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दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक 60 वर्षीय दम्पति को सरोगेसी के लिए अपने मृत पुत्र के जमे हुए शुक्राणु का उपयोग करने का अधिकार प्रदान किया है।
निर्णय की मुख्य बातें:
- कानूनी सहमति: भारतीय कानून के तहत, यदि अण्डाणु या शुक्राणु के स्वामी की सहमति हो, तो पति या पत्नी की अनुपस्थिति में मरणोपरांत प्रजनन पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
- मरणोपरांत प्रजनन: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक या दोनों जैविक माता-पिता की मृत्यु के बाद सहायक प्रजनन तकनीक (ART) का उपयोग करके गर्भधारण किया जाता है। ऐसे मामले में, मृत व्यक्ति के क्रायोप्रिजर्व्ड गैमेट का उपयोग बच्चे को गर्भ धारण करने के लिए किया जाता है।
- संपत्ति का गठन: न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वीर्य नमूना या डिंब नमूना ‘संपत्ति’ का गठन करता है क्योंकि यह व्यक्ति की जैविक सामग्री का हिस्सा है और कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा विरासत में प्राप्त किया जा सकता है।
सहायक प्रजनन तकनीक (ART):
- ART में वे सभी तकनीकें शामिल हैं जो मानव शरीर के बाहर शुक्राणु या अण्डाणु को ले जाकर तथा युग्मज या भ्रूण को महिला की प्रजनन प्रणाली में स्थानांतरित करके गर्भधारण कराने का प्रयास करती हैं।
- इनमें इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन, सरोगेसी, गैमेट क्रायोप्रिजर्वेशन, गैमेट इंट्रा-फैलोपियन ट्रांसफर (GIFT) आदि शामिल हैं।
भारत में ART विनियमन:
- ART (विनियमन) अधिनियम, 2021: यह ART क्लीनिकों और बैंकों का विनियमन और पर्यवेक्षण करता है, दुरुपयोग की रोकथाम करता है, और ART सेवाओं का सुरक्षित और नैतिक अभ्यास सुनिश्चित करता है।
- सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021: यह वाणिज्यिक सरोगेसी को प्रतिबंधित और दंडित करता है, तथा इसे केवल परोपकार के लिए अनुमति देता है।
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