Child labour
संदर्भ:
बाल अधिकार क्षेत्र में कार्यरत एक नेटवर्क द्वारा जारी हालिया अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2024-25 में तेलंगाना, बिहार और राजस्थान भारत के वे तीन प्रमुख राज्य बनकर उभरे हैं जहाँ बाल श्रम से जुड़े मामलों में सबसे अधिक बचाव अभियान चलाए गए और सबसे अधिक गिरफ्तारियाँ दर्ज की गईं। यह रिपोर्ट बाल श्रम के विरुद्ध राज्यों की सक्रियता को दर्शाती है, साथ ही यह संकेत देती है कि इन क्षेत्रों में समस्या की व्यापकता अब भी एक गंभीर सामाजिक चुनौती बनी हुई है।
2024–25: Child labour के खिलाफ भारत में बड़ी कार्रवाई:
साल 2024–25 में भारत ने बाल श्रम के खिलाफ प्रयासों में तेज़ी देखी, जिसमें देशभर से 53,000 से अधिक बच्चों को मुक्त कराया गया।
मुख्य तथ्य:
- बाल अधिकारों पर काम करने वाले नेटवर्क Just Rights for Children (JRC) और Centre for Legal Action and Behaviour Change (C-LAB) की एक हालिया रिपोर्ट में शोषण के व्यापक स्तर और इसे समाप्त करने में आ रही संस्थागत चुनौतियों को उजागर किया गया है।
शीर्ष तीन राज्य (बाल श्रमिक बचाव में अग्रणी)–
- तेलंगाना– 11,063 बच्चे
- बिहार-3974 बच्चे
- राजस्थान– 3847 बच्चे
- इन तीन राज्यों ने राष्ट्रीय स्तर पर हुई कुल कार्यवाही में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
रिपोर्ट में सामने आया: 90% बच्चे “सबसे खराब प्रकार के बाल श्रम” में लगे थे–
बाल अधिकार नेटवर्क Just Rights for Children (JRC) और C-LAB की रिपोर्ट के अनुसार, मुक्त कराए गए लगभग 90% बच्चे ऐसे क्षेत्रों में कार्यरत थे जिन्हें अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के कन्वेंशन 182 के तहत “सबसे खराब प्रकार के बाल श्रम” की श्रेणी में रखा गया है। भारत इस कन्वेंशन को पहले ही अनुसमर्थित (ratify) कर चुका है।
प्रमुख क्षेत्र जहां बच्चे कार्यरत पाए गए–
- स्पा और मसाज पार्लर
- ऑर्केस्ट्रा मंडलियां
- घरेलू श्रम
- अनौपचारिक मनोरंजन सेवाएं
गंभीर शोषण की घटनाएँ:
- कई मामलों में बच्चों को यौन शोषण, अश्लीलता, और वेश्यावृत्ति जैसी परिस्थितियों में धकेला गया।
- ये तथ्य दर्शाते हैं कि बाल श्रम केवल आर्थिक शोषण नहीं, बल्कि मानवाधिकार हनन और संगठित अपराध से भी जुड़ा हुआ है।
बाल श्रम के दुष्परिणाम:
- स्वास्थ्य संबंधी जोखिम:
- बच्चे खतरनाक कार्य स्थितियों में काम करते हैं, जहाँ उन्हें शारीरिक व मानसिक शोषण, अत्यधिक कार्य घंटे और असुरक्षित वातावरण झेलना पड़ता है।
- इसके परिणामस्वरूप उन्हें चोट, बीमारियाँ और दीर्घकालिक विकास संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- शिक्षा से वंचित होना:
- बाल श्रमिक अक्सर स्कूल नहीं जा पाते, जिससे वे साक्षरता और बुनियादी शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
- इससे उनके भविष्य के अवसर सीमित हो जाते हैं और गरीबी का दुष्चक्र बना रहता है।
- विकास में बाधा:
- यह बच्चों के सामान्य बचपन को बाधित करता है — उन्हें खेलने, सामाजिक मेलजोल और भावनात्मक विकास के अवसर नहीं मिलते।
रिपोर्ट में सिफारिशें:
- राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन मिशन (National Mission to End Child Labour) शुरू किया जाए।
- प्रत्येक ज़िले में Child Labour Task Force का गठन हो।
- Child Labour Rehabilitation Fund की स्थापना हो।
- शिक्षा और पुनर्वास की सुनिश्चित व्यवस्था हो, ताकि बचाए गए बच्चों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
- 18 वर्ष की उम्र तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षालागू की जाए, जिससे स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति रुके।
- Zero-tolerance policy अपनाई जाए — विशेषकरसरकारी खरीद प्रक्रिया में बाल श्रम पर सख़्त प्रतिबंध लगे।
- खतरनाक उद्योगों की सूची में विस्तारहो।
- राज्य-विशिष्ट child labour policies बनें।
- SDG 8.7 (बाल श्रम समाप्त करने की समय-सीमा) को 2030 तक बढ़ाया जाए।
- अपराधियों पर समयबद्ध कानूनी कार्रवाईसुनिश्चित की जाए।