Apni Pathshala

असम मुस्लिम विवाह और तलाक का अनिवार्य पंजीकरण विधेयक, 2024, समझाया गया

चर्चा में क्यों?

  • असम विधान सभा ने 28 अगस्त को “असम अनिवार्य मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण विधेयक” 2024 (Assam Compulsory Registration of Muslim Marriages and Divorces Bill, 2024) पारित किया।
  • इस विधेयक का उद्देश्य “बाल विवाह” (child marriages) और “बिना सहमति के विवाह” (marriages without the consent of the parties) को रोकना और “बहुविवाह” (polygamy) पर नियंत्रण रखना है। इसके साथ ही, असम विधान सभा ने राज्य में मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण के लिए 89 साल पुराने अधिनियम (Act) को निरस्त कर दिया, जिससे पांच महीने पहले जारी किए गए अध्यादेश (Ordinance) की पुष्टि हो गई।
  • इस नए विधेयक के माध्यम से, सरकार ने बाल विवाह और बिना सहमति के होने वाले विवाहों पर रोक लगाने का प्रयास किया है, साथ ही बहुविवाह जैसी प्रथाओं पर भी नियंत्रण करने की पहल की है।

असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम (Assam Compulsory Registration of Muslim Marriages and Divorces Bill), 1935:

  • यह अधिनियम 1935 में बनाए गए मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) के अनुरूप है। इस अधिनियम में असम में मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
  • 2010 में इस अधिनियम में एक संशोधन किया गया, जिसमें ‘स्वैच्छिक’ शब्द को हटाकर ‘अनिवार्य’ कर दिया गया, जिससे असम में मुस्लिम विवाह और तलाक का पंजीकरण अनिवार्य हो गया।
  • इस अधिनियम के तहत राज्य सरकार को किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को विवाह और तलाक पंजीकृत करने के लिए लाइसेंस देने का अधिकार है, और मुस्लिम पंजीयक को लोक सेवक (public servant) माना जाता है।
  • यह अधिनियम विवाह और तलाक के लिए पंजीयक के पास आवेदन करने और उनकी पंजीकरण प्रक्रिया को भी निर्धारित करता है।

नए कानून की मुख्य विशेषताएँ:

  • विधानसभा ने मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण विधेयक, 2024 पारित किया, जो निकाह या इस्लामी रीति-रिवाजों के तहत होने वाले विवाहों को नियंत्रित करता है।
  • काजियों की भूमिका समाप्त कर दी गई है। अब पंजीकरण सरकार के विवाह और तलाक पंजीयक (Marriage and Divorce Registrar) द्वारा किया जाएगा।
  • विवाह पंजीकरण के लिए सात शर्तें पूरी होनी चाहिए, जिनमें महिला की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और पुरुष की 21 वर्ष होना, और दोनों की स्वतंत्र सहमति शामिल है।
  • पंजीकरण से 30 दिन पहले सूचना देना आवश्यक है। इस दौरान शर्तों के उल्लंघन पर आपत्ति दर्ज की जा सकती है।
  • यदि कोई पक्ष नाबालिग पाया जाता है, तो अधिकारी को तुरंत बाल विवाह संरक्षण अधिकारी को सूचित करना होगा।
  • जानबूझकर शर्तों का उल्लंघन कर विवाह पंजीकृत करने पर अधिकारी को सजा और जुर्माना हो सकता है।

अधिनियम को निरस्त करने के पीछे सरकार का तर्क

  • इस वर्ष फरवरी में, कैबिनेट ने 1935 के अधिनियम (Act) को समाप्त करने का निर्णय लिया। मार्च में, सरकार ने एक अध्यादेश (Ordinance) जारी कर 1935 के अधिनियम को तुरंत प्रभाव से निरस्त कर दिया। तब से असम में मुस्लिमों के बीच विवाह और तलाक के पंजीकरण को नियंत्रित करने वाला कोई कानून (legislation) नहीं था।
  • गुरुवार को, विधान सभा ने अध्यादेश को बदलने के लिए असम निरसन विधेयक, 2024 (Assam Repealing Bill, 2024) पारित किया।
  • 1935 के अधिनियम को समाप्त करने के पीछे सरकार का मुख्य तर्क यह था कि यह नाबालिगों के बीच विवाहों के पंजीकरण की अनुमति देता था।
  • सरकार ने विशेष रूप से निरस्त किए गए अधिनियम की धारा 8 (Section 8) की ओर इशारा किया, जिसमें पंजीयक को आवेदन करने की प्रक्रिया का उल्लेख था। इसमें कहा गया था, “…यह शर्त है कि यदि दुल्हन और दूल्हा, या दोनों, नाबालिग हों, तो उनके वैध अभिभावकों (lawful guardians) द्वारा उनकी ओर से आवेदन किया जाएगा…”।
  • अधिनियम की धारा 10 (Section 10), जिसमें विवाह पंजीकरण (registration) के लिए प्रविष्टियाँ करने की प्रक्रिया बताई गई थी, उसमें भी यही प्रावधान था।
  • सरकार ने इस तर्क के आधार पर 1935 के अधिनियम को समाप्त कर दिया, ताकि नाबालिगों के विवाहों के पंजीकरण की अनुमति देने वाले कानून को समाप्त किया जा सके।
  • इस अधिनियम को निरस्त करने का निर्णय असम में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की दिशा में एक कदम के रूप में भी देखा जा रहा है, जैसा कि हाल ही में उत्तराखंड में हुआ है। सरकार का उद्देश्य विभिन्न समुदायों के विवाह कानूनों को एकसमान कानूनी ढांचे के तहत लाना और उन्हें एक सामान्य कानून के तहत सुव्यवस्थित करना है।

अन्य राज्यों में नया विवाह अधिनियम (New Marriage Act in other states):

आनंद विवाह अधिनियम (Anand Marriage Act), पंजाब: पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने नवम्बर 2022 को घोषणा की कि सिखों के लिए राज्य में अपने विवाह को पंजीकृत करने के लिए आनंद विवाह अधिनियम, 2016 को सही मायने में लागू किया जाएगा।

  • उन्होंने कहा कि हरियाणा (Haryana), आंध्र प्रदेश ( Andhra Pradesh), तमिलनाडु (Tamil Nadu), केरल (Kerala), राजस्थान (Rajasthan) और दिल्ली (Delhi) सहित बाईस राज्यों ने अधिनियम को लागू किया है, लेकिन छह साल पहले जारी अधिसूचना के बावजूद इसे सही ढंग से लागू नहीं किया गया है।

भारत के विभिन्न राज्यों में UCC के पहल (UCC initiatives in different states of India):

  • गोवा (Goa): गोवा में UCC लागू है, जिसे 1867 में पेश किया गया था और इसे गोवा की विशेष सांस्कृतिक और धार्मिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए बनाए रखा गया है। यह कानून सभी धर्मों के लिए समान व्यक्तिगत कानून प्रदान करता है।
  • उत्तराखंड सरकार (Uttarakhand government ) ने राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कर दिया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे मंजूरी दी थी . सीएम पुष्कर सिंह धामी ने बताया, “प्रदेश में समान नागरिक संहिता कानून लागू होने से सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलने के साथ ही महिलाओं पर हो रहे उत्पीड़न पर भी लगाम लगेगी

भारत में विभिन्न विवाह कानून (Marriage Acts) मौजूद हैं जो विभिन्न धर्मों और समुदायों के लिए अलग-अलग नियम और प्रावधान प्रदान करते हैं। जैसे –

  1. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
  2. मुस्लिम विवाह और तलाक अधिनियम, 1937
  3. फारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936
  4. क्रिश्चियन विवाह अधिनियम, 1872
  5. विशेष विवाह अधिनियम, 1954
  6. अनंद विवाह अधिनियम, 1909
  7. महाराष्ट्र हिंदू विवाह अधिनियम, 1955

प्रभाव:

असम में बाल विवाह के मामलों में 81% की कमी (81% reduction in child marriage cases in Assam): जुलाई में, कैबिनेट ने असम मुस्लिम निकाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को समाप्त करने और अनिवार्य पंजीकरण कानून (compulsory registration law) लाने के लिए एक बिल को मंजूरी दी थी । जिससे असम में बाल विवाह के मामलों में काफी कमी देखी गई है ।

  • इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन रिपोर्ट (Child Protection Report) के अनुसार, कानूनी कार्रवाई के माध्यम से असम में बाल विवाह के मामलों में महत्वपूर्ण कमी आई है। 2021-22 और 2023-24 के बीच, राज्य के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81% की कमी दर्ज की गई है।

भारत में बाल विवाह (Child marriage in India):

  • भारत ने हाल के दशकों में बाल विवाह दर को कम करने में प्रगति की है, लेकिन यह अभी भी एक व्यापक समस्या है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (National Family Health Survey (NFHS-5) -5) के अनुसार, भारत में बाल विवाह की दर 23.3% हो गई है।
  • राज्यों में बाल विवाह की दर में बड़े अंतर हैं। बिहार, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में यह राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक होता है।

मुख्य आंकड़े (NFHS-5):

  • 20-24 वर्ष की उम्र की 27% महिलाएं 18 वर्ष से पहले शादी हो जाती है ।
  • बाल विवाह गरीब परिवारों और कम शिक्षा वाले परिवारों में अधिक होता है।
  • भारत के दक्षिणी राज्यों में बाल विवाह की दर सामान्यतः उत्तर और पूर्वी राज्यों की तुलना में कम है।

बाल विवाह, मानवाधिकार का उल्लंघन क्यों है (Why child marriage is a violation of human rights):

  • शिक्षा का अधिकार (Right to Education): लड़कियाँ स्कूल छोड़ देती हैं, जिससे उनकी शिक्षा का अधिकार छिन जाता है।
  • स्वास्थ्य का अधिकार (Right to Health): बाल दुल्हनों को गर्भावस्था और प्रसव में स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम होता है।
  • भेदभाव से मुक्ति का अधिकार (Right to Freedom from Discrimination): बाल विवाह लिंग आधारित भेदभाव को बढ़ावा देता है।
  • हानि से सुरक्षा का अधिकार (Right to Protection from Harm): लड़कियाँ शारीरिक और भावनात्मक हानि का शिकार होती हैं।
  • स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Choice): लड़कियाँ अपने जीवनसाथी का चुनाव करने से वंचित रहती हैं।
  • बचपन का अधिकार (Right to a Childhood): लड़कियों को बचपन से वंचित कर उन्हें जल्दी जिम्मेदारियों में डाल दिया जाता है।
  • विवाह में समानता का अधिकार (Right to Equality in Marriage): उम्र के बड़े अंतर के कारण शक्ति असंतुलन उत्पन्न होता है।
  • सामाजिक भागीदारी का अधिकार (Right to Participation): लड़कियाँ समाज में पूरी तरह से भाग नहीं ले पातीं।
  • परिवार जीवन का अधिकार (Right to a Family Life): बाल विवाह परिवार जीवन को प्रभावित करता है।
  • उचित जीवन स्तर का अधिकार (Right to an Adequate Standard of Living): बाल विवाह गरीबी और आर्थिक निर्भरता को बढ़ावा देता है।

भारत में बाल विवाह रोकने के लिए सरकार की पहल (Government Initiatives to Stop Child Marriage in India):

कानूनी ढांचे (Legal Framework):

  • बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006: बाल विवाह को अपराध मानता है और इसमें शामिल लोगों जैसे माता-पिता, अभिभावक और पुजारियों को सजा देता है।
  • बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 1929: यह कानून PCMA का आधार था और पहले बाल विवाह को रोकने के लिए था।
  • बालकों से यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012: बाल विवाह में होने वाले यौन शोषण से बच्चों की रक्षा करता है।
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE): 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है, जिससे लड़कियाँ लंबे समय तक स्कूल में रह सकें।

योजनाएँ और कार्यक्रम (Schemes and Programmes):

  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ: इस योजना का उद्देश्य लड़की के महत्व को बढ़ावा देना, उनकी शिक्षा को प्रोत्साहित करना और बाल विवाह के नुकसान के बारे में जागरूकता फैलाना है।
  • साबला (अब किशोरी लड़कियों के लिए योजना): किशोरी लड़कियों को शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन कौशल में सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे बाल विवाह की संभावना कम होती है।
  • गर्ल्स सेकंडरी एजुकेशन के लिए राष्ट्रीय प्रोत्साहन योजना: गरीब पृष्ठभूमि की लड़कियों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिससे वे शादी को टालकर अपनी शिक्षा जारी रख सकें।
  • चाइल्डलाइन इंडिया (1098): बच्चों के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन, जो संकट में बच्चों की मदद करती है, जिसमें बाल विवाह का सामना कर रहे बच्चे भी शामिल हैं।

असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को खत्म करने से संबंधित चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं (The following are the challenges associated with the abolition of the Assam Muslim Marriage and Divorce Registration Act, 1935):

  • विरोधी कानूनों का संरेखण (Alignment of conflicting laws): नई व्यवस्था के लागू होने पर पुराने और नए कानूनों के बीच टकराव हो सकता है।
  • पारंपरिक मान्यताएँ (Traditional beliefs): मुसलमान समुदाय की परंपराएँ और सांस्कृतिक मान्यताएँ इस अधिनियम के तहत निर्धारित नियमों के अनुकूल हो सकती हैं, जिनके बदलने से सामाजिक अस्थिरता हो सकती है।
  • विवाह और तलाक की प्रथाएँ (Marriage and divorce customs): नए नियमों की स्वीकृति और उनकी पालन की प्रक्रिया में सामाजिक प्रतिरोध हो सकता है।
  • संविधानिक अधिकारों का मुद्दा (Constitutional rights issue): इस अधिनियम को समाप्त करने पर संविधानिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं से संबंधित विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
  • न्यायिक चुनौती (Judicial challenge): नए कानूनों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, जिससे कानूनी विवादों की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

इन चुनौतियों का सामना करने के लिए व्यापक कानूनी, सामाजिक और प्रशासनिक योजना की आवश्यकता होगी।

मुस्लिम पर्सनल लॉ क्या है (What is Muslim Personal Law):

परिचय (Introduction): मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) उस कानून का समूह है जो इस्लाम धर्म मानने वाले व्यक्तियों के व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करता है। इसमें विवाह (Marriage), तलाक (Divorce), विरासत (Inheritance), और पारिवारिक संबंधों (Family Relationships) जैसे विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है। यह कानून मुख्य रूप से क़ुरान (Quran), हदीस (Hadith), और इस्लामिक न्यायशास्त्र से लिया गया है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित मुद्दे (Issues Related to Muslim Personal Law):

  1. पोलिगामी (Polygamy): शरिया के अनुसार, पुरुषों को एक साथ चार पत्नियाँ रखने की अनुमति है।
  2. निका हलाला (Nikah Halala): इसमें एक मुस्लिम महिला को अपने पूर्व पति से दोबारा विवाह करने से पहले किसी अन्य व्यक्ति से शादी और तलाक लेना पड़ता है।
  3. तलाक-ए-हसन (Talaq-e-Hasan): एक मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को एक बार तलाक कहकर तीन महीने तक इंतजार कर सकता है।
  4. त्रैतीय तलाक (Triple Talaq): एक पति अपनी पत्नी को तीन बार “तलाक” शब्द कहकर तलाक दे सकता है, चाहे वह मौखिक हो या लिखित (ईमेल या टेक्स्ट मैसेज के जरिए भी)।
  5. तलाक और खुला (Talaq and Khula): इस्लाम में, तलाक पुरुष के लिए और खुला महिला के लिए होता है।

आगे का रास्ता (The way forward):

असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम ( Assam Muslim Marriage and Divorce Registration Act), 1935 को हटाना एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह बाल विवाह से निपटने और विशेष रूप से भारत में बच्चों, खासकर लड़कियों के अधिकारों और भलाई को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक व्यापक प्रयासों का केवल एक हिस्सा है। बाल विवाह को लेकर और कदम उठाए जा सकते है जैसे-

  • कानूनी सुधार: Child Marriage विरोधी कानूनों का सख्त पालन और सुधार आवश्यक है।
  • समाज जागरूकता: बाल विवाह के प्रभावों पर जागरूकता बढ़ाना और Community को संवेदनशील बनाना ज़रूरी है।
  • सशक्तिकरण और शिक्षा: लड़कियों की शिक्षा और Skill Development को बढ़ावा देना चाहिए।

Questions:

भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद किसी व्यक्ति के अपने चुने हुए व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार की रक्षा करता है?

Which Article of the Indian Constitution protects a person’s right to marry a person of his/her choice?

(a) अनुच्छेद 15

(b) अनुच्छेद 18

(c) अनुच्छेद 21

(d) अनुच्छेद 25

Answer: (b) अनुच्छेद 21

Explanation:

अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि शादी करने की स्वतंत्रता, चाहे वह अंतर-धार्मिक हो या अंतर-जातीय, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है। यह व्यक्तिगत पसंद और स्वायत्तता के लिए मौलिक अधिकार के रूप में संरक्षित है।

Explore our courses: https://apnipathshala.com/courses/

Explore Our test Series: https://tests.apnipathshala.com/

Share Now ➤

क्या आपको Apni Pathshala के Courses, RNA PDF, Current Affairs, Test Series और Books से सम्बंधित कोई जानकारी चाहिए? तो हमारी विशेषज्ञ काउंसलर टीम आपकी सिर्फ समस्याओं के समाधान में ही मदद नहीं करेगीं, बल्कि आपको व्यक्तिगत अध्ययन योजना बनाने, समय का प्रबंधन करने और परीक्षा के तनाव को कम करने में भी मार्गदर्शन देगी।

Apni Pathshala के साथ अपनी तैयारी को मजबूत बनाएं और अपने सपनों को साकार करें। आज ही हमारी विशेषज्ञ टीम से संपर्क करें और अपनी सफलता की यात्रा शुरू करें

📞 +91 7878158882

Related Posts

Scroll to Top