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एग्री- फोटावोल्टाइक्स (Agri-Photovoltaics)

Agri-Photovoltaics

संदर्भ:

कृषि फोटावोल्टाइक्स (Agri Photovoltaics) भारत में किसानों की आय बढ़ाने और सतत विकास को बढ़ावा देने का एक नया समाधान प्रस्तुत करते हैं। यह प्रणाली सौर ऊर्जा उत्पादन और फसल की खेती को एक साथ जोड़ती है। हालांकि, भारत में इसके व्यापक विस्तार के लिए अनुकूल नीतियां, मानकीकृत दिशानिर्देश और मजबूत वित्तीय प्रोत्साहनों की आवश्यकता है।

एग्रीफोटावोल्टाइक्स (Agri-Photovoltaics – APV) क्या है?

  1. परिचय:
  • एग्री- फोटावोल्टाइक्स (APV) एक ऐसी प्रणाली है जिसमें खेती की ज़मीन पर सौर पैनल लगाए जाते हैं, जिससे एक ही भूमि पर बिजली उत्पादन और फसल की खेती एक साथ की जा सकती है।
  • इसका उद्देश्य है भूमि उपयोग की दक्षता को बढ़ाना और किसानों के लिए दोहरी आय के स्रोत उपलब्ध कराना — एक कृषि से और दूसरा सौर ऊर्जा से।
  1. डिज़ाइन के दो मुख्य प्रकार
  • सौर पैनलों की पंक्तियों के बीच फसल उगाना: पैनलों के बीच की खाली जगह में खेती की जाती है।
  • पैनलों को ज़मीन से ऊँचाई पर लगाना (लगभग 2 मीटर): ताकि नीचे फसलें उग सकें और धूप का आंशिक लाभ उन्हें मिलता रहे।
  1. इतिहास:
  • एग्री- फोटावोल्टाइक्स की अवधारणा सबसे पहले 1981 में जर्मन वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
  • यह तकनीक अब भूमि के टिकाऊ और स्मार्ट उपयोग का एक प्रमुख उदाहरण बन रही है।
  1. लाभ:
  • भूमि की दोहरी उपयोगिता — एक ही समय में खेती और बिजली उत्पादन।
  • कृषकों को अतिरिक्त आय — फसल के साथ-साथ सौर ऊर्जा से कमाई।
  • पर्यावरण के लिए लाभकारी — हरित ऊर्जा को बढ़ावा।

एग्री फोटावोल्टाइक्स (APV) के लाभ:

  1. किसानों के लिए दोहरी आय का स्रोत:
  • किसान फसल उत्पादन के साथ-साथ सौर ऊर्जा से भी कमाई कर सकते हैं।
  • यह कमाई भूमि पट्टे (लीज) देने या ग्रिड को सीधे बिजली बेचने के माध्यम से हो सकती है।
  • इससे किसानों की आय स्थिर और विविध बनती है, जो उन्हें अनिश्चित फसल पैदावार पर निर्भर रहने से बचाती है।

भूमि का कुशल उपयोग:

  • एक ही भूमि पर भोजन और ऊर्जा उत्पादन संभव होता है।
  • इससे प्रति यूनिट भूमि उत्पादकता बढ़ती है।
  • भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण, क्योंकि उसके पास विश्व की केवल 4% भूमि है लेकिन 18% जनसंख्या।

फसलों के लिए अनुकूल सूक्ष्म जलवायु:

  • सौर पैनल गर्मी और तेज धूप से आंशिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • इससे पानी की वाष्पीकरण दर घटती है और फसल पर गर्मी का तनाव कम होता है

ऊर्जा सुरक्षा में योगदान:

  • यह तकनीक विकेन्द्रित सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देती है, जिससे ग्रामीण विद्युतीकरण में मदद मिलती है।
  • यह भारत के सौर ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने और 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य में सहायक है।

चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ:

  1. सिर्फ प्रायोगिक परियोजनाओं तक सीमित:
  • वर्तमान में एपीवी तकनीक मुख्यतः अनुसंधान संस्थानों और निजी डेवलपर्स द्वारा चलाए जा रहे पायलट प्रोजेक्ट्स तक सीमित है।
  1. अवसंरचना और निवेश की आवश्यकता:
  • अधिकांश किसानों के पास एपीवी प्रणाली स्थापित करने के लिए आवश्यक पूंजी नहीं है।
  • सरकारी सब्सिडी, सस्ती ऋण योजनाएँ, और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) से इसकी स्वीकार्यता तेज़ी से बढ़ाई जा सकती है।
  1. नीतिगत समर्थन की कमी:
  • भारत की वर्तमान सौर ऊर्जा नीतियों में एपीवी को कृषि रणनीतियों के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
  1. अनुसंधान और क्षेत्रीय अनुकूलता: अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों और फसलों के लिए उपयुक्त एपीवी मॉडलों को विकसित करने हेतु विस्तृत अनुसंधान और अधिक पायलट प्रोग्राम्स की आवश्यकता है।

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