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भोपाल गैस त्रासदी को 40 साल पूरे हो गए हैं। 2-3 दिसंबर 1984 की रात, भोपाल में यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से रिसी गैस के कारण हजारों लोगों की मौत हुई और लाखों लोग प्रभावित हुए।
- यह त्रासदी भारत के सबसे भयावह औद्योगिक हादसों में एक मानी जाती है, जिसके बाद सुरक्षा मानकों और औद्योगिक नीतियों पर गंभीर सवाल उठे।
भोपाल गैस त्रासदी:
भोपाल गैस त्रासदी मानव इतिहास की सबसे भयंकर औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है। यह 2-3 दिसंबर 1984 की रात को मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में हुई थी।
क्या हुआ था?
- अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ।
- MIC एक अत्यधिक जहरीली गैस है, जिसका इस्तेमाल कीटनाशकों के उत्पादन में किया जाता है।
प्रमुख आंकड़े और तथ्य:
- गैस रिसाव:
- करीब 40 टन MIC गैस फैक्ट्री से लीक हुई।
- यह गैस हवा से भारी थी, इसलिए यह ज़मीन के करीब फैल गई और आसपास के बस्तियों को प्रभावित किया।
- मृत्यु और प्रभावित लोग:
- तत्काल मौतें: 3,000-5,000 लोग।
- लंबी अवधि में मौतें: करीब 25,000-30,000।
- प्रभावित: 5 लाख से अधिक लोग, जिनमें सांस लेने की समस्या, कैंसर और अन्य बीमारियां पाई गईं।
- मुख्य कारण:
- सुरक्षा उपायों की कमी, जैसे कि गैस कूलिंग सिस्टम और वॉर्निंग अलार्म।
- फैक्ट्री की खराब स्थिति और रखरखाव की कमी।
- प्रभाव:
- स्वास्थ्य पर:
- आंखों में जलन, सांस लेने में दिक्कत, फेफड़ों और किडनी का खराब होना।
- बच्चों में जन्मजात विकृतियां।
- पर्यावरण पर:
- मिट्टी और पानी जहरीला हो गया।
- आज भी आसपास का क्षेत्र प्रदूषित है।
- स्वास्थ्य पर:
भविष्य में आपदाओं को रोकने के लिए पहल–
- नियमों को सख्त करना: भारत ने खतरनाक उद्योगों को नियंत्रित करने और हादसों को रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं, जैसे-
- विस्फोटक अधिनियम, 1884
- रासायनिक आपदा (आपात योजना, तत्परता और प्रतिक्रिया) नियम 1996
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT): यह संस्था पर्यावरण उल्लंघनों को सुलझाती है, जिसमें औद्योगिक दुर्घटनाएँ भी शामिल हैं, और प्रभावित समुदायों को न्याय प्राप्त करने का मंच प्रदान करती है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा–निर्देश: ये दिशा-निर्देश निरीक्षण प्रणाली, आपातकालीन तत्परता और समुदाय जागरूकता की महत्वपूर्णता को बताते हैं।