Base Editing Therapy
Base Editing Therapy
संदर्भ:
नौ महीने के काइल “केजे” मुलडून जूनियर, जो एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी CPS1 कमी से पीड़ित हैं, कस्टम बेस एडिटिंग थेरेपी से सफलतापूर्वक इलाज पाने वाले दुनिया के पहले ज्ञात व्यक्ति बन गए हैं।
CRISPR-Cas9 और बेस एडिटिंग:
CRISPR क्या है?
- पूरा नाम: Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats (CRISPR)
- यह एक प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक तंत्र है जो बैक्टीरिया और आर्किया जैसे सूक्ष्मजीवों में पाया जाता है।
- इसका कार्य:
- वायरस के हमले के बाद, बैक्टीरिया वायरस के DNA के अंश को अपने जीनोम में जोड़ लेते हैं।
- भविष्य में वही वायरस दोबारा आए तो CRISPR प्रणाली उसे पहचान कर काट देती है।
CRISPR-Cas9 तकनीक का विकास–
- वर्ष 2012 में जेनिफर डूडना और इमैनुएल शार्पेंटियर ने इस तकनीक को विकसित किया।
- इसके लिए उन्हें 2020 का नोबेल पुरस्कार (रसायन विज्ञान) मिला।
- Cas9: एक एंजाइम (प्रोटीन) है जो CRISPR की सहायता से DNA को काटता है – इसीलिए इसे “मॉलिक्यूलर कैंची” कहते हैं।
CRISPR-Cas9 Gene Editing कैसे काम करता है?
- रोग-जनक (बुरी) DNA पहचान की जाती है।
- वैज्ञानिक एक guide RNA बनाते हैं जो Cas9 से जुड़ा होता है।
- यह गाइड RNA टारगेट DNA तक Cas9 को निर्देशित करता है।
- Cas9 DNA की दोनों strands को काटता है (double-strand break)।
- फिर वैज्ञानिक सही DNA अनुक्रम प्रदान करते हैं, जो कटे हुए स्थान पर जुड़ जाता है, जिससे रोगजनक प्रभाव हट जाता है
बेस एडिटिंग: अगली पीढ़ी की CRISPR तकनीक
- CRISPR-Cas9 के विपरीत, यह DNA में कटाव नहीं करती।
- Cas9 को एक base-modifying enzyme से जोड़ा जाता है।
- यह केवल एक गलत base को सुधारता है (जैसे G को A में बदलना)।
- तुलना:
- CRISPR-Cas9 = कैंची और गोंद
- Base Editing = पेंसिल और रबर
लाभ:
- अत्यधिक सटीकता (Precision)
- कम जीनोमिक क्षति
- आसान डिलीवरी (छोटे आकार के कारण वायरस या नैनोकणों से ले जाना आसान)
- कोई विदेशी DNA नहीं जोड़ना पड़ता
उदाहरण – CPS1 रोग में उपयोग
- रोगी KJ में एक विशेष गलत बेस को सफलतापूर्वक सही किया गया, जिससे बीमारी का कारण दूर हुआ।
निष्कर्ष:
CRISPR और Base Editing जैसी तकनीकें जीन उपचार (Gene Therapy), आनुवंशिक रोगों के इलाज, और प्रिसिजन मेडिसिन में नई संभावनाएं खोल रही हैं।