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चुनाव संचालन नियम, 1961 में संशोधन

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हाल ही में  कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनाव संचालन नियम, 1961 में संशोधन को चुनौती देते हुए रिट याचिका दाखिल की है। ताकि चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को बनाए रखा जा सके।

  • केंद्रीय कानून मंत्रालय ने भारत निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93(2)(ए) में संशोधन किया है। इस संशोधन के तहत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के सार्वजनिक निरीक्षण पर रोक लगा दी गई है। हालांकि, यह दस्तावेज़ उम्मीदवारों के लिए निरीक्षण के लिए उपलब्ध रहेंगे।

चुनाव संचालन नियम, 1961 :

  1. परिचय: चुनाव संचालन नियम, 1961, भारत में चुनाव प्रक्रिया के सुचारू और निष्पक्ष संचालन के लिए विस्तृत प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है। ये नियम जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत बनाए गए हैं।
  2. चुनाव की रूपरेखा:
    • ये नियम चुनाव प्रक्रिया के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करते हैं।
    • इनमें उम्मीदवारों के नामांकन, मतदान प्रक्रिया, मतगणना, और परिणामों की घोषणा जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया है।
  3. मतदाता की गोपनीयता की सुरक्षा: नियमों में मतदाताओं की गोपनीयता सुनिश्चित करने और चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखने के प्रावधान शामिल हैं।
  4. भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ: चुनाव अधिकारियों की भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ स्पष्ट रूप से परिभाषित की गई हैं ताकि चुनाव सुचारू और व्यवस्थित रूप से संचालित हो सके।
  5. विवाद और शिकायतों का निपटारा: नियमों में चुनाव प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाले विवादों और शिकायतों के समाधान के लिए विस्तृत प्रक्रियाएँ दी गई हैं।

संशोधन के बारे में:

  1. नियम 93(2)() का संशोधन:
    • 1961 के चुनाव आचार नियम के नियम 93(2)(ए) में संशोधन के बाद, केवल वे चुनाव से संबंधित दस्तावेज़, जो नियमों में स्पष्ट रूप से उल्लेखित हैं, सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध होंगे।
    • यह संशोधन उन इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स, जैसे कि फॉर्म और पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट, की सार्वजनिक पहुंच को सीमित करता है, जिनका नियमों में स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
  2. संशोधन से पहले की व्यवस्था: संशोधन से पहले, सभी चुनाव संबंधित दस्तावेज़, जिनमें सीसीटीवी फुटेज और वीडियो रिकॉर्डिंग शामिल थे, बिना किसी अपवाद के सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध थे।
  3. उम्मीदवारों की पहुंच बरकरार: इन प्रतिबंधों के बावजूद, उम्मीदवारों को सभी चुनाव दस्तावेज़ों, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक सामग्री भी शामिल है, तक पहुंच बनाए रखने का अधिकार है, ताकि वे चुनाव प्रक्रिया का सत्यापन कर सकें।
  4. न्यायिक निगरानी: संशोधित नियमों के तहत प्रतिबंधित सामग्री विशेष मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप के माध्यम से अदालत के आदेश पर प्राप्त की जा सकती है।
  5. संशोधन की आवश्यकता: यह संशोधन इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स के संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए किया गया है, जिसमें मतदाता गोपनीयता पर खतरा और एआई के माध्यम से डेटा में छेड़छाड़ का जोखिम शामिल है।

संशोधनों के खिलाफ उठाए गए मुद्दे:

  1. पारदर्शिता में कमी: संशोधन से चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और जवाबदेही पर असर पड़ता है।
    • सीसीटीवी फुटेज और वीडियो रिकॉर्डिंग जैसी सामग्री तक सार्वजनिक पहुंच निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
  2. संवैधानिक और कानूनी चिंताएँ: चुनाव आयोग बिना सार्वजनिक परामर्श के नियमों में बदलाव नहीं कर सकता जो नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित करते हैं।
    • यह संशोधन हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों के विपरीत है।
  3. न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट से चुनाव से जुड़े रिकॉर्ड्स तक सार्वजनिक पहुंच बहाल करने का आग्रह किया गया है।

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