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नवीनतम GDP अनुमान से भारत की अर्थव्यवस्था का आकलन

सामान्य अध्ययन पेपर III: वृद्धि एवं विकास

चर्चा में क्यों? 

नवीनतम GDP अनुमान से भारत की अर्थव्यवस्था का आकलन: भारत सरकार ने हाल ही में “दूसरा अग्रिम अनुमान” (Second Advance Estimates – SAE) जारी किए हैं, जो वित्त वर्ष 2024-25 के लिए देश की आर्थिक वृद्धि का आकलन प्रस्तुत करते हैं। 

  • यह अनुमान सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा प्रकाशित किया गया है। 
  • इस रिपोर्ट में विशेष रूप से वास्तविक GDP (Real GDP) का आकलन किया गया है, जो मुद्रास्फीति के प्रभाव को ध्यान में रखकर स्थिर मूल्यों पर गणना की जाती है।
  • यह अनुमान सरकार को आने वाले महीनों में आर्थिक गतिविधियों की दिशा का संकेत देता है, जिससे नीति निर्माण और बजट संबंधी निर्णय लेने में सहायता मिलती है।

दूसरे अग्रिम अनुमान (SAE) के प्रमुख बिंदु

भारत सरकार द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान (SAE) 2024-25 देश की आर्थिक गतिविधियों और विकास दर का प्रारंभिक आकलन प्रस्तुत करता है। इसमें GDP की गणना नाममात्र GDP (Nominal GDP) और वास्तविक GDP (Real GDP) के रूप में की जाती है, जिसमें मुद्रास्फीति (inflation) को ध्यान में रखा जाता है।

  • विनिमय दर और GDP पर प्रभाव: भारत की विनिमय दर (Exchange Rate) का GDP पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। वर्तमान में, भारत की विनिमय दर ₹85 प्रति डॉलर हो गई है, जबकि 2014 में यह ₹61 प्रति डॉलर थी। यदि विनिमय दर स्थिर रहती, तो भारत की GDP लगभग $5.3 ट्रिलियन होती, लेकिन मौजूदा दर पर यह केवल $3.8 ट्रिलियन अनुमानित है। इसका अर्थ यह है कि GDP का मूल्य कम आंका जा रहा है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की सापेक्ष स्थिति प्रभावित हो रही है।
  • GDP वृद्धि दर में गिरावट
      • COVID-19 के कारण 2020-21 में GDP में संकुचन (Contraction) हुआ, जिससे आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ गईं।
      • पिछले कुछ वर्षों में वास्तविक GDP वृद्धि दर 5% से भी कम रही है, जबकि 1991 के बाद औसत वृद्धि दर 7% के आसपास थी।
      • नाममात्र GDP की वृद्धि दर भी 10% से कम हो गई है, जबकि 2003-04 से 2018-19 के बीच यह औसतन 13.5% थी।
  • नाममात्र GDP और वास्तविक GDP
      • नाममात्र GDP (Nominal GDP) – MoSPI के अनुसार, 2024-25 में भारत की GDP ₹324 लाख करोड़ रहने की संभावना है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 9.7% अधिक है। हालांकि, यह वृद्धि मुद्रास्फीति के प्रभाव से प्रभावित हो सकती है।
      • वास्तविक GDP (Real GDP) – जब मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा जाता है, तो वास्तविक GDP ₹184.9 लाख करोड़ रह सकती है, जो नाममात्र GDP का सिर्फ 57% है। इससे स्पष्ट होता है कि अर्थव्यवस्था की वास्तविक उत्पादकता में उतनी वृद्धि नहीं हुई है, जितनी नाममात्र आंकड़ों से प्रतीत होती है।
  • तिमाही GDP आंकड़े: MoSPI ने हाल ही में तीन GDP अनुमान जारी किए हैं:
      • Q3 (अक्टूबर-दिसंबर) GDP वृद्धि दर 6.2% (YoY) रही।
      • Q2 (जुलाई-सितंबर) GDP वृद्धि दर 5.4% से संशोधित होकर 5.6% हुई।
      • FY24 की वार्षिक GDP वृद्धि दर 8.2% से बढ़ाकर 9.2% कर दी गई।

उपभोग व्यय और उपभोक्ता मांग: 

  • GDP वृद्धि में निजी उपभोग (Private Consumption) की भूमिका बढ़ी है। FY24 में इसे पहले 4% आंका गया था, लेकिन संशोधित अनुमान में इसे 5.6% कर दिया गया।
  • अर्थव्यवस्था की स्थिरता में उपभोग व्यय (PFCE) का महत्वपूर्ण योगदान होता है। वित्त वर्ष 2024-25 में निजी उपभोग व्यय में 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
  • यह संकेत देता है कि उपभोक्ता मांग पहले की अपेक्षा अधिक मजबूत रही है।
  • FY25 में, GDP वृद्धि का प्रमुख स्रोत निजी उपभोग होगा, जबकि सरकार और निजी क्षेत्र के निवेश की भूमिका सीमित रहेगी।

मुख्य क्षेत्र और उनका योगदान

  • विनिर्माण क्षेत्र वित्त वर्ष 2023-24 में 12.3% की प्रभावशाली वृद्धि के साथ सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र रहा। यह क्षेत्र औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, और सरकारी नीतियों द्वारा समर्थित रहा, जिससे इसमें उल्लेखनीय विस्तार हुआ। हालाँकि, वित्त वर्ष 2024-25 में इसकी वृद्धि दर घटकर 4.3% रहने का अनुमान है।
  • निर्माण क्षेत्र ने भी अर्थव्यवस्था में मजबूत योगदान दिया, जो मुख्य रूप से बुनियादी ढाँचे में निवेश और शहरीकरण के विस्तार के कारण हुआ। वित्त वर्ष 2023-24 में इस क्षेत्र ने 10.4% की वृद्धि दर्ज की, जबकि वित्त वर्ष 2024-25 में इसकी वृद्धि दर 8.6% रहने का अनुमान है।
  • वित्तीय, अचल संपत्ति और व्यावसायिक सेवाएँ भी तेजी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में शामिल रहीं। वित्त वर्ष 2023-24 में इस क्षेत्र ने 10.3% की वृद्धि दर हासिल की, जो वित्त वर्ष 2024-25 में घटकर 7.2% हो सकती है। 
  • लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाएँ ने स्थिर वृद्धि दर्ज की है, जिसमें वित्त वर्ष 2023-24 और 2024-25 दोनों वर्षों में 8.8% की वृद्धि अनुमानित है। यह क्षेत्र सरकारी नीतियों, रक्षा खर्च और प्रशासनिक सुधारों से प्रेरित है।

भारत की GDP अनुमान के प्रमुख चरण

भारत में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आँकड़े कई चरणों में संशोधित किए जाते हैं, ताकि अधिक सटीक और व्यापक आर्थिक आकलन किया जा सके। अनुमान के ये पाँच चरण अर्थव्यवस्था की गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते हैं।

  • प्रथम अग्रिम अनुमान (FAE): GDP का पहला अग्रिम अनुमान (First Advance Estimate) जनवरी में जारी किया जाता है और यह मुख्य रूप से वित्त वर्ष की पहली दो तिमाहियों (Q1: अप्रैल-जून और Q2: जुलाई-सितंबर) के आँकड़ों पर आधारित होता है। चूँकि इसमें केवल शुरुआती आँकड़े शामिल होते हैं, इसलिए यह पूर्णत: सटीक नहीं होता।
  • द्वितीय अग्रिम अनुमान (SAE): दूसरा अग्रिम अनुमान (Second Advance Estimate) फरवरी में जारी किया जाता है, जिसमें पहली तीन तिमाहियों (Q1, Q2, और Q3: अक्टूबर-दिसंबर) के आँकड़े शामिल होते हैं। इस कारण यह GDP का अधिक विश्वसनीय अनुमान माना जाता है। SAE के साथ ही पहला संशोधित अनुमान (FRE) भी जारी किया जाता है, जो पिछले वित्तीय वर्ष के GDP आँकड़ों का एक अद्यतन संस्करण होता है। 
  • अनंतिम अनुमान (PE): GDP के अनंतिम अनुमान (Provisional Estimate) मई में जारी किए जाते हैं, जिनमें Q4 (जनवरी-मार्च) के आँकड़े शामिल होते हैं। यह अनुमान द्वितीय अग्रिम अनुमान (SAE) को और अधिक सटीक बनाता है।
  • पहला संशोधित अनुमान (FRE): पहला संशोधित अनुमान (First Revised Estimate) अगले वर्ष फरवरी में प्रकाशित किया जाता है। इसमें पिछले वित्तीय वर्ष के GDP आँकड़ों को और अधिक सटीक रूप से संशोधित किया जाता है।
  • अंतिम अनुमान (FE): इसके बाद, अंतिम अनुमान (Final Estimate) दो वर्ष बाद फरवरी में जारी किया जाता है। यह GDP का सबसे परिष्कृत और अंतिम संस्करण होता है, जिसमें सभी आवश्यक संशोधन और विस्तृत आँकड़े शामिल किए जाते हैं।

भारत में GDP संशोधन का महत्व

  • नीतिगत निर्णय: GDP आँकड़ों के संशोधन से सरकार और नीति-निर्माताओं को अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति का बेहतर आकलन करने में मदद मिलती है। प्रारंभिक अनुमानों में कई बार अधूरे या अनुमानित आँकड़े होते हैं, लेकिन जैसे-जैसे अधिक डेटा उपलब्ध होता है, संशोधित आँकड़े अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।
  • राजकोषीय नीति: GDP आँकड़ों के आधार पर सरकार हर वर्ष केंद्रीय और राज्य बजट तैयार करती है। यदि GDP वृद्धि दर पहले अनुमान से कम निकलती है, तो सरकार को अपने व्यय, राजस्व और घाटे को संतुलित करने के लिए नई योजनाएँ बनानी पड़ती हैं। यदि GDP अनुमान अपेक्षा से अधिक बेहतर होता है, तो सरकार घाटे को कम करने पर ध्यान दे सकती है।
  • मौद्रिक नीति: GDP आँकड़े भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति (Monetary Policy) को प्रभावित करते हैं। यदि संशोधित GDP आँकड़े संकेत देते हैं कि अर्थव्यवस्था सुस्त हो रही है, तो RBI ब्याज दरों (Interest Rates) को कम कर सकता है ताकि बाजार में नकदी प्रवाह बढ़े और उपभोग व निवेश में वृद्धि हो।
  • भारत की आर्थिक साख: GDP संशोधन अंतरराष्ट्रीय संस्थानों जैसे विश्व बैंक (World Bank), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), और रेटिंग एजेंसियों (Moody’s, S&P, Fitch) के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। इन संस्थानों द्वारा GDP आँकड़ों के आधार पर भारत की क्रेडिट रेटिंग और निवेश जोखिम का आकलन किया जाता है।

वर्तमान में भारत की GDP वृद्धि में आने वाली प्रमुख बाधाएँ

  • निजी उपभोग व्यय में कमी: भारत की GDP में निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) का योगदान लगभग 60% है, जो इसे आर्थिक वृद्धि का सबसे महत्वपूर्ण कारक बनाता है। हालाँकि, वित्त वर्ष 2020 से इसकी वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम रही है। इसकी चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) केवल 4.8% रही है, जो 5% से भी कम है। यह धीमी वृद्धि समग्र GDP वृद्धि को प्रभावित कर रही है क्योंकि जब उपभोक्ता खर्च कम होता है, तो कंपनियाँ उत्पादन बढ़ाने और नई नौकरियाँ सृजित करने में संकोच करती हैं।
  • सरकारी व्यय की सीमित वृद्धि: सरकारी अंतिम उपभोग व्यय (GFCE) GDP का लगभग 10% होता है। कोविड-19 महामारी के बावजूद, सरकार का व्यय केवल मामूली रूप से बढ़ा है। हाल के वर्षों में यह वृद्धि दर केवल 4.2% रही है, जो विकास की गति को सीमित कर सकती है। सरकारी खर्च बुनियादी ढाँचे और कल्याणकारी योजनाओं में निवेश को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक होता है, लेकिन सीमित वृद्धि से विकास को अपेक्षित गति नहीं मिल पाई है।
  • निवेश में गिरावट: भारत की GDP में सकल स्थायी पूँजी निर्माण (GFCF) का योगदान लगभग 30% है, लेकिन इसकी वृद्धि सीमित रही है। हालाँकि यह 6.3% की दर से बढ़ने का अनुमान है, लेकिन दीर्घकालिक वृद्धि दर केवल 5.3% रही है। उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाने वाला निवेश घट रहा है, जिससे उद्योगों का विस्तार प्रभावित हो रहा है। 
  • निर्यात-आयात असंतुलन: भारत का शुद्ध निर्यात (Net Exports) आमतौर पर नकारात्मक रहता है, अर्थात देश का आयात, निर्यात से अधिक होता है। हालाँकि, हाल के वर्षों में निर्यात और आयात के बीच का अंतर कुछ हद तक कम हुआ है, जो एक सकारात्मक संकेत हो सकता है। लेकिन व्यापार संतुलन में असमानता अभी भी एक चुनौती बनी हुई है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार और आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
  • कम उत्पादकता: भारत की वास्तविक GDP वृद्धि दर बीते वर्षों में 5% से कम रही है, जो आर्थिक उत्पादन में मंदी को दर्शाती है। उत्पादकता वृद्धि (Productivity Growth) धीमी होने से समग्र आर्थिक गतिविधियाँ प्रभावित होती हैं, जिससे औद्योगिक उत्पादन और सेवा क्षेत्र की वृद्धि सीमित हो जाती है। मुद्रास्फीति और वास्तविक उत्पादन (Inflation & Real Output) भी एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। यदि मुद्रास्फीति (महँगाई) के प्रभाव को हटा दिया जाए, तो वास्तविक उत्पादन दर संतोषजनक नहीं है।

आगे की राह 

भारत को वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपनी आर्थिक वृद्धि दर को निरंतर तेज़ बनाए रखना होगा। वर्तमान में, भारत की अर्थव्यवस्था अनुमानित 5% की दर से बढ़ रही है, जबकि आवश्यक दर 7% से अधिक होनी चाहिए। 

  • संरचनात्मक सुधार: भारत में निजी निवेश और बुनियादी ढाँचे (Infrastructure) में निवेश को बढ़ावा देना आवश्यक है। जब तक कंपनियाँ और उद्योग नई परियोजनाओं में निवेश नहीं करेंगे, उत्पादन क्षमता और रोजगार वृद्धि संभव नहीं होगी। सरकार को ऐसी नीतियाँ अपनानी होंगी जो निवेशकों को दीर्घकालिक स्थिरता का भरोसा दें।
  • मानव संसाधन विकास: एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को शिक्षा, कौशल विकास और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करना होगा। वर्तमान में, भारत की कार्यबल उत्पादकता अपेक्षा से कम है, जिससे आर्थिक वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यदि भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ना है, तो उसे तकनीकी और कौशल विकास को प्राथमिकता देनी होगी।
  • समावेशी विकास: भारत की आर्थिक वृद्धि को केवल बड़े शहरों और उद्योगों तक सीमित न रखते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सतत विकास पर भी ध्यान देना होगा। भारत को एक संतुलित और सतत आर्थिक विकास मॉडल अपनाने की आवश्यकता है, जिससे सभी वर्गों को समान अवसर मिलें।

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न (2011): स्फीति दर में होने वाली तीव्र वृद्धि का आरोप्य कभी-कभी “आधार प्रभाव” (base effect) पर लगाया जाता है। यह “आधार प्रभाव” क्या है?

(a) यह फसलों के खराब होने से आपूर्ति में उत्पन्न उग्र अभाव का प्रभाव है

(b) यह तीव्र आर्थिक विकास के कारण तेज़ी से बढ़ रही मांग का प्रभाव है

(c) यह विगत वर्ष की कीमतों का स्फीति दर की गणना पर आया प्रभाव है

(d) इस संदर्भ में उपर्युक्त (a), (b) तथा (c) कथनों में से कोई भी सही नहीं है

उत्तर: (c)

प्रश्न (2021): भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वर्ष 2015 से पहले और वर्ष 2015 के पश्चात् परिकलन विधि में अंतर की व्याख्या कीजिये। 

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