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हाल ही में, केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री ने नई दिल्ली में 21वीं पशुधन जनगणना का शुभारंभ किया। यह जनगणना भारतीय पशुधन के बारे में महत्वपूर्ण आंकड़े एकत्रित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
21वीं पशुधन जनगणना के बारे में:
- पशुधन जनगणना हर पांच साल में आयोजित की जाती है।
- इस जनगणना में पालतू पशुओं, मुर्गियों और आवारा पशुओं की संख्या की गणना की जाती है।
- गणना में पशुओं की प्रजाति, नस्ल, आयु, लिंग, और स्वामित्व की स्थिति के बारे में जानकारी एकत्र की जाती है।
पृष्ठभूमि:
- 1919 से अब तक कुल 20 पशुधन गणनाएं की जा चुकी हैं, जिनमें से अंतिम गणना 2019 में की गई थी।
- 21वीं जनगणना के लिए गणना प्रक्रिया अक्टूबर 2024 से फरवरी 2025 के बीच होगी।
21वीं पशुधन जनगणना का फोकस
पशुपालन एवं डेयरी विभाग के अनुसार, 21वीं जनगणना में सोलह पशु प्रजातियों की जानकारी एकत्र की जाएगी, जिनमें शामिल हैं:
- मवेशी, भैंस, मिथुन, याक, भेड़, बकरी, सुअर, ऊँट, घोड़ा, टट्टू, खच्चर, गधा, कुत्ता, खरगोश, हाथी
इस गणना में आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीएजीआर) द्वारा मान्यता प्राप्त सोलह प्रजातियों की 219 स्वदेशी नस्लों के बारे में जानकारी एकत्र की जाएगी।
पोल्ट्री पक्षियों की गणना:
इसके अलावा, जनगणना में मुर्गी, बत्तख, टर्की, गीज़, बटेर, शुतुरमुर्ग और इमू जैसे पोल्ट्री पक्षियों की भी गणना की जाएगी।
डिजिटल प्रक्रिया:
इस बार की जनगणना 2019 की पिछली जनगणना की तरह पूरी तरह डिजिटल होगी। इसमें शामिल हैं:
- मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से ऑनलाइन डेटा संग्रह।
- डिजिटल डैशबोर्ड के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर निगरानी।
- डेटा संग्रह स्थान के अक्षांश और देशांतर को कैप्चर करना।
- सॉफ्टवेयर के माध्यम से पशुधन जनगणना रिपोर्ट तैयार करना।
नए डेटा बिंदु:
21वीं जनगणना में कई नए डेटा बिंदु शामिल किए जाएंगे, जिनमें शामिल हैं:
- पशुपालकों और चरवाहों पर डेटा: जनगणना में पहली बार पशुधन क्षेत्र में चरवाहों के योगदान, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति और पशुधन पर डेटा एकत्र किया जाएगा।
- अधिक विवरण और विस्तृत जानकारी: जनगणना से उन परिवारों का अनुपात पता चलेगा जिनकी मुख्य आय पशुधन क्षेत्र से आती है। इसमें आवारा पशुओं के लिंग के बारे में भी जानकारी होगी।
इस 21वीं पशुधन जनगणना के माध्यम से भारत में पशुधन की स्थिति और उनके प्रबंधन को समझने में मदद मिलेगी, जो न केवल आर्थिक विकास बल्कि पशुपालन के क्षेत्र में नीति निर्माण के लिए भी महत्वपूर्ण है।
पशुपालन और डेयरी विभाग के बारे में:
- गठन: पशुपालन और डेयरी विभाग को 1 फरवरी 1991 को कृषि और सहकारिता विभाग के दो प्रभागों (पशुपालन और डेयरी विकास) को अलग करके स्थापित किया गया।
- नाम परिवर्तन: इसे पहले पशुपालन और डेयरी विभाग (एएचएंडडी) कहा जाता था, लेकिन अब इसका नाम पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग (डीएडीएफ) कर दिया गया है।
- स्थान: यह विभाग कृषि भवन, नई दिल्ली में स्थित है।
- मंत्रालय: मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय
मुख्य जिम्मेदारियाँ:
- पशुधन उत्पादन: पशुधन उत्पादन और सुरक्षा से संबंधित मामलों का प्रबंधन।
- बीमारियों से सुरक्षा: पशुओं की स्वास्थ्य देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- डेयरी विकास: डेयरी उद्योग से जुड़े मामलों का विकास और संचालन करना।
- नीतियों और कार्यक्रमों का विकास: राज्य सरकारों को सलाह देना और सहयोग करना।
मुख्य क्षेत्र:
- बुनियादी ढांचे का विकास: राज्यों में पशुपालन और डेयरी के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण करना।
- स्वास्थ्य देखभाल: पशुधन के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का प्रावधान करना।
- जर्मप्लाज्म का विकास: केंद्रीय पशुधन फार्मों को मजबूत करना ताकि बेहतर जर्मप्लाज्म का विकास किया जा सके।
दृष्टि:
- सतत विकास: पोषण सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि और आजीविका समर्थन के लिए पशुधन और मुर्गीपालन का सतत विकास।
- रोग मुक्त क्षेत्र: विशिष्ट पशु रोगों के लिए रोग मुक्त क्षेत्र अवधारणा को बढ़ावा देना।
उद्देश्य:
- पशु आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण: स्वदेशी नस्लों की सुरक्षा और सुधार।
- रोजगार के अवसर: महिलाओं और हाशिए के समूहों के लिए आजीविका सहायता और रोजगार के अवसर प्रदान करना।
- उत्पादन में सुधार: पशुधन और पोल्ट्री उत्पादों के उत्पादन और मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देना।
कार्यान्वयन के उपाय:
- राज्यों में पशुपालन और डेयरी बुनियादी ढांचे का विकास।
- पशुधन की सुरक्षा के लिए स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ सुनिश्चित करना।
- केंद्रीय पशुधन फार्मों को मजबूत करना।
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