Chillai Kalan

संदर्भ:
कश्मीर घाटी में 21 दिसंबर से ‘चिल्लई कलां’ (Chillai Kalan) का प्रारंभ हो चुका है। यह 40 दिनों की वह अवधि है जिसे कश्मीर के शीतकाल का सबसे कठोर और चुनौतीपूर्ण चरण माना जाता है।
चिल्लई कलां क्या है?
- ‘चिल्लई कलां’ एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है ‘बड़ी ठंड’। यह हर साल 21 दिसंबर से 31 जनवरी तक चलता है।
- इस दौरान उत्तर-पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में ‘वेस्टर्न डिस्टर्बेंस’ (पश्चिमी विक्षोभ) के कारण भारी हिमपात होता है।
- इस अवधि में न्यूनतम तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे (अक्सर -5°C से -10°C तक) चला जाता है। डल झील सहित कश्मीर की अन्य झीलें और पाइपों में बहने वाला पानी जम जाता है।
- इस दौरान गिरने वाली बर्फ ‘स्थायी’ होती है क्योंकि कम तापमान के कारण यह पिघलती नहीं है। यही बर्फ गर्मियों में नदियों में जल स्तर बनाए रखती है।
शीतकाल के तीन चरण:
कश्मीरी लोक परंपरा में शीतकाल को 100 दिनों के तीन चरणों में विभाजित किया गया है:
- चिल्लई कलां (40 दिन): 21 दिसंबर से 31 जनवरी। सबसे भीषण ठंड।
- चिल्लई खुर्द (20 दिन): 1 फरवरी से 20 फरवरी। ‘खुर्द’ का अर्थ है छोटा। इसमें ठंड की तीव्रता कम होने लगती है।
- चिल्लई बच्चा (10 दिन): 21 फरवरी से 2 मार्च। यह अंतिम चरण है जिसे ‘बच्चा’ कहा जाता है।
सांस्कृतिक महत्व:
कश्मीर की संस्कृति में चिल्लई कलां का गहरा स्थान है। इस दौरान स्थानीय लोग अपनी विशिष्ट जीवनशैली अपनाते हैं:
- फेरन (Pheran): ठंड से बचने के लिए पहना जाने वाला पारंपरिक ढीला गाउन।
- कांगड़ी (Kangri): मिट्टी के बर्तन में जलते कोयले रखकर उसे बेंत की टोकरी में रखा जाता है, जिसे शरीर के पास रखकर गर्मी ली जाती है।
- खान-पान: इस दौरान सुखाए गए साग (Hokh Syun), मछली और ‘हरिसा’ (मांस का विशेष व्यंजन) का सेवन किया जाता है।
- शब-ए-चिल्ला: चिल्लई कलां की पहली रात को उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
आर्थिक महत्व:
- जल सुरक्षा: कश्मीर और लद्दाख में कृषि (विशेषकर केसर और सेब) के लिए चिल्लई कलां की बर्फबारी अनिवार्य है। यह बर्फ भूजल स्तर (Groundwater table) को रिचार्ज करती है।
- पर्यटन: यह समय पर्यटन के लिए स्वर्णिम होता है। गुलमर्ग जैसे क्षेत्रों में विंटर स्पोर्ट्स और ‘खेलो इंडिया विंटर गेम्स’ का आयोजन इसी अवधि के आसपास किया जाता है।
चुनौती:
- हाल के वर्षों में, विशेषकर 2024 और 2025 की शुरुआत में, चिल्लई कलां के दौरान ‘ड्राई स्पेल’ (शुष्क अवधि) देखी गई है।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फबारी के पैटर्न में बदलाव आया है। समय पर बर्फ न गिरने से ग्लेशियरों के सिकुड़ने और गर्मियों में पानी की कमी (Water Scarcity) का खतरा बढ़ गया है।
- बिना बर्फ की ठंड (Dry Cold) से फसलों और मानव स्वास्थ्य (श्वसन संबंधी समस्याएं) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
