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भारत में कपास उत्पादन संकट

सामान्य अध्ययन पेपर III: रोज़गार, वृद्धि एवं विकास, फसल पैटर्न 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही एक अध्ययन के अनुसार भारत में कपास उत्पादन में भारी गिरावट देखी गई है। उत्पादन लागत बढ़ने, जलवायु परिवर्तन और नवाचार की कमी ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। इससे किसानों की आय प्रभावित हो रही है और देश की कपास अर्थव्यवस्था संकट में पड़ गई है।

कपास उत्पादन में भारत की वर्तमान स्थिति

  • वैश्विक परिदृश्य: भारत आज भी विश्व में कपास उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर है। कुल वैश्विक कपास उत्पादन में भारत की भागीदारी लगभग 24% है।
  • उत्पादकता: भारत में कपास की खेती का क्षेत्रफल विश्व में सबसे अधिक है (लगभग 33% वैश्विक क्षेत्रफल), फिर भी उत्पादकता मात्र 517 किलोग्राम/हेक्टेयर है। यह वैश्विक औसत से कहीं कम है।
    • भारत का लगभग 65% कपास शुष्क भूमि पर उत्पादित होता है, जबकि केवल 35% क्षेत्र ही सिंचित है। 
    • भारत का कपास उत्पादन 2013-14 में 39.8 मिलियन गांठ था, जो 2024-25 में घटकर 29.5 मिलियन गांठ हो गई है।
    • भारत के कपड़ा और परिधान क्षेत्र का देश की विदेशी मुद्रा आय में लगभग 33% योगदान है। इस क्षेत्र की कुल आय 12 बिलियन डॉलर के आस-पास है, जिसमें कपास-आधारित निर्यात लगभग 65% तक पहुँचता है।
  • प्रमुख उत्पादक राज्य: गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य कपास उत्पादन में अग्रणी हैं।
    • कपास क्षेत्र में लगभग 60 मिलियन लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हैं। यह क्षेत्र टेक्सटाइल, हथकरघा, और निर्यात के लिए आधारभूत है।
  • IBEF के अनुसार, 2030 तक भारत का कपास उत्पादन 7.2 मिलियन टन तक पहुंच सकता है, इसके लिए नीति और नवाचार साथ-साथ का सम्मिश्रण किया जाना आवश्यक है।

भारत में कपास उत्पादन में गिरावट आने के प्रमुख कारण

  • कीट प्रतिरोधकता का संकट: कभी बीटी (बैसिलस थुरिंजिएंसिस) कपास ने पिंक बॉलवर्म (PBW) के संक्रमण पर नियंत्रण में क्रांतिकारी भूमिका निभाई थी, लेकिन समय के साथ यह कीट बीटी प्रोटीन के प्रति प्रतिरोधी बन चुका है। अब यह संक्रमण बुवाई के 40 से 45 दिन के भीतर फसल को नुकसान पहुंचाने लगता है, जिससे बीजकोष और पुष्प प्रभावित होते हैं।
  • तकनीकी नवाचारों में अवरोधन: भारत में 2006 के बाद से कोई भी नई GM (आनुवंशिक रूप से परिवर्तित) कपास किस्म को अनुमति नहीं मिली है। स्वदेशी संस्थानों ने PBW और व्हाइटफ्लाई प्रतिरोधी किस्में विकसित की हैं, वे अब भी नीतिगत अनिश्चितताओं में फंसी हुई हैं।
  • सरकारी सहायता में असंगतता: कपास किसानों को मूल्य समर्थन और बीज सब्सिडी जैसे सरकारी लाभ समय पर नहीं मिलते। 2023 में ₹5,500 प्रति क्विंटल की दर पर कपास बिका, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य ₹6,700-7,000 था। राज्य सरकार की ओर से बीटी बीजों पर घोषित 33% सब्सिडी, चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता लागू होने से मई 2024 तक लंबित रही, जिससे किसान वंचित रह गए।
  • जलवायु परिवर्तन: कपास एक मौसम-आधारित फसल है, और जलवायु परिवर्तन ने इसके चक्र को अस्थिर बना दिया है। अनियमित वर्षा, अचानक सूखा या ओलावृष्टि जैसे कारकों ने फसल के विकास को बाधित किया है। 
  • जल संसाधन की कमी: कपास को अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है, परंतु जल संरक्षण की आधुनिक तकनीकों जैसे ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकलर प्रणाली का प्रसार सीमित है। इससे उत्पादन में गिरावट आती है और किसानों की पानी पर निर्भरता बढ़ती है। बढ़ते जल संकट के बीच यह चुनौती और गहरी होती जा रही है।
  • पिछड़ती उत्पादकता: भारत में कपास की पैदावार 450 किलोग्राम/हेक्टेयर तक गिर चुकी है, जबकि चीन जैसे देशों की उत्पादकता 1900 किलोग्राम/हेक्टेयर से अधिक है। यह स्पष्ट करता है कि केवल क्षेत्रफल बढ़ाना पर्याप्त नहीं हैं।
  • आयात पर निर्भरता: भारत, जो कभी विश्व कपास निर्यात में अग्रणी भूमिका निभाता था, अब व्यापार घाटे की स्थिति में पहुँच गया है। 2024-25 में कपास आयात 1.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जबकि निर्यात घटकर मात्र 660.5 मिलियन डॉलर रह गया। 
    • बढ़ते आयात के कारण घरेलू कपड़ा उद्योग को उच्च दर पर कच्चा माल खरीदना पड़ रहा है। इससे उत्पादन लागत में वृद्धि होती है।

कपास उत्पादन पर PWB संक्रमण और बीटी तकनीक का प्रभाव 

  • पीबीडब्ल्यू संक्रमण: गुलाबी बॉलवर्म (Pink Bollworm – PBW) कपास उत्पादन के लिए सबसे बड़ी जैविक चुनौती बन चुका है। यह कीट बीजकोषों में प्रवेश कर भीतर से बीजों और रेशों को खा जाता है, जिससे फसल की उपज ही नहीं, बल्कि लिंट की गुणवत्ता भी बुरी तरह प्रभावित होती है। यह कीट चुपचाप नुकसान करता है, क्योंकि इसके लक्षण तब दिखते हैं जब क्षति हो चुकी होती है। लगातार एक ही फसल (कपास) उगाने के कारण इसकी आबादी खेतों में स्थायी रूप से बस चुकी है, और अब यह कई पीढ़ियों तक एक ही मौसम में विकसित हो रही है। इससे किसानों के लिए समय पर कीट नियंत्रण लगभग असंभव हो गया है। 
  • बीटी तकनीक: बीटी कपास में प्रयुक्त क्राई1एसी और क्राई2एबी जीन विशेष प्रकार के प्रोटीन उत्पन्न करते हैं, जो अमेरिकी और स्पॉटेड बॉलवर्म जैसे कीटों के लिए विषैले होते हैं। वैज्ञानिक अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि भारत में बीटी कपास की शुरुआत के लगभग एक दशक बाद ही पीबीडब्ल्यू ने इन विषों के विरुद्ध पूर्ण प्रतिरोध विकसित कर लिया। इससे बीटी तकनीक की उपयोगिता सीमित हो गई और किसानों को पुनः भारी मात्रा में कीटनाशकों का सहारा लेना पड़ा, जिससे उत्पादन लागत बढ़ी और पर्यावरणीय जोखिम भी उत्पन्न हुए। 
    • 2014 तक, ‘नेचर’ नामक वैज्ञानिक पत्रिका के अनुसार, पीबीडब्ल्यू ने दोनों Bt प्रोटीन के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लिया था।

PWB (गुलाबी बॉलवर्म) क्या है?

  • पीबीडब्ल्यू (Pink Bollworm) जिसका वैज्ञानिक नाम Pectinophora gossypiella है, एक सूँड़ीदार कीट (लार्वा) होता है जो विशेष रूप से कपास के पौधों पर निर्भर करता है। 
  • यह कीट फसल के बीजकोषों (bolls) में प्रवेश करता है और वहाँ मौजूद बीजों व लिंट (कपास के रेशों) को खा जाता है। 
  • इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
    • यह मोनोफेगस (Monophagous) है, अर्थात केवल कपास के पौधों पर जीवित रहता है।
    • इसका जीवन चक्र छोटा होता है: 25-35 दिन में एक पूर्ण पीढ़ी तैयार हो जाती है।
    • एक फसल मौसम में 3-4 पीढ़ियाँ उत्पन्न कर सकता है।

बीटी तकनीक क्या है?

  • बीटी (Bt) तकनीक में एक विशेष प्रकार के बैक्टीरिया (Bacillus thuringiensis) से प्राप्त जीन को कपास के पौधों में प्रविष्ट कराया जाता है, ताकि वे कीटों के प्रति प्रतिरोधी बन सकें।
  • भारत में Bt Cotton में दो जीन उपयोग किए गए: Cry1Ac और Cry2Ab।
  • ये जीन ऐसे प्रोटीन बनाते हैं जो कीटों के आंत में जाकर विष की तरह कार्य करते हैं और उन्हें मार देते हैं।
  • बीटी तकनीक द्वारा बीटी कपास को विशेष रूप से अमेरिकन बॉलवर्म, स्पॉटेड बॉलवर्म, और लीफ वॉर्म जैसे कीटों के विरुद्ध सुरक्षा देने के लिए विकसित किया गया था।
  • भारत में 2002 में Bt Cotton को व्यावसायिक रूप से अनुमति मिली।
  • इसके बाद कपास की पैदावार में वृद्धि हुई:
    • 2002-03 में उत्पादकता 302 किलोग्राम/हेक्टेयर थी।
    • 2013-14 में यह 566 किलोग्राम/हेक्टेयर तक पहुँच गई।

भारत में कपास क्षेत्र के पुनरुत्थान हेतु बीज कंपनियों की नवाचार आधारित पहल

  • भारत की अग्रणी बीज कंपनियाँ अब पारंपरिक बीटी तकनीक के अतिरिक ऐसे जीनोमिक नवाचारों की ओर बढ़ रही हैं जो गुलाबी बॉलवर्म (PBW) के प्रतिरोध में अधिक प्रभावी सिद्ध हो सकें।
  • हैदराबाद स्थित बायोसीड रिसर्च इंडिया ने ‘क्राई8ईए1’ नामक नए जीन को शामिल करके एक ट्रांसजेनिक तकनीक विकसित की है जिसे ‘बायोकॉटएक्स24ए1’ कहा जाता है। 
  • तमिलनाडु की रासी सीड्स प्राइवेट लिमिटेड ने भी पीबीडब्ल्यू-प्रतिरोधी जीएम कपास के लिए ‘क्राई1सी’ नामक एक सिंथेटिक जीन का विकास किया है।
  • नागपुर स्थित अंकुर सीड्स ने लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (NBRI) के साथ समझौता किया है, जिसके तहत वह काइमेरिक बीटी जीन पर आधारित जीएम कपास संकरों को विकसित किया जाएगा।

भारत में कपास क्षेत्र के पुनरुत्थान हेतु सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत कपास विकास का समावेश: भारत सरकार द्वारा वर्ष 2014-15 से प्रारंभ हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के अंतर्गत कपास को भी विशेष स्थान दिया गया है। 15 प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हेतु यह कार्यक्रम उन्नत बीज वितरण, एकीकृत कीट प्रबंधन, और वैज्ञानिक प्रशिक्षण जैसी रणनीतियों पर केंद्रित है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य: (A2+FL) लागत फार्मूले पर आधारित 1.5 गुना एमएसपी नीति से कपास किसानों को मूल्य अस्थिरता से राहत मिली है। इससे फसल की लाभप्रदता सुनिश्चित हुई है।
  • ‘कॉट-एली’ मोबाइल एप: COT-ALLY एप कपास किसानों को डिजिटल जानकारी प्रदान करने वाला एक प्रयोगकर्ता-अनुकूल उपकरण है। यह ऐप MSP दर, निकटतम खरीद केंद्रों, और मौसम चेतावनी जैसी वास्तविक समय की सूचनाएं उपलब्ध कराता है।
  • ‘कपास उत्पादकता मिशन’: वित्त मंत्री द्वारा 2025-26 में घोषित ‘पाँच वर्षीय कपास उत्पादकता मिशन’ कपास क्षेत्र में दीर्घकालिक परिवर्तन की नींव है। इस मिशन का उद्देश्य उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों, नवाचारों और गुणवत्ता आधारित उत्पादन के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना है। 

भारत में कपास उत्पादन को बढ़ाने हेतु किए जाने वाले आवश्यक उपाय

  • घनत्व आधारित पद्धति: भारत के कपास उत्पादन को टिकाऊ ढंग से पुनर्जीवित करने के लिए पारंपरिक खेती की पद्धतियों से आगे बढ़ना अत्यंत आवश्यक है। High-Density Planting System (HDPS) अर्थात् उच्च सघनता रोपण प्रणाली के माध्यम से प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है। 
  • डिजिटलीकरण: मौसम पूर्वानुमान, कीट प्रकोप चेतावनी, और बाजारों तक फसल पहुँच की जानकारी यदि वास्तविक समय में किसानों को मिले तो वे बेहतर निर्णय ले सकते हैं। COT-ALLY जैसे डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स को विस्तृत क्षेत्रीय भाषाओं में और स्थानीय ग्राम स्तर तक सुलभ बनाकर सूचनाओं का त्वरित संप्रेषण किया जा सकता है। 
  • वित्तीय प्रोत्साहन: पारंपरिक सब्सिडी के साथ-साथ फसल-विशिष्ट प्रत्यक्ष नकद अंतरण, सर्वोत्तम कृषि तकनीक अपनाने वालों को बोनस, तथा बीमा प्रीमियम में छूट जैसे विकल्पों से कपास उत्पादन को पुनः आकर्षक बनाया जा सकता है। इससे किसान जोखिम उठाने के लिए तैयार होंगे और गुणवत्ता सुधार की दिशा में निवेश भी करेंगे।
  • वैश्विक आश्वासन: “कस्तूरी कॉटन” जैसे भारतीय ब्रांड को QR कोड आधारित ट्रेसबिलिटी से जोड़ना केवल गुणवत्ता सुनिश्चित करने का माध्यम नहीं बल्कि उत्पत्ति आधारित विपणन (origin-based branding) का सशक्त उपकरण भी बन सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय खरीदारों को भारतीय कपास की विशिष्टता और पारदर्शिता का भरोसा मिलेगा।
  • एकीकृत कीट नियंत्रण: कपास उत्पादन में पीबीडब्ल्यू जैसे कीटों से होने वाले नुकसान को सीमित करने के लिए Integrated Pest Management (IPM) रणनीतियों को अपनाना आवश्यक है। इसमें जैविक नियंत्रण एजेंटों, फेरोमोन ट्रैप, वैकल्पिक फसलों का रोटेशन, और सही समय पर रासायनिक कीटनाशकों का संतुलित उपयोग शामिल है। 

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs) 

प्रश्न (2021). भारत की काली कपासी मृदा का निर्माण किसके अपक्षय के कारण हुआ है?

(a) भूरी वन मृदा

(b) विदरी ज्वालामुखीय चट्टान

(c) ग्रेनाइट और शिस्ट

(d) शेल और चूना-पत्थर

उत्तर: (b)

प्रश्न (2011). निम्नलिखित विशेषताएँ भारत के एक राज्य की विशिष्टताएँ हैंः

  1. उसका उत्तरी भाग शुष्क एवं अर्द्धशुष्क है।  
  2. उसके मध्य भाग में कपास का उत्पादन होता है।  
  3. उस राज्य में खाद्य फसलों की तुलना में नकदी फसलों की खेती अधिक होती है।

उपर्युक्त सभी विशिष्टताएँ निम्नलिखित में से किस एक राज्य में पाई जाती हैं?

(a) आंध्र प्रदेश

(b) गुजरात

(c) कर्नाटक

(d) तमिलनाडु

उत्तर: (b)

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