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भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए

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भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (बीबीएनजे) समझौते के रूप में जाना जाता है। यह समझौता 2023 में राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैव विविधता पर अंतर-सरकारी सम्मेलन द्वारा अपनाया गया था।

जैव विविधता की प्रमुख जानकारी:

  • क्रियान्वयन: भारत में इस समझौते को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता का संरक्षण और सतत उपयोग करना है।

विशेषताएँ:

  • यह महासागरों के जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्रों में, जो तनावग्रस्त हैं, समुद्री संरक्षित क्षेत्रों को परिभाषित और सीमांकित करेगा।
  • पक्षकार उच्च समुद्र से प्राप्त समुद्री संसाधनों पर संप्रभुता का प्रयोग नहीं कर सकते।

महत्व:

  • यह समझौता भारत की रणनीतिक उपस्थिति को ईईजेड से परे क्षेत्रों में बढ़ाएगा।
  • यह कई सतत विकास लक्ष्यों (SDGs), विशेष रूप से SDG 14 (पानी के नीचे जीवन) को प्राप्त करने में योगदान करेगा।
  • यह भारत के समुद्री संरक्षण प्रयासों को मजबूत करने, वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास के नए रास्ते खोलने में मदद करेगा।
  • यह पारंपरिक ज्ञान और सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक ज्ञान के उपयोग को बढ़ावा देगा।

मुख्य मुद्दे:

  1. समुद्री आनुवंशिक संसाधन: जिसमें लाभों का निष्पक्ष एवं न्यायसंगत बंटवारा शामिल है।
  2. समुद्री संरक्षित क्षेत्र: क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण जैसे उपाय।
  3. पर्यावरणीय प्रभाव आकलन: समुद्री पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों का मूल्यांकन।
  4. क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण: समुद्री तकनीकों का विकास और साझा करना।

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) के बारे में :

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) वर्ष 1982 का एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसे “समुद्र का नियम” (Law of the Sea) भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य समुद्री और समुद्र से संबंधित गतिविधियों के लिए कानूनी ढांचे का निर्माण करना है। यह संधि विश्व के सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकारों और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण करती है, साथ ही समुद्री संसाधनों के प्रयोग के नियमों को भी स्थापित करती है।

संधि के मुख्य प्रावधान:

  • समुद्री क्षेत्रों का वर्गीकरण: UNCLOS समुद्री क्षेत्रों को पाँच मुख्य क्षेत्रों में विभाजित करता है:
    1. आंतरिक जल (Internal Waters): यह क्षेत्र तटीय राज्यों के अंतर्गत आता है, जहां राज्य का पूरा अधिकार होता है।
    2. प्रादेशिक सागर (Territorial Sea): तटीय राज्य समुद्र से 12 नॉटिकल मील तक अपने क्षेत्रीय सागर में अधिकार रखता है।
    3. सन्निहित क्षेत्र (Contiguous Zone): प्रादेशिक सागर के बाद 12 से 24 नॉटिकल मील तक के क्षेत्र में राज्य सीमित अधिकार रखता है।
    4. अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone – EEZ): यह 200 नॉटिकल मील तक फैला क्षेत्र होता है, जिसमें राज्य को समुद्री संसाधनों का दोहन करने का अधिकार होता है।
    5. उच्च समुद्र (High Seas): यह क्षेत्र सभी देशों के लिए खुला होता है, जहां कोई भी राज्य विशेष अधिकार नहीं रखता।

UNCLOS के उद्देश्य:

  • सागरों और महासागरों के संसाधनों का स्थायी और न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करना।
  • समुद्र में नेविगेशन की स्वतंत्रता का संरक्षण करना।
  • समुद्री संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश प्रदान करना।

यह संधि तटीय राज्यों को अपने समुद्री क्षेत्र में अधिकार देती है और साथ ही नेविगेट करने वाले देशों को भी समुचित स्वतंत्रता प्रदान करती है। यह अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून के तहत देशों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए एक मानक स्थापित करती है।

हाई सीज़ के बारे में:

  • अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार, उच्च समुद्र उन सभी भागों को संदर्भित करता है जो विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ), प्रादेशिक समुद्र या किसी देश के आंतरिक जल में शामिल नहीं हैं।
  • उच्च सागर महासागरीय क्षेत्र का लगभग 64% हिस्सा है और इस पर किसी भी देश का प्रत्यक्ष स्वामित्व या विनियमन नहीं होता। 

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