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संदर्भ:
केंद्रीय गृह मंत्री ने असम के कोकराझार में अखिल बोडो छात्र संघ (ABSU) के 57वें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने बोडो शांति समझौते की सफलता को रेखांकित करते हुए इसे क्षेत्र में स्थायी शांति और विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया।
बोडो आंदोलन का पृष्ठभूमि:
- बोडो असम की सबसे बड़ी जनजातीय समुदायों में से एक हैं, जिनकी समृद्ध सांस्कृतिक और भाषाई विरासत है।
- हालाँकि, असम की राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणाली में वे लंबे समय से उपेक्षित महसूस करते आए हैं।
- इस उपेक्षा के कारण 1980 के दशक में एक अलग बोडोलैंड की मांग उठी, जिसने एनडीएफबी (NDFB) और बोडो लिबरेशन टाइगर्स (BLT) जैसे समूहों के नेतृत्व में आंदोलन, हिंसा और उग्रवाद को जन्म दिया।
समस्या के समाधान के पहले प्रयास:
- बोडो समझौता (1993): इसके तहत बोडोलैंड स्वायत्त परिषद (BAC) का गठन हुआ।
- समझौता (2003): संविधान की छठी अनुसूची के तहत बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (BTC) का गठन किया गया।
बोडो शांति समझौता (2020)
- यह समझौता असम के बोडो-बहुल क्षेत्रों, विशेष रूप से बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) में शांति और स्थिरता लाने के उद्देश्य से किया गया था।
- यह समझौता भारत सरकार, असम सरकार और बोडो संगठनों, जिसमें नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) शामिल था, के बीच हुआ।
मुख्य विशेषताएं:
- नाम परिवर्तन और अधिक स्वायत्तता: बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (BTC) का नाम बदलकर बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) कर दिया गया और इसे अधिक स्वायत्तता प्रदान की गई।
- गैर-बोडो गांवों का बहिष्कार: मौजूदा BTC के भीतर के गैर-बोडो गांवों को बाहर कर दिया गया।
- अधिकारों का विस्तार: BTC के अधिकारों को संविधान की छठी अनुसूची के तहत बढ़ाया गया।
- भाषाई मान्यता: बोडो भाषा को असम की एक सहायक आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई।