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भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) – Apni Pathshala

Chief Justice of India

 

संदर्भ:

न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के समक्ष भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के रूप में शपथ ली।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI): अधिकार, नियुक्ति और भूमिका

मुख्य न्यायाधीश का परिचय:

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सुप्रीम कोर्ट और भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख होते हैं।
  • इन्हें मास्टर ऑफ रोस्टर कहा जाता है, क्योंकि ये मामलों का आवंटन और न्यायिक नेतृत्व करते हैं।

संवैधानिक प्रावधान:

  • संविधान में CJI की नियुक्ति की कोई निश्चित प्रक्रिया का उल्लेख नहीं है।
  • अनुच्छेद 124 (1): “भारत में एक सर्वोच्च न्यायालय होगा जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश होगा।”
  • अनुच्छेद 124 (2): सुप्रीम कोर्ट के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
  • CJI की नियुक्ति का आधार परंपरा और वरिष्ठता पर निर्भर करता है।

नियुक्ति प्रक्रिया:

  1. सिफारिश: कानून मंत्री द्वारा विदाई CJI से सिफारिश मांगी जाती है।
  2. परामर्श: यदि फिटनेस पर संदेह हो, तो वरिष्ठ न्यायाधीशों से परामर्श किया जाता है।
  3. अनुमोदन: कानून मंत्री सिफारिश को प्रधानमंत्री को भेजते हैं।
  4. नियुक्ति: प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सलाह देते हैं, और राष्ट्रपति नए CJI की नियुक्ति करते हैं।
  5. शपथ: राष्ट्रपति द्वारा शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया जाता है।

शक्तियाँ और कार्य:

  • मास्टर ऑफ रोस्टर: बेंचों का गठन और मामलों का आवंटन।
  • न्यायिक नेतृत्व: न्यायिक नीतियों और न्यायशास्त्र का मार्गदर्शन।
  • परामर्शी भूमिका: कानूनी और संवैधानिक मुद्दों पर सरकार को सलाह।
  • प्रशासनिक अधिकार: अदालत के अधिकारियों की नियुक्ति और न्यायालय के कामकाज की निगरानी।
  • आपातकालीन भूमिका: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों के पद खाली होने पर राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन।
  • न्यायाधीशों की नियुक्ति: सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में परामर्श (स्वयं CJI की नियुक्ति को छोड़कर)।

कार्यकाल और सेवानिवृत्ति:

  • CJI के कार्यकाल की कोई निश्चित अवधि नहीं होती।
  • सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष होती है।

CJI को हटाने की प्रक्रिया:

  • हटाने का प्रावधान राष्ट्रपति के आदेश से होता है, जो संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव पर आधारित होता है।
  • न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968:
    • संसद के एक-तिहाई सदस्यों द्वारा प्रस्ताव पेश किया जाता है।
    • जांच समिति द्वारा आरोपों की जांच।
    • यदि दोष सिद्ध होता है, तो संसद में प्रस्ताव पर मतदान।
    • दोतिहाई बहुमत से पारित होने पर राष्ट्रपति को हटाने की सिफारिश।
  • राष्ट्रपति के आदेश से न्यायाधीश का पदमुक्त होना।

न्यायमूर्ति सी. एल. गवई:

न्यायमूर्ति सी. एल. गवई भारतीय न्यायपालिका का नेतृत्व करने वाले पहले बौद्ध और अनुसूचित जाति से आने वाले दूसरे न्यायाधीश बने।

महत्वपूर्ण निर्णय और कानूनी प्रभाव:

CJI गवई ने कई महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में योगदान दिया।
वह निम्नलिखित संविधान पीठों का हिस्सा रहे:

  1. अनुच्छेद 370 का उन्मूलन: जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना।
  2. इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का खारिज होना: राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता का मुद्दा।

2016 विमुद्रीकरण की वैधता: नोटबंदी के कदम को संवैधानिक ठहराना।

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