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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान नवाचार और उद्यमिता विकास (बायो-राइड) योजना को मंजूरी दी गई है। इस योजना में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की दो प्रमुख योजनाओं का विलय करके एकीकृत किया गया है। इसका उद्देश्य भारत को जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की दिशा में अग्रसर करना है।
बायो-राइड योजना के तीन प्रमुख घटक:
- जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) : इसका उद्देश्य जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उन्नत अनुसंधान को प्रोत्साहित करना है।
- औद्योगिक एवं उद्यमिता विकास (आई एंड ईडी) : स्टार्टअप्स और जैव-उद्यमिता को सीड फंडिंग, इनक्यूबेशन, और मेंटरशिप प्रदान करके बढ़ावा देना।
- बायोमैन्यूफैक्चरिंग एवं बायोफाउंड्री : पर्यावरणीय स्थिरता और हरित लक्ष्यों के अनुरूप टिकाऊ जैव-विनिर्माण को प्रोत्साहित करना।
बायो-राइड योजना के लाभ:
- अनुसंधान में तेजी: यह योजना स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरणीय स्थिरता और स्वच्छ ऊर्जा जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए जैव-नवाचार की क्षमता का दोहन करेगी।
- जैव-उद्यमिता को बढ़ावा: स्टार्टअप्स के लिए सीड फंडिंग, इन्क्यूबेशन समर्थन, और मेंटरशिप का प्रावधान।
- उन्नत नवाचार: जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों जैसे सिंथेटिक बायोलॉजी, बायोफार्मास्यूटिकल्स, और बायोप्लास्टिक्स में अनुसंधान और विकास के लिए अनुदान।
- औद्योगिक और अकादमिक सहयोग: उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए।
- चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था का समर्थन: ‘लाइफस्टाइल फॉर द एनवायरनमेंट’ के साथ तालमेल बिठाते हुए, हरित और पर्यावरण के अनुकूल समाधानों का विकास।
वित्तीय परिव्यय:
इस योजना के कार्यान्वयन के लिए 9197 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित है, जो 2021-22 से 2025-26 तक की अवधि में खर्च किया जाएगा।
भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा और जैव-अर्थव्यवस्था:
बायो-राइड योजना का लक्ष्य है कि 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर की जैव-अर्थव्यवस्था विकसित की जाए। यह योजना विकसित भारत 2047 के दृष्टिकोण को साकार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
पृष्ठभूमि:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार, और उद्यमिता को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के बारे में –
भारत में जैवविज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण विकास की शुरुआत 1986 में हुई जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत जैवविज्ञान विभाग की स्थापना की। यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि जैवविज्ञान के बिना भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकता था। 1982 में नेशनल बायोटेक्नोलॉजी बोर्ड (एनबीटीबी) का गठन हुआ, जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र में दीर्घकालिक योजना और प्राथमिकताओं को निर्धारित करना था।
विभाग के प्रमुख कार्य:
- मानव संसाधन विकास: वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की क्षमता निर्माण पर जोर दिया गया।
- आवश्यक ढांचागत निर्माण: जैवविज्ञान के क्षेत्र में आवश्यक आधारभूत संरचनाओं की स्थापना की गई।
- शोध एवं विकास के मानदंड: अनुसंधान के लिए विनियामक मानदंड स्थापित किए गए।
प्रमुख संस्थानों की स्थापना:
- पहला स्वायत्त संस्थान, राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान, 1981 में स्थापित हुआ और बाद में डीबीटी के अंतर्गत लाया गया।
- राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केंद्र (पूर्व में राष्ट्रीय जंतु ऊतक एवं कोशिका संवर्धन सुविधा) 1986 में स्थापित हुआ।
- 1990 और 2000 के दशक में कई अन्य प्रमुख संस्थान जैसे राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान संस्थान, डीएनए फिंगरप्रिंटिंग और नैदानिकी केंद्र, और जीवन विज्ञान संस्थान बनाए गए।
विभाग की महत्ता:
भारत में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान, विकास, और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (डीबीटी) की स्थापना ने देश को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खड़ा कर दिया। इसने जैवविज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक, औद्योगिक, और अकादमिक प्रगति की नई राहें खोलीं।
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