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सुप्रीम कोर्ट ने लैंडमार्क 4:1 फैसले में नागरिकता अधिनियम की Section 6A को बरकरार रखा

चर्चा में क्यों ?

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act) 1955 की Section 6A की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी, जो असम समझौते (Assam Accord) को मान्यता देती है।

  • चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की 5-जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया।
  • जस्टिस पारदीवाला (Justice Pardiwala) ने Section 6A को असंवैधानिक (unconstitutional) ठहराने के लिए असहमतिपूर्ण फैसला दिया, और 4:1 से फैसला सुनाया गया

 सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु (Main points of the Supreme Court’s decision):

  • अवैध प्रवासियों का निर्धारण (Determination of illegal migrants): 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए प्रवासियों को Section 6A के तहत सुरक्षा का हक नहीं मिलेगा और उन्हें अवैध प्रवासी घोषित किया जाएगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 का उल्लंघन नहीं (No violation of Articles 6 and 7 of the Constitution): मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि Section 6A संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 का उल्लंघन नहीं करती, जो 26 जनवरी 1950 से पहले आए प्रवासियों को नागरिकता का अधिकार देती है।
  • Section 6A का उद्देश्य (Objective of Section 6A): Section 6A का उद्देश्य भारतीय मूल के प्रवासियों की मानवीय आवश्यकताओं और राज्यों की आर्थिक और सांस्कृतिक जरूरतों के बीच संतुलन स्थापित करना है।
  • असम में प्रवासन का प्रभाव (Impact of migration in Assam): असम में प्रवासन का प्रभाव अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है, इसलिए 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ तिथि तर्कसंगत है। इस तिथि के बाद आए प्रवासियों को अवैध माना जाएगा।
  • नागरिकता के नियमों का स्पष्टीकरण (Clarification of citizenship rules): बिना दस्तावेज वाले प्रवासियों को 2003 में नागरिकता अधिनियम (संशोधन) अधिनियम के तहत अवैध घोषित करने से पहले धारा 5(1)(a) के तहत नागरिकता प्राप्त हो सकती थी।
  • संविधान का उल्लंघन नहीं (No violation of Constitution): न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने कहा कि Section 6A संविधान के अनुच्छेद 6, 7, 9, 14, 21, 29, 326, या 355 का उल्लंघन नहीं करती और यह संवैधानिक रूप से वैध है।
  • अंतरराष्ट्रीय कानून के साथ संघर्ष नहीं (No conflict with international law): Section 6A और असम से प्रवासियों को निष्कासन के लिए बने कानून (1950) या अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सिद्धांतों के बीच कोई टकराव नहीं है।

याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए मुख्य तर्क (Main arguments raised by the petitioners):

  • Section 6A संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करती है, जैसा कि प्रस्तावना के तहत प्रदान किया गया, अर्थात्, बंधुत्व (fraternity), नागरिकता (citizenship), भारत की एकता और अखंडता (Unity and integrity of India)।
  • धारा 6ए अनुच्छेद 14, 21 और 29 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
  • धारा 6ए अनुच्छेद 325 और 326 के तहत प्रदत्त नागरिकों के राजनीतिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
  • यह प्रावधान विधायी क्षमता के दायरे से बाहर है। यह संविधान के तहत प्रदत्त “कट ऑफ लाइन” (cut off line) के विपरीत है।
  • यह प्रावधान लोकतंत्र (democracy), संघवाद (federalism) और कानून के शासन (rule of law) के व्यापक सिद्धांतों को कमजोर करता है, जो भारतीय संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।

असम समझौता Assam Accord (1985):

  • समझौता का उद्देश्य (Objective of the Accord): 15 अगस्त 1985 को भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच असम समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसका उद्देश्य असम में अवैध प्रवास की समस्या का समाधान करना था।
  • नागरिकता के नियम (Citizenship rules): 1951 से 1961 के बीच असम में आए प्रवासियों को पूर्ण नागरिकता और वोट देने का अधिकार दिया गया।
  • 1971 के बाद आए प्रवासियों को देश से निकाला जाएगा।
  • 1961 से 1971 के बीच आए प्रवासियों को 10 साल तक मतदान का अधिकार नहीं मिलेगा, लेकिन अन्य नागरिक अधिकार दिए जाएंगे।
  • आर्थिक विकास (Economic development): असम के लिए आर्थिक विकास का एक पैकेज भी तैयार किया गया, जिसमें एक दूसरी तेल रिफाइनरी, एक कागज मिल, और एक प्रौद्योगिकी संस्थान शामिल थे।
  • सांस्कृतिक और भाषाई सुरक्षा (Cultural and linguistic protection): केंद्र सरकार ने असम के लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई पहचान की रक्षा के लिए कानूनी और प्रशासनिक सुरक्षा प्रदान करने का वादा किया।
  • अधूरा कार्यान्वयन (Incomplete Implementation): समझौते के कई महत्वपूर्ण प्रावधान अब तक लागू नहीं हुए हैं, जिससे असम में कई मुद्दे अभी भी unresolved बने हुए हैं।

नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act), 1955 – Section 6A

Section 6A की पृष्ठभूमि (Background of Section 6A): यह धारा 1985 में असम समझौते के बाद लागू की गई थी। असम समझौता भारत सरकार, असम सरकार, और असम आंदोलन के नेताओं के बीच अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की समस्या के समाधान के लिए किया गया था।

मुख्य बिंदु (Key Points):

  • असम के लिए विशेष प्रावधान (Special Provisions for Assam): Section 6A केवल असम राज्य के लिए लागू की गई, जो 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम (Bangladesh Liberation War) के बाद बड़े पैमाने पर प्रवास की समस्या से निपटने के लिए थी।
  • 25 मार्च 1971 की सीमा (Expiry of 25 March 1971): इस धारा के तहत, 25 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले विदेशियों को अवैध माना गया और उन्हें देश से निकाला जाएगा।
  • अवैध प्रवासियों की पहचान (Identification of illegal migrants): इस धारा का उद्देश्य अवैध प्रवासियों की पहचान और देश से निष्कासन सुनिश्चित करना था, जो बांग्लादेश से असम में आ गए थे।
  • असम की विशिष्ट समस्या (Specific problem of Assam): Section 6A को असम के विशेष ऐतिहासिक और जनसांख्यिकीय समस्याओं को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया था, जो अन्य राज्यों से अलग थी।

Section 6A के प्रावधान और इसके प्रभाव (Provisions of Section 6A and its effects):

  • विशेष प्रावधान (1 जनवरी 1966 से पहले के लोग): Section 6A ने असम के लिए एक विशेष प्रावधान बनाया, जिसके तहत वे भारतीय मूल के व्यक्ति, जो 1 जनवरी 1966 से पहले बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) से असम में आए, उन्हें उस तारीख से भारत का नागरिक माना गया।
  • 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच के लोग: जो भारतीय मूल के व्यक्ति 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच असम में आए, उन्हें विदेशियों (foreigners) के रूप में चिन्हित किया गया और उन्हें खुद को पंजीकृत करने की आवश्यकता थी। ऐसे व्यक्तियों को 10 साल तक रहने के बाद कुछ शर्तों के तहत नागरिकता दी जाती थी।
  • 25 मार्च 1971 के बाद के लोग: जो लोग 25 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश किए, उन्हें अवैध प्रवासी (illegal migrants) माना गया और उन्हें कानून के अनुसार पहचान कर देश से निर्वासित किया जाना था।

असम समझौता और Section 6A पर मुकदमे की समयरेखा (Timeline of the Assam Accord and the litigation on Section 6A):

  • Section 6A के खिलाफ याचिका (Petition against Section 6A)- 2012: 2012 में असम संमिलिता महासंघ और अन्य संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में Section 6A को “असंवैधानिक” बताते हुए चुनौती दी। उनका कहना था कि यह असम के लिए एक अलग कट-ऑफ तिथि (25 मार्च, 1971) निर्धारित करता है, जबकि भारत के बाकी हिस्सों के लिए यह तिथि जुलाई 1948 है।
  • दो-न्यायाधीशों की पीठ का आदेश (Two-judge bench order)- 2014: 17 दिसंबर 2014 को न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और रोहिंटन फली नरीमन की पीठ ने 13 प्रमुख सवाल उठाए, जिन पर संविधान पीठ को विचार करना था। इन सवालों में असम के नागरिकों के राजनीतिक अधिकार, सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा, और अवैध प्रवासियों की पहचान शामिल थी।
  • संविधान पीठ को रेफरल (Referral to Constitution Bench) 2015: 2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने इन सवालों पर विस्तृत सुनवाई के लिए मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया।
  • Section 6A पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court verdict on Section 6A)– 2023: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने Section 6A को संवैधानिक माना। इसने कहा कि असम में अवैध प्रवासियों के लिए 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ तिथि तर्कसंगत थी, क्योंकि यह बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के अंत से जुड़ी थी। साथ ही, असम में प्रवास के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए इसे सही ठहराया गया। Section 6A ने मानवीय जरूरतों और स्थानीय आबादी की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाया।

चुनौतियां (Challenges):

संवैधानिक वैधता (Constitutional validity):

  • अनुच्छेद 6 (Article 6): याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि Section 6A संविधान के अनुच्छेद 6 का उल्लंघन करती है, जो पाकिस्तान से विभाजन के दौरान भारत आने वाले लोगों की नागरिकता से संबंधित है। यह अनुच्छेद कहता है कि जो लोग 19 जुलाई 1949 से पहले भारत आए, वे भारतीय नागरिक बन सकते हैं यदि उनके माता-पिता या दादा-दादी का जन्म भारत में हुआ था। इसलिए, Section 6A की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठता है।
  • अनुच्छेद 14 (Article 14): Section 6A को अनुच्छेद 14 (जो समानता का अधिकार प्रदान करता है) का उल्लंघन माना जाता है। आलोचक कहते हैं कि यह असम को विशिष्ट नागरिकता मानदंडों के लिए अलग कर भेदभाव करता है, जो समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों के विपरीत है।

जनसांख्यिकीय प्रभाव (Demographic impact):

Section 6A की नागरिकता प्रावधानों की आलोचना की जाती है कि इसने बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों की संख्या बढ़ाई। इसके परिणामस्वरूप असम के जनसांख्यिकीय ढांचे पर असर पड़ा है, और याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस प्रावधान से नागरिकता की मान्यता ने अवैध प्रवास को प्रोत्साहित किया है, जिससे राज्य की जनसंख्या में असंतुलन उत्पन्न हुआ है।

सांस्कृतिक प्रभाव (Cultural Impact):

याचिकाकर्ताओं का यह भी तर्क है कि 1966 और 1971 के बीच सीमा पार के प्रवासियों को दी गई नागरिकता से असम की सांस्कृतिक पहचान पर नकारात्मक प्रभाव (negative impact) पड़ा है। इस प्रवासन से असम की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना में बड़े बदलाव आए, जो असम की सांस्कृतिक विरासत (Assam’s cultural heritage) को नुकसान पहुंचाते हैं।

नागरिकता (Citizenship):

नागरिकता एक कानूनी स्थिति है जो व्यक्ति और राज्य के बीच के रिश्ते को दर्शाती है, जिसके अंतर्गत विशेष अधिकार और जिम्मेदारियां होती हैं।

संविधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions):

अनुच्छेद 5 से 11 भारतीय संविधान के भाग II में नागरिकता के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हैं, जैसे:

  • अधिग्रहण (Acquisition): नागरिकता का अधिग्रहण जन्म, वंश, प्राकृतिककरण, और पंजीकरण के माध्यम से किया जा सकता है।
  • त्याग और समाप्ति (Renunciation and Termination): नागरिकता को स्वेच्छा से त्यागा या समाप्त किया जा सकता है, जैसे विदेशी राष्ट्रीयता प्राप्त करने पर।

कानूनी ढांचा (Legal Framework):

  • संघ सूची (Union List): नागरिकता विशेष रूप से भारतीय संसद के अधिकार क्षेत्र में आती है, जिससे संसद को नागरिकता के मामलों को विनियमित करने का अधिकार है।

नागरिकता अधिनियम, 1955 (Citizenship Act, 1955): इस अधिनियम का उद्देश्य नागरिकता के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करना है, जिसमें बताया गया है कि व्यक्ति इसे कैसे प्राप्त या खो सकते हैं।

नागरिकता अधिनियम में संशोधन (Amendments to the Citizenship Act):

यह अधिनियम छह बार संशोधित किया गया है:

  • 1986: जन्म से नागरिकता केवल उन लोगों को दी गई जिनके पास कम से कम एक भारतीय माता-पिता हो।
  • 1992: विदेश में जन्मे भारतीय नागरिकों के लिए वंश से नागरिकता।
  • 2003: ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया स्थिति का परिचय और अवैध प्रवासन नियमों को स्पष्ट किया गया।
  • 2005 और 2015: तकनीकी स्पष्टता प्रदान की गई।
  • 2019 (CAA): अफगानिस्तान, बांग्लादेश, और पाकिस्तान से भारत में 31 दिसंबर 2014 से पहले प्रवेश करने वाले कुछ पीड़ित अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, और ईसाई) को नागरिकता दी गई।

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