Cyclone senyar
संदर्भ:
हाल ही में बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में विकसित हो रहे निम्न दबाव प्रणाली को लेकर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने चेतावनी जारी की है। IMD के अनुसार यह प्रणाली तीव्र होकर संभावित चक्रवात ‘सेन्यार’ (Senyar) का रूप ले सकती है। जिसके प्रभाव अंडमान-निकोबार से लेकर दक्षिणी भारत के कई राज्यों तक देखे जा सकते हैं।
चक्रवात सेन्यार की उत्पत्ति:
चक्रवात सेन्यार की शुरुआत दक्षिणी अंडमान सागर और मलक्का जलडमरूमध्य के ऊपर बने एक चिह्नित निम्न-दबाव क्षेत्र (Well-marked Low Pressure Area) से हुई है। यह प्रणाली पश्चिम-उत्तरी-पश्चिम दिशा में बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ी, जहाँ उच्च समुद्र सतही तापमान (SST > 28°C), गहन वाष्पीकरण और कम वर्टिकल विंड शियर के कारण यह प्रभावी हुआ। इसी के साथ भारत के दक्षिणी सिरे के समीप स्थित एक Upper Air Cyclonic Circulation ने भी इसकी संरचना को ऊर्जा प्रदान की।
नामकरण का महत्व:
- जब कोई निम्न-दबाव प्रणाली 34 नॉट (62 km/h) की सतही हवा की गति को पार कर जाती है, तभी उसे आधिकारिक तौर पर चक्रवात का नाम दिया जाता है। जैसे ही यह प्रणाली अपेक्षित गति हासिल करेगी, इसे ‘Senyar’—अर्थात ‘Lion’ नाम प्राप्त होगा।
- चक्रवात ‘सेन्यार’ (Senyar) का अर्थ “सिंह” है। इसका नामकरण संयुक्त अरब अमीरात (UAE) द्वारा उत्तर हिंद महासागर चक्रवात नामकरण सूची में प्रस्तावित किया गया था।
- IMD उत्तर हिंद महासागर क्षेत्र के लिए Regional Specialised Meteorological Centre (RSMC) है। नामकरण से चेतावनियाँ जनता तक प्रभावी तरीके से पहुंचती हैं। अंतर्राष्ट्रीय समन्वय और आपदा प्रबंधन में सरलता आती है।
संभावित प्रभावित क्षेत्र:
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अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह सबसे पहले प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शामिल हैं, जहाँ भारी से अत्यधिक भारी वर्षा और तेज हवाओं की संभावना व्यक्त की गई है।
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तमिलनाडु: विशेष रूप से कावेरी डेल्टा जिले—थंजावुर, तिरुवारूर, नागपट्टिनम—ऑरेंज अलर्ट पर हैं। यहाँ समुद्री लहरों में वृद्धि, तटीय जलजमाव और बाढ़-संभावना के कारण प्रशासन ने चेतावनी जारी की है।
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केरल और माहे (Mahe): मध्य एवं उत्तरी केरल में भारी वर्षा की संभावना है, जिससे भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में अतिरिक्त सतर्कता आवश्यक है।
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आंध्र प्रदेश / यानम क्षेत्र: तटीय जिलों में मध्यम से भारी वर्षा के साथ समुद्र में ऊँची लहरें देखने को मिल सकती हैं।
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लक्षद्वीप: कहीं-कहीं मध्यम वर्षा, समुद्र में ऊँची हलचल और मत्स्य-गतिविधियों के लिए प्रतिबंध जारी किया जा सकता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात का निर्माण:
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण के लिए प्रमुख शर्तें इस प्रकार हैं:
- उच्च समुद्र सतही तापमान (≥ 26–27°C): गर्म पानी ऊर्जा स्रोत का कार्य करता है।
- निम्न-दबाव क्षेत्र: गर्मी के कारण हवा ऊपर उठती है और वातावरण में चक्रवातीय परिसंचरण विकसित होता है।
- कोरियोलिस बल: पृथ्वी के घूर्णन के कारण हवा घुमावदार गति करती है, जिससे चक्रवात का घूर्णन आरंभ होता है।
- कम वर्टिकल विंड शियर: ऊँचाई पर हवा की दिशा/गति में कम परिवर्तन चक्रवात को व्यवस्थित रूप देता है।
- उच्च नमी-उपलब्धता: सतही वाष्पीकरण से ऊर्जा बढ़ती है और क्युम्युलोनिम्बस बादलों का विकास होता है।
इन शर्तों के कारण उत्तर हिंद महासागर का क्षेत्र अक्टूबर–दिसंबर के दौरान चक्रवातों के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है।
चक्रवात के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
चक्रवात सेन्यार के कारण दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों में निम्नलिखित प्रभाव प्रमुख हो सकते हैं:
- भारी वर्षा और तटीय बाढ़—विशेषकर निम्न-स्थलों में जलजमाव का जोखिम।
- कृषि पर प्रभाव—धान, केला और बागवानी फसलों को नुकसान की संभावना।
- मछुआरों पर असर—समुद्र में ऊँची लहरों और तेज हवाओं के चलते मत्स्य-गतिविधियों पर रोक।
- यातायात और संचार बाधाएँ—सड़क अवरोध, उड़ान विलंब, और विद्युत व्यवधान।
- भूस्खलन जोखिम—केरल और अंडमान के पहाड़ी क्षेत्रों में।

