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नासा की अंतरिक्ष यात्री: सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) 2025 में वापस आएंगी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा ने घोषणा की है कि अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) और बुच विलमोर (Butch Wilmore), जो दो महीने से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर हैं, का मिशन फरवरी 2025 तक बढ़ाया जा सकता है।

5 जून, 2024 को बोइंग के स्टारलाइनर पर लॉन्च होने के एक हफ्ते के भीतर लौटने की योजना थी, लेकिन अब दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहना पड़ सकता है।

पृष्ठभूमि –

  • 5 जून, 2024: सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) और बुच विल्मोर (Butch Wilmore) फ्लोरिडा के केप कैनावेरल से बोइंग के स्टारलाइनर कैप्सूल (Starliner Capsule) में सवार होकर अंतरिक्ष की ओर रवाना हुए। यह मिशन नासा के वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम (NASA’s Commercial Crew Program) का हिस्सा था।
  • ये अमेरिकी एयरक्राफ्ट कंपनी बोइंग और नासा का संयुक्त ‘क्रू फ्लाइट टेस्ट मिशन’ है।
  • इसमें Sunita Williams, स्पेसक्राफ्ट की पायलट थीं। उनके साथ गए बुश विलमोर इस मिशन के कमांडर थे।
  • दोनों को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में 8 दिन रुकने के बाद वापस पृथ्वी पर आना था, लेकिन स्पेसक्राफ्ट में तकनीकी दिक्कतों और हीलियम गैस के रिसाव के चलते Sunita Williams वहीं फंसी हैं।

स्टारलाइनर मिशन (Starliner Mission)क्या है?

उद्देश्य (Objective): स्टारलाइनर क्रू फ्लाइट टेस्ट मिशन (Starliner Crew Flight Test Mission) का उद्देश्य नासा के अंतरिक्ष यात्रियों सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक पहुँचाना और यह साबित करना था कि यह यान सुरक्षित रूप से अंतरिक्ष यात्रियों को लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) तक ले जा सकता है और वापस ला सकता है।

लो-अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit या LEO) वह कक्षा है जिसमें एक उपग्रह या अंतरिक्ष यान पृथ्वी की सतह से अपेक्षाकृत कम ऊंचाई पर घूमता है। यह आमतौर पर पृथ्वी से 160 किलोमीटर (100 मील) से लेकर 2,000 किलोमीटर (1,200 मील) की ऊंचाई तक होती है।

यान का विवरण (Vehicle Details): CST-100 स्टारलाइनर, जिसे बोइंग ने नासा के वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम के साथ मिलकर विकसित किया है, सात यात्रियों या यात्रियों और कार्गो के मिश्रण को LEO मिशनों के लिए ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह यान 10 बार तक पुन: उपयोग किया जा सकता है और इसे फिर से तैयार करने में छह महीने का समय लगता है।

●      महत्व (Importance): 2011 में स्पेस शटल कार्यक्रम के सेवानिवृत्त होने के बाद से नासा के प्रयासों में बोइंग का यह योगदान महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही स्पेसएक्स के ड्रैगन यान ने 2012 में पहली बार कार्गो पहुँचाया और 2020 में अंतरिक्ष यात्रियों को ले गया।

नासा का वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम (NASA’s Commercial Crew Program) –

NASA’s Commercial Crew Program एक महत्वाकांक्षी पहल है जिसका उद्देश्य निजी कंपनियों के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक मानव मिशन भेजना है। इस कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य अंतरिक्ष यात्रा को अधिक सुलभ, किफायती और नियमित बनाना है।

कार्यक्रम के उद्देश्य (Program Objectives):

  1. आईएसएस तक पहुंच बढ़ाना (Increasing access to the ISS): नासा, निजी कंपनियों के साथ साझेदारी करके अंतरिक्ष यात्रियों को नियमित रूप से अंतरिक्ष स्टेशन तक पहुंचाने की योजना बना रहा है।
  2. अंतरिक्ष यात्रा की लागत कम करना (Reducing the cost of space travel): सरकारी एजेंसियों के बजाय निजी कंपनियों द्वारा अंतरिक्ष यान विकसित और संचालित किए जाने से यात्रा की लागत में कमी आ सकती है।
  3. अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा (Boosting the space industry): यह कार्यक्रम निजी निवेश को प्रोत्साहित करके अंतरिक्ष उद्योग में नवाचार और विकास को बढ़ावा देता है।

कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएं (Highlights of the programme):

  1. निजी कंपनियों की भागीदारी (Participation of private companies): स्पेसएक्स और बोइंग जैसी बड़ी निजी कंपनियां इस कार्यक्रम का हिस्सा हैं।
  2. कैप्सूल का विकास (Development of capsules): इन कंपनियों ने अंतरिक्ष यात्रियों को आईएसएस तक ले जाने के लिए विशेष कैप्सूल विकसित किए हैं।
  3. फाल्कन 9 और स्टारलाइनर (Falcon 9 and Starliner): स्पेसएक्स ने फाल्कन 9 रॉकेट और ड्रैगन कैप्सूल विकसित किया है, जबकि बोइंग ने स्टारलाइनर कैप्सूल का निर्माण किया है।
  4. ISS पर डॉकिंग (Docking at the ISS): ये कैप्सूल आईएसएस पर डॉक करते हैं और अंतरिक्ष यात्रियों को वहां सुरक्षित पहुंचाते हैं।

कार्यक्रम के लाभ (Benefits of the program):

  1. अंतरिक्ष अनुसंधान में तेजी (Space research on the rise): नियमित अंतरिक्ष यात्राओं से आईएसएस पर अनुसंधान की गति बढ़ सकती है।
  2. नई तकनीकों का विकास (Development of new technologies): इस कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष यात्रा के लिए उन्नत तकनीकों का विकास हो रहा है।
  3. अंतरिक्ष पर्यटन का अवसर (Space tourism opportunity): भविष्य में इस कार्यक्रम के माध्यम से अंतरिक्ष पर्यटन को भी संभव बनाया जा सकता है।

सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) के बारे में –

सुनीता विलियम्स एक भारतीय-अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री हैं, जिनका जन्म यूक्लिड, ओहियो में हुआ था। उनके पिता दीपक पंड्या भारतीय मूल के न्यूरोएनाटोमिस्ट (Neuroanatomist) हैं और उनकी मां उर्सुलाइन बोनी स्लोवेनियाई-अमेरिकी हैं।

कैरियर (Career): सुनीता विलियम्स ने 1987 में अमेरिकी नौसेना अकादमी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और उन्हें अमेरिकी नौसेना में एक अधिकारी (एनसाइन) के रूप में नियुक्त किया गया।

अंतरिक्ष मिशन (Space Mission): सुनीता विलियम्स को 1998 में नासा ने अंतरिक्ष यात्री के रूप में चुना। उन्होंने दो महत्वपूर्ण अंतरिक्ष मिशनों में भाग लिया:

1.  मिशन 14/15

2.  मिशन 32/33

● मिशन 14/15 (Mission 14/15): सुनीता विलियम्स का पहला अंतरिक्ष मिशन 9 दिसंबर 2006 को शुरू हुआ जब वह एसटीएस-116 मिशन के साथ अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर गईं।

● इस मिशन के दौरान उन्होंने कुल 29 घंटे और 17 मिनट की चार अंतरिक्ष चहलकदमी (spacewalk) की, जो उस समय किसी भी महिला अंतरिक्ष यात्री द्वारा सबसे ज्यादा थी।

●       हालांकि, यह रिकॉर्ड बाद में पैगी व्हिटसन ने तोड़ दिया।

● मिशन 32/33 (Mission 32/33): सुनीता विलियम्स ने जुलाई 2012 में अपने दूसरे अंतरिक्ष मिशन में हिस्सा लिया।

● उन्होंने ISS में फ्लाइट इंजीनियर और बाद में कमांडर के रूप में काम किया।

● इस मिशन के दौरान, उन्होंने 127 दिन अंतरिक्ष में बिताए और तीन अंतरिक्ष चहलकदमी (spacewalk) कीं, जिनमें कुल 50 घंटे और 40 मिनट का समय लिया।

● यह समय किसी भी महिला अंतरिक्ष यात्री द्वारा सबसे ज्यादा था, जिसे बाद में पैगी व्हिटसन ने तोड़ा।

● सुनीता विलियम्स ने अपने अंतरिक्ष मिशनों के दौरान 322 दिन अंतरिक्ष में बिताए हैं।

अंतरिक्ष यान में क्या दिक्कतें आईं?

  • 5 जून को जब स्पेसक्राफ्ट लॉन्च करने की कोशिश की गई तो इसके कंप्यूटर में कुछ खराबी आ गई थी। पहली कोशिश बेकार गई। दूसरी बार में इसे लॉन्च किया गया।
  • इसके पहले 6 मई को भी लॉन्च की कोशिश हुई, लेकिन लॉन्च से ठीक दो घंटे पहले रॉकेट की ऊपरी स्टेज में एक प्रेशर वॉल्व में दिक्कत होने के चलते लॉन्च की उल्टी गिनती रोक दी गई थी।
  • 5 जून को लॉन्च के पहले ही स्पेसक्राफ्ट में ऑक्सीडाइजर (Oxidizers) का फ्लो कंट्रोल करने वाले एक वॉल्व में गड़बड़ी आ गई थी।
  • ऑक्सीडाइजर मतलब ऐसे केमिकल जो रॉकेट के फ्यूल को जलाने के लिए जरूरी होते हैं। ऑक्सीडाइजर की मदद से जब रॉकेट का फ्यूल जलता है तभी रॉकेट अपना रास्ता बदल पाते हैं। लॉन्च के पहले ही वॉल्व से भिनभिनाहट जैसी आवाज आ रही थी।
  • नासा ने ये भी कहा था कि स्पेसक्राफ्ट के सर्विस मॉड्यूल के थ्रस्टर (Thruster) में एक छोटा सा हीलियम (Helium) लीक है। एक स्पेसक्राफ्ट में कई थ्रस्टर होते हैं। इनकी मदद से स्पेसक्राफ्ट अपना रास्ता और स्पीड बदलता है।
  • वहीं हीलियम गैस होने की वजह से रॉकेट पर दबाव बनता है। उसका ढांचा मजबूत बना रहता है, जिससे रॉकेट को अपनी फ्लाइट में मदद मिलती है।
  • लॉन्च के बाद 25 दिनों में स्पेसक्राफ्ट के कैप्सूल में 5 हीलियम लीक हुए। 5 थ्रस्टर्स काम करना बंद कर चुके थे। इसके अलावा एक प्रॉपेलेंट वॉल्व (propellant valve) पूरी तरह बंद नहीं किया जा सका।
  • स्पेस में मौजूद क्रू और अमेरिका के ह्यूस्टन में बैठे मिशन के मैनेजर मिलकर भी इसे ठीक नहीं कर पा रहे हैं।

नासा ने सुनीता और विलमोर को वापस लाने के लिए अब तक क्या किया?

  • नासा और बोइंग ने सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर को सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने के लिए 1 लाख से अधिक कंप्यूटर मॉडल सिमुलेशन (Computer model simulation) किए हैं।
  • सिमुलेशन का मतलब किसी प्रक्रिया की नकल करना होता है। इन सिमुलेशनों में यह निर्धारित करने की कोशिश की गई है कि स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष स्टेशन से अनडॉक (एक अंतरिक्ष यान या स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष स्टेशन से अलग करना और पृथ्वी की ओर वापस लाना) करने, पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने, और सुरक्षित रूप से जमीन पर लैंड करने का सबसे उपयुक्त तरीका और समय क्या हो सकता है।
  • इसके अलावा, कई अन्य तरह के परीक्षण भी किए गए हैं। जैसे, सभी 27 थ्रस्टर्स का परीक्षण किया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अंतरिक्ष स्टेशन से अनडॉक करते समय, फ्री फ्लाई (पृथ्वी की ओर लौटते समय), और लैंडिंग के दौरान सही ढंग से काम करें। इसके साथ ही, स्पेसक्राफ्ट के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की भी पूरी जांच की गई है।
  • बोइंग ने परीक्षणों के बाद बताया कि 28 में से 27 रिएक्शन कंट्रोल सिस्टम (RCS) थ्रस्टर्स पूरी तरह से ठीक हैं और वे अब वापस काम करने के लिए तैयार हैं। प्रोपल्शन सिस्टम और हीलियम गैस का स्तर भी सही पाया गया है।
  • नासा का कहना है कि वह कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता और उसका मुख्य ध्यान अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी पर है।

अंतरिक्ष स्टेशन पर रहने के हानिकारक प्रभाव –

  • अंतरिक्ष स्टेशन बहुत ही महंगा और आधुनिक है, लेकिन वहां रहना बहुत मुश्किल है। यह पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर ऊपर है, इसलिए पृथ्वी के वातावरण और चुंबकीय क्षेत्र की सुरक्षा उस तक नहीं पहुंच पाती। इससे अंतरिक्ष यात्रियों को बहुत ज्यादा सूर्य की किरणें लगती हैं। कुछ जगहों पर तो ये किरणें पृथ्वी की तुलना में 30 गुना ज्यादा होती हैं, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत को बहुत खतरा होता है।
  • विकिरण का खतरा (Radiation hazard): अंतरिक्ष में विकिरण का स्तर पृथ्वी की तुलना में बहुत अधिक होता है। यह विकिरण कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।
    • एक हफ्ते में अंतरिक्ष यात्रियों को उतनी ही किरणें लगती हैं, जितनी उन्हें पृथ्वी पर एक साल में लगती हैं।
    • इन किरणों से कैंसर, त्वचा की बीमारियां, और नर्वस सिस्टम खराब हो सकता है। साथ ही, इनकी इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है, जिससे उन्हें इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है।
    • इसलिए, लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने से अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत को बहुत नुकसान पहुंच सकता है।
  • शून्य गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव (Effect of zero gravity): शून्य गुरुत्वाकर्षण के कारण हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और मांसपेशियाँ सिकुड़ जाती हैं। इससे अंतरिक्ष यात्रियों को वापस पृथ्वी आने पर चलने-फिरने में भी मुश्किल होती है।
  • दृष्टि में बदलाव (changes in vision): कई अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में रहने के दौरान दृष्टि में बदलाव का अनुभव होता है। इसका कारण अभी तक पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह शून्य गुरुत्वाकर्षण के कारण मस्तिष्क पर पड़ने वाले दबाव के कारण होता है।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Psychological effects): लंबे समय तक एक सीमित जगह में रहने और पृथ्वी से दूर रहने के कारण अंतरिक्ष यात्रियों को अकेलापन, चिंता और अवसाद जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • रेडिएशन सिकनेस (Radiation Sickness): उच्च स्तर के विकिरण के संपर्क में आने से अंतरिक्ष यात्रियों को रेडिएशन सिकनेस हो सकती है। इसके लक्षणों में मतली, उल्टी, थकान और सिरदर्द शामिल हैं।

क्या पहले भी एस्ट्रोनॉट्स का अंतरिक्ष में समय बढ़ा है?

  • हाँ, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। नासा के एस्ट्रोनॉट फ्रैंक रुबियो और उनके दो रूसी साथियों को भी अंतरिक्ष में एक साल से ज्यादा समय बिताना पड़ा था। उनके सोयुज स्पेसक्राफ्ट से डेब्री (अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स का मलबा) टकरा गया था, जिससे स्पेसक्राफ्ट का कूलेंट लीक हो गया। इस समस्या के समाधान के लिए पिछले साल सितंबर में उन्हें वापस लाने के लिए दूसरा रूसी स्पेसक्राफ्ट भेजा गया था।
  • सुनीता के अलावा, वर्तमान में अंतरिक्ष स्टेशन पर चार अन्य अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स और तीन रूसी एस्ट्रोनॉट्स मौजूद हैं। हाल ही में, उनके लिए एक स्पेसक्राफ्ट खाना और कपड़े लेकर गया था। अगले कुछ महीनों में और भी सप्लाई भेजी जाएगी।
  • जब सुनीता और विलमोर अंतरिक्ष में गए थे, तो उन्होंने इंस्ट्रूमेंट्स के लिए जगह बनाने के लिए अपने साथ कपड़ों का सूटकेस नहीं ले जाया था। उन्होंने वहां पहले से मौजूद एस्ट्रोनॉट्स के कपड़े इस्तेमाल किए थे। अब तक, सुनीता ने सिर्फ एक बार मीडिया से बात की है, जिसमें उन्होंने बताया कि वह स्पेसक्राफ्ट की मरम्मत और रिसर्च में व्यस्त हैं। बढ़ाए गए समय को लेकर उनका कोई सार्वजनिक बयान नहीं आया है।

आगे की राह-

  • नासा ने पहले सोचा था कि वो अंतरिक्ष यात्रियों को बोइंग कंपनी के एक यान से वापस लाएंगे, लेकिन अब लग रहा है कि उन्हें स्पेसएक्स कंपनी के यान से वापस लाना पड़ सकता है। बोइंग के यान में कुछ दिक्कतें आ रही हैं, इसलिए नासा अब दूसरा रास्ता सोच रहा है।
  • अगर ऐसा हुआ तो अंतरिक्ष यात्रियों को बहुत लंबे समय तक, लगभग आठ महीने तक अंतरिक्ष में रहना पड़ेगा। इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है।
  • नासा के लोग भी इस बात से परेशान हैं कि अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित वापस कैसे लाया जाए। अंतरिक्ष स्टेशन पर भी सामान कम पड़ने लगा है क्योंकि अंतरिक्ष यात्री वहां बहुत दिनों से हैं।
  • अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है कि अंतरिक्ष यात्रियों को किस यान से वापस लाया जाएगा, लेकिन नासा स्पेसएक्स कंपनी से बात कर रहा है, हो सकता है कि उनके यान से ही अंतरिक्ष यात्री वापस आ जाएं।

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) –

 ISS

Image Source : Dima Zel/Shutterstock

● अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) एक मानव निवास योग्य कृत्रिम उपग्रह है, जो पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थित है और मानव द्वारा निर्मित सबसे बड़ी संरचना मानी जाती है।

● इसका पहला मॉड्यूल 1998 में ‘लो-अर्थ ऑर्बिट (Low-Earth orbit)’ में स्थापित किया गया था।

● यह स्टेशन पृथ्वी की परिक्रमा लगभग 92 मिनट में करता है और प्रतिदिन 15.5 बार पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है।

● ISS परियोजना पांच अंतरिक्ष एजेंसियों के सहयोग से संचालित होती है: नासा (संयुक्त राज्य अमेरिका), रॉसकॉसमॉस (रूस), जाक्सा (जापान), ESA (यूरोप), और CSA (कनाडा)। इसके स्वामित्व और संचालन को अंतर-सरकारी संधियों और समझौतों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

● यह स्टेशन एक माइक्रोग्रैविटी और अंतरिक्ष पर्यावरण अनुसंधान प्रयोगशाला के रूप में काम करता है, जिसमें चालक दल के सदस्य जीवविज्ञान, मानव जीवविज्ञान, भौतिकी, खगोल विज्ञान, मौसम विज्ञान और अन्य विषयों से संबंधित वैज्ञानिक प्रयोग करते हैं।

● ISS की वजह से ही ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ में निरंतर मानव उपस्थिति संभव हो पाई है। इसे 2030 तक चालू रखने की योजना है।

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