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बोरींडो को UNESCO प्राचीन धरोहर संरक्षण की वैश्विक मान्यता प्राप्त (Borindo receives UNESCO global recognition for ancient heritage conservation) Apni Pathshala

Borindo receives UNESCO global recognition for ancient heritage conservation

Borindo receives UNESCO global recognition for ancient heritage conservation

संदर्भ:

नई दिल्ली में आयोजित 20वीं अंतर-सरकारी समिति में बोरींडो को UNESCO की ‘Intangible Cultural Heritage in Need of Urgent Safeguarding’ सूची में आधिकारिक रूप से शामिल किया गया। यह एक वाद्य है, जो अत्यंत तेजी से विलुप्ति की ओर बढ़ रही है और इसके संरक्षण हेतु तत्काल प्रयास आवश्यक हैं।

बोरींडो क्या हैं?

    • परिचय: बोरींडो (Borindo) सिंध क्षेत्र का एक पारंपरिक गोलाकार मिट्टी का वाद्य यंत्र है, जिसे बांसुरी के रूप में बजाया जाता है। यह लोक संगीत का एक अभिन्न अंग है। इसे भोरिंदो भी कहा जाता है।
  • सिन्धु सभ्यता से संबंध: बोरींडो लगभग 5000 वर्ष पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता, विशेषकर मोहनजो-दड़ो से जुड़ी हुई हैं। स्थानीय विद्वान इसे उन प्राचीन ध्वनि-उपकरणों का जीवित रूप मानते हैं जो कांस्य युग (3000–2500 ईसा पूर्व) के सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा रहे होंगे।

इसकी विशेषताएँ:

  • निर्माण सामग्री: बोरींडो एक एरोफोन है, जो पूर्णतः हाथ से गूंथी गई मिट्टी से बनता है। इसे धूप में सुखाकर तथा भट्ठी में पकाकर तैयार किया जाता है, जिससे यह पर्यावरण-अनुकूल पारंपरिक शिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण बनता है।

  • आकार और ध्वनि: इसका आकार गोल अथवा अंडाकार होता है। इसमें एक मुख-छिद्र और प्रायः तीन से पाँच स्वर-छिद्र होते हैं जिनसे सरल धुनें निकाली जाती हैं। इसका स्वर मोहक, कोमल और मधुर होता है।

  • हस्तशिल्प परंपरा: वाद्य को पारंपरिक रूप से समुदाय की महिलाएँ प्राकृतिक रंगों से सजाती हैं। यह वाद्य शिल्प कौशल का भी महत्वपूर्ण उदाहरण है।

  • वादन शैली: वादक हवा को मुख-छिद्र में प्रवाहित करता है। स्वर-नियंत्रण अंगुलियों से कम और वाद्य को झुकाने की तकनीक से अधिक होता है, जो इसे आधुनिक बांसुरी से भिन्न बनाता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:

  • यह वाद्य थार क्षेत्र के पशुपालक समुदायों में विशेष लोकप्रिय था। इसे चराई, यात्राओं और स्थानीय सर्दियों की अलाव बैठकों (माच कचहरी) में बजाया जाता था।
  • बोरींडो बनाना और बजाना विशिष्ट परिवारों में मौखिक परंपरा से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा है। 
  • आज इस परंपरा के केवल एक प्रमुख वादक (फ़कीर ज़ुल्फिकार – पाकिस्तान के ‘प्राइड ऑफ़ परफॉर्मेंस’ सम्मान से सम्मानित) और एक पारंपरिक शिल्पी शेष माने जाते हैं। यह स्थिति UNESCO सूची में इसके शामिल होने के औचित्य को स्पष्ट करती है।

UNESCO सूची में शामिल किए जाने का महत्व:

  • वैश्विक मान्यता: UNESCO की सूची में शामिल होने से बोरींडो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, जिससे अंतरराष्ट्रीय सहयोग, संरक्षण फंडिंग और शोध को बढ़ावा मिलेगा।

  • संरक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत: सूची में शामिल होने का अर्थ है कि सरकारें और सांस्कृतिक संस्थाएँ अब इसके दस्तावेजीकरण, प्रशिक्षण, शिल्प संरक्षण और जन-जागरूकता कार्यक्रम चला सकती हैं।

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