ्यूचर्स एंड ऑप्शन (F&O) सेगमेंट में बड़ा बदलाव करने की घोषणा की है।

SEBI के नए F&O नियम 2024

1 अक्टूबर 2024 को जारी नए सर्कुलर के तहत SEBI ने छह महत्वपूर्ण सुधार उपायों को लागू करने का फैसला किया है। ये नियम 20 नवंबर 2024 से चरणबद्ध तरीके से लागू होंगे, जिनका उद्देश्य इक्विटी इंडेक्स डेरिवेटिव्स (F&O) में ट्रेडिंग को और अधिक सुरक्षित और पारदर्शी बनाना है। यह बदलाव एक विशेषज्ञ कार्य समूह (EWG) की सिफारिशों के आधार पर किए जा रहे हैं, ताकि खुदरा निवेशकों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।

SEBI द्वारा फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (F&O) के नए फ्रेमवर्क के तहत छह नियमों का विवरण

  1. ऑप्शन प्रीमियम का अपफ्रंट कलेक्शन: SEBI ने ऑप्शन बायर्स से ऑप्शन प्रीमियम का अपफ्रंट कलेक्शन करने का नियम बनाया है, जो 1 फरवरी 2025 से लागू होगा। इसका उद्देश्य यह है कि ऑप्शन ट्रेडर्स को पहले से ही मार्जिन कलेक्शन में शामिल किया जाए, जिससे वे ट्रेडिंग के समय अधिक सावधान रहें।
  2. इंडेक्स डेरिवेटिव्स के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ाना: F&O के इंडेक्स डेरिवेटिव्स के कॉन्ट्रैक्ट साइज को बढ़ाकर ₹15 लाख किया जा रहा है। पहले यह साइज ₹5-10 लाख था। इसका लक्ष्य है कि इस उच्च कॉन्ट्रैक्ट साइज के जरिए केवल वे निवेशक शामिल हों जो बाजार के रिस्क को समझते हैं। यह नियम 20 नवंबर 2024 से लागू होगा।
  3. टेल रिस्क कवरेज में वृद्धि: ऑप्शन एक्सपायरी के दिन के रिस्क को कवर करने के लिए SEBI ने शॉर्ट ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स पर 2% का अतिरिक्त ELM (एक्सट्रीम लॉस मार्जिन) लगाने का फैसला किया है। यह कदम एक्सपायरी के दिन की सट्टा गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए उठाया गया है।
  4. कैलेंडर स्प्रेड ट्रीटमेंट को समाप्त करना: SEBI ने कैलेंडर स्प्रेड ट्रीटमेंट को एक्सपायरी के दिन हटाने का निर्णय लिया है। यह नियम 1 फरवरी 2025 से प्रभावी होगा, जिससे निवेशकों को ज्यादा स्पष्टता मिलेगी और एक्सपायरी के दिन की सट्टेबाजी कम होगी।
  5. वीकली इंडेक्स एक्सपायरी पर प्रतिबंध: वीकली इंडेक्स एक्सपायरी को हर एक्सचेंज पर एक तक सीमित किया जाएगा। इससे अत्यधिक ट्रेडिंग और बाजार की अस्थिरता पर नियंत्रण पाया जा सकेगा। यह बदलाव भी 20 नवंबर 2024 से लागू होगा।
  6. पोजीशन लिमिट्स की इंट्राडे मॉनिटरिंग: SEBI ने स्टॉक एक्सचेंजों को निर्देश दिया है कि वे इक्विटी इंडेक्स डेरिवेटिव्स की पोजिशन लिमिट्स की इंट्राडे मॉनिटरिंग करें। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी ट्रेडर अपनी पोजिशन को निर्धारित सीमा से अधिक न बढ़ाए। यह नियम 1 अप्रैल 2025 से लागू होगा।

फ्यूचर्स (Futures) और ऑप्शंस (Options)

●   ये वित्तीय डेरिवेटिव्स हैं, जो बाजार में उपलब्ध विभिन्न एसेट्स की कीमतों में होने वाले बदलावों पर आधारित होते हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से ट्रेडिंग और हेजिंग के लिए किया जाता है।

फ्यूचर्स (Futures)

●   फ्यूचर्स एक वित्तीय अनुबंध (contract) होता है जिसमें दोनों पक्ष (खरीदार और विक्रेता) किसी विशेष एसेट को भविष्य में एक निश्चित तारीख पर एक निश्चित कीमत पर खरीदने या बेचने के लिए सहमत होते हैं।

●   इसमें खरीदार को एसेट खरीदना पड़ता है और विक्रेता को एसेट बेचना पड़ता है, चाहे बाजार में कीमत कुछ भी हो।

●   फ्यूचर्स ट्रेडिंग के लिए ट्रेडर को एक निश्चित मार्जिन (एक छोटा हिस्सा) जमा करना पड़ता है, जो कि कॉन्ट्रैक्ट की कुल कीमत का एक हिस्सा होता है।

●   कंपनियां या निवेशक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट का उपयोग अपने मौजूदा निवेश या एसेट्स के खिलाफ जोखिम को कम करने के लिए करते हैं।

ऑप्शंस (Options)

●   ऑप्शंस भी एक प्रकार का डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है, लेकिन इसमें खरीदार को किसी एसेट को एक निश्चित कीमत पर भविष्य में खरीदने या बेचने का अधिकार (right) होता है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं होता।

●   ऑप्शंस दो प्रकार के होते हैं:

○   कॉल ऑप्शन (Call Option): यह खरीदार को भविष्य में किसी एसेट को एक निश्चित कीमत पर खरीदने का अधिकार देता है।

○   पुट ऑप्शन (Put Option): यह खरीदार को भविष्य में किसी एसेट को एक निश्चित कीमत पर बेचने का अधिकार देता है।

●   ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट खरीदने के लिए खरीदार को एक प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। यह प्रीमियम कॉन्ट्रैक्ट की कुल कीमत का एक छोटा हिस्सा होता है।

●   निवेशक और कंपनियां ऑप्शंस का उपयोग एसेट्स की कीमत में संभावित गिरावट या वृद्धि के खिलाफ खुद को सुरक्षित रखने के लिए करते हैं।

नए नियम लाने का मुख्य कारण

  • नए नियमों को लागू करने का मुख्य कारण रिटेल निवेशकों को अत्यधिक नुकसान से बचाना है, जो भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के हालिया अध्ययन से उजागर हुआ है।
  • अध्ययन के अनुसार, 2021-22 और 2023-24 के बीच, फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) सेगमेंट में शामिल 93% व्यक्तिगत ट्रेडर्स को भारी नुकसान उठाना पड़ा, जिसमें कुल घाटा 1.8 लाख करोड़ रुपये से अधिक था। इसके बावजूद, अधिकांश ट्रेडर्स ने इन घाटों के बाद भी F&O में व्यापार जारी रखा।
  • SEBI की चिंता इस बात पर है कि अधिकतर रिटेल निवेशक बिना पर्याप्त जानकारी और अनुभव के F&O मार्केट में प्रवेश कर रहे हैं, केवल उच्च मुनाफे की उम्मीद में। इसके चलते उन्हें बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। डेरिवेटिव मार्केट, विशेष रूप से F&O ट्रेडिंग, अत्यधिक जटिल और जोखिमपूर्ण है, जिसके लिए गहन समझ और मार्केट की जानकारी आवश्यक होती है।

नए F&O नियमों के व्यापक प्रभाव

  • निवेशकों पर प्रभाव: नए नियमों के लागू होने से व्यक्तिगत निवेशकों को F&O सेगमेंट में प्रवेश से पहले उच्च जोखिम और संभावित नुकसान का आकलन करना होगा। इससे जोखिमपूर्ण ट्रेडिंग कम होगी और केवल वे निवेशक इसमें भाग लेंगे जो इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं। इससे शुरुआती या कम अनुभव वाले निवेशकों को बड़े नुकसान से बचाया जा सकेगा। इन नियमों के कारण निवेशकों को डेरिवेटिव्स की बारीकियों को बेहतर तरीके से समझने की आवश्यकता होगी, जिससे वित्तीय शिक्षा में सुधार होगा।
  • बाजार पर प्रभाव: नए नियमों से बाजार में अस्थिरता (वोलाटिलिटी) कम होगी क्योंकि अत्यधिक जोखिम लेने वाले और शॉर्ट-टर्म सट्टेबाज कम होंगे। निवेशक दीर्घकालिक रणनीतियों के साथ ट्रेडिंग करेंगे, जो कि बाजार में स्थिरता और दीर्घकालिक निवेश को प्रोत्साहित करेगा। SEBI के नियमों के प्रभाव से बाजार में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही आएगी। इससे बाजार की अनियमितताओं और हेरफेर की संभावना कम हो जाएगी।
  • अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: निवेशकों का ध्यान शॉर्ट-टर्म मुनाफे से हटकर दीर्घकालिक निवेश पर जाएगा, जिससे वित्तीय बाजार का स्थिर और मजबूत विकास होगा। यह अर्थव्यवस्था के विकास के लिए सकारात्मक रहेगा। F&O सेगमेंट में गलत गतिविधियों को नियंत्रित करने से वित्तीय संकट और बाजार की दुर्घटनाओं का जोखिम कम होगा। इससे व्यापक आर्थिक स्थिरता को भी बल मिलेगा।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)

●   यह एक स्वायत्त नियामक संस्था है जो भारतीय वित्तीय बाजारों में निवेशकों के हितों की रक्षा करने, प्रतिभूतियों के बाजार के विकास को प्रोत्साहित करने और इसे सुचारू रूप से संचालित करने के लिए बनाई गई है।

●   इसकी स्थापना 1988 में हुई थी और इसे 1992 में वैधानिक शक्तियाँ दी गईं।

●   SEBI भारतीय प्रतिभूति बाजार को नियंत्रित करता है, जिसमें शेयर बाजार, डेरिवेटिव बाजार, म्यूचुअल फंड्स, और डिपॉजिटरी शामिल हैं।

SEBI की संरचना:

●   SEBI की संरचना निम्नलिखित प्रकार की है:

●   चेयरमैन: SEBI के शीर्ष पर एक चेयरमैन होता है, जिसे भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।

●   सदस्य: SEBI में कुल आठ सदस्य होते हैं:

○   दो वित्त मंत्रालय से

○   एक भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से

○   शेष पाँच सदस्य विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ होते हैं, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।

SEBI के मुख्य कार्य:

●   SEBI के कार्यों को तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

●   नियामक कार्य (Regulatory Functions):

○   प्रतिभूति बाजार में धोखाधड़ी और अनुचित गतिविधियों को रोकना।

○   विभिन्न बाजार मध्यस्थों (ब्रोकर, मर्चेंट बैंकर, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां, आदि) के लिए आचार संहिता और नियमों का निर्धारण करना।

●   विकासात्मक कार्य (Development Functions):

○   प्रतिभूति बाजार में नए उत्पादों और प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करना।

○   बाजार की पारदर्शिता और दक्षता में सुधार लाने के लिए तकनीकी विकास को बढ़ावा देना।

●   रक्षा और प्रवर्तन कार्य (Protective and Enforcement Functions):

○   निवेशकों को धोखाधड़ी से बचाने के लिए उचित कदम उठाना।

○   अनियमितताओं और नियमों के उल्लंघन के मामलों में कार्रवाई करना।

SEBI के प्रमुख कार्यक्षेत्र:

●   निवेशकों की सुरक्षा

●   विनियम और नियमन जैसे स्टॉक एक्सचेंज, म्यूचुअल फंड, डिपॉजिटरी, ब्रोकर, मर्चेंट बैंकर्स, आदि।

●   निवेशकों को शिक्षित करने हेतु जागरूकता अभियान

●   म्यूचुअल फंड और IPO

SEBI द्वारा अब तक उठाए गए प्रमुख कदम:

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने निवेशकों की सुरक्षा और वित्तीय बाजार की पारदर्शिता और दक्षता बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। नीचे SEBI द्वारा उठाए गए प्रमुख कदमों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

  • इनसाइडर ट्रेडिंग पर कड़ी कार्रवाई: इनसाइडर ट्रेडिंग तब होती है जब कंपनी के अंदरूनी लोग, जैसे अधिकारी या निदेशक, कंपनी की गैर-सार्वजनिक जानकारी का उपयोग कर स्टॉक खरीदते या बेचते हैं, जिससे वे अनुचित लाभ प्राप्त करते हैं। यह एक अवैध और अनैतिक गतिविधि मानी जाती है क्योंकि यह बाजार में अन्य निवेशकों के साथ धोखा करती है। SEBI ने इनसाइडर ट्रेडिंग को रोकने के लिए कई सख्त नियम और दिशा-निर्देश लागू किए हैं। SEBI (Prohibition of Insider Trading) Regulations, 2015 विनियमन इनसाइडर ट्रेडिंग के मामलों में शामिल लोगों पर सख्त प्रतिबंध लगाता है।
  • IPO के नियमों में सुधार: IPO (Initial Public Offering) वह प्रक्रिया है जिसके तहत कोई कंपनी अपने शेयरों को पहली बार पब्लिक को बेचती है। SEBI ने IPO प्रक्रिया को पारदर्शी और सुरक्षित बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किए हैं, ताकि निवेशक बेहतर ढंग से अपने निवेश के फैसले ले सकें। SEBI (Issue of Capital and Disclosure Requirements) Regulations, 2018: SEBI ने इस विनियमन के तहत IPO के नियमों को और अधिक पारदर्शी और सख्त बनाया है। इसके अनुसार, कंपनियों को IPO से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी स्पष्ट रूप से प्रकाशित करनी होगी, ताकि निवेशकों को उचित जानकारी मिल सके।
  • डेरिवेटिव्स बाजार पर नियंत्रण: डेरिवेटिव्स वित्तीय साधन होते हैं जिनका मूल्य किसी अन्य एसेट (जैसे स्टॉक, कमोडिटी, बांड आदि) के मूल्य पर निर्भर करता है। ये साधन अत्यधिक जटिल होते हैं और इनमें उच्च जोखिम होता है। SEBI ने डेरिवेटिव्स बाजार में निवेशकों की सुरक्षा और बाजार की स्थिरता बनाए रखने के लिए कड़े नियम लागू किए हैं।

UPSC पिछले वर्ष के प्रश्न PYQ

प्रश्न: भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

1. इसका उद्देश्य प्रतिभूति बाजार को विनियमित करना और निवेशकों के हितों की रक्षा करना है।

2. सेबी भारतीय रिजर्व बैंक के प्रति जवाबदेह है।

3. प्रतिभूति बाजार को विनियमित करने में इसके पास न्यायिक शक्ति है।

4. इसकी स्थापना रंगराजन समिति की सिफारिशों पर की गई थी।

ऊपर दिए गए कथनों में से कितने सही हैं?

[A] केवल एक

[B] केवल दो

[C] केवल तीन

[D] सभी चार

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