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क्षुद्रग्रह 2024 YR4

सामान्य अध्ययन पेपर III: विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी

चर्चा में क्यों? 

क्षुद्रग्रह 2024 YR4: नासा (NASA) ने हाल ही में 2024 YR4 नामक एक क्षुद्रग्रह की पहचान की है, जो पृथ्वी के निकट स्थित है। वैज्ञानिक गणनाओं के अनुसार, वर्ष 2032 में इसके पृथ्वी से टकराने की 1.5% संभावना है। वर्तमान में यह अंतरिक्ष अनुसंधान और पृथ्वी की सुरक्षा से जुड़ा एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है।

क्षुद्रग्रह 2024 YR4 से संबंधित जानकारी 

खगोल वैज्ञानिकों द्वारा पृथ्वी के निकट स्थित क्षुद्रग्रहों (Near-Earth Asteroids) का अध्ययन किया जाता है ताकि संभावित खतरों का पूर्वानुमान लगाया जा सके। इसी क्रम में, दिसंबर 2024 में एक नया क्षुद्रग्रह 2024 YR4 खोजा गया, जो भविष्य में पृथ्वी के लिए एक संभावित जोखिम बन सकता है। 

    • खोज तिथि: 27 दिसंबर 2024
    • खोज स्थान: चिली स्थित ATLAS (Asteroid Terrestrial-impact Last Alert System) टेलीस्कोप स्टेशन, रियो हुर्टाडो
    • खोज की महत्ता: प्रारंभिक गणनाओं के अनुसार, जब इस क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने की संभावना 1% से अधिक पाई गई, तो वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसियों ने इस पर गहन अध्ययन शुरू कर दिया।
  • भौतिक विशेषताएँ
    • व्यास: 40 से 100 मीटर के बीच
    • संभावित संरचना: वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार, यह क्षुद्रग्रह S-प्रकार (Stony), L-प्रकार या K-प्रकार की चट्टानी संरचना वाला हो सकता है।
    • घूर्णन अवधि: लगभग 19.5 मिनट में अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करता है।
  • कक्षीय विशेषताएँ:
    • यह सूर्य के चारों ओर एक अण्डाकार कक्षा में घूम रहा है और निकट-पृथ्वी वस्तु (NEO) की श्रेणी में आता है।
    • 25 दिसंबर 2024 को यह पृथ्वी के 828,800 किमी पास से गुजरा (चंद्रमा से पृथ्वी की दूरी का लगभग दोगुना)।
    • 17 दिसंबर 2028 को इसके पुनः पृथ्वी के समीप से गुजरने का अनुमान लगाया गया है।
    • वैज्ञानिक अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2032 में पृथ्वी से टकराने की 1.5% संभावना जताई गई है।
  • संभावित प्रभाव:
    • क्षुद्रग्रह 2024 YR4 यदि किसी घनी आबादी वाले क्षेत्र से टकराता है, तो 20-50 किलोमीटर तक के क्षेत्र में व्यापक विनाश संभव है। खुले महासागर में गिरने पर इसका प्रभाव सीमित रहेगा।
    • यह 8 से 10 मेगाटन ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है। यह 2013 में रूस के चेल्याबिंस्क उल्कापिंड से लगभग दोगुना बड़ा है, जिससे इसका प्रभाव कहीं अधिक शक्तिशाली और विनाशकारी हो सकता है।
    • नासा ने 2024 YR4 के लिए टोरोनो स्केल में 3 की रेटिंग दी है। इस रेटिंग का अर्थ है कि यह पृथ्वी के लिए संभावित खतरा बन सकता है। जो स्थानीय जलवायु पर अस्थायी प्रभाव डाल सकता है।
    • संयुक्त राष्ट्र (UN) और वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसियाँ इस प्रकार के खतरों का अध्ययन कर रही हैं और प्रभाव न्यूनीकरण (Mitigation) की योजनाएँ बना रही हैं। यदि भविष्य के अवलोकन 2024 YR4 के पृथ्वी से टकराने की संभावना को बढ़ाते हैं, तो क्षुद्रग्रह का मार्ग बदलने (Asteroid Deflection) या उसे नष्ट करने के लिए योजनाएँ तैयार की जाएँगी। 

टोरोनो स्केल के बारे में:

  • टोरोनो स्केल (Torino Scale) एक वैज्ञानिक माप प्रणाली है, जिसका उपयोग पृथ्वी के लिए संभावित खगोलीय खतरों के आकलन में किया जाता है। 
  • यह निकट-पृथ्वी वस्तुओं (NEOs) जैसे क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं के टकराव की संभावना और उनके प्रभाव की तीव्रता को मापने के लिए अपनाया गया एक महत्वपूर्ण पैमाना है।
  • 1999 में अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) द्वारा इस पैमाने को आधिकारिक रूप से अपनाया गया।
  • इसमें 0 से 10 तक का पैमाना प्रयोग किया जाता है, जहाँ 0 न्यूनतम खतरा और 10 अत्यधिक विनाशकारी टकराव को दर्शाता है।
  • 0 रेटिंग: वस्तु या तो पृथ्वी से टकराने की अत्यंत कम संभावना रखती है या इतनी छोटी होती है कि वह वायुमंडल में जलकर नष्ट हो जाएगी।
  • 10 रेटिंग: टकराव निश्चित होता है और इसका प्रभाव वैश्विक तबाही ला सकता है।

क्षुद्रग्रह: परिभाषा, उत्पत्ति और प्रकार

    • परिभाषा: क्षुद्रग्रह (Asteroids) छोटे, चट्टानी पिंड होते हैं, जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इनका आकार कुछ मीटर से लेकर सैकड़ों किलोमीटर तक हो सकता है। ये मुख्य रूप से मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित क्षुद्रग्रह बेल्ट (Main Asteroid Belt) में पाए जाते हैं, लेकिन कुछ क्षुद्रग्रह पृथ्वी की कक्षा के करीब भी आते हैं, जिससे संभावित खगोलीय खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।

क्षुद्रग्रहों की उत्पत्ति

  • सौरमंडल के निर्माण के अवशेष: माना जाता है कि 4.6 अरब वर्ष पूर्व जब सौरमंडल बना, तो कुछ चट्टानी पदार्थ ग्रहों का निर्माण नहीं कर सके और क्षुद्रग्रहों के रूप में बचे रहे।
  • गुरुत्वाकर्षण प्रभाव: विशाल ग्रहों, विशेषकर बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण के कारण, इन चट्टानों ने एक पूर्ण ग्रह बनने के बजाय असमान्य कक्षाओं में घूमना शुरू कर दिया।
  • टकराव और विखंडन: समय के साथ क्षुद्रग्रहों की आपसी टक्कर के कारण छोटे-छोटे टुकड़े बने, जिससे मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट और अन्य खगोलीय संरचनाएँ विकसित हुईं।

क्षुद्रग्रहों के प्रकार: क्षुद्रग्रहों को उनके स्थान और संरचना के आधार पर मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जाता है:

  • क्षुद्रग्रह बेल्ट के क्षुद्रग्रह: यह मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित क्षेत्र है, जहाँ लाखों क्षुद्रग्रह मौजूद हैं। यहाँ का सबसे बड़ा ज्ञात क्षुद्रग्रह सेरेस (Ceres) है, जिसे अब बौने ग्रह (Dwarf Planet) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • ट्रोजन क्षुद्रग्रह: ये क्षुद्रग्रह किसी बड़े ग्रह के साथ एक स्थिर कक्षा साझा करते हैं और उसके लैग्रेंजियन बिंदुओं (L4 और L5) के पास रहते हैं। बृहस्पति के ट्रोजन क्षुद्रग्रह सबसे अधिक संख्या में पाए जाते हैं।
  • पृथ्वी के निकट क्षुद्रग्रह (NEA): ये वे क्षुद्रग्रह हैं, जिनकी कक्षा पृथ्वी के करीब से गुजरती है और कुछ तो पृथ्वी की कक्षा को पार भी कर सकते हैं। इन्हें तीन भागों में बाँटा जाता है:
  • अमोर (Amor): ये पृथ्वी की कक्षा को नहीं काटते, लेकिन इसके निकट तक आ आते हैं।
  • एपोलो (Apollo): ये क्षुद्रग्रह पृथ्वी की कक्षा को पार करते हैं और सबसे अधिक संभावित खतरा बन सकते हैं।
  • अटेन (Aten): इनकी कक्षा पृथ्वी की कक्षा के अंदर रहती है।

क्षुद्रग्रहों की मुख्य विशेषताएँ

क्षुद्रग्रहों की विशेषताएँ उनके आकार, संरचना, गति और कक्षीय विशेषताओं पर निर्भर करती हैं। ये विशेषताएँ उन्हें ग्रहों और अन्य खगोलीय पिंडों से अलग बनाती हैं।

  • आकार और संरचना: क्षुद्रग्रहों का आकार कुछ मीटर से लेकर सैकड़ों किलोमीटर तक हो सकता है। अधिकांश क्षुद्रग्रह अनियमित आकार के होते हैं, क्योंकि इनका गुरुत्वाकर्षण बल इतना मजबूत नहीं होता कि इन्हें गोल आकार में ढाल सके। छोटे क्षुद्रग्रह अक्सर टकराव के कारण टूटकर और छोटे टुकड़ों में बंट जाते हैं।
  • रासायनिक संरचना: कार्बनयुक्त क्षुद्रग्रह (C-type) सबसे अधिक संख्या में पाए जाने वाले क्षुद्रग्रह है। इनमें कार्बनयुक्त पदार्थ और सिलिकेट खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं। ये बहुत प्राचीन माने जाते हैं, जो सौरमंडल के शुरुआती समय के अवशेष हो सकते हैं।
  • कक्षीय विशेषताएँ: सभी क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं, लेकिन उनकी कक्षा ग्रहों की तुलना में अधिक अनिश्चित होती है। बृहस्पति और अन्य ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण कई क्षुद्रग्रह अपनी कक्षा से हट सकते हैं।
  • क्षुद्रग्रहों के उपग्रह: कुछ बड़े क्षुद्रग्रहों के छोटे प्राकृतिक उपग्रह (Moons) होते हैं। उदाहरण: इडा (Ida) क्षुद्रग्रह का एक चंद्रमा डैक्टाइल (Dactyl) है। रयुगु (Ryugu) और बेन्नू (Bennu) जैसे क्षुद्रग्रहों की सतह पर छोटे-छोटे पिंड मौजूद हैं, जो उनके गुरुत्वाकर्षण से बंधे रहते हैं।

क्षुद्रग्रहों से पृथ्वी को संभावित खतरा

  • महाविनाश: अंतरिक्ष में हजारों क्षुद्रग्रह पृथ्वी के निकट मौजूद हैं, जिन्हें पृथ्वी-समीप वस्तुएँ (Near-Earth Objects – NEOs) कहा जाता है। नासा और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियाँ इन क्षुद्रग्रहों पर सतत निगरानी रखती हैं। हालाँकि, किसी बड़े क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने की संभावना फिलहाल कम मानी जाती है, लेकिन छोटे क्षुद्रग्रह भी गंभीर नुकसान पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के लिए, 2013 में रूस के चेल्याबिंस्क (Chelyabinsk) में 20 मीटर चौड़ा उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद विस्फोट कर गया था, जिससे 1,500 से अधिक लोग घायल हुए और हजारों इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं।
  • सुनामी का खतरा: यदि कोई बड़ा क्षुद्रग्रह महासागर में गिरता है, तो यह भीषण सुनामी उत्पन्न कर सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि कोई 1 किलोमीटर या उससे बड़ा क्षुद्रग्रह महासागर में गिरता है, तो इससे 100 मीटर से भी ऊँची लहरें उत्पन्न हो सकती हैं, जो समुद्र तटीय क्षेत्रों में भारी तबाही मचा सकती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन:क्षुद्रग्रह टकराने से पृथ्वी की सतह पर भीषण विस्फोट और आग लग सकती है, जिससे भारी मात्रा में धूल, राख और मलबा वायुमंडल में फैल जाएगा। इससे सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाएगा, जिससे तापमान में भारी गिरावट आ सकती है। वैज्ञानिक इस परिघटना को ‘क्षुद्रग्रह सर्दी’ (Asteroid Winter) कहते हैं।

वैज्ञानिक अध्ययन और क्षुद्रग्रह मिशन

  • क्षुद्रग्रहों की निगरानी: विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, अंतरिक्ष एजेंसियाँ अब पृथ्वी-समीप क्षुद्रग्रहों (Near-Earth Objects – NEOs) की सटीक निगरानी करने में सक्षम हो रही हैं। 
    • नासा का “Near-Earth Object Program” अब तक 28,000 से अधिक NEOs की पहचान कर चुका है, जिनमें संभावित रूप से खतरनाक वस्तुएँ (Potentially Hazardous Objects – PHOs) भी शामिल हैं।
    • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ दूरबीनों, रडार और उपग्रहों के माध्यम से अपनी निगरानी प्रणाली को और अधिक उन्नत करने के प्रयास में हैं। 
    • संयुक्त राष्ट्र का बाह्य अंतरिक्ष मामलों का कार्यालय (UNOOSA), अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है और क्षुद्रग्रह संबंधी खतरों को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय क्षुद्रग्रह चेतावनी नेटवर्क (IAWN) जैसी पहल संचालित करता है।
  • भारत की भूमिका: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भी इस वैश्विक प्रयास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। ISRO ने स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस (Space Situational Awareness – SSA) को मजबूत करने के लिए नेटवर्क फॉर स्पेस ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग एंड एनालिसिस (NETRA) नामक एक पहल शुरू की है।
    • इसके अलावा, भारत भविष्य में एक समर्पित क्षुद्रग्रह ट्रैकिंग प्रणाली विकसित करने की योजना बना रहा है, जिससे वह संभावित खतरों की पहचान करने और उनका विश्लेषण करने में सक्षम होगा।
  • विक्षेपण तकनीक: यदि कोई बड़ा क्षुद्रग्रह पृथ्वी की ओर बढ़ रहा हो, तो उसे टकराव से पहले ही विक्षेपित (Deflect) करने की आवश्यकता होगी। इसके लिए वैज्ञानिकों ने कई रणनीतियाँ विकसित की हैं:
  • गतिज प्रभाव (Kinetic Impact): नासा के DART (Double Asteroid Redirection Test) मिशन, 2022 ने इस तकनीक को सफलतापूर्वक परखा। इस मिशन में एक अंतरिक्ष यान को क्षुद्रग्रह डिमॉर्फस (Dimorphos) से टकराया गया, जिससे उसके कक्षीय पथ में परिवर्तन आया। 
  • नाभिकीय विस्फोट (Nuclear Detonation): चरम परिस्थितियों में, एक नाभिकीय विस्फोट का उपयोग क्षुद्रग्रह को तोड़ने या उसके पथ को विक्षेपित करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि, यह अंतिम विकल्प होता है क्योंकि विस्फोट से क्षुद्रग्रह के कई टुकड़े हो सकते हैं, जो और अधिक नुकसान पहुँचा सकते हैं।

UPSC पिछले वर्ष का प्रश्न (PYQ)

प्रश्न (2011): क्षुदग्रहों तथा धूमकेतु के बीच क्या अंतर होता है? 

1- क्षुदग्रह लघु चट्टानी ग्रहिकाएँ (प्लेनेटॉयड) हैं, जबकि धूमकेतु हिमशीतित गैसों से निर्मित होते हैं जिन्हें चट्टानी और धातु पदार्थ आपस में बाँधे रखता है। 

2- क्षुद्रग्रह अधिकांशतः वृहस्पति और मंगल के परिक्रमा-पथों के बीच पाए जाते हैं, जबकि धूमकेतु अधिकांशतः शुक्र और बुध के बीच पाए जाते हैं। 

3- धूमकेतु गोचर दीप्तिमान पुच्छ दर्शाते हैं, जबकि क्षुदग्रह यह नहीं दर्शाते। 

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? 

(a) केवल 1 और 2 

(b) केवल 1 और 3 

(c) केवल 3 

(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b)

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