सामान्य अध्ययन पेपर II: संसद, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, और भारतीय संविधान |
चर्चा में क्यों?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट पेश करने जा रही हैं। यह उनका आठवां बजट होगा, जिसमें शिक्षा, रक्षा, उद्योग और महिलाओं के कल्याण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सुधार और प्रोत्साहन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
केंद्रीय बजट का परिचय
बजट एक वित्तीय योजना है, जो आय के स्रोतों और व्यय की योजना का विवरण प्रस्तुत करता है। इसमें यह बताया जाता है कि धन कहां से आएगा (राजस्व, प्राप्तियां, आय) और कहां खर्च होगा (व्यय, खर्च)।
- केंद्रीय बजट एक वित्तीय विवरण है, जिसमें सरकार के अनुमानित राजस्व और व्यय का विवरण होता है, जो एक वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च) के लिए तैयार किया जाता है।
- यह बजट सरकार की वित्तीय नीतियों का खाका प्रस्तुत करता है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों जैसे बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा में खर्च का वितरण शामिल होता है।
- संविधानिक आधार: भारत का केंद्रीय बजट, संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में जाना जाता है। यह सरकार की आगामी वित्तीय वर्ष की योजनाओं को दर्शाने वाला महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
- वित्त मंत्रालय की भूमिका: केंद्रीय बजट को तैयार करने की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय की होती है।
- राजस्व विभाग आय से संबंधित पहलुओं को संभालता है, जबकि व्यय विभाग सार्वजनिक क्षेत्र के खर्च आवंटन का प्रबंधन करता है।
- आर्थिक मामलों के विभाग का बजट प्रभाग इस प्रक्रिया का समन्वय करता है।
- प्रस्तुतीकरण और समय: पारंपरिक रूप से बजट फरवरी के अंतिम कार्यदिवस पर प्रस्तुत किया जाता था। लेकिन 2017 से इसे 1 फरवरी को पेश किया जाने लगा, ताकि यह नए वित्तीय वर्ष (अप्रैल) से पहले लागू हो सके।
केंद्रीय बजट को संसद भवन से राष्ट्रीय चैनलों जैसे डीडी नेशनल, डीडी न्यूज़ और संसद टीवी पर लाइव प्रसारित किया जाता है।
केंद्रीय बजट का इतिहास (1947-2025)
स्वतंत्रता के बाद से भारत का बजट देश की आर्थिक प्राथमिकताओं, चुनौतियों और आकांक्षाओं को दर्शाते हुए लगातार विकसित हुआ है। यहां 1947 से 2025 तक केंद्रीय बजट और इसके वित्त मंत्रियों की प्रमुख उपलब्धियों का विवरण दिया गया है।
- 1947-1950
- आर. के. शण्मुखम चेट्टी भारत के पहले वित्त मंत्री थे। उन्होंने 26 नवंबर 1947 को स्वतंत्र भारत का पहला बजट पेश किया, जो सिर्फ साढ़े सात महीने के लिए था। इस बजट में ₹171.15 करोड़ की आय और ₹197.39 करोड़ के खर्च का विवरण था।
- जॉन मथाई ने चेट्टी के बाद पद वित्त मंत्री का पद संभाला। उन्होंने भारत की पहली पंचवर्षीय योजना पेश की लेकिन योजना आयोग के बढ़ते प्रभाव के विरोध में इस्तीफा दे दिया।
- 1950-1960
- सी. डी. देशमुख ने भारत की पहली पंचवर्षीय योजना के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विकास परियोजनाओं के लिए कॉरपोरेट टैक्स और आयकर पर अधिभार लगाया।
- टी. टी. कृष्णमाचारी ने धन कर (Wealth Tax) जैसे नए उपाय पेश किए और आईडीबीआई (IDBI), आईसीआईसीआई (ICICI) और दामोदर वैली कॉरपोरेशन जैसे संस्थानों की स्थापना की।
- 1960-1970
- मोरारजी देसाई, 10 बजट पेश करने वाले सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले वित्त मंत्री रहे। उन्होंने कृषि अनुसंधान और विकास पर जोर दिया और हरित क्रांति (Green Revolution) की नींव रखी। उन्होंने गोल्ड कंट्रोल एक्ट और आयकर के लिए स्व-मूल्यांकन की शुरुआत की।
- इंदिरा गांधी, अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री के साथ-साथ वित्त मंत्री भी रहीं। उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और श्वेत क्रांति (White Revolution) जैसे बड़े कदम उठाए।
- 1970-1980
- यशवंतराव चव्हाण ने कोयला खदानों और सामान्य बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया। उनके कार्यकाल में अर्थव्यवस्था मंदी में चली गई।
- चिदंबरम सुब्रमण्यम ने सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया और कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) और पारिवारिक पेंशन योजनाएं शुरू कीं।
- 1980-1990
- आर. वेंकटरमण और प्रणब मुखर्जी ने एनआरआई से संसाधन जुटाने और निजी बचत को बढ़ावा देने पर जोर दिया। मुखर्जी ने पूंजी निवेश बॉन्ड (Capital Investment Bond) पेश किए।
- वी. पी. सिंह ने मॉडवेट (MODVAT) और गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं।
- 1990-2000
- डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू किया। उनकी नीतियों ने विदेशी मुद्रा भंडार और वैश्वीकरण की नींव रखी।
- पी. चिदंबरम ने 1997 में “ड्रीम बजट” पेश किया, जिसमें आयकर दरें कम की गईं और कर प्रणाली में सुधार के लिए एक रोडमैप तैयार किया।
- 2000-2010
- यशवंत सिन्हा ने CENVAT (सेंट्रल वैल्यू एडेड टैक्स), विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) और ऋण बाजार पुनर्गठन जैसे सुधारों की शुरुआत की।
- अरुण जेटली ने 2017 में जीएसटी (GST) लागू कर भारत की कर प्रणाली में बड़ा बदलाव किया। उन्होंने बजट पेश करने की तारीख 1 फरवरी कर दी और रेल बजट को केंद्रीय बजट में मिला दिया।
- 2010-2025
- पी. चिदंबरम ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) योजना शुरू की और महिलाओं के लिए विशेष बैंक, भारतीय महिला बैंक (Bharatiya Mahila Bank) की स्थापना की।
- निर्मला सीतारमण, 2019 में पूर्ण केंद्रीय बजट पेश करने वाली पहली महिला बनीं। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया और डिजिटल मुद्रा, सीमा शुल्क सुधार, और नई कर प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित किया। 2025 में, वह अपना आठवां बजट पेश करेंगी, जो एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।
केंद्रीय बजट की संरचना और घटक
भारत सरकार का बजट मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित है: राजस्व बजट और पूंजी बजट। इसमें बजटीय प्राप्तियां (Budget Receipts) और बजटीय व्यय (Budget Expenditure) भी शामिल होते हैं।
- राजस्व बजट (Revenue Budget): राजस्व बजट में सरकार की आय (receipts) और ऐसे खर्च (expenditures) शामिल होते हैं, जो उसकी संपत्तियों या देनदारियों को प्रभावित नहीं करते।
- (i) राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts): यह सरकार की आय है, जो विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है, और यह न तो कोई देनदारी (liability) बनाती है और न ही सरकारी संपत्तियों को घटाती है।
- प्रकार:
- कर प्राप्तियां (Tax Receipts): जैसे आयकर (Income Tax), कॉरपोरेट कर (Corporate Tax), जीएसटी (GST), उत्पाद शुल्क (Excise Duty) आदि।
- गैर-कर प्राप्तियां (Non-Tax Receipts): जैसे जुर्माने (fines), अनुदान (grants), दान (donations), और ऋणों पर ब्याज।
- प्रकार:
- (ii) राजस्व व्यय (Revenue Expenditures): यह सरकार के नियमित खर्च हैं, जो उसके सामान्य संचालन के लिए होते हैं। जैसे:
- वेतन (Salaries), पेंशन (Pensions), अनुदान (Grants), और लोक कल्याण योजनाओं के खर्च।
- यह कोई नई संपत्ति नहीं बनाते और न ही सरकारी देनदारियों को कम करते हैं।
- (i) राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts): यह सरकार की आय है, जो विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है, और यह न तो कोई देनदारी (liability) बनाती है और न ही सरकारी संपत्तियों को घटाती है।
- पूंजी बजट (Capital Budget): पूंजी बजट में सरकार की संपत्तियों और देनदारियों को दर्शाया जाता है। यह दीर्घकालिक विकास और निवेश पर केंद्रित होता है।
- (i) पूंजी प्राप्तियां (Capital Receipts): ये वे धनराशि हैं, जिन्हें सरकार इस प्रकार जुटाती है कि वे या तो देनदारियां बनाती हैं या संपत्तियों को घटाती हैं।
- स्रोत:
- घरेलू या विदेशी स्रोतों से ऋण (Loans)।
- पूर्व में दिए गए ऋणों की वसूली।
- सरकारी संपत्तियों को निजी क्षेत्र को बेचने से प्राप्त धन (Disinvestment)।
- स्रोत:
- (ii) पूंजी व्यय (Capital Expenditures): यह व्यय नई संपत्तियां बनाने या मौजूदा संपत्तियों को सुधारने के लिए किया जाता है। उदाहरण:
- बुनियादी ढांचे (Infrastructure), मशीनरी, उपकरण (Equipment), और स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च।
- यह देनदारियों को कम करने के लिए ऋण चुकाने में भी उपयोग किया जाता है।
- (i) पूंजी प्राप्तियां (Capital Receipts): ये वे धनराशि हैं, जिन्हें सरकार इस प्रकार जुटाती है कि वे या तो देनदारियां बनाती हैं या संपत्तियों को घटाती हैं।
भारत में केंद्रीय बजट तैयार करने की प्रक्रिया
केंद्रीय बजट तैयार करने और पारित करने की प्रक्रिया व्यवस्थित होती है, जो सरकारी संसाधनों के कुशल उपयोग, पारदर्शिता, और जवाबदेही को सुनिश्चित करती है। इसके विभिन्न चरण इस प्रकार हैं:
- बजट की तैयारी: बजट प्रक्रिया की शुरुआत मंत्रालयों और विभागों द्वारा वित्त मंत्रालय को अपने वित्तीय प्रस्तावों और अनुमानित खर्चों की रिपोर्ट सौंपने से होती है। इन प्रस्तावों की गहन समीक्षा के बाद, इन्हें एक एकीकृत मसौदा बजट के रूप में तैयार किया जाता है।
- बजट की प्रस्तुति: बजट का अगला चरण वित्त मंत्री द्वारा लोकसभा में बजट पेश करना होता है, जो आमतौर पर 1 फरवरी को होता है (2017 से संशोधित समयानुसार)। बजट भाषण में आगामी वित्तीय वर्ष के लिए मुख्य आर्थिक रणनीतियों, नीतिगत पहल, और वित्तीय प्रस्तावों पर प्रकाश डाला जाता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण की प्रस्तुति: बजट से एक दिन पहले, संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाता है। यह दस्तावेज़ अर्थव्यवस्था की विस्तृत समीक्षा प्रदान करता है, जिसमें चुनौतियाँ, उपलब्धियाँ, और भविष्य की योजनाएँ शामिल होती हैं।
- आम चर्चा: बजट प्रस्तुति के बाद, संसद के दोनों सदनों में आम चर्चा होती है। 3–4 दिनों तक सदस्य बजट पर विचार-विमर्श करते हैं। इस चरण में किसी प्रकार का मतदान या औपचारिक प्रस्ताव नहीं होता।
- समितियों द्वारा जांच: आम चर्चा के बाद, बजट को 24 विभागीय स्थायी समितियों को भेजा जाता है। ये समितियाँ प्रत्येक मंत्रालय की अनुदान मांगों (Demands for Grants) की गहन जांच करती हैं और संसद को विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करती हैं। इससे बजट के विभिन्न पहलुओं को सुधारने में सहायता मिलती है।
- अनुदान मांगों पर मतदान: लोकसभा प्रत्येक अनुदान मांग पर मतदान करती है। मंत्रालयवार प्रस्तुत की गई मांगों में से केवल वोट योग्य हिस्से पर बहस होती है। संचित निधि (Consolidated Fund of India) से जुड़ी खर्च राशि पर केवल चर्चा होती है, मतदान नहीं।
- इसमें कटौती प्रस्ताव (Cut Motions) पेश किए जा सकते हैं, जैसे नीति कटौती, आर्थिक कटौती, या सांकेतिक कटौती।
- गिलोटिन प्रक्रिया: वोटिंग के लिए निर्धारित अंतिम दिन, लोकसभा अध्यक्ष के निर्देश पर, शेष सभी अनुदान मांगों को बिना चर्चा के गिलोटिन के तहत मतदान के लिए रखा जाता है। यह प्रक्रिया समय पर सभी अनुदानों को पारित करने को सुनिश्चित करती है।
- विनियोग विधेयक का पारित होना: सरकार को संचित निधि (Consolidated Fund of India) से धन निकालने की अनुमति देने के लिए विनियोग विधेयक (Appropriation Bill) पेश किया जाता है। इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाता है और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बनता है।
- लेखानुदान (Vote on Account): यदि बजट प्रक्रिया 31 मार्च से आगे बढ़ती है, तो लेखानुदान के माध्यम से सरकार को अस्थायी धनराशि प्रदान की जाती है। यह आमतौर पर दो महीने के खर्च के लिए होता है, जबकि चुनावी वर्षों में यह अवधि अधिक हो सकती है।
- वित्त विधेयक का पारित होना: अंतिम चरण में वित्त विधेयक (Finance Bill) पारित किया जाता है, जो सरकार के कर प्रस्तावों को लागू करता है। इसे पेश करने के 75 दिनों के भीतर पारित करना अनिवार्य है। इसके साथ ही बजट प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
केंद्रीय बजट का महत्व
- आर्थिक विकास: बजट राष्ट्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह बुनियादी ढांचे (Infrastructure) जैसे आवश्यक क्षेत्रों में धन का रणनीतिक आवंटन करता है। इन निवेशों से रोज़गार के अवसर, व्यापार के नए रास्ते, और निवेश में वृद्धि होती है, जिससे समग्र आर्थिक प्रगति होती है।
- सामाजिक कल्याण: बजट सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने का मुख्य साधन है। यह अनुदानों (Subsidies) और कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन प्रदान करता है, जो हाशिए पर रहने वाले और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की सहायता करती हैं। इससे समावेशी विकास (Inclusive Development) को सुनिश्चित किया जाता है।
- आय का वितरण: बजट कर नीतियों के माध्यम से धन के वितरण को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाता है। कर स्लैब (Tax Slabs) में बदलाव करके विभिन्न आय वर्गों पर कर भार को अधिक समानुपातिक (Equitable) बनाने का प्रयास किया जाता है। यह न्यायपूर्ण आर्थिक परिवेश को प्रोत्साहित करता है।
अंतरिम बजट बनाम केंद्रीय बजट
- उद्देश्य और दायरा:
- अंतरिम बजट: यह एक अस्थायी वित्तीय योजना है, जिसे चुनावों और नई सरकार के गठन तक सरकारी खर्चों को पूरा करने के लिए तैयार किया जाता है। यह केवल आवश्यक खर्चों और अल्पकालिक अनुमान पर केंद्रित होता है।
- केंद्रीय बजट: यह पूरे वित्तीय वर्ष के लिए एक व्यापक वित्तीय योजना है, जिसमें आय और व्यय दोनों का विवरण होता है। इसमें दीर्घकालिक नीतियों और योजनाओं पर ध्यान दिया जाता है।
- कर बदलाव और नीतिगत समायोजन:
- अंतरिम बजट: इसमें आमतौर पर बड़े कर बदलाव या नई योजनाओं की शुरुआत नहीं की जाती है, क्योंकि वर्तमान सरकार का कार्यकाल सीमित होता है और चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश लागू होते हैं।
- केंद्रीय बजट: इसमें पूरे वर्ष के लिए कर सुधार और नीतिगत बदलाव किए जा सकते हैं। इसका उद्देश्य दीर्घकालिक आर्थिक विकास और लक्ष्यों को प्राप्त करना होता है।
संतुलित बजट बनाम असंतुलित बजट
- संतुलित बजट: जब सरकार की कुल आय और कुल व्यय बराबर होते हैं, तो इसे संतुलित बजट कहा जाता है। यह वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करता है और यह दर्शाता है कि सरकार अधिक उधार नहीं ले रही है।
- असंतुलित बजट: जब सरकार की आय और व्यय में समानता नहीं होती, तो इसे असंतुलित बजट कहा जाता है। यह दो प्रकार का हो सकता है:
- अधिशेष बजट (Surplus Budget): जब सरकार की आय, उसके व्यय से अधिक होती है, तो उसे अधिशेष बजट कहा जाता हैं। ऐसा बजट मुद्रास्फीति को कम करने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है।
- घाटे का बजट (Deficit Budget): जब सरकार का व्यय, उसकी आय से अधिक होता है, तो उसे घाटे का बजट कहा जाता है। यह बजट आमतौर पर आर्थिक मंदी के समय विकास और प्रगति को प्रोत्साहित करने के लिए अपनाया जाता है।
केंद्रीय बजट में करों के प्रकार
- प्रगतिशील और प्रतिगामी कर (Progressive vs. Regressive Tax):
- प्रगतिशील कर (Progressive Taxes): यह कर व्यवस्था ऐसी होती है जिसमें आय बढ़ने पर कर का बोझ भी बढ़ता है। सरल शब्दों में, अमीर व्यक्ति अपनी आय का बड़ा हिस्सा कर के रूप में चुकाते हैं, जबकि कम आय वाले व्यक्ति पर कर का बोझ कम होता है।
- प्रतिगामी कर (Regressive Taxes): इसके विपरीत, प्रतिगामी कर में कम आय वालों पर ज्यादा असर पड़ता है। हालांकि कर की दर सभी के लिए समान होती है, लेकिन इसका प्रभाव कम आय वर्ग पर अधिक ज्यादा होता है।
- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर (Direct vs. Indirect Tax):
- प्रत्यक्ष कर (Direct Taxes): यह कर सीधे व्यक्ति या संस्था द्वारा चुकाया जाता है। जिन व्यक्तियों और संस्थाओ पर यह कर लगाया जाता है, यह कर सीधा उनसे लिया जाता है। इसका भार किसी और पर नहीं डाला जा सकता। यह आय और संपत्ति पर आधारित होता है।
- अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes): अप्रत्यक्ष कर में शुरू में कर उत्पादक या आपूर्तिकर्ता द्वारा चुकाया जाता है, लेकिन बाद में इसका भार उपभोक्ताओं पर भी डाल दिया जाता है यानी अप्रत्यक्ष रूप में यह कर उनसे लिया जाता है। यह माल और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि के रूप में दिखाई देता है।
बजट घाटा और उसका वर्गीकरण
बजट घाटा तब होता है जब सरकार का कुल व्यय उसकी कुल आय से अधिक हो जाता है। इसे मुख्यतः तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- राजस्व घाटा (Revenue Deficit): जब सरकार का कुल राजस्व व्यय, उसकी राजस्व आय से अधिक हो जाता है तो उसे राजस्व घाटा कहते है। यह दर्शाता है कि सरकार को अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने के लिए अधिक उधार या विनिवेश की आवश्यकता हो सकती है।
- राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit): इस प्रकार का घाटा तब होता है जब सरकार का कुल व्यय, उसकी कुल आय (उधार को छोड़कर) से अधिक हो जाता है। यह सरकार की उधार लेने की आवश्यकता को दर्शाता है और इससे मुद्रास्फीति और राष्ट्रीय कर्ज में वृद्धि हो सकती है।
- प्राथमिक घाटा (Primary Deficit): यह राजकोषीय घाटे और ब्याज भुगतान के बीच का अंतर होता है। यह बताता है कि सरकार वर्तमान परिचालित जरूरतों को पूरा करने के लिए कितना उधार ले रही है। इसमें उच्च प्राथमिक घाटा आर्थिक अनुशासन की कमी को दर्शाता है।
भारत की बजट प्रस्तुति से जुड़े रोचक तथ्य
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यूपीएससी पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs) प्रश्न (2020): बजट के साथ-साथ, वित्त मंत्री अन्य दस्तावेज भी संसद में प्रस्तुत करते हैं, जिनमें ‘मैक्रो इकोनॉमिक फ्रेमवर्क स्टेटमेंट’ भी शामिल है। यह दस्तावेज प्रस्तुत किया जाता है क्योंकि यह __ द्वारा अनिवार्य है: (अ) लंबे समय से चली आ रही संसदीय परंपरा (ब) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 और अनुच्छेद 110(1) (स) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 113 (द) 2003 के वित्तीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन अधिनियम की व्यवस्थाएँ प्रश्न (2021): पूंजीगत बजट और राजस्व बजट के बीच अंतर स्पष्ट करें। इन दोनों बजटों के घटकों की व्याख्या करें। |
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