Black Hole Bomb
संदर्भ:
वैज्ञानिकों ने पहली बार ‘ब्लैक होल बम’ जैसी स्थिति को प्रयोगशाला में दोहराकर भौतिकी की दुनिया में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। यह प्रयोग यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्प्टन के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया, जिसमें उन्होंने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया जो घूर्णनशील ब्लैक होल से ऊर्जा निकालने की प्रक्रिया को दोहराता है।
क्या है ‘ब्लैक होल बम‘?
‘ब्लैक होल बम’ एक सैद्धांतिक अवधारणा है जिसे 1970 के दशक में प्रस्तावित किया गया था। इसके अनुसार यदि किसी घूर्णनशील ब्लैक होल के चारों ओर ऊर्जा तरंगें (जैसे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स) घूमती हैं और किसी प्रतिबिंबित दीवार (मिरर) के कारण बार-बार ब्लैक होल से टकराती हैं, तो यह तरंगें हर बार और अधिक ऊर्जा के साथ वापस आती हैं। इस प्रक्रिया को सुपररेडिएंट स्कैटरिंग (superradiant scattering) कहा जाता है। जब यह दोहराव तेजी से बढ़ता है, तो यह एक तरह का ‘बम’ जैसा प्रभाव पैदा करता है — जिसे ही ब्लैक होल बम कहते हैं।
प्रयोग में क्या किया गया ? वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में एक घूर्णनशील सिलेंडर और उसके चारों ओर एक गूंज वाली विद्युत चुम्बकीय प्रणाली (resonant EM cavity) तैयार की। इस प्रणाली में डाली गई तरंगें सिलेंडर की गति से टकराकर ऊर्जा में वृद्धि करने लगीं। कुछ समय बाद यह तरंगें कई गुना बढ़कर लौटने लगीं — जिससे सिद्ध हुआ कि ब्लैक होल बम जैसी स्थिति को कृत्रिम रूप से दोहराया जा सकता है।
इस खोज का महत्व:
- यह प्रयोग ब्लैक होल के चारों ओर ऊर्जा की गति को समझने में मदद करेगा।
- यह एनालॉग ग्रैविटी (analog gravity) में एक बड़ा कदम है, जिससे जटिल ब्रह्मांडीय घटनाओं को प्रयोगशाला में भी समझा जा सकेगा।
- इससे भविष्य में क्वांटम फिजिक्स और जनरल रिलेटिविटी जैसे क्षेत्रों में नई खोजों की राह खुल सकती है।