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अफगानिस्तान तक चीन की CPEC विस्तार नीति (China CPEC Expansion Policy to Afghanistan) | Ankit Avasthi Sir

China CPEC Expansion Policy to Afghanistan

सामान्य अध्ययन पेपर II: भारत और इसके पड़ोसी

 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में चीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ एक अनौपचारिक त्रिपक्षीय वार्ता की मेज़बानी की। इस वार्ता में तीनों देशों के बीच, चीन की CPEC परियोजना को अफगानिस्तान तक विस्तार करने पर सहमति बनी। 

China CPEC Expansion Policy to Afghanistan क्या हैं?
  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) एक बहु-आयामी परियोजना है, जिसे वर्ष 2015 में शुरू किया गया था, और यह चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) का प्रमुख अंग है। 
  • इस गलियारे का मूल उद्देश्य चीन के शिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ना है। 
  • इस परियोजना में लगभग 3000 किलोमीटर लंबे इस नेटवर्क में सड़कें, रेल मार्ग, ऊर्जा संयंत्र, विशेष आर्थिक क्षेत्र और फाइबर ऑप्टिक केबल शामिल हैं।
  • CPEC उस बिंदु पर स्थित है, जहां सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और 21वीं सदी की समुद्री सिल्क रोड का मिलन होता है। 
  • चीन ने इस परियोजना में लगभग 62 अरब डॉलर का निवेश किया है, जिसमें से 34 अरब डॉलर ऊर्जा परियोजनाओं पर और शेष सड़क व रेल नेटवर्क पर खर्च किए जा रहे हैं। 
  • यह पाकिस्तान और चीन के लिए मध्य एशिया खाड़ी देशों से ऊर्जा आयात का मार्ग संक्षिप्त बनाता है।
  • इसका लक्ष्य न केवल वाणिज्यिक संपर्क बढ़ाना है, बल्कि क्षेत्रीय सहयोग और आर्थिक स्थिरता को भी बढ़ावा देना है।
  • चीन इस गलियारे के ज़रिए अपने मुस्लिम बहुल शिनजियांग क्षेत्र को आर्थिक रूप से सशक्त कर आतंकवाद और अस्थिरता को नियंत्रित करना चाहता है। 

चीन अफगानिस्तान तक CPEC विस्तार क्यों करना चाहता है?

  • मध्य एशिया और दक्षिण एशिया को जोड़ने की रणनीति: चीन, अफगानिस्तान तक CPEC का विस्तार कर एक भूमि आधारित आर्थिक गलियारा तैयार करना चाहता है, जो मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के बीच प्रत्यक्ष संपर्क को संभव बनाए। इससे वह क्षेत्रीय व्यापार में मध्यवर्ती शक्ति के रूप में उभरेगा और एशियाई व्यापार मार्गों को अपने नियंत्रण में लेने की दिशा में आगे बढ़ेगा।
  • अफगानिस्तान में आर्थिक स्थिरता के माध्यम से प्रभाव बढ़ाना: चीन जानता है कि अफगानिस्तान की अस्थिरता उसके पश्चिमी सुरक्षा क्षेत्र के लिए खतरा बन सकती है। CPEC विस्तार के ज़रिए वह अफगानिस्तान को आर्थिक गतिविधियों और निवेश से जोड़कर वहां स्थायित्व और विकास की स्थिति बनाना चाहता है। 
  • पश्चिमी मोर्चे पर सुरक्षा सुनिश्चित करने की योजना: शिनजियांग प्रांत में मौजूद मुस्लिम उइगर समुदाय को लेकर चीन की चिंता लगातार बनी हुई है। अफगानिस्तान तक गलियारा बढ़ाकर चीन, इस क्षेत्र में कट्टरपंथी विचारों और आतंकवाद के प्रभाव को सीमित करना चाहता है। साथ ही, वह अपनी पश्चिमी सीमा पर कूटनीतिक और आर्थिक नियंत्रण बनाए रखना चाहता है।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव: अफगानिस्तान तक CPEC का विस्तार चीन को यह अवसर देता है कि वह खुद को एक “विकास समर्थक” और “स्थायित्व प्रदाता” देश के रूप में पेश कर सके। इससे वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भरोसेमंद साझेदार बनने की अपनी छवि को और मजबूत करना चाहता है।
  • ऊर्जा और संसाधनों की आसान पहुँच: अफगानिस्तान के पास खनिज संसाधनों और ऊर्जा भंडार की भरमार है, जिनका दोहन अब तक नहीं हो पाया। CPEC के विस्तार से चीन को इन संसाधनों तक सीधी और सस्ती पहुँच मिल सकती है। इससे वह अपनी औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति में आत्मनिर्भर बन सकता है।
  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को और मजबूत करना: CPEC को अफगानिस्तान तक ले जाकर चीन अपने Belt and Road Initiative (BRI) को और विस्तृत और प्रभावशाली बनाना चाहता है। यह विस्तार BRI को संपूर्ण एशिया में एक सशक्त नेटवर्क के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

CPEC को लेकर भारत की चिंता

  • क्षेत्रीय संप्रभुता पर खतरा: भारत CPEC को गौरव और संप्रभुता का उल्लंघन मानता है क्योंकि यह परियोजना पाकिस्तान-नियंत्रित कश्मीर (PoK) से होकर गुजरती है, जो भारत का अविभाज्य हिस्सा है। इस गलियारे का संचालन भारत की भू-भागीय अखंडता के लिए एक चुनौती के रूप में देखा जाता है।
  • भूराजनीतिक खतरा: CPEC के तहत चीन द्वारा विकसित किया गया ग्वादर बंदरगाह, ‘मोतियों की माला’ (String of Pearls) रणनीति का हिस्सा है। यह बंदरगाह भारत के अरब सागर में समुद्री सुरक्षा और व्यापार मार्गों के लिए खतरा पैदा करता है। इससे भारत की सामुद्रिक प्रभुसत्ता को चुनौती मिलती है।
    • चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच मजबूत होती त्रिपक्षीय साझेदारी भारत के लिए दक्षिण एशिया में राजनीतिक और सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकती है। 
  • क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता में वृद्धि: भारत का तालिबान से 2021 के बाद संबंध सुधारने का प्रयास, खासकर विकास और मानवीय सहायता के क्षेत्र में, चीन-पाकिस्तान- अफगानिस्तान गठजोड़ से प्रभावित हो सकता है। इससे भारत की काबुल में राजनयिक पकड़ कमजोर हो सकती है और मध्य एशिया तक पहुंच सीमित हो सकती है।
  • सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएं: इतिहास में अफगानिस्तान ने कई भारत विरोधी आतंकवादी समूहों जैसे जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा को आश्रय दिया है। चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ती साझेदारी रणनीतिक भारत के हितों के लिए खतरनाक हो सकता है।

CPEC की चुनौती से निपटने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • चाबहार बंदरगाह का विकास: भारत ने ईरान के साथ मिलकर चाबहार बंदरगाह के संचालन के लिए एक महत्वपूर्ण समझौता किया है। यह बंदरगाह भारत के लिए अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच का एक अहम द्वार साबित हो रहा है। पाकिस्तान के बिना यह मार्ग भारत को अपनी रणनीतिक और आर्थिक पहुंच बढ़ाने में मदद करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC): भारत ने INSTC परियोजना के माध्यम से एक व्यापक परिवहन नेटवर्क स्थापित किया है, जो भारत को मध्य एशिया और यूरेशिया से जोड़ता है। इस मार्ग के कारण भारत को पाकिस्तान के क्षेत्र से गुजरने की जरूरत नहीं होती, जिससे सुरक्षा और व्यापार दोनों क्षेत्र में फायदा मिलता है।
  • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC): भारत ने IMEC योजना की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व के बीच मजबूत आर्थिक और कनेक्टिविटी नेटवर्क बनाना है। यह परियोजना क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित और मजबूत कर क्षेत्रीय समेकन में मदद करती है।
  • दक्षिण एशियाई देशों के साथ कूटनीतिक मजबूती: भारत ने दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई राजनयिक प्रयास किए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेपाल में SAARC शिखर सम्मेलन में सक्रिय योगदान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका सहित कई पड़ोसी देशों के साथ बढ़ती दोस्ताना यात्राएँ भारत की रणनीतिक स्थिति को बढ़ाते हैं।
  • “कॉटन रूट” और “प्रोजेक्ट मौसम”: भारत ने अपनी प्राचीन समुद्री मार्गों और सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिए “कॉटन रूट” और “प्रोजेक्ट मौसम” जैसी पहलों को महत्व दिया है। ये परियोजनाएं क्षेत्रीय समृद्धि और विकास को बढ़ावा देने में सहायक हैं, जिससे भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक कनेक्टिविटी मजबूत होती है।

भविष्य की राह

  • भारत एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जहां क्षेत्रीय और वैश्विक बदलाव उसकी नीतियों और संबंधों को प्रभावित कर रहे हैं। नए राजनीतिक समीकरणों और आर्थिक गतिशीलताओं के बीच, भारत को अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाए रखना होगा ताकि वह अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रख सके। 
  • तालिबान के साथ भारत के संबंधों में सुधार हुआ है, लेकिन तीन-पक्षीय क्षेत्रीय गठजोड़ ने चुनौतियाँ भी पेश की हैं। भारत को अपने प्रभाव क्षेत्र को विस्तृत करने के लिए नवीन कूटनीतिक और आर्थिक साझेदारी स्थापित करनी होंगी। इसके लिए आवश्यक है कि वह मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के साथ बेहतर सहयोग की दिशा में कदम बढ़ाए।
  • चाबहार पोर्ट और उससे जुड़ी कनेक्टिविटी योजनाओं को और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है, ताकि क्षेत्रीय व्यापार और संपर्क बेहतर हो सके। भारत को न केवल आर्थिक, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी इस मार्ग का विकास करना होगा। 

बहुपक्षीय मंचों जैसे शंघाई सहयोग संगठन (SCO), अंतर्राष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) में सक्रिय भागीदारी से भारत अपने हितों की रक्षा कर सकता है। इन मंचों पर सहयोग बढ़ाकर भारत अपनी रणनीतिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है और नए आर्थिक अवसरों को भी प्राप्त कर सकता है।

 

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