रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के युवा वैज्ञानिक प्रयोगशाला-क्वांटम यांत्रिकी (DYSL-क्यूटी), पुणे और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR), मुंबई के वैज्ञानिकों ने सुपरकंडक्टिंग सर्किट तकनीक पर आधारित 6-क्यूबिट क्वांटम प्रोसेसर (6-Qubit Quantum Processor) का एंड-टू-एंड परीक्षण पूरा कर लिया है।
- यह प्रदर्शन DYSL-क्यूटी की देखरेख करने वाली शीर्ष समिति के समक्ष किया गया।
- इसमें क्लाउड-आधारित इंटरफ़ेस से क्वांटम सर्किट सबमिट करना, क्वांटम हार्डवेयर पर प्रोग्राम का निष्पादन और गणना किए गए परिणामों के साथ क्लाउड इंटरफ़ेस को अपडेट करना शामिल था।
6-क्यूबिट क्वांटम प्रोसेसर (6-Qubit Quantum Processor):6-क्यूबिट क्वांटम प्रोसेसर एक क्वांटम कंप्यूटर का एक प्रकार है जिसमें 6 क्यूबिट होते हैं। क्यूबिट क्वांटम कंप्यूटर की मूल इकाई है जो पारंपरिक कंप्यूटर के बिट के समान है। हालाँकि, बिट्स के विपरीत, जो केवल 0 या 1 की स्थिति में हो सकते हैं, क्यूबिट सुपरपोज़िशन नामक एक अवस्था में मौजूद हो सकते हैं, जिसका अर्थ है कि वे एक साथ 0 और 1 दोनों हो सकते हैं। यह क्वांटम कंप्यूटर को पारंपरिक कंप्यूटर की तुलना में कुछ प्रकार की समस्याओं को बहुत तेज़ी से हल करने की अनुमति देता है। 6-क्यूबिट क्वांटम प्रोसेसर के कुछ संभावित अनुप्रयोग हैं:
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त्रिपक्षीय सहयोग और तकनीकी उन्नति:
- यह परियोजना डीवाईएसएल-क्यूटी, टीआईएफआर और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) के बीच एक त्रिपक्षीय सहयोग का परिणाम है।
- टीआईएफआर के मुंबई स्थित कोलाबा परिसर में चल रही इस परियोजना में, क्वांटम प्रोसेसर आर्किटेक्चर को टीआईएफआर द्वारा आविष्कारित एक अभिनव रिंग-रेज़ोनेटर डिजाइन पर आधारित किया गया है।
- क्वांटम हार्डवेयर के लिए क्लाउड-आधारित इंटरफेस का विकास टीसीएस द्वारा किया गया है।
- डीवाईएसएल-क्यूटी वैज्ञानिकों ने वाणिज्यिक इलेक्ट्रॉनिक्स और कस्टम-प्रोग्राम्ड विकास बोर्डों का संयोजन करके नियंत्रण और माप उपकरण को एकत्रित किया।
भविष्य की योजनाएँ और विकास:
- वर्तमान में, वैज्ञानिक प्रणाली के प्रदर्शन के विभिन्न पहलुओं को अनुकूलित करने पर काम कर रहे हैं।
- इस प्रणाली को शिक्षा, अनुसंधान और परीक्षण के लिए एक परीक्षण आधार के रूप में विस्तृत पहुंच प्रदान करने की योजनाएँ बनाई जा रही हैं।
- विकास का अगला चरण क्यूबिट की संख्या बढ़ाना और क्वांटम कंप्यूटरों के विभिन्न आकारों के विकास, संचालन, और व्यावसायीकरण के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी चुनौतियों का आकलन करना होगा।
- इसमें क्वांटम सिद्धांत की बुनियाद से लेकर व्यावसायिक व्यवहार्यता तक एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाएगा।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO):
- DRDO रक्षा मंत्रालय का रक्षा अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) विंग है, जिसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों से सशक्त बनाना है।
- आत्मनिर्भरता और सफल स्वदेशी विकास एवं सामरिक प्रणालियों तथा प्लेटफार्मों जैसे- अग्नि और पृथ्वी शृंखला मिसाइलों के उत्पादन की इसकी खोज जैसे- हल्का लड़ाकू विमान, तेजस: बहु बैरल रॉकेट लॉन्चर, पिनाका: वायु रक्षा प्रणाली, आकाश: रडार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला आदि, ने भारत की सैन्य शक्ति को प्रभावशाली निरोध पैदा करने और महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करने में प्रमुख योगदान दिया है।
DRDO का गठन:
- DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
- DRDO वर्तमान में 50 प्रयोगशालाओं का एक समूह है जो रक्षा प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- वैमानिकी, शस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइलें, उन्नत कंप्यूटिंग और सिमुलेशन, विशेष सामग्री, नौसेना प्रणाली, लाईफ साइंस, प्रशिक्षण, सूचना प्रणाली तथा कृषि के क्षेत्र में कार्य कर रहा है।
DRDO के मिशन:
- हमारी रक्षा सेवाओं के लिये अत्याधुनिक सेंसरों, हथियार प्रणालियों, प्लेटफार्मों और संबद्ध उपकरणों के उत्पादन हेतु डिज़ाइन, विकास और नेतृत्व।
- युद्ध की प्रभावशीलता को अनुकूलित करने और सैनिकों की सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु सेवाओं को तकनीकी समाधान प्रदान करना।
- बुनियादी ढांचे और प्रतिबद्ध गुणवत्ता जनशक्ति का विकास करना तथा एक मज़बूत स्वदेशी प्रौद्योगिकी आधार का निर्माण करना।
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